गड्डे में फंसी कार की तरह राजस्थान सरकार, इससे मुक्ति ही एकमात्र उपाय - सिसोदिया
गड्डे में फंसी कार की तरह राजस्थान सरकार, इससे मुक्ति ही एकमात्र उपाय - सिसोदिया
राजस्थान में, गहलोत सरकार के कुर्सी युद्ध के चरम संघर्ष के साथ विदा हुआ 2022
तू तू - में में मे गुजार दिए चार साल, इनकी विदाई में ही राजस्थान की भलाई - अरविन्द सिसोदिया
राजस्थान में 17 दिसंबर 2018 को तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलेट से, अशोक गहलोत नें हाई कमान के अन्याय पूर्ण निर्णय से मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली थी, सचिन कुर्सी के ऊपर पहुंच कर भी नहीं बैठ पाये। तब से चल रहे इस कुर्सी की छिना छपटी का युद्ध और राजनैतिक नूरा कुश्ती लगातार बनी हुई है।
इस सरकार के तब बनाये गये उप मुख्यमंत्री एवं प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलेट नें इस दौरान पार्टी और सरकार से बगावत भी की। लेकिन कोई हल नहीं निकला, 4थे वर्ष की समाप्ति पर भी यह कुर्सी युद्ध यथावत बना हुआ है।
सन 2022 नें तो इस संघर्ष को नया कीर्तिमान दिया कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव के दौरान भी इस कुर्सी युद्ध नें अपना ऐतिहासिक रंग दिखाया, जिसमें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत नें कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद को ठोकर मार कर, हाई कमान से बगावत करके मुख्यमंत्री बने रहना पसंद किया।
खैर इस कुर्सी युद्ध का जहां आनंद कांग्रेस के विधायकों को खूब खूब आया, पांच सितारा होटलों का आनंद लिया, तबादला उद्योग चलाया और मनचाहा भ्रष्टाचार किया , कई कई पीढ़ियों का इंतजाम कर लिया।
इसका परिणाम जनता को कुशासन के रूप में, वायदा खिलाफ़ी के रूप में, नकल माफियागिरी के रूप में और एक निकम्मी व गैर जिम्मेवार सरकार के रूप में भुगतना पढ़ा। जिसनें जनता को पूरी तरह भगवान भरोसे छोड़ दिया।
राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत नें जनता की सेवा के चार साल, कुर्सी को पकड़े रखने में गुजार दिए। उनके कुर्सी युद्ध के कारण राजस्थान बहुमत सम्प्रदाय का शोषण करने वाला,सम्प्रदाय विशेष को एजेंडा पूरा करने का अवसर प्रदान करने वाला, राष्ट्र विरोधी संगठन PFI को प्रदर्शन कि अनुमति एवं शक्ति प्रदान करने वाला रहा। जिसके कारण राजस्थान में सर तन से जुदा कि घटना घटी !
सरकारी कामकाज में इतना भ्रष्टाचार व्याप्त है कि ऐतिहासिक आंकड़ों के साथ भ्रष्ट अफसर कर्मचारी पकड़े गये। गहलोत सरकार इन भ्रष्टाचारियों कि ढाल बन कर ख़डी है। कोई ठोस कार्यवाही नहीं होने देती। सरकारी कार्यालयों में बिना सेवा शुल्क के कोई काम ही नहीं होता, गहलोत राज में पैसा कमाने खाने की पूरी आजादी, बेशर्मी का यह आलम है कि हर भर्ती परीक्षा का पेपर करोड़ों रुपयों में पहले ही बेंच दिया जाता है।
ज़ब पेपर लीक हो जाता है, वह परीक्षा देने वालों कि परीक्षा तैय्यारियों और बहुत बड़े खर्च को बेकार कर देता है, यह बेरोजगारों पर अत्याचार से कम नहीं है। इसके लिए राजस्थान सरकार के विरुद्ध क्षतिपूर्ती आदेश जारी होने चाहिए। गहलोत सरकार के इस कुप्रबंधन की भेंट बेरोजगार परिवार क्यों चढ़े? माल कमाएं गहलोत के गुर्गे और आर्थिक क्षति तथा शारीरिक कष्ट बेरोजगार युवा और उसके परिजन भुगतें, आखिर क्यों?
राजस्थान नें इस दौरान कोरोना महामारी को भी भुगतान और गहलोत सरकार के कुप्रबंधन को भी छेला है। उस दौरान गंभीर गैर जिम्मेवार और अत्याचारी शासन राजस्थान नें भुगता है। ज़ब एक डेथ बाड़ी कार की सीट पर रख कर कोटा से झालावाड ले जाने का चित्र अखवारों में छपा तो आँखों से आंसू बह उठे थे। उन दिनों को कोई याद नहीं करना चाहता। मगर फिर से पड़ोसी देश चीन के हालात चिंता बड़ा रहे हैं।
में, मेरा परिवार, संताने इस बीमारी से लड़े, आयुर्वेद नें लड़ने में बहुत मदद की...। मगर उस दौरान जो अनुभव किया उसके आधार पर एक भावी सतर्कता पत्र प्रधानमंत्री जी को भेजा था, जिसमें अधिकांश उदाहरण राजस्थान के ही दिए गये थे, इसलिए वह पत्र वहाँ से राजस्थान सरकार को भेज दिया गया। वह राजस्थान आकर कचरे के डिब्बे में चला गया।
अब फिर वही महामारी दस्तक दे रही है, हिलाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री, राजस्थान में ही भारत जोड़ो यात्रा में पॉजिटिव हुए हैं। सरकार को फुर्सत मिले तो वह पत्र, अब पढ़ लेना, बहुत मदद मिलेगी जनहित का ध्यान रखने में। महामारी में भी किस तरह लूट मचाई जाती है, यह भी उसमें दर्ज है, ऑटो का किराया, फलों के दाम और एम्बुलेंस का महंगा किराया... अस्पतालों की लूट......कहां नहीं लूटा जिम्मेवारों नें।
बातें जितनी सोचो उतनी ही विफलताओं की फेहरिस्त लंबी होती जाती है, सबसे अच्छा यही है की, गड्डे में फांसी बेबस जैसी स्थिति की इस सरकार से पूरी तरह मुक्ति में ही राजस्थान का भला है।
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