मुफ्तखोरी और जनसंख्यावृद्धि देश को अंदर से खोखला करनें का षड्यंत्र - अरविन्द सिसोदिया

मुफ्तखोरी और जनसंख्यावृद्धि देश को अंदर से खोखला करनें का षड्यंत्र - अरविन्द सिसोदिया

भारत भले और भोले नागरिकों का देश है, इसका फायदा सदियों से दूसरे देश, दूसरे संम्प्रदाय, बाहरी आक्रमणकारी उठाते रहे हैं।

इस समय भारत को अंदर से तोड़नें, उसे खोखला करनें और उसमें रहनें वाले हिन्दुओं को इस्लाम या ईसाइयत में परिवर्तित करनें के अभियान चल रहे हैं। ये ताकतें कितनी भी अलग अलग दिखें, मगर मूल भारतीयों के विरुद्ध सब एक हैं अर्थात मूल भारत के विरुद्ध एक हैं।

सबसे मजेदार बात यह है कि जनसंख्यावृद्धि कर भारत को कब्जा करने के अभियान का ही एक हिस्सा, गरीबी के आधार पर मदद करना भी है। इससे उनके अभियान को सहायता मिलती रहे। बी पी एल कार्ड बनवानें और उसके उपयोग के ऐनालिसिस से इसे समझना बहुत आसान है।

पूर्णतः मुफ्तखोरी के तीन नुकसान होते हैं, एक तो अपव्यव , उस चीज या वस्तु की बर्बादी। तीनदिन दवाइयाँ खाई, बची नाली में फेंक दी। यदि यही दवाइयां 25 प्रतिशत छूट  पर दी जाएँ तो व्यक्ति पहले तीन दिन की ही दवा लेगा, जरूरत होने पर ही फिर तीन दिन की लेगा।

दूसरा देश के खजानें पर अनचाहा बोझ। यह देश को बर्बाद करना ही होता है। वह वे जरूरी काम रुक जाते हैं, जो होने चाहिए। जैसे सुरक्षा के लिए हथियार खरीदना, वैज्ञानिक अनुसंधान करना, विकासात्मक कार्यक्रम रुक जाना। डेम,  ब्रिज, बड़े पुल, रेल लाइनें, मेट्रो, अस्पताल, जीवन रक्षक उपकरण आदी का आभाव उत्पन्न हो जाना। कई देशों के आर्थिक पतन और भुखमरी इसके उदाहरण हैं।

तीसरा जो सबसे अधिक नुकसानदेह है वह यह कि नागरिकों को निकम्मा बना देना। मुफ्तखोर बना देना या एक प्रकार का भिखारी बना देना।

इस राष्ट्रघाती षड्यंत्र को समझना होगा और इसे विफल भी करना होगा।

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