में नहीं कहूंगा कि जवाहरलाल नेहरू जी अंग्रेजों के क्या थे ? - अरविन्द सिसौदिया controversial statement to : former-pm-atal-bihari-vajpayee
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में नहीं कहूंगा कि जवाहरलाल नेहरू जी अंग्रेजों के क्या थे ?- अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस का दोहरा चरित्र एक बार फिर से उजागर हुआ है, उनकी झूठ की फैक्ट्री से लगातार कई महापुरूषों को अपमानित किया जाता रहा है। पहले सावरकर को अंग्रेजों से क्षमा मांगने वाला बता कर अपमानित करना , अब अटलबिहारी वाजपेयी को अंग्रेजों का जासूस बताया जाना । यह कांग्रेस का पाखण्ड है कि वह खुद को छुपाती है और अपने कलंक को अपने प्रतिद्वंद्वी पर झूठा आरोपित करती है।
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कांग्रेस नेता गौरव पांधी ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की जयंती पर उनका अपमान किया है। पांधी ने दावा किया कि अटल जी ने ‘ब्रिटिश मुखबिर’ (British Informer) के रूप में काम किया। AICC के कॉर्डिनेटर गौरव पांधी (AICC Coordinator Gaurav Pandhi) ने यह भी दावा किया है कि “अटल बिहारी वाजपेयी ने नेली नरसंहार (Nellie Massacre) और बाबरी मस्जिद के विध्वंस (Demolition of Babri Masjid) में भीड़ को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।”
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जब आरोपों की बात हो, सच की तलाश हो और सबूत खोजे जा रहें हों तो एक बार संविधान सभा की बहस उठा कर उसमें पं0 जवाहरलाल नेहरू जी के द्वारा दिये गये भाषणों को जरूर पढ़ना चाहिये। विशेषकर भारत की ब्रिटेन के नेतृत्व वाले कॉमनवेल्थ संगठन में 1947 में किये गये हस्ताक्षर के संदर्भ को और उस पर संविधान सभा की बहस को ....! तब कोई भी कांग्रेसी यह साहस नहीं करेगा कि अंग्रेजों का कौन क्या है या कौन क्या था !
एक तरफ अटलजी की जयंती पर कांग्रेस युवराज समाधी पी पहुंच कर पुष्पांजली करते है। अच्छी बात है। दूसरी तरफ उनकी ही पार्टी के छुटभैययौ नेता टिविट कर आहत करते हैं कि अटलजी अंग्रेजों के जासूस थे। यह दौहरा चरित्र कांग्रेस का ही हो सकता है। विरोध बड़ता देख टिविट तो डिलिट हो गया, मगर मानसिकता उजागर हो गई।
में कुछ नहीं कहूंगा, एक दिवंगत नेता के प्रति आलोचना को भारतीय संस्कृति में पाप माना जाता है। आप खुद निश्चित करें कि इसे अंग्रेजों के प्रति क्या कहा जायेगा। यूं तो बहुत सारी और बातें भी अंग्रेजों की स्वामी भक्ती में लगे कांगेस जनों के व्यवहार को उजागर करने लिये मौजूद हैं। मगर अब लकीर पीटनें से कोई फायदा नहीं है। कांग्रेस को ज्यादा हायतौबा में नहीं पडना चाहिये, अंग्रजों को भारत सहित दुनिया के 50 से अधिक देश छोड कर जाना पडा है। यही सच है।
संविधानसभा में कॉमनवेल्थ के संदर्भ में बहस के कुछ अंश इस प्रकार से हैं :-
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कामनवेल्थ,स्वतन्त्रता के प्रति धोकेबाजी http://arvindsisodiakota.blogspot.com
By Arvind Sisodia
http://arvindsisodiakota.blogspot.com/ सितंबर 22, 2010
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संविधान सभा में ....
१६ मई १९४९ से संविधान सभा का नया सत्र प्रारंभ हुआ और उसमें पहले ही दिन तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरु ने " राष्ट्रमंडल की सदस्यता सम्बन्धी निर्णय के अनुमोदन के बारे में प्रस्ताव " सभा के समक्ष रखा, तथा वे उसे बिना बहस के कुछ ही मिनिट में पास करवा लेना चाहते थे..,, उनके प्रस्ताव के बहुत थोड़े अंश निम्न प्रकार से हैं..-
जवाहरलाल नेहरु :- "....यह निश्चित किया जाता है कि यह सभा भारत के राष्ट्र मंडल का सदस्य बने रहने के बारे में उस घोषणा का अनुसमर्थन करती है जिसके लिय भारत के प्रधान मंत्री (नेहरु जी ) सहमत हुए थे और जिसका उल्लेख उस सरकारी बयान में किया गया था जो २७ अप्रैल १९४९ को राष्ट्र मंडल के प्रधानमंत्रीयों के सम्मलेन के समाप्त होने पर निकाला गया था | "
स्वंय नेहरु जी ने स्वीकार करते हुए कहा है " ... इसमें ब्रिटिश राष्ट्रमंडल का और इस बात का जिक्र है कि इस राष्ट्र मंडल के लोग साझेतौर पर ' क्राउन ' के प्रती निष्ठावान है | .... " उन्होंने आगे कहा "... भारत शीघ्र ही एक प्रभुसत्ता संपन्न स्वतंत्र गणराज्य बनने जा रहा है और यह कि वह राष्ट्र मंडल का पूर्ण सदस्य बने रहने का इच्छुक है और ' सम्राट ' को स्वतंत्र साहचर्य के प्रतीक के रूप में मानता है... "
"...हमने पहले प्रतिज्ञाएँ कीं थी उन सभी को ध्यान में रख कर और अंततः इस माननीय सदन के संकल्प को ध्यान में रख कर, 'उद्देश्य संकल्प' को और बाद में जो कुछ हुआ उसे ध्यान में रख कर तथा उस संकल्प में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने जो आदेश मुझे दिया था उसे सामने रख कर मैं वहां गया और मैं पूरी नम्रता से आपसे कहना चाहता हूँ कि मैंने उसे आदेश का अक्षरशः पालन किया है | ... "
कुल मिला कर नेहरु जी ने अपने प्रस्ताव भाषण को सदन के सदस्यों को समझाने की द्रष्टि से इतना लंबा पढ़ा कि वे लिखित में १६ पेज का है | मगर कुछ जागरूक सदस्यों ने संशोधन पेश कर इस पर बहस का रास्ता खोला , हालांकी नेहरु जी ने ' अंतर्राष्ट्रीय संधियों पर बहस नहीं होने का तर्क यह कहते हुए रखा कि इस तरह की चर्चा से कोई संशोधन नहीं किया जा सकता ' मगर सभा के अध्यक्ष बाबू राजेन्द्र प्राशाद ने बहस कि अनुमती सभा के नियमों का हवाला देते हुए दे दी .., जिस अनुमोदन को नेहरु जी ने दस मिनिट का काम समझा था उस पर पूरे दो दिन बहस चली.., संविधान सभा में हुई चर्चा दोनों तरफ की थी , पहले दिन विरोध करने वालों का बोलवाला रहा तो दूसरे दिन समर्थकों की पौ बाहर रही..,
- प्रो. शिब्बनलाल सक्सेना ( संयुक्त प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"... में समझता हूँ कि यह घोषणा उन चुनावी प्रतिज्ञाओं का उल्लंघन है जो कांग्रेस पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र में की गई थीं , और जिनके आधार पर इस सदन के अधिकाँश सदस्य चुने गए थे और इस कारण यह सदन इस घोषणा का अनुसमर्थन करने के लिए सक्षम नहीं हैं | "
सक्सेना ने अपनी बात के समर्थन के लिए नेहरु जी के ही १९ मार्च १९३७ के उस भाषण को पढ़ कर सुनाया जो तब चुने गए विधायकों को संबोधित नेहरु जी द्वारा दिया गया था | इसी क्रम में नेहरु जी के १० अगस्त १९४० को लिखे गए लेख ' द पार्टिंग आफ द वेज ' का अंतिम भाग को भी सुनाया |
( सक्सेना ने ) आगे उन्होंने कहा "... जैसे ही प्रधानमंत्री जी ने (नेहरु जी ) इस घोषणा पर हस्ताक्षर किये उसी समय मलाया के मजदूर संघों के बहादुर भारतीय नेता गणपती को फांसी दे दी गई और आज जब हम इस संकल्प को पास करने जा रहे हैं तो मलाया में एक अन्य बहादुर भारतीय साम्ब शिवम् को या तो आज सुबह फांसी पर चढ़ा दिया होगा या फिर शायद आज किसी भी समय फांसी पर चढ़ा दिया जाएगा | में समझता हूँ कि ब्रिटिश साम्राराज्यवाद अपने ही रास्ते पर चल रहा है और वह अपने रास्ते से हटेगा नहीं भले ही हम उसे फुसलाने की या जीतने की कितनी ही कोशिशें क्यों न करें |..." उन्होंने अपने तर्क पूर्ण भाषण में विविध प्रकार से इस कोमनवेल्थ संघ में बने रहने की अनावश्यकता को चिन्हीत किया ...!
लक्ष्मी नारायण साहू ( उडीसा प्रांत के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"..हमें यह प्रतीत होता है कि हम अनजाने में उस जाल में के फंडों में फांस गए हैं जो कि अंग्रेजों ने इतनी चालाकी से तथा इतने गुप्त रूप से हमारे लिए बिछाया है |... "
हरि विष्णु कामत ( मध्य प्रांत और बरार के सामान्य वर्ग के सदस्य )
"...कुछ समय पूर्व जब मैंने हाउस आफ कामन्स में २ मई ( सन 1949) को मि. एटली द्वारा दिए गए एक प्रश्न के उत्तर को पढ़ा तो क्षुब्ध रह गया | जिस कागज़ पर इस घोषणा का प्रारुप तैयार लिया गया था और हस्ताक्षर हुए थे, उसकी स्याही अभी मुश्किल से ही सूखी होगी कि इसके केवल पांच दिन बाद ही एक प्रश्न के उत्तर में श्री एटली ने कहा कि राष्ट्रों के इस समूह के नाम में कोई परीवर्तन नहीं हुआ है |... "
एटली ने एक बार फिर इस तीनों अर्थात राष्ट्रमण्डल , ब्रिटिश राष्ट्रमण्डल तथा साम्राज्य का उल्लेख किया है |....
उन्होंने आगे कहा "... भारत को राष्ट्र मण्डल की आवश्यकता की अपेक्षा राष्ट्र मण्डल को भारत की आवश्यकता कहीं अधिक है | यदी इस मनोवैज्ञानिक तथ्य को ध्यान में रखा गया होता, तो बातचीत का शायद हम अधिक अच्छा परिणाम प्राप्त कर सकते थे | ....."
"... उत्साह ही है जिससे कि अंततोगत्वा अंतर पड़ता है | आज पराजयवाद की जिस भावना ने हमें जकड लिया है | उसका परित्याग करना होगा | यह दुर्बलता है , यह हमारे मन , मस्तिष्क तथा ह्रदय में बैठी कायरता है | मेरे विचार में आज जिस बात की आवश्यकता है , वह है कुरुक्षेत्र का युद्ध होने से पूर्व की वह मंत्रणा जो कि श्री कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध भूमि में दी _
क्लैब्यं मा स्म गमः पार्थ नैतत्त्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परन्तप॥२- ३॥
..... इस श्लोक का सारांश प्रस्तुत करता हूँ | यहाँ श्री कृष्ण अर्जुन से कह रहे हैं कि वह दुर्वलता तथा कायरता के आगे न झुके | वह कहते हैं ' अर्जुन , यह तुम्हे शोभा नहीं देता | ह्रदय की यह दुर्वलता लज्जाजनक है | इसका इसी क्षण परित्याग करो | उठो और युद्ध करो || ' ..."
दामोदर स्वरूप सेठ (संयुक्त प्रान्त )
".... जिन परिस्थितियों में यह सभा निर्वाचित हुई थी उनसे मैं पूरी तरह परिचित हूँ | यह लगभग एक दलीय संस्था है तथा इससे आसानी से वह सब कुछ करवाया जा सकता है जो सत्ताधारी सरकार करवाना चाहे | परन्तु फिरभी मैं यह कहूंगा कि संविधान सभा द्वारा इस प्रश्न पर अंतिम निर्णय लिए बिना प्रधानमंत्री को राष्ट्रमंडल में बने रहने पर सहमत नहीं होना चाहिए था |..."
सेठ गोविन्द दास (मध्य प्रांत और बरार )
"..... मैं मानता हूँ कि जिस कामनवेल्थ में हम शामिल हुए हैं वह कामनवेल्थ अभी सच्चा कामनवेल्थ नहीं है | मैं जानता हूँ कि अफ्रीका में हमारे निवासियों की जो स्थिती है , वह हमारे लिए तो दुःख कि बात है ही पर अफ्रीका निवासियों के लिए वह लज्जा की बात होनी चाहिए | मैं यह मानता हूँ कि आस्ट्रेलिया की जो व्हाईट पालिसी , जो श्वेतांगी नीति है , वह भी कामनवेल्थ के लिए शोभाप्रद नहीं |..."
मौलाना हसरत मोहानी ( संयुक्त प्रान्त से मुस्लिम )
".....मैं किसी ऐसे पिशाच का स्वागत नहीं कर सकता जो गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी ! यह प्रत्यक्षतः एक अनर्गल बात है |....."
"....मेरे मित्र तथा सहयोगी शरत बोस ने इस घोषणा के बारे में कहा है कि यह एक बहुत बड़ी धोकेबाजी है और मैं उनके इस मत से पूर्णतया सहमत हूँ | में उनसे एक कदम आगे बढ़ कर यह कहना चाहता हूँ कि यह न केवल भारतीय स्वतन्त्रता के प्रति धोकेबाजी है किन्तु एशिया के उन सभी देशों के प्रयत्नों के प्रति भी धोकेबाजी है जो स्वतंत्रता प्राप्ती के लिए सचेष्ट हैं |..... "
निष्कर्स :-
सभा में कांग्रेस का प्रचंड बहुमत था .., जवाहरलाल नेहरु प्रधानमन्त्री थे , सभा द्वारा उनके रखे प्रस्ताव को स्वीकार करना ही था , सो स्वीकार कर लिया गया मगर इसमें उन्हें पशीना आ गया था.., बाद में बहस के समापन में भी उन्होंने १० पेज का भाषण पढ़ कर यह कोशिश कि यह सब कुछ देश हित में है, मगर इसके परिणाम बहुत घातक हुए... आज तक जो यूरोपवाद भारत पर सवार है.., उसके मूल में यही पराजित मानसिकता है..!
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गणराज्य भी हो और उपनिवेश भी !
क्या आपको कामनवेल्थ खेलों के इस आयोजन में देश की राष्ट्र भाषा , राज्य
भाषा और राष्ट्र गौरव का कही एहसास हो रहा है..., इसमें प्रान्तीय भाषाओँ
और उनसे जुड़े गौरव कहीं दिख रहे हैं..., नहीं तो आप ही फैसला की जिए कि इस
संगठन में रह कर हमने क्या खोया क्या पाया...!!!!!
कोमंवेल्थ का सामान्य परिचय यह है कि :-
राष्ट्रकुल,
या राष्ट्रमण्डल देश (अंग्रेज़ी:कॉमनवेल्थ ऑफ नेशंस) (पूर्व नाम ब्रितानी
राष्ट्रमण्डल), ५३ स्वतंत्र राज्यों का एक संघ है जिसमे सारे राज्य
अंग्रेजी राज्य का हिस्सा थे ( मोज़ाम्बीक और स्वयं संयुक्त राजशाही को
छोड़ कर )। इसका मुख्यालय लंदन में स्थित है। इसका मुख्य उद्देश्य
लोकतंत्र, साक्षरता, मानवाधिकार, बेहतर प्रशासन, मुक्त व्यापार और विश्व
शांति को बढ़ावा देना है। इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय प्रत्येक
चार वर्ष में होने वाले राष्ट्रमंडल खेलों और बैठक में भाग लेती हैं। इसकी
स्थापना १९३१ में हुई थी, लेकिन इसका आधुनिक स्वरूप १९४७ में भारत और
पाकिस्तान के स्वतंत्र होने के बाद निश्चित हुआ। लंदन घोषणा के तहत ब्रिटेन
की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय राष्ट्रमंडल देशों के समूह की प्रमुख होती
हैं। राष्ट्रमंडल सचिवालय की स्थापना १९६५ में हुई थी। इसके महासचिव मुख्य
कार्यकारी के तौर पर काम करते हैं। वर्तमान में कमलेश शर्मा इसके महासचिव
हैं। उनका चयन नवंबर, २००७ को हुआ। इसके पहले महासचिव कनाडा के आर्नल्ड
स्मिथ थे।
पुनः गलामी का प्रतीक
संविधान सभा में इस मुद्दे पर बहस
हुई थी कि हम ने कोमनवेल्थ की सदस्यता को क्यों बने रहने दिया उसे त्यागा
क्यों नहीं .., वरिष्ठ कांग्रेसीयों ने इसे देश हित के विरुद्ध बताते हुए
राष्ट्र कि पुनः गलामी का प्रतीक माना था जो कई मायनों में सही साबित
हुआ...! इस संगठन ने ज्यादातर मौकों पर पाकिस्तान का फेवर किया और भारत को
बेवजह दबाया गया , यह भारत की राष्ट्र भाषा और अन्य प्रादेशिक भाषों के लिए
हानीकारक रहा और अनुसन्धान के लिए ही नही वरन सामरिक हितों पर भी दगाबाज
साबित हुआ ..! सच सिर्फ यह है कि यह आज भी ब्रटिश गुलाम देशों कि ब्रिटश
ग़ुलामी को निरंतर बनाये रखने का उपकरण मात्र है...! ब्रिटेन की विश्व
व्यापी अधिनायकत्व को वर्तमान में बनाये रखने का उद्धम है..!!
टिप्पणियाँ
कविता रावत 22 सितंबर 2010 को 5:45 pm बजे
अपनी अलग ही किस्म का कमाऊ वेल्थ गेम बन गया है यह!!
आज तक जो यूरोपवाद भारत पर सवार है.., उसके मूल में यही पराजित मानसिकता है..!
...बहुत सही बात
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