श्रीराम और राम सेतु लाखों वर्ष पूर्व से हैं - अरविन्द सिसोदिया Shri Ram and Ram Setu are from millions of years ago

 

श्रीराम और राम सेतु लाखों वर्ष पूर्व से हैं - अरविन्द सिसोदिया

 Shri Ram and Ram Setu are from millions of years ago


यह अनेकों बार हुआ कि कोई भी व्यक्ति कोई भी कम्प्यूटर या सौफटवेयर की आड लेकर , श्रीराम के जन्म के समय को राम सेतु के निर्माण के समय को लेकर कुछ तो भी कह देता है। इस झूठ को फैलाना बंद कीजिये । क्यों कि हिन्दू सनातन के आदि ग्रन्थों में सब कुछ बहुत बहुत स्पष्ट है।  जैसे कि - श्रीराम का जन्म त्रेतायुग में हुआ था । श्रीकृष्ण का जन्म द्वापर युग में हुआ था । अब लगभग
5124 वर्षों से कलयुग है।
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श्री कृष्ण का जन्म कितने वर्ष पहले हुआ था ?
ईस्वी सन् 2022 के अनुसार , हम पृथ्वी पर पहले मानव के जन्म के बाद 1,96,40,92,872 वर्षों में हैं।
चल रहे वर्ष 1,96,40,92,872 - श्रीकृष्ण का जन्म 1,96,40,87,874 वर्ष = 4998 वर्ष।

अब तक कलयुग कि कितनी आयु निकल चुकी हैं । इस बारे में आर्यभट्ट कि पुस्तक आर्यभट्टिका के अनुसार कलियुग ईशा से 3102 वर्ष पूर्व शुरू हुआ था। अभी ईशा के बाद 2022 चल रहा हैं अर्थात कलयुग को 5124 साल का समय व्यतित हो गया।

इसी तरह भल्लिका तीर्थ पर श्री कृष्ण के वैकुण्ठ जाने का समय लिखा हैं और कलयुग का आगमन उनके जाने के बाद ही माना जाता हैं। वहा पर भी श्री कृष्ण जी के जाने का समय ईशा पूर्व 3102 लिखा हैं।
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हिन्दू जो कि सनातन कहलाता है। यह विश्व का प्रथम धर्म है जिसके ऋषियों , मुनियों , संतों ने बडे बडे अनुसंधान कर नक्षत्रों और आकाशगंगाओं की गति को समझा जाना और व्यवस्थित  किया हुआ है। युग व्यवस्था, महायुगी व्यवस्था,मनवन्तर व्यवस्था, बृहमाजी के दिन एवं रात्रि की व्यवस्था । प्रलय और पनुः सृजन का चक्र आदि को बहुत ही गहराई तक पहुंच कर जाना है। उससे समाज को परिचित भी करवाया है। भारतीय आध्यात्म ही है जो सबसे पहले हार्डवेयर और सॉफटवेयर के बारे में बताता है। शक्ति और शास्त्र के बारे में बताता है। काल की गति और लय के बारे में बताता है।

पंच महाभूतों अर्थात सृष्टि के पांच प्रमुख कारक तत्वों के बारे में बताता है। ऋगवेद अग्नि के बारे में बहुत सारे व्याख्यान देता है। यही सच है कि सॅपूर्ण सृष्टि का सृजन, संचालन एवं समापन टेम्प्रेचर यानिकि  तापमान ( अग्नि ) से ही नियंत्रित है।

 भारत के पूर्वज बडे बडे वैज्ञानिक ही थे। इसका एक उदाहरण महर्षि बाल्मीकी हैं, जिनके आश्रम में भगवान श्रीराम के पुत्र लव एवं कुश पले और शिक्षित हुये । इन्होनें बाल्मिकी जी से जो शस्त्र विद्या सीखी थी , उससे अयोध्या की पूरी सेना को बिना क्षती पहुचायें मूर्क्षित कर पराजित कर दिया था। यह रासायनिक युद्ध कौशल भी कहा जा सकता है।

भारत में युग व्यवस्था इस प्रकार है कि ईश्वर की व्यवस्था पर पूरी तरह आश्रित रहने वाली व्यवस्था सतयुग है, जो पूरी तरह प्राकृत है ऋत है। जो 4 कलयुग के बराबर की आयु रखती है। इसी तरह त्रेता युग में जीव सभ्यता अपने सोच विचार के कुछ सामर्थ्य का उपयोग करने लगती है। यह तीन कलयुग के बराबर की आयु रखती है। इसी कारण त्रेता कहलाती है। इसी तरह द्वापर युग है जिसमें जीव सभ्यता कॉफी विकसित हो जाती है। इसकी आयु दो कलयुग के बराबर होती है। इसी कारण द्वापर कहलाती है। यह क्रम सतयुग ,त्रेतायुग, द्वापरयुग और कलयुग के रूप में चलता है। कलयुग में यह व्यवस्था पूरी तरह विकसित होकर ईष्वर विरोधी होकर नष्ट हो जाती है। फिर इसके बाद पुनः सतयुग आ जाता है। ठीक वैसे ही जैसे रात्रि के बाद पुनः सूर्योदय हो जाता है।  

कलयुग की आयु 4 लाख 32 हजार वर्ष है।
द्वापर की आयु 2 कलयुग के बराबर अर्थात 8 लाख 64 हजार वर्ष है।
त्रेता युग की आयु 3 कलयुग के बराबर है अर्थात 12 लाख 96 वर्ष है।
सतयुग की आयु 4 कलयुग के बराबर है अर्थात 17 लाख 28 हजार वर्ष है।
अर्थात यह एक महायुग कहलाता है। इसमें 10 कलयुग का काल समाविष्ट है। यानि कि 43 लाख 20 हजार वर्ष इसके अतिरिक्त संधिकालों की भी चर्चा है। कहने का मतलब इतना ही है। कि श्रीराम का जन्म लाखों वर्ष पूर्व का है। श्रीकृष्ण का जन्म ही जिस द्वापर युग में हुआ है, उसकी द्वापर की आयु 8 लाख 64 हजार वर्ष की थी। त्रेता कम से कम द्वापर के पूर्व आया है, यह तो तय सुदा तथ्य है। त्रेता की आयु भी 12 लाख 96 हजार वर्ष की है, इसमें कभी श्रीराम ने जन्म लिया है। कलयुग के समय को छोड दिया जाये और त्रेता का समय न जोडा जाये तो भी मध्य में 8 लाख 64 हजार वर्ष का द्वापर युग का काल खण्ड तो है ही । इसीलिये श्रीराम का जन्म लाखों वर्ष पूर्व का है।

श्रीराम सेतु लाखों वर्ष पुराना है और इसी नाम से विख्यात है। भारत और श्रीलंका दोनों ही देशों में ही इसकी आस्था एवं विश्वास को लेकर कोई मतभेद नहीं है। सारे भ्रम की जड़ एक विदेशी समुदाय  की विश्व राजनीति है।
अन्यथा विश्व प्रसिद्ध अंतरिक्ष संस्थान के एक अनुसंधान इसे लेकर 17.5 लाख वर्ष की पूर्वतता कह रहा था । बाद में जब यह लगा कि इससे भारत के सनातन हिन्दू धर्म को बल मिल रहा है। तो वह अनुसंधान लापता कर दिया गया है। 


कई ज्योतिषी सोफटवेयर को लेकर इतने उत्साहित होते हैं कि श्रीराम के जन्म को मात्र कुछ हजार वर्षों में ही समेट देते हैं । जो कि झूठ है। बाल्मीकी रामायण में ग्रहों की स्थिती जो वर्णित है। वह सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण की तरह अनेकों बार समय विशेष के अंतराल पर आती रहती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ ग्रहों के बार बार वक्री और मार्गी होनें से भी गणना में अंतर आता है। जिसे भारतीय पंचांग सिस्टम तो ठीक करता रहता है। सोफ्टवेयर सिस्टम में संदिग्ध है। कोई सोफटवेयर 2 अरब वर्ष पूर्व के तथ्यों को नहीं बता सकता । यह एक झूठ का बुना जाल है, जिसका मकसद हिन्दुत्व को मात्र काल्पनिक साबित करने का उपक्रम है।

विज्ञान जितना प्रगति करेगा, हिन्दुत्व उतना ही प्रमाणित होता जायेगा, क्यों कि हिन्दुत्व में सत्य सर्वोपरी है। सत्य परेशान हो सकता है पराजित नहीं हो सकता है।

- उपग्रह चित्रों से प्रमाणित हुआ कि शिवालिका पहाडियों हिमालय से लेकर खंभात की खाडी, गुजरात तक , पूर्व काल में कोई बडी - विशाल नदी बहती थी, जिसके पाट / तलछट की चौडाई कई जगह 8 किलोमीटर तक रही है। जो किसी भूगर्भीय परिर्वतन के क्रम में लुप्त हो गई । यह वेदों में वर्णित एवं वर्तमान में लुप्त भारत की सबसे बडी बेगवान सरस्वती नदी ही है। जो पृथ्वी की आंतरिक या हिमालय की बाहरी संरचना में परिर्वतन से संभवतः यमुना में मिल गई है। प्रयाग में इसे पृथ्वी के अंदर से बाहर निकल कर गंगा-यमुना के त्रिवेणी संगम में मिलते हुये बताया भी जाता है।


- गुजरात की द्वारका में समुद्र में डूबी हुई द्वारका नगरी के अवशेष मिल गये है। वहां समुद्र में नीचे किसी विशाल नगर के व्यवस्थित बसे होनें के अवशेष हैं। यह श्रीकृष्ण की ही डूबी हुई द्वारका है।


- विश्व के तमाम खगोलीय वैज्ञानिक पृथ्वी की आयु लगभग 2 अरब वर्ष की मानते हें। अर्थात 2 अरब वर्ष पूर्व पृथ्वी का जन्म हुआ होगा । आश्चर्य यह है कि हिन्दू काल गणना पंचांग भी ठीक ठीक 2 अरब वर्ष के पास ही पृथ्वी की आयु बताता है। दोनों की समानता भारतीय ज्ञान के प्रमाण की उच्चता को प्रमाणित ही करते है। सत्य को प्रमाणित करते हैं।


- जब विज्ञान भारतीय कालगणना और उसके पंचांग तथा श्रीराम सेतु, सरस्वती और द्वारका को प्रमाणित करने लगा तो इन्हे काल्पनिक कहने वाले मेकालेवादी ब्रिटिश तथा यूरोपियन समुदाय के उन लोगों को चिन्ता हुई जो हिन्दू विरोधी हैं। जिन्होने विक्रम संवत के संस्थापक विश्वविजेता सम्राट विक्रमादित्य तक को काल्पनिक बताया था।

अर्थात प्रत्येक भारतवासी को समझना होगा कि हम अनादिकालीन हैं, सिर्फ कल्पना के आधार पर हमें छोटा करनें की कोशिश करने वालों के झांसे में कतई नहीं आना है।
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कुल मिला कर दिन रात्रि की ही तरह सब कुछ बार बार आता जाता रहता है --- 



ईश्वर को उसकी रचना को न तो कोई समझा है, न ही आसानी से समझ में आ सकता है। मगर सनातन हिन्दू धर्म का एक सिद्यांत अवश्य हमें मार्ग दिखाता है । कि सब कुछ बनता, विकसित होता और नष्ट हो जाता है और फिर से पुनः जन्म जीवन और मृत्यु के चक्र की तरह बार बार बनता बिगडता रहता है। जिस तरह एक तरंग बनती है और समय के साथ करोडों बार बनती बिगडती चलती रहती है। इस सृष्टि सृजन का इतना ही सत्य हम समझ सकते है। इसके विराट और सूक्ष्म को , सूई की नोंक भी बुद्धि नहीं रखनें वाले वैज्ञानिक भी क्या समझेंगे। वे भी तो ईश्वर के तयसुदा व्यवस्था को खोजते रहते है। उससे अपना लाभ या अपना कार्य करते है। ईश्वरीय व्यवस्था और सम्पत्ती से परे वे भी नहीं जा सकते हैं। इसलिये हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता, वेद पुराण गायें सभी संता । पर विश्वास रख कर चलते रहे.....! सच और झूठ के बहुत से षडयंत्रों का सामना करना ही पढेगा उन्हे विफल भी करना पढेगा।

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