ईश्वर से संबंध का महत्व best relationship with God

संबंधों का महत्व होता है, यदि ईश्वर से संबंध बन जाएँ तो क्या कहने। शरीरी अस्तित्व से लाखों गुणा ज्यादा सूक्ष्म शरीरी जीवन हैं। शरीर से अलग होने पर भी आत्मा एक एक विराट विश्व में विचरण करती है, जिससे हम अनजान हैं। आध्यात्म जगत हमें उन्ही रहस्यों का कुछ परिचय करवाता है। 

💫💦 *परमात्मा से सम्बन्ध* 💫💦

एक बार एक पंडित जी ने एक दुकानदार के पास पांच सौ रुपये रख दिए।
उन्होंने सोचा कि जब मेरी बेटी की शादी होगी तो मैं ये पैसा ले लूंगा।
कुछ सालों के बाद जब बेटी सयानी हो गई,
तो पंडित जी उस दुकानदार के पास गए।

लेकिन दुकानदार ने नकार दिया और बोला- आपने कब मुझे पैसा दिया था?
बताइए! क्या मैंने कुछ लिखकर दिया है?

पंडित जी उस दुकानदार की इस हरकत से बहुत ही परेशान हो गए और बड़ी चिंता में डूब गए।
फिर कुछ दिनों के बाद पंडित जी को याद आया,
कि क्यों न राजा से इस बारे में शिकायत कर दूं।
ताकि वे कुछ फैसला कर देंगे और मेरा पैसा मेरी बेटी के विवाह के लिए मिल जाएगा।

फिर पंडित जी राजा के पास पहुंचे और अपनी फरियाद सुनाई।

राजा ने कहा- कल हमारी सवारी निकलेगी और तुम उस दुकानदार की दुकान के पास में ही खड़े रहना।

दूसरे दिन राजा की सवारी निकली।
सभी लोगों ने फूलमालाएं पहनाईं और किसी ने आरती उतारी।

पंडित जी उसी दुकान के पास खड़े थे।
जैसे ही राजा ने पंडित जी को देखा,
तो उसने उन्हें प्रणाम किया और कहा- गुरु जी! आप यहां कैसे?
आप तो हमारे गुरु हैं।
आइए! इस बग्घी में बैठ जाइए।

वो दुकानदार यह सब देख रहा था।
उसने भी आरती उतारी और राजा की सवारी आगे बढ़ गई।

थोड़ी दूर चलने के बाद राजा ने पंडित जी को बग्घी से नीचे उतार दिया और कहा- पंडित जी! हमने आपका काम कर दिया है।
अब आगे आपका भाग्य।

उधर वो दुकानदार यह सब देखकर हैरान था,
कि पंडित जी की तो राजा से बहुत ही अच्छी सांठ-गांठ है।
कहीं वे मेरा कबाड़ा ही न करा दें।
दुकानदार ने तत्काल अपने मुनीम को पंडित जी को ढूंढ़कर लाने को कहा।

पंडित जी एक पेड़ के नीचे बैठकर कुछ विचार-विमर्श कर रहे थे।
मुनीम जी बड़े ही आदर के साथ उन्हें अपने साथ ले आए।

दुकानदार ने आते ही पंडित जी को प्रणाम किया और बोला- पंडित जी! मैंने काफी मेहनत की और पुराने खातों को‌ देखा,
तो पाया कि खाते में आपका पांच सौ रुपया जमा है।
और पिछले दस सालों में ब्याज के बारह हजार रुपए भी हो गए हैं।
पंडित जी! आपकी बेटी भी तो मेरी बेटी जैसी ही है।
अत: एक हजार रुपये आप मेरी तरफ से ले जाइए,
और उसे बेटी की शादी में लगा दीजिए।

इस प्रकार उस दुकानदार ने पंडित जी को तेरह हजार पांच सौ रुपए देकर बड़े ही प्रेम के साथ विदा किया।

------ तात्पर्य ------
जब मात्र एक राजा के साथ सम्बन्ध होने भर से हमारी विपदा दूर जो जाती है, तो हम अगर इस **दुनिया के राजा यानि कि परमात्मा** से अपना सम्बन्ध जोड़ लें, तो हमें कोई भी समस्या, कठिनाई या फिर हमारे साथ किसी भी तरह के अन्याय का तो कोई प्रश्न ही नहीं उत्पन्न होगा
 जय श्री राम

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

पहले दिन से सुपरफ़ास्ट दौड़ रही है भजनलाल शर्मा सरकार - अरविन्द सिसोदिया cm rajasthan bhajanlal sharma

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

युवाओं को रोजगार से जोडने की भाजपा की ऐतिहासिक पहल - राकेश जैन BJP Kota City

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

ईश्वर तो समदर्शी, भेद हमारे अपने - अरविन्द सिसोदिया ishwar

महापुरुषों के शौर्य को पाठ्यक्रम में पर्याप्त स्थान दिया जाये Mahapurushon ko sthan

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग