ईश्वर की सभी व्यवस्थाएँ चक्रीय क्रम में होती हैँ - अरविन्द सिसोदिया hindu dharm

ईश्वर की सभी व्यवस्थाएँ चक्रीय क्रम में होती हैँ - अरविन्द सिसोदिया 

ईश्वर के सृजन चाहे वह अरबों खरबों पिंडों के रुपमें हो, प्रकृति के रूप में हो या जीवन मृत्यु के रूप में हो, एक चक्र के रूप में काम करता है। जैसे जीवन मृत्यु और फिर जीवन, दिन रात और फिर दिन, इसी तरह बरसात सर्दी और गर्मी फिरसे बरसात, इसी तरह चन्द्रमा का घूमना, राशियों में घूमना, सूर्य का घूमना। अर्थात ईश्वर नें सभी व्यवस्थायें चक्रिय क्रम में रखा है। 

अर्थात दुःख भी एक दिन जायेगा और सुःख भी आएगा।

इस तथ्य के लिए हमें यह देखना होगा कि ये ईश्वर की व्यवस्थाएं किस प्रकार से कार्य करती हैं। धार्मिक और सैद्धांतिक दृष्टिकोण से, कई लोग मानते हैं कि ईश्वर की व्यवस्थाएं मूल रूप से एक चक्रीय क्रम में होती हैं। इसमें विभिन्न धर्मों और संरचनाओं पर विचार किया गया है, जिसमें जीवन चक्र, ऋतुओं का परिवर्तन और अन्य प्राकृतिक संरचनाएं शामिल हैं।

1. प्राकृतिक चक्र: प्रकृति में कई चक्र होते हैं जैसे कि दिन-रात का चक्र, मौसम का चक्र, और जीवन का चक्र। ये सभी अनुष्ठान एक निश्चित क्रम में होते हैं जो समय के साथ दोहराए जाते हैं। उदाहरण के लिए, पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर घूमते हुये स्वयं की धुरी पर घूमनें का  ऐसा चक्र है जो दिन और रात का निर्माण करता है। इसी तरह तरह चन्द्रमा का पृथ्वी के चारों और घूमना को पूर्णिमा और अमावस्या का निर्माण करता है।

2. विज्ञान और तर्कशास्त्र: विज्ञान भी इस बात की पुष्टि करता है कि कई प्राकृतिक घटनाएँ नियमितता और क्रम पर आधारित होती हैं।  एक निश्चित तरीके से क्रमपूर्वक कार्य करते हैं।

3-  मानव अनुभव: मनुष्य अपने जीवन में कुछ स्वभाविक रूप से दोहराए जाते हैं। जैसे फसलें हर साल उगती हैं और जीव-जन्तु अपनी उत्पत्ति चक्र का पालन करते हैं। यह सब कुछ एक सैद्धांतिक तरीका होता है जो हम पर ईश्वरीय व्यवस्था से लागू होता है। इसके पीछे कोई उच्च शक्ति एवं उसकी व्यवस्था ही काम करती है।

इस प्रकार, ईश्वर की सभी व्यवस्थाएँ एवं वैज्ञानिकतायें एक चक्र क्रम पर आधारित हैं , जो न केवल धार्मिक बल्कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी सही विशिष्ट हैं।

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