महात्मा गाँधी को बचाने के प्रयास क्यों नहीं हुये - अरविन्द सिसोदिया Mahatma Gandhi

महात्मा गाँधी को बचाने के प्रयास क्यों नहीं हुये - अरविन्द सिसोदिया 
यह सच है कि राष्ट्रवादी विचारधारा से जुड़े पत्रकार और संपादक नाथूराम गोडसे को महात्मा गाँधी की हत्या के लिये फांसी की सजा हुई और उतना ही सच यह भी है कि हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष स्वतंत्रता सेनानी वीर विनायक दामोदर सावरकर को बरी कर दिया था । और कभी भी किसी भी जाँच एजेंसी नें संघ को महात्मा गाँधी की हत्या में सम्मिलित नहीं माना है।

लेकिन एक सच को हमेशा नजर अंदाज कर दिया जाता है कि " महात्मा गांधी की हत्या क्यों होनें दीं गईं " जबकि उनकी हत्या का पहला बड़ा प्रयास 20 जनवरी 1948 को हुआ था। फिर हत्यारे मात्र 10 दिन में ही कैसे वापस आकर हत्या को अंजाम दे सके। जबकि सादा वर्दी में सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था करना जवाहरलाल नेहरू सरकार का सर्वोच्च कर्तव्य था। पुलिस फेल्योर का यह सबसे बड़ा उदाहरण है।

महात्मा गांधी पर पहला हमला 20 जनवरी, 1948 को हुआ था. यह हमला बिरला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा के दौरान हुआ था. इस हमले में एक बम विस्फोट हुआ था. इस हमले में मदनलाल पाहवा को गिरफ़्तार किया गया था. जिसने पूरी योजना भी बता दीं थी, गाँधी जी के प्राण संकट में हैँ। फ़िरभी सुरक्षा क्यों नहीं की गईं।

महात्मा गांधी को आभास हो गया था 

20 जनवरी, 1948 को बिरला हाउस में शाम की प्रार्थना सभा के दौरान एक बम विस्फोट हुआ था. इस हमले में मदनलाल पाहवा को गिरफ़्तार किया गया था. मदनलाल पाहवा ने कबूल किया था कि बम विस्फोट गांधी जी की हत्या के प्रयास का हिस्सा था. 

इस हमले में भीड़ डर गई और लोगों की अराजक भगदड़ मच गई. गांधी जी वक्ताओं के मंच पर अकेले रह गए. 
हत्या की मूल योजना यह थी कि भीड़ के भाग जाने के बाद, अलग-थलग पड़े गांधी पर दूसरा ग्रेनेड फेंका जाए. 

इस के मात्र 10 दिन बाद ही महात्मा गांधी की हत्या 30 जनवरी, 1948 को हो गईं . 

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महात्मा गांधी को हो गया था अपनी मौत का आभास -
उन पर पहला हमला 20 जनवरी 1948 को हुआ था, लेकिन वे बच गए थे। इसके बाद के दस दिनों में, उन्होंने कई बार अपनी मृत्यु का पूर्वाभास होने की बात कही थी। उन्होंने अखबारों, जनसभाओं और प्रार्थना सभाओं में कम से कम 14 बार इसका जिक्र किया था।
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, महात्मा गांधी की हत्या के अदालती फ़ैसले को गुप्त नहीं रखा गया था. इस मामले की जजमेंट फ़ाइल दिल्ली हाई कोर्ट के ई-म्यूज़ियम पर उपलब्ध है. इस मामले से जुड़ी कुछ खास बातें:
  • महात्मा गांधी की हत्या के मामले में नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को फांसी की सज़ा सुनाई गई थी. इस मामले में कुल नौ लोगों को आरोपी बनाया गया था. इस मामले में विनायक दामोदर सावरकर को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया इस मामले में गोपाल गोडसे, विष्णु करकरे, मदनलाल पहवा, दत्तात्रेय परचुरे, दिगंबर बड़गे और शंकर किस्तैया को उम्रकैद की सज़ा सुनाई गई थी. इस मामले में नाथूराम गोडसे और नारायण आप्टे को 15 नवंबर, 1949 को अंबाला की सेंट्रल जेल में फांसी दी गई थी. इस मामले में पंजाब हाई कोर्ट ने शंकर किस्तैया और दत्तात्रेय परचुरे को रिहा कर दिया था.
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 महात्मा गांधी की हत्या में संघ का हाथ नहीं : वैद्य
 9/9/2016

उदयपुर | राष्ट्रीयस्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ. मनमोहन वैद्य ने कहा है कि नाथूराम गोडसे संघ के सदस्य थे। हालांकि, उन्होंने महात्मा गांधी की हत्या में संघ का हाथ होने की बात को नकार दिया। वैद्य ने कहा कि राहुल गांधी सिर्फ संघ पर गांधीजी की हत्या करने का आरोप लगा रहे हैं। यदि उनके पास कोई सबूत है तो साबित करना चाहिए। डॉ. वैद्य ने यह बात गुरुवार को प्रताप गौरव केंद्र में चल रहे अखिल भारतीय समन्वय बैठक से पहले प्रेस वार्ता में कही।

वैद्य ने कहा-संघ एक खुला संगठन है। कई लोग अपनी अपेक्षा लेकर आते हैं, लेकिन मोहभंग होने के बाद वे निष्क्रिय हो जाते हैं और छोड़ जाते हैं। हालांकि, जब उनसे पूछा गया कि क्या गोडसे ने संघ छोड़ दिया था तो उन्होंने हां में जवाब दिया। वैद्य ने कहा कि महात्मा गांधी की हत्या में संघ की कोई भूमिका नहीं थी। यह देश की न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से सिद्ध हो चुका है। ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट के चार्जशीट में भी संघ का कहीं कोई नाम नहीं था। इस मामले को लेकर गठित दो कमीशनों की रिपोर्ट में भी संघ का कोई उल्लेख नहीं रहा। वैद्य ने कहा कि ये सभी कार्यवाहियां कांग्रेस के कार्यकाल में ही हुई। उन्होंने कहा कि कांग्रेस और राहुल गांधी को देश की न्यायिक व्यवस्था का सम्मान करना चाहिए। मुकदमा दर्ज होने के बाद अब वे भागते फिर रहे हैं। गौरतलब है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने वर्ष 2014 में एक चुनावी रैली में संघ पर महात्मा गांधी की हत्या में शामिल होने का आरोप लगाया था, जिसके बाद अपने बयान को लेकर वे मानहानि के मुकदमे का सामना कर रहे हैं।
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महात्मा गाँधी की हत्या के सन्दर्भ में विवादसपद प्रश्न भी लगातार उपस्थित होते रहे। अदालत नें भी अपना आदेश प्रकाशित करने पर रोक लगा दी थी। उस समय विपक्ष और मीडिया भी उतना मज़बूत नहीं था। 

किन्तु यह जाँच का विषय है कि हत्या के प्रथम प्रयास के मात्र 10 दिन बाद ही हत्या हो क्यों गईं, क्या इसके लिये जवाहरलाल नेहरू सरकार जम्मेवार नहीं है।

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