कुंभ में देवी देवता भी सम्मिलित होते हैँ - अरविन्द सिसोदिया kunbh
प्रस्तावना :-
इस विचार का आधार आध्यात्मिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पराँपराओं में निहित है, अपनी ही संतानों के विशाल आयोजनों को देखने के लिए देवताओं और ईश्वरीय शक्तियों की उपस्थिति का उल्लेख अनेकानेक धार्मिक मान्यताओं में किया जाता है। यह सामाजिक दृष्टिकोण से सही विचार भी है।
यह दृष्टिकोण सनातन हिन्दू धर्म और पंथों की संरचनाओं में व्याप्त है। सामान्य तौर पर यह माना जाता है कि जब व्यापक सामूहिकता होती है, तो उच्च शक्तियाँ अपनी सक्रियता से उन पर ध्यान केंद्रित करती हैं।
मानव गतिविधियों का महत्व:-
जब भी कोई मानव सामूहिक आयोजन होता है, जैसे त्योहार, विवाह, या अन्य सामाजिक उत्सव, तो ये आयोजन केवल व्यक्तिगत या सामूहिक आनंद के लिए नहीं होते हैं। बल्कि ये समाज की एकता, संस्कृति और संप्रदाय के समन्वयक को बनाए रखने के माध्यम से भी होते हैं। ऐसे आयोजनों में लोग एक साथ मिलकर अपना अनुभव साझा करते हैं, जो उन्हें जोड़ने का काम करता है।
इसी तरह की सहभागिता ईश्वरीय शक्तियाँ अपनी मानव संतानों के साथ साझा करने धरती पर पधारती हैँ।
ईश्वरीय दृष्टिकोण:-
धार्मिक सिद्धांतों के अनुसार, देवता या ईश्वरीय शक्तियाँ मानव जीवन के महत्वपूर्ण रूपों में विद्यमान हैं। इसे माता-पिता की तरह देखा जाता है क्योंकि माता-पिता अपने बच्चों की खुशियों और दुखों में हमेशा साथ रहते हैं। इसी प्रकार, ईश्वर या देवता भी मनुष्यों के सुख-दुख में ध्यान रखते हैं और अपनी संतानों के प्रति सहानुभूति रखते हैं।
संस्कृति और परंपरायें :-
मनुष्य के अनुभवों का यह विश्वास है कि विशेष अवसरों पर पूजा-प्रार्थना करने से देवताओं की कृपा प्राप्त होती है।उदाहरण स्वरूप, भारतीय संस्कृति में तीज त्योहारों और विशेष तिथियों के दौरान देवी-देवताओं की पूजा प्रार्थना करना आम बात है। यह केवल धार्मिक आस्था का सिद्धांत नहीं है बल्कि अनुभवों से सिद्ध सार्थकता है। समाज में एकता, एकाग्रता और प्रेम को भी बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष:-
इस प्रकार, जब पृथ्वी पर विशिष्ट मानव घटनाएँ होती हैं तो उनमें देवता और ईश्वरीय शक्तियाँ देखने को मिलती हैं। वे माता-पिता की तरह ही बड़े होते हैं और उनका आशीर्वाद हमें निरंतर प्राप्त होता रहता है। यह विचार सामूहिक वस्तुओं और धार्मिक आस्थाओं का परिणाम है जो हमें जोड़ने का काम करता है।
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