ईश्वर की वैज्ञानिकता विराट, मानव वैज्ञानिक उसे ही समझने की कोशिश करते हैँ - अरविन्द सिसोदिया ishwar

 Arvind Sisodia:-9414180151

वैज्ञानिकों को अपूर्ण और अधूरा ज्ञान है, वे ईश्वर के सृजन की वैज्ञानिकता को बहुत कम जानते हैँ, वे तो अभी प्राणी विज्ञान और वनस्पति विज्ञान को भी बहुत कम जानते हैँ। यूँ तो वैज्ञानिक अपने आपको बहुत ज्ञानी मानते हैँ। मगर वे ब्रह्माण्ड की सर्वशक्तिमान शक्ति के ज्ञान और व्यवस्थाओं के सामने लगभग शून्य जितने भी नहीं हैँ। यह सही है कि सनातन हिन्दू सभ्यता नें ईश्वर और उसकी व्यवस्थाओं को पढ़ने समझने जानने की पूरी पूरी कोशिश की है और इसलिए वह ईश्वरीय व्यवस्था के प्रवक्ता भी हैँ। वैज्ञानिक,आध्यात्मिक और धार्मिक सभी तरह के ज्ञान ईश्वर की व्यवस्था में ही हैँ। इसलिए वे अपने आपको पूर्ण ज्ञानी होनें का अहंकार कभी न पालें और नहीं कोई पूर्ण ज्ञानी है। पूर्ण ज्ञान अनंत है, विराट है और वह मनुष्य के मस्तिष्क की समझ से परे भी है।

यह बिंदु, वैज्ञानिक ज्ञान की सीमाओं और ईश्वर की अवधारणा के बीच एक दिलचस्प संगम को छूता है। प्रयागराज में त्रिवेणी संगम है जिसमें गंगा और यमुना का जल बहुत स्पष्टता से दिखता है वहीं सरस्वती का जल अंदर से मिलता हुआ अपना अस्तित्व व्यक्तकर्ता है। यही ज्ञान का है वैज्ञानिक ज्ञान और धार्मिक ज्ञान स्पष्ट दिखया है किन्तु आध्यात्मिक ज्ञान नहीं दिखने वाली शक्ति की तरह होता तो है किन्तु दिखता नहीं। 

विज्ञान ईश्वर की विशुद्ध क्रिया प्रतिक्रिया और विशेषताओं की जानकारी होती है. जबकि ज्ञान इसके इस्तेमाल के विवेकयुक्त स्थिति है। इसके अतिरिक्त आध्यात्मिकता भी ज्ञान की वह स्थिति है जो मूलतः आत्मा के द्वारा परम शक्ति के संदर्भ में अनुभवजनित ज्ञान है, जो होता तो है मगर सिद्ध करने में आसानी नहीं होती अथवा मनुष्य का ज्ञान उसको प्रमाणित करने में सक्षम नहीं होता। जैसे आत्मा है सिद्ध नहीं कर पा रहे। परमात्मा है सिद्ध नहीं कर पा रहे।

यह सच है कि विज्ञान, जो प्राकृतिक दुनिया को समझने के लिए एक तर्कसंगत और प्रयोगात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है, अभी भी कई प्रश्नों के उत्तर देने से वह बहुत दूर है, खासकर जब यह विषय कालगणना, ब्रह्मांड की उत्पत्ति, जीवन की उत्पत्ति और चेतना जैसे मूलभूत मुद्दों की बात आती है। हलांकि इस संदर्भ में सनातन हिन्दू बहुत सारा ज्ञान रखता है। वह सत्य भी है। उसे आधुनिक पाश्चात्य वैज्ञानिक काल्पनिक मान लेते हैँ किन्तु जैसे जैसे विज्ञान की समझ बढ़ रही है, सनातन हिंदुत्व प्रमाणित हो रहा है। 

ईश्वर की अवधारणा अक्सर इन अनुत्तरित प्रश्नों का उत्तर देने के लिए है और वह कई लोगों के लिए एक संतोषजनक व्याख्या प्रदान भी करती है। हालांकि, यह भी महत्वपूर्ण है कि विज्ञान और धर्म और आध्यात्मिकता तीनों ही मानवज्ञान और समझ के स्रोत हैं और वे एक दूसरे के पूरक भी हैं। इन्हे एक दूसरे के विरोधी मानना ही गलत है, सही यह है की सब कुछ ईश्वर की व्यवस्था में है और एक दूसरे के पूरक हैँ।

यह बिंदु कि पूर्ण ज्ञान अनंत है और यह मानव मस्तिष्क की समझ से परे है, यह एक गहरी और दार्शनिक टिप्पणी है। यह हमें याद दिलाती है कि ज्ञान की खोज एक निरंतर प्रक्रिया है और हमें हमेशा अपनी सीमाओं को स्वीकार करना चाहिए और नए विचारों और समझ के लिए अपने आपको खुला रखना चाहिए।
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सिद्धांत का ज्ञान और रचना का सृजन

विज्ञान यूँ तो निरंतर ही है और उससे ही यह सृष्टि चल रही है, यह प्रकृति यह शरीर भी विज्ञान से ही संचालित है। ईश्वर के शुद्ध नियम सिद्धांत ही विज्ञान है, मानव शरीर में ईश्वर की तमाम वैज्ञानिक उदाहरण मौजूद हैँ। जैसे आँख कान नाक मस्तिष्क, ह्रदय, फेफड़े आदि सब वैज्ञानिक हैँ। इन्हे समझने और उस क्रम में तंत्र विकसित कर उपयोग करने को ही विज्ञान मान लिया गया है. यह एक सतत विकसित होती रहती है।  जिसमें मानव ने समय के साथ बहुत कुछ सीखा है। ब्रह्माण्ड का ज्ञान निश्चित रूप से असीमित है, अनंत है। 

1. विज्ञान की प्रकृति

विज्ञान एक प्रणालीबद्ध अध्ययन है जो शोध, प्रयोग और विश्लेषण पर आधारित होता है। यह प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए जांच और साक्ष्य दृष्टिकोण अपनाता है। वैज्ञानिक विधि के माध्यम से, वैज्ञानिक अपने सिद्धांतों का परीक्षण करते हैं और प्राप्त डेटा के आधार पर उसकी उपयोगिता विकसित करते हैँ। इस प्रक्रिया में, वे अपने ज्ञान में निरंतर वृद्धि करते हैं।

2. सृष्टि का सृजन

सृष्टि के लगभग वैज्ञानिकों में बिग बैंग थ्योरी जैसे कई सिद्धांत शामिल हैं, जो बताते हैं कि ब्रह्मांड 13.8 अरब वर्ष पहले एक भारी पिंड के अत्यंत तेजगति से घूर्णन से विस्फोटित होकर व्यापक विस्तार को प्राप्त होता है। इसके बाद ब्रह्मांड का विस्तार निरंतर हुआ और विभिन्न तत्वों यौगिकों मिश्रणों का निर्माण हुआ। इसके अलावा, जीवन की उत्पत्ति पर भी कई सिद्धांत हैं, जैसे कि रासायनिक विकास (एबियोजेनेसिस)।

3. ज्ञान की सीमाएँ

यह सच है कि विज्ञान अभी भी कई अनंत प्रश्नों का उत्तर नहीं दे पाया है। उदाहरण के लिए, जीवन की उत्पत्ति के बारे में पूरी तरह से समझ नहीं आया है। इसके अलावा, ब्रह्मांड के कुछ सिद्धांत जैसे कि ब्लैक मैटेरियल और ब्लैक एनर्जी के बारे में भी हमारी जानकारी बहुत सीमित है। इसलिए यह कहना सही होगा कि वैज्ञानिकों का ज्ञान पूर्ण नहीं है।

4. पूर्ण ज्ञान की अवधारणा

सनातन हिन्दू ईश्वर को पूर्ण ज्ञानी मानती है, इसका कारण भी कि कोई शक्ति तो है जो समस्त नियम सिद्धांत क्रियाओ प्रतिक्रिया और विशेषताओं को नियत कर रहा है।

पूर्ण ज्ञान अनंत होने का विचार ईश्वरीय दृष्टिकोण से आता है। मनुष्य की समझ सीमित है और हम केवल उसे ही समझ सकते हैं जो हमारे अनुभव और शोध पर आधारित है। इसलिए यह संभव नहीं है कि कोई भी व्यक्ति या समूह पूर्ण ज्ञान रख सकें।

5. निष्कर्ष

इसलिए, सिद्धांतों का ज्ञान निश्चित रूप से अपूर्ण व अधूरा हो सकता है क्योंकि वे लगातार खोजे जा रहे हैं और अपने सिद्धांतों को अद्यतन कर रहे हैं। वैज्ञानिकों का प्रयास हमें ईश्वरीय रचना और उनकी व्यवस्था को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।

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