पूर्वाभास अतीन्द्रिय ज्ञान Purvabhasa

 महान सनातन धर्मग्रंथ बाल्मीकि रामायण के बारे में यही प्रचलित है कि, महर्षि बाल्मिकी ज़ी को इसका पूर्वआभास था और उसी के आधार पर उन्होंने बाल्मीकी रामायण की पूर्व रचना कर दी थी, जिसका अवधी भाषा में लेखन गोस्वामी तुलसीदास ज़ी नें की है।

कुछ लोगों को पूर्वाभास कैसे हो जाता है? क्या पूर्वाभास का संबंध विज्ञान से है?

क्या मनुष्य वही देखता है, जो सामने परिलक्षित होता है। साधारण स्थिति में तो ऐसा ही होता देखा जाता है। नाक के ऊपर लगे हुए दो नेत्र गोलक केवल सामने की दिशा में और कुछ दांये-बायें एक नियत आकार-प्रकार—डायमेन्शन तक वस्तुएं देख सकते हैं। इसे फील्ड ऑफ विजन कहते हैं। सूक्ष्मदर्शी व दूरदर्शी यन्त्रों की मदद से इच्छानुसार वस्तुओं के आकार-प्रकार को बड़ा देखा जा सकता है चाहे वे समीपस्थ हों अथवा दूरस्थ। किन्तु यह दृश्य वर्तमान काल के ही हो सकते हैं, भूत या भविष्य के नहीं। टेलीविजन, फोटोग्राफी, चित्रों के माध्यम से भूतकाल की जानकारी हो सकती है। इतने भर से मनुष्य को सन्तुष्ट होना पड़ा है।

क्या भविष्य को प्रत्यक्ष आंखों के समक्ष देखा जा सकता है। प्रश्न उठ सकता है कि भविष्य का पूर्व निर्धारित रूप कैसे देखा जा सकता है। यदि भविष्य निश्चित है तो कर्म पुरुषार्थ की क्या आवश्यकता? अतः बुद्धि की अटकल, कम्प्यूटर सब कुछ के बावजूद भविष्य कथन की बात गले नहीं उतरती। बुद्धिवाद का युग है तो यह चिन्तन स्वाभाविक भी है।

किन्तु पूर्वाभास एवं भविष्य-कथन के अनेकों ऐसे घटनाक्रम दैनंदिन जीवन में प्रकाश में आते हैं, जिनका विज्ञान के पास कोई उत्तर नहीं। वे कालान्तर में सही भी होते पाये गये हैं। ऐसी एक नहीं, अनेकों घटनाएं हैं जिनमें सामान्य अथवा असामान्य व्यक्तियों में यह क्षमता अकस्मात उभरी या विकसित की गई एवं समय की कसौटी पर वे खरे उतरे।

प्रयत्नपूर्वक आत्मबल को बढ़ाना और सिद्धियों के क्षेत्र में प्रवेश करना यह एक तर्क और विज्ञान सम्मत प्रक्रिया है किन्तु कभी-कभी ऐसा भी देखने में आता है कि कितने ही व्यक्तियों में इस प्रकार की विशेषताएं अनायास ही प्रकट हो जाती हैं। उन्होंने कुछ भी साधन या प्रयत्न नहीं किया तो भी उनमें ऐसी क्षमताएं उभरीं जो अन्य व्यक्तियों में नहीं पाई जातीं। असामान्य को ही चमत्कार कहते हैं। अस्तु ऐसे व्यक्तियों को चमत्कारी माना गया। होता यह है कि किन्हीं व्यक्तियों के पास पूर्व संचित ऐसे संस्कार होते हैं जो परिस्थितिवश अनायास ही उभर आते हैं। वर्षा के दिनों अनायास ही कितनेक पौधे उपज पड़ते हैं, वस्तुतः उनके बीज जमीन में पहले से ही दबे होते हैं। यही बात उन व्यक्तियों के बारे में कही जा सकती है जो बिना किसी प्रकार की अध्यात्म साधनाएं किये ही अपनी अलौकिक क्षमताओं का परिचय देते हैं।

भविष्य दर्शन की विशेषता को अतीन्द्रिय क्षमता के अन्तर्गत ही गिना जाता है। इस विशेषता के कारण संसार भर में जिन लोगों ने विशेष ख्याति प्राप्त की है उनमें एण्डरसन, सेमबैन्जोन, पीटर हरकौस, फ्लोरेन्स फादर पियो आदि के नाम पिछले दिनों पत्र-पत्रिकाओं के पृष्ठों पर छाये रहे हैं।

पूर्वाभास में भविष्य-कथन के जो सही उदाहरण सामने आते रहते हैं उनका कारण क्या हो सकता है? उसका तथ्य संगत उत्तर एक ही हो सकता अध्यात्म स्तर की विशेषता। दिव्य दृष्टि। वह अदृश्य जगत की हाण्डी में पकती हुई भावी सम्भावनाओं का स्वरूप और समय जान सकता है। कर्म का प्रतिफल, समय साध्य है। इस मध्यवर्ती अवधि में यह पता चलाना कठिन पड़ता है कि किस कृत्य की परिणति कितने समय में किस प्रकार किस स्थान में होगी। इतने पर भी उसका स्वरूप बहुत कुछ इस स्थिति में होता है कि कोई दिव्य दर्शी उसका पूर्वाभास प्राप्त कर सके। यह सम्भावना है भी या नहीं, इस सन्दर्भ में कितनी ही महत्वपूर्ण साक्षियां समय-समय पर सामने आती रहती हैं।

प्रथम विश्वयुद्ध के दिन, पहली नवम्बर—आठ वर्षीय एण्डरसन घर की बैठक में खेल रहा था। सहसा वह रुका। मां के पास पहुंचा और उसका हाथ पकड़ उसे बैठक में ले गया, जहां उसके भाई नेल्सन की फोटो लगी थी। नेल्सन कनाडा की सेना में कप्तान था और मोर्चे पर था। एण्डरसन ने भाई की फोटो की ओर संकेत करते हुए मां से कहा—‘‘मां, देखो तो, भैया के चेहरे पर बन्दूक की गोली लग गई है और वे जमीन पर गिरकर मर गये हैं।’’

‘‘चुप मूर्ख! ऐसी अशुभ बात तेरे दिमाग में कहां से आई? अब कभी ऐसे कुछ न बोलना, न ऐसा सोचा करो।’’ मां ने झिड़का। पर एण्डरसन तो अपनी बात पर जिद-सी करने लगा। इस घटना के दो-तीन दिन बाद जब तार आया कि—‘‘1 नवम्बर 1918 को गोली लगने के कारण नेल्सन की मृत्यु हो गई है।’’ तो पूरा परिवार शोक में डूब गया। पर एण्डरसन की बातें याद कर वे सब विस्मय से भी भर उठे।

इसके बाद तो मुहल्ले-पड़ौस में उसने कई बार ऐसी भविष्य सम्बन्धी बातें बतायीं कि लोग उसे सिद्ध भविष्यवक्ता मानने लगे। घर वालों ने उसका ध्यान बंटाने के लिए उसे शीघ्र ही एक खान की नौकरी में लगा दिया। पर थोड़े ही दिनों में एण्डरसन ने यह कहते हुए इस नौकरी को छोड़ दिया कि—‘‘मैं उन्मुक्त आत्मा हूं। योग के संस्कार मुझ में हैं। निरन्तर आत्म-परिष्कार ही मेरा लक्ष्य है। भौतिक परिस्थितियों से पैसे रुपयों के लोभ से मैं बंधा नहीं रह सकता।’’

इसके बाद एण्डरसन व्यापारी जहाजों द्वारा विश्व-भ्रमण के लिए निकल पड़ा। इसी बीच उसने अपने शरीर का व्यायाम, योगाभ्यास, संयम और परिश्रम द्वारा विकास कर अतुलित बल अर्जित किया। लोहे की छड़ कन्धे पर रखकर उसमें 15-20 व्यक्तियों तक को लटकाकर चल फिर लेना, कार उठा लेना, शक्तिशाली गतिशील मोटर को हाथ से रोक देना, उन्मत्त और क्रुद्ध सांडों को पछाड़ देना आदि के करतब उसके लिए मामूली बात हो गई। उसने इनके सफल प्रदर्शन किये और ख्याति पाई।

लोग कहने लगे कि यह कोई पूर्व जन्म का योगी है। पूर्वजन्म में किये गये योगाभ्यास का प्रभाव और प्रकाश इसमें अब भी शेष है। 70 वर्ष से अधिक की आयु में भी एण्डरसन लोहे की नाल दोनों हाथ से पकड़कर सीधी कर देते हैं। शारीरिक शक्ति के साथ ही उन्होंने अतीन्द्रिय सामर्थ्य भी विकसित की और वे जीन डिक्सन, कीरो तथा टेनीसन से भी अधिक सफल भविष्यवक्ता माने जाते हैं। एण्डरसन भारत आकर योग एवं ज्योतिष सम्बन्धी ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं। यद्यपि उनकी यह आकांक्षा परिस्थितियोंवश पूर्ण नहीं हो सकी है।

इंगलैण्ड में ही सैमवैजोन नामक एक व्यक्ति हुआ है। उसे बाल्यावस्था से ही पूर्वाभास की शक्ति प्राप्त थी। सात वर्ष का था, तभी उसे यह पूर्वाभास हुआ कि बाहर गये पिताजी एक ट्राम से घर आ रहे हैं और वह ट्राम दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से वे घायल हो गये हैं। मां को वैजोन ने बताया तो मिली झिड़की। पर जब कुछ समय बाद आहत पिताजी घर आये और उन्होंने बताया कि ट्राम दुर्घटना से ही वे आहत हुए हैं तो दुःखी मां विस्मित भी हो उठी।

बाल्यावस्था में ही सैमवैजोन ने अनेकों बार पूर्वाभास की अपनी शक्ति का परिचय दिया। उसके घर में क्रिसमस पर प्रीतिभोज दिया गया। मित्रों, पड़ौसियों, परिजनों ने उपहार दिये। सबके जाने के बाद मां ने सैमवैजोन से उपहार का एक डिब्बा दिखाकर पूछा—‘‘तू बड़ा भविष्यदर्शी बनता है, बता इस डिब्बे में क्या है?’’ डिब्बा जैसा आया था, वैसा ही बन्द था। सैम ने वे सारी वस्तुएं गिन-गिनकर बता दीं जो उस डिब्बे में बन्द थीं।

बिना किसी ‘लेन्स’ या यन्त्र के डिब्बे के भीतर की वस्तु का यह ज्ञान इस तथ्य का द्योतक है कि विचारों और भावनाओं की दिव्य तथा सूक्ष्म शक्ति द्वारा बिना किसी माध्यम के गहन अन्तराल में छिपी वस्तुओं को भी देखा-जाना जा सकता है।

अपने एक परिचित पेन्टर के बारे में एक दिन आफिस में बैठे वैन्जोन ने सहसा चल-चित्रवत् दृश्य देखा कि वह एक दीवार की पेंटिंग करते समय सीढ़ियों से लुढ़ककर गिर पड़ा है। तीन दिन के भीतर ही यह दुर्घटना इसी रूप में हुई और मोहल्ले के एक मकान की दीवार की रंगाई के समय सीढ़ी से फिसलकर गिरने से उक्त पेंटर की मृत्यु हो गई। वैन्जोन का पूर्वाभास सत्य सिद्ध हुआ।

प्रख्यात भविष्यवक्ता पीटर हरकौस की विलक्षण अतीन्द्रिय शक्ति विश्व प्रसिद्ध है। वह घटनास्थल की किसी भी वस्तु को छूता और उसे उस स्थान से सम्बन्धित अतीत में घटी, वर्तमान में घट रही तथा भविष्य में घटित होने वाली घटनाएं स्पष्ट दिखने लगतीं।

पेरिस में कई शीर्षस्थ अधिकारियों की उपस्थिति में हरकौस का आह्वान किया गया कि वह अपनी अतीन्द्रिय सामर्थ्य का प्रदर्शन करें। पीटर हरकौस को कंघा, कैंची, घड़ी, लाइटर और बटुआ देकर कहा गया कि आप इनके आधार पर एक मामले का पता लगायें। पीटर ने पांचों को छुआ और ध्यानमग्न हो गया। उसने दो वस्तुओं को अनावश्यक कहकर लौटा दिया। फिर बटुए को हाथ में थामकर खोया हुआ-सा बोलने लगा—‘‘एक गंजा आदमी है। वह सफेद कोट पहने है। एक पहाड़ी के पास छोटे से मकान में वह रहता है, जिसके बगल से रेलवे लाइन गुजरती है। मकान से कुछ दूर एक गोदाम है। दोनों स्थानों के बीच एक शव पड़ा है। यह हत्या का मामला है। यह हत्या किसी निकोला नामक व्यक्ति द्वारा उसे जहर मिला दूध पिलाकर की गई है। लगता है यह सफेद कोटधारी गंजा ही निकोला है—जो इन दिनों जेल में है और वह शव एक महिला का है। निकोला भी मर गया है।

पीटर हरकौस की सभी बातें तो सही थी। पर जेल में बन्द निकोला जीवित था। तभी अधिकारियों को समाचार दिया गया कि दो घण्टे पहले निकोला ने आत्म हत्या कर ली है।

सन् 1950 में जब प्रसिद्ध संग्रहालय वेस्टमिनिस्टर एवी से ‘स्कोन’ नामक हीरा चोरी हो गया, तो पूरे ब्रिटेन में तहलका मच गया। गुप्तचरों और पुलिस की दौड़-धूप व्यर्थ गई। चोरी का सुराग तक नहीं मिला। तब पीटर हरकौस की सहायता ली गई। हरकौस लन्दन पहुंचा। एवे के दरवाजे की एक लोहे की चादर का टुकड़ा अपने हाथ में लेकर पीटर बताने लगा—पांच लड़कों ने ‘स्कोन’ को चुराया है और कार द्वारा ग्लासगो ले गये हैं। हीरा एक महीने में मिल जायेगा। ‘‘चोरों के भागने का रास्ता भी हरकौस ने नक्शे में बता दिया। अन्त में एक माह में हीरा मिला और हरकौस की हर बात सत्य निकली।

एम्सटरडम में एक बार एक फौजी कप्तान का लड़का समुद्र में गिर गया। शव मिल नहीं रहा था। पीटर हरकौस ने अपनी अन्तः दृष्टि से शव को तलाशने का स्थान बताया। वह मिल गया।

वेल्जियम के जार्ज कार्नेलिस के हत्यारों का पता भी हरकौस ने ही लगाया था। अमेरिकी डा. अन्डिया पूरिया के आमन्त्रण पर पीटर अमरीका गये। वहां उन पर कई प्रयोग किये गये।

पीटर हरकौस ने स्वयं ही ‘‘साइक’’ नाम से अपना संस्मरण संग्रह लिखा व प्रकाशित कराया है; जो उसकी अतीन्द्रिय शक्तियों पर प्रकाश डालता है।

पूर्वाभास की यह क्षमता कई व्यक्तियों में असाधारण तौर पर विकसित होती है। द्वितीय महायुद्ध में ऐसे लोगों का दोनों पक्षों ने उपयोग किया था। हिटलर के परामर्श मण्डल में पांच ऐसे ही दिव्यदर्शी भी थे। उनका नेतृत्व करते थे—विलियम क्राफ्ट।

इसी मण्डली के एक सदस्य श्री डी. व्होल ने तत्कालीन ब्रिटिश विदेश मन्त्री लार्ड हेली फिक्स को सर्वप्रथम एक भोज में अनुरोध किये जाने पर हिटलर की योजनाओं का पूर्वाभास दिया। वे सच निकलीं और श्री व्होल को फौज में कैप्टन का पद दिया गया। श्री डी. व्होल हिटलर की अनेक योजनाओं की जानकारी अपनी दिव्य दृष्टि से दे देते। ब्रिटेन तद्नुसार रणनीति बनाता। फौजी अफसरों को जिम्मेदारियां सौंपते समय भी उनके भविष्य-बावत श्री डी. व्होल से सलाह ली जाती। उन्हीं के परामर्श पर माउण्ट गुमरी को फील्ड मार्शल बनाया गया। उनकी सफलताएं सर्वविदित हैं। जापानी जहाजी बेड़े को नष्ट करने की योजना भी श्री व्होल की सलाह से बनी थी। महायुद्ध की समाप्ति के बाद श्री व्होल ने ब्रिटिश शासक को परामर्श देने का कार्य छोड़ दिया था और धार्मिक लेखन का अपना पुराना काम करने लगे थे।

न्यूजर्सी नगर की रहने वाली फ्लोरेन्स से उसके साथी नेबेल ने एक बार कहा कि ‘‘आप सबके बारे में भविष्य बताती ही रहती हैं। मेरे बारे में भी कुछ बताइये।’’ नेबेल प्रसारण-सेवा का कर्मचारी था। उसने माइक फ्लोरेन्स की ओर बढ़ाया तो फ्लोरेन्स ने उसे दाहिने हाथ में थाम लिया। 15-20 सैकिण्ड तक वह शान्त रही। फिर बोली—‘‘आप शीघ्र ही दूसरे राज्य का प्रसारण करेंगे।’’


नेबेल हंस पड़ा। उन्होंने कहा कि ‘‘आपसे मैं यह एक अच्छा मजाक कर बैठा। अब अगर हमारे इस कार्यक्रम को हमारी कम्पनी के किसी संचालक ने सुना होगा, तो दूसरे राज्य में जब जाऊंगा तब, यहां से अवश्य मेरा कार्यकाल समाप्त समझिये।


कुछ मिनटों बाद कन्ट्रोलरूम में फोन घनघना उठा। वह नेबेल के लिए ही फोन था। कम्पनी के जनरल मैनेजर ने उसे बताया कि शीघ्र ही न्यूयार्क से एक कार्यक्रम शुरू किया जायेगा। वहां तुम्हें ही भेजने का निर्णय लिया गया है। किन्तु यह घोषणा कल होगी। अभी इसे गुप्त ही रखना है। फ्लोरेन्स ने जो कुछ बताया है वह है तो सच, पर उसे यह बात कैसे ज्ञात हुई? यही आश्चर्य का विषय है।’’ नेबेल फलोरेन्स से यह भी नहीं कह पा रहा था कि आपकी भविष्यवाणी सच है।

फ्लोरेन्स ने अपनी पराशक्ति के बल पर खोये हुए व्यक्तियों, वस्तुओं और हत्या के मामलों जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सम्बद्ध व्यक्तियों तथा पुलिस को आवश्यक जानकारी देकर मदद की।

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दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि अतीन्द्रिय बोध किसी व्यक्ति की छठी इन्द्रिय है। अतीन्द्रिय बोध से प्राप्त जानकारी वर्तमान, भूत या भविष्य में से किसी भी काल की हो सकती है। सन् 1870 में जियोलॉजिकल सोसाइटी के फैलो सर रिचार्ड बर्टन ने सर्वप्रथम अतीन्द्रिय बोध शब्द का प्रयोग किया। 

Purvabhasa 

भविष्य की घटनाओं का होगा पूर्वाभास

मानव के अंदर एक ऐसा जीन छुपा रहता है, जिससे उसे भावी घटनाओं का पता चल सकता है। लेकिन व्यावहारिक रूप से वह पता नहीं कर पाता। अब वैज्ञानिकों ने यह रहस्य खोल लिया है। मानव अपने मस्तिष्क के जरिये भविष्य की घटनाओं का पता आसानी से लगा सकता है।

आम तौर पर हमें आज और अभी या अपने आसपास की घटनाओं की ही जानकारी होती है। आने वाले या बीत गए समय की अथवा दूरदराज की घटनाओं का पता नहीं चलता, लेकिन कोई विलक्षण शक्ति है, जो व्यक्ति को समय और दूरी की सीमाओं का अतिक्रमण करते हुए उपयोगी सूचनाएं देती है।

हर व्यक्ति में छिपी है शक्ति
विल्हेम वॉन लिवनीज नामक वैज्ञानिक का कहना है हर व्यक्ति में यह संभावना छिपी पड़ी है कि वह कभी-कभार चमक उठने वाली इस क्षमता को विकसित कर पूर्वाभास को सामान्य बुद्धि की तरह अपने व्यक्तित्व का हिस्सा बना लेता है। इस तरह की क्षमता अर्जित कर सरकता है, जब चाहे दर्पण की तरह अतीत या भविष्य को देख सके। अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार देते हुए कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में भौतिकी के विद्वान एड्रियन डॉन्स ने कहा है कि भविष्य में घटने वाली हलचलें मनुष्य के मस्तिष्क में एक प्रकार की तरंगें पैदा करती हैं। इन तरंगों को साइट्रॉनिक वेवफ्रंट कहा गया है। ये तरंगे मस्तिष्क के स्नायुकोष (न्यूरान्स) पकड़ लेते हैं। डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कहना है कि भविष्य का आभास या अतीत की घटनाओं का ज्ञान इसलिए होता रहता है, क्योंकि इनके संकेत टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) में मौजूद रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटना तरंगों से जुड़ा होता है। 'एक्सप्लोरिंग साइकिक फिनॉमिना बियांड मैटरÓ नामक अपनी चर्चित पुस्तक में डी स्कॉट रोगो लिखते हैं, विचारणाएं

तथा भावनाएं प्राणशक्ति का उत्सर्जन (डिस्चार्ज ऑफ वाइटल फोर्स) हैं। यही उत्सर्जन अंत:करण में यदा-कदा स्फुरण बनकर प्रकट होते हैं। उत्सर्जन दो व्यक्तियों के बीच हो तो टेलीपैथी कहा जाता है और समय-सीमा से परे हो तो पूर्वाभास।

चलचित्र की तरह दिखेंगी घटनाएं
अतीन्द्रिय ज्ञान को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने वाले विद्वानों का मानना है कि यदि कोई तत्व प्रकाश की गति से भी तीव्र गति करे तो उसके लिए समय रुक जाता है। दूसरे शब्दों में, वहां बीते कल, आज और आने वाले कल में कोई अंतर न रहेगा। अपने चित्त में यह गति साध ली जाए तो अतीत और भविष्य की घटनाएं चलचित्र की तरह देखी जा सकती हैं। अधिकतर दार्शनिकों का मत है कि घटनाओं के पूर्वाभास जीवन बचाने के लिए होते
हैं और यह बात भी सच है कि यदि हम कमजोर मन इंसान से इस तरह के पूर्वाभासों का जिक्र करते है, तो वे किसी की मौत का कारण भी बन सकते हैं। अनेक बार पूर्वाभास स्पष्ट नहीं होते और न उनकी व्याख्या की जा सकती है। 'प्रिमोनीशनÓ
'एक्स्टां सॅन्सरी परसॅप्शन्सÓ का वह रूप है, जिसे हम 'इन्स्टिंक्टÓ या भावी घटना का एक तीव्र आभास कह सकते हैं। ये एक तरह की 'इन्ट्यूटिव वॉर्निंगÓ होती है, जो अवचेतन मन पर अंकित हो जाती है और कभी-कभी व्यक्ति को नियोजित कार्योँ को करने से मनोवैज्ञानिक तरह से रोकती हैं। इसे बहुत से चिन्तक विशिष्ट घटनाओं की
'भविष्यवाणीÓ भी कहते हैं। साइंस इसके स्टेट्स को अस्वीकार करता है। लेकिन दार्शनिकों का मानना है कि प्रिमोनीशन और प्रौफॅसी को व्यर्थ की चीज मानकर नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। क्योंकि घटनाओं के पूर्वाभास की जानकारी और
उनका सही घटना प्रमाणित करता है कि 'प्रिमोनीशनÓ में तथ्य है, इसकी अर्थवत्ता है।
इस तरह से यह साइंस के लिए एक चेतावनी है, क्योंकि यह सृष्टि की गतिविधियों के
साथ मानव मन के सघन संबंध का संकेत देती है। यह आन्तरिक शक्तियों और सृष्टि में स्पन्दित अलौकिक शक्तियों व उसके चक्र के अन्तर्संबंध का विज्ञान है। कहा जाता है कि नॉस्टेंडम ने अपनी मृत्यु की 'पूर्व घोषणाÓ कर दी थी। जुलाई 1, 1566 जब एक पुरोहित उनसे मिलने आया और जाने लगा तो नॉस्टेंडम ने उससे अपने बारे में कहा
कि 'वह कल सूर्योदय होने तक मर चुका होगा।
इसी तरह अब्राहम लिंकन ने अपनी मौत का सपना देखा और अपनी पत्नी व अंगरक्षक को अपने कत्ल से कुछ घंटे पहले इस बारे में बताया। मार्क ट्वेन ने पहले से यह बता दिया था कि उसकी मृत्यु के दिन दिखाई देगा जैसे कि यह वो दिन था, जिस दिन उसका जन्म हुआ था। दुर्भाग्यग्रस्त 'टाइटैनिकÓ जहाज जो आइसबर्ग पर अटक जाने के कारण

1912 में समुद्र में विलीन हो गया था, कहा जाता
है कि उसके अनेक यात्रियों को जहाज के अवरुद्ध होकर डूब जाने का पूर्वाभास काफी
समय पहले हो गया था। फिर भी अन्य लोगों ने व जहाज के सुरक्षा दल ने कुछ
यात्रियों के इस पूर्व संकेत की अवहेलना की। उसके बाद 'टाइटैनिकÓ के साथ जो घटा,
वह अपने में एक आंसू भरा इतिहास था।Ó
डॉ. सब्बरवाल से बातचीत करके राज को लगा कि पूर्वाभास कोई निरर्थक या हंसी
में उड़ा देने वाली जानकारी नहीं है। यह एक गहरे अध्ययन और शोध का विषय है।
राज ने डॉ. सब्बरवाल के कहे अनुसार पूर्वाभास से संबंधित किताबें पढ़ीं और उसके
सोच में एक ठहराव आया। उसने गहराई से अपने पूर्वाभासों का अध्ययन शुरू किया।
धीरे-धीरे कुछ समय बाद उसे लगा कि वह एक शान्त, निस्पन्द पथ पर बढ़ रही है।
उसके मन पर पहले की तरह तनाव, चिन्ता और अवसाद नहीं था, वरन् पूर्वाभास को
सहजता से लेने का साहस और मनोबल विकसित हो रहा था। संभवत: यह उसके सुख
और सुकून से भरे आगामी जीवन का पूर्वाभास था, जिसे वह किसी के भी साथ बांटना
नहीं चाहती थी, अपितु उस स्वच्छ, तरल अनुभूति को सदा के लिए सहेज लेना चाहती
थी।


परामनोविज्ञान एक रहस्य
परामनोविज्ञान एक विवादास्पद विधा है, जो वैज्ञानिक विधि का उपयोग करते हुए इस बात की जांच-परख करने का प्रयत्न करती है कि मृत्यु के बाद भी मनोवैज्ञानिक क्षमताओं का अस्तित्व रहता है या नहीं। परामनोविज्ञान का संबंध मनुष्य की उन अधिसामान्य शक्तियों से है, जिनकी व्याख्या अब तक के प्रचलित सामान्य मनोवैज्ञानिक सिद्धांतों से नहीं हो पाती। इन तथाकथित प्राकृतेतर तथा विलक्षण प्रतीत होने वाली अधिसामन्य घटनाओं या प्रक्रियाओं की व्याख्या में ज्ञात भौतिक प्रत्ययों से भी सहायता नहीं मिलती। परचित ज्ञान, विचार संक्रमण, दूरानुभूति, पूर्वाभास, अतींद्रिय ज्ञान, मनोजनित गति या साइकोकाइनेसिस आदि कुछ ऐसी प्रक्रियाएं हैं, जो एक भिन्न कोटि की मानवीय शक्ति तथा अनुभूति की ओर संकेत करती हैं। इन घटनाओं की वैज्ञानिक स्तर पर घोर उपेक्षा की गई है और इन्हें बहुधा जादू-टोने से जोड़कर, गुह्यविद्या का नाम देकर विज्ञान से अलग समझा गया है। किंतु ये विलक्षण प्रतीत होने वाली घटनाएं घटित होती हैं। वैज्ञानिक उनकी उपेक्षा कर सकते हैं, पर घटनाओं को घटित होने से नहीं रोक सकते।

घटनाएं वैज्ञानिक ढांचे में बैठती नहीं दीखतीं - वे
आधुनिक विज्ञान की प्रकृति की एकरूपता या नियमितता को धारणा को भंग करने की चुनौती देती प्रतीत होती हैं इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि आज भी परामनोविज्ञान को वैज्ञानिक संदेह तथा उपेक्षा की दृष्टि से देखता है। किंतु वास्तव में परामनोविज्ञान न जादू टोना है, न वह गुह्यविद्या, प्रेतविद्या या तंत्रमंत्र जैसा कोई विषय। इन तथाकथित प्राकृतेतर, पराभौतिक एवं परामानसकीय, विलक्षण प्रतीत होने वाली अधिसामान्य घटनाओं या प्रक्रियाओं का विधिवत् तथा क्रमबद्ध अध्ययन ही परामनोविज्ञान का मुख्य उद्देश्य है। इन्हें प्रयोगात्मक पद्धति की परिधि में बांधने का प्रयत्न, इसकी मुख्य समस्या है। परामानसकीय अनुसंधान या साइकिकल रिसर्च इन्हीं पराभौतिक विलक्षण घटनाओं के अध्ययन का अपेक्षाकृत प्राचीन नाम है, जिसके अंतर्गत विविध प्रकार की उपांत घटनाएं भी सम्मिलित हैं, जो और भी विलक्षण प्रतीत होती हैं तथा वैज्ञानिक धरातल से और अधिक दूर हैं - उदाहरणार्थ प्रेतात्माओं, या मृतात्माओं से संपर्क, पाल्टरजीस्ट या ध्वनिप्रेत, स्वचालित लेखन या भाषण आदि। परामनोविज्ञान अपेक्षाकृत सीमित है - यह परामानसकीय अनुसंधान का प्रयोगात्मक पक्ष है - इसका वैज्ञानिक अनुशासन और कड़ा है।

मानव का अदृश्य जगत
मानव का अदृश्य जगत से इंद्रियेतर संपर्क में विश्वास बहुत पुराना है। लोककथाएं, प्राचीन साहित्य, दर्शन तथा धर्मग्रंथ पराभौतिक घटनाओं तथा अद्भुत मानवीय शक्तियों के उदाहरणों से भरे पड़े हैं। परामनोविद्या का इतिहास बहुत पुराना है - विशेष रूप से भारत में। किंतु वैज्ञानिक स्तर पर इन तथाकथित पराभौतिक विलक्षण घटनाओं का अध्ययन उन्नीसवीं शताब्दी की देन है। इससे पूर्व इन तथाकथित रहस्यमय क्रिया व्यापारों को समझने की दिशा में कोई संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न नहीं हुआ। आधुनिक परामनोविज्ञान का प्रारंभ सन् 1882 से ही मानना चाहिए, जिस वर्ष लंदन में परामानसकीय अनुसंधान के लिए सोसाइटी फॉर साइकिकल रिसर्च (एसपीआर) की स्थापना हुई। यद्यपि इससे पहले भी कैंब्रिज में घोस्ट सोसाइटी, तथा ऑक्सफोर्ड में फैस्मेटोलाजिकल सोसाइटी जैसे संस्थान रह चुके थे, तथापि एक संगठित वैज्ञानिक प्रयत्न का आरंभ एसपीआर की स्थापना से ही हुआ, जिसकी पहली बैठक 17 जुलाई, 1882 ई. में प्रसिद्ध दार्शनिक हेनरी सिजविक की अध्यक्षता में हुई। इसके संस्थापकों में हेनरी सिजविक उनकी पत्नी ईएम सिजविक, आर्थर तथा गेराल्ड बाल्फोर, लार्ड रेले, एफडब्ल्यूएच मायर्स तथा भौतिक शास्त्री सर विलियम बैरेट थे।



परामानसकीय क्रिया व्यापार
परभावानुभूति
एफडब्ल्यूएच मायर्स का दिया हुआ शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ है दूरानुभूति। ज्ञानवाहन के ज्ञात माध्यमों से स्वतंत्र एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में किसी प्रकार का भाव या विचारसंक्रमण टेलीपैथी कहलाता है। आधुनिक मनोवैज्ञानिक दूसरे व्यक्ति की मानसिक क्रियाओं के बारे में अतींद्रिय ज्ञान को ही दूरानुभूति की संज्ञा देते हैं।

अतींद्रिय प्रत्यक्ष
इसका शाब्दिक अर्थ है स्पष्ट दृष्टि। इसका प्रयोग दृष्टा से दूर या परोक्ष में घटित होने वाली घटनाओं या दृश्यों को देखने की शक्ति के लिए किया जाता है, जब द्रष्टा और दृश्य के बीच कोई भौतिक या ऐंद्रिक संबंध नहीं स्थापित हो पाता। वस्तुओं या वस्तुनिष्ठ घटनाओं का अतींद्रिय प्रत्यक्ष क्लेयरवाएंस तथा मानसिक घटनाओं का अतींद्रिय प्रत्यक्ष टेलीपैथी कहलाता है।

पूर्वाभास का पूर्वज्ञान
किसी भी प्रकार के तार्किक अनुमान के अभाव में भी भविष्य में घटित होने वाली घटना की पहले से ही जानकारी प्राप्त कर लेना या उसका संकेत पा जाना पूर्वाभास कहलाता है।

मनोजनित गति
बिना भौतिक संपर्क या किसी ज्ञात माध्यम के प्रभाव के निकट या दूर की किसी वस्तु में गति उत्पन्न करना मनोजनित गति कहलाता है। पाल्टरजीस्ट या ध्वनि प्रेतप्रभाव, किसी प्रकार के भौतिक या अन्य तथाकथित प्रेतात्मा के प्रभाव से तीव्र ध्वनि होना, घर के बर्तनों या सामानों का हिलना डुलना या टूटना, के प्रभाव भी मनोजनित गति के अंदर आते हैं। अनेक प्रयोगात्मक अध्ययनों से उपर्युक्त क्रिया व्यापारों की पुष्टि भी हो चुकी है। कुछ अन्य घटनाएं भी हैं, जिन पर उपयुक्त प्रयोगात्मक अध्ययन अभी नहीं हो पाए है, किंतु वर्णनात्मक स्तर पर उनके प्रमाण मिले हैं, जैसे स्वचालित लेखन या भाषण, किसी अनजान एवं अनुपस्थित व्यक्ति का कोई सामान देखकर उसके बारे में बतलाना, प्रेतावास आदि कहलाता है।

परामानसकीय के प्रयोगात्मक अध्ययन
प्रसिद्ध अमेरिकन परामनोवैज्ञानिक जेबी राइन ने इ

ने अजनबी एवं अनियमित प्रतीत होती घटनाओं को प्रयोगात्मक पद्धति की परिधि में बांधने का प्रयत्न किया और उन्हें काफी सीमा तक सफलता भी प्राप्त हुई। उन्होंने 1934 में ड्यूक विवि में परामनोविज्ञान की प्रयोगशाला की स्थापना की तथा अतींद्रिय ज्ञान पर अनेक प्रयोगात्मक अध्ययन किए। ईएसपी शब्द 1930 के लगभग प्रो. राइन के कारण ही सामान्य प्रचलन में आया। इसका अर्थ है सांवेदनिक या ऐंद्रिक ज्ञान के अभाव में भी किसी बाह्य घटना या प्रभाव का आभास, बोध या उसके प्रति प्रतिक्रिया। यह शब्द सभी प्रकार के अतींद्रिय ज्ञान के लिए प्रयुक्त किया जाता है।
प्रो. राइन ने जेनर कार्ड्स का उपयोग किया जिनमें पांच ताशों का एक सेट होता है। इन ताशों में अलग-अलग संकेत बने हैं, जैसे गुणा, गोला, तारक, टेढ़ी रेखाएं तथा चतुर्भुज। प्रयोगकर्ता उसी कमरे में या दूसरे कमरे में जेनर ताश की गड्डी फेट लेता है और उसे उल्टा रखता है। प्रयोज्य कार्ड के चिह्न का अनुमान लगाता है। परिणाम निकालने में सामान्य संभावना सांख्यिकी का उपयोग किया जाता है, जिसके अनुसार अनुमानों की सफलता की संभावना यहां 1/5 है, अर्थात् पचीस अनुमानों में पांच। तर्क यह है कि यदि प्रयोज्य संभावित प्रत्याशी से अधिक सही अनुमान लगा लेता है तो निश्चित रूप से यह किसी अतींद्रिय प्रत्यक्ष की शक्ति की ओर संकेत करता हैं, यदि प्रयोग की दशाओं का नियंत्रण इस बात का संदेह न उत्पन्न होने दे कि प्रयोज्य को कोई ऐंद्रिक संकेत मिल गया होगा।

जानवरों को होता है पूर्वाभास
बात लगभग एक सदी पुरानी है। अमेरिका के पश्चिमी द्वीप समूह का लगभग 5000 फुट ऊंचा माउंट पीरो नामक पर्वत ज्वालामुखी बनकर धधकने लगा और फूट पड़ा। पर्वत के टुकड़े-टुकड़े हो गए। इस प्राकृतिक विपदा ने तीस हजार मनुष्यों को लील लिया। करोड़ों की सम्पत्ति नष्ट हो गई।
जो लोग जीवित रह गए उन्होंने बताया कि यहां के पशु-पक्षी रात में रुदन-सा करते थे और ऐसा कई दिनों से हो रहा था। साथ ही पक्षियों ने अपने घर कहीं और बसा लिए थे। सर्पों, कुत्तों और सियारों ने तो मानो काफी दिनों पहले ही जगह को छोड़ दिया था।
1904 में घटी इस घटना के अतिरिक्त भी अनेकानेक घटनाओं का जिक्र करते हुए जीवविज्ञान के वैज्ञानिक डॉ. विलियम जे. लॉग ने पशुओं की इंद्रियातीत शक्ति को स्वीकारा है। उनके मुताबिक पशु-पक्षी भले ही बुद्धि-कौशल में मनुष्य की तुलना में कमतर हों, परंतु उनकी इंद्रियातीत शक्ति काफी बढ़ी-चढ़ी होती है और वे उसके आधार पर अपनी जीवनचर्या का सुविधापूर्वक संचालन करते हैं। डॉ. विलियम ने अपनी पुस्तक

में लिखा है कि यदि पशु-पक्षियों में वाक्य शक्ति होती तो वे बेहतरीन ज्योतिषी साबित होते। प्राकृतिक आपदाओं के प्रति तो हिरणों, मछलियों, भालुओं, चूहों, सर्पों आदि सभी पशु-पक्षियों में संवेदनशीलता देखी गई है और इनका जिक्र चीन, जर्मनी, जापान, रूस और अमेरिका सहित अनेक देशों के वैज्ञानिकों ने समय-समय पर किया है। इस संदर्भ में अनेक सार्थक अनुसंधान भी हुए हैं।
मसलन बर्फ गिरने से पहले ध्रुवीय भालुओं का भोजन एकत्रीकरण, बर्फ जमने वाली झीलों से मछलियों का पलायन, बर्फ गिरने के पहले हिरणों का सुरक्षित स्थानों पर पहुंचना, भूकंप के पहले पालतू कुत्तों का मालिक के आदेशों का पालन न करना, एक-दूसरे को काटना, चूहों-सर्पोँ का बिलों से निकलकर बेतहाशा भागना, मछलियों का तल में चले जाना, गाय आदि मवेशियों का रस्सी छुड़ाने का प्रयास करना है।
परंतु ऐसी घटनाएं भी वैज्ञानिकों ने दर्ज की हैं, जिनसे पता चलता है कि पशु-पक्षियों में बाकायदा छठी इंद्रिय होती है। एक घटना का उल्लेख प्रासंगिक होगा। घटना वियना की है। एक कुत्ता माल उठाने-उतारने की क्रेन के पास पड़ा सुस्ता रहा था। अचानक वह चौंककर उठा और उछलकर दूर जाकर बैठ गया। कुछ मिनटों के बाद अचानक क्रेन का रस्सा टूट गया और भारी लौहखंड वहीं गिरा, जहां कुत्ता पहले लेटा हुआ था।
एक अन्य रोचक घटना से हमें पशुओं की सुविकसित अतीन्द्रिय शक्ति का पता चलता है। बर्मा में अंगरेजों और जापानियों के बीच युद्ध चल रहा था। एक दिन अंगरेजों की एक टुकड़ी पर चंद जापानियों ने हमला कर दिया। जापानियों ने सोची-समझी रणनीति के तहत पीछे हटने का नाटक खेला। वे इस तरह दूर खंदकों में जा छुपे। अंगरेजों ने उन्हें भागा हुआ समझा और देखा कि उनके ठिकाने पर एक मेज पर ताजा पकाया हुआ खाना रखा है। वे खाना खाने को तत्पर हुए कि सार्जेंट रैडी की काली बिल्ली ने खाने को तहस-नहस कर दिया और अंगरेज सैनिकों पर गुर्राने लगी। सैनिकों ने उसे धमकाने के काफी प्रयास किए, परंतु उसने उन्हें मेज के पास नहीं फटकने दिया। कुछ ही मिनटों में बारूदी सुरंग फट पड़ी और खाने की मेज और बिल्ली के टुकड़े-टुकड़े हो गए। बर्मा की कलादान घाटी में उस बिल्ली की समाधि आज भी मौजूद है और समाधि पर घटना का भी संक्षिप्त विवरण अंकित है।

महात्मा गांधी : मृत्यु का पूर्वाभास
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो चुका था, जिसका संकेत वह अनेक बार दे भी चुके थे। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय (मेरठ) के इतिहास विभाग की पूर्व अध्यक्ष एवं गांधी अध्ययन संस्थान की पूर्व निदेशक गीता श्रीवास्तव के नए शोध में ऐसे कई दृष्टंंत दिए गए हैं। अब मेरठ विश्वविद्यालय में ही मानद प्राध्यापक के रूप में कार्यरत डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि 30 जनवरी 1948 को एक हत्यारे की गोली का निशाना बनने से एक दिन पहले सीने पर गोली खाकर पीड़ा से कराहे बगैर ही, हे राम का उच्चारण करते हुए दुनिया से विदा होने की इच्छा व्यक्त की थी।

महात्मा गांधी भी ब्रिटिश फौज में थे!
इतना ही नहीं, गांधीजी ने अपनी मृत्यु से चंद मिनट पहले यानी अपनी अंतिम प्रार्थना सभा के दौरान काठियावाड़ (गुजरात) से उनसे मिलने दिल्ली आए दो नेताओं को कहलवाया था, यदि मैं जीवित रहा तो प्रार्थना सभा के बाद आप लोग मुझसे बात कर सकेंगे। इस प्रकार मृत्यु से चौबीस घंटे पहले उन्होंने दो बार इसके पूर्वाभास की सार्वजनिक रूप से अभिव्यक्ति कर दी थी। डॉ. श्रीवास्तव ने अपने शोध और कृष्णा कृपलानी द्वारा 1968 में लिखित पुस्तक 'नेशनल बायोग्राफी गांधी: ए लाइफÓ में लिखा है। इस पुस्तक में ऐसे कई तथ्यों को उजागर करने की कोशिश की गई है, जो अन्यत्र प्रकाश में नहीं आ सके थे। डॉ. श्रीवास्तव का कहना है कि गांधीजी उन भाग्यशाली महापुरुषों में माने जाएंगे, जो अपनी इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त हुए। उन्होंने कहा कि मृत्यु के समय गांधीजी की जुबान पर 'हे रामÓ शब्द थे। उनके निकट सहयोगी जानते थे कि यही उनके जीवन की सबसे बड़ी इच्छा भी थी।

गांधी की किताबें पढ़ते हैं ओबामा
इससे पहले 20 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा से पूर्व चारों ओर लोगों से घिरे गांधीजी से चन्द गज की दूरी पर हुए बम विस्फोट ने उन्हें जरा भी विचलित नहीं किया था और उन्होंने अपना संबोधन जारी रखा था। गांधीजी ने कभी अपनी सुरक्षा को पसन्द नहीं किया। यहां तक कि अपनी मृत्यु से चालीस वर्ष पूर्व 1908 में जब उनके जीवन को जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ्रीका) के एक गुस्सैल पठान मीर आलम से खतरा बना हुआ था, तो भी उन्होंने सहज भाव से कहा था- किसी बीमारी या किसी दूसरी तरह से मरने के नहीं हो सकता और यदि मैं ऐसी स्थिति में अपने हमारे के प्रति गुस्सा या घृणा से स्वयं को मुक्त रख सकूं, तो मैं जानता हूं कि यह मेरे शाश्वत कल्याण को बढ़ाने वाला होगा। संभवत: गांधीजी की शहीद होने की अर्धचेतन मन की आंतरिक इच्छा थी, जो कभी मुखर होकर व्यक्त हो जाती है थी और उनकी कल्पना को ग्रसित कर लेती थी। बम विस्फोट से वह और दृढ़ हो गई थी। 20 जनवरी 1948 के बाद अपनी पौत्री मनु से उन्होंने कई बार 'हत्यारे की गोलियांÓ या 'गोलियों की बौछारÓ के बारे में बातें की थीं, जो बुराई की आशंका में नहीं वरना अपने सार्थक जीवन के अन्त के रूप में थी, जिसका आभास उन्हें हो चुका था।

गांधीजी को जानने आ रहे हैं विदेशी
अपनी मृत्यु से एक दिन पहले 29 जनवरी को उन्होंने मनु से कहा था, यदि मेरी मृत्यु किसी बीमारी से, चाहे वह एक मुंहासे से ही क्यों न हो, तुम घर की छत से चिल्ला-चिल्लाकर दुनिया से कहना मैं एक झूठा महात्मा था। यहां तक कि ऐसा कहने पर लोग तुम्हें कसम खाने को कह सकते हैं। तब मेरी आत्मा को शांति मिलेगी। दूसरी तरफ यदि कोई मुझे गोली मारे, जैसा कि उस दिन किसी ने मुझ पर बम फेंकने की कोशिश की थी और मैं उस गोली को अपने खुले सीने पर बिना पीड़ा से कराहे ले लूं और मेरी जुबान पर राम का नाम हो, तभी तुम्हें कहना चाहिए कि मैं एक सच्चा महात्मा था।

भारत की जनता का कल्याण होगा
अंत में 30 जनवरी 1948 को वह घड़ी भी आ पहुंची, जब गांधीजी का पूर्वाभास सच होने वाला था। अपनी पौत्रियों मनु और आभा का सहारा लेकर वह प्रतिदिन होने वाली प्रार्थना सभा में पहुंचे। अभी उन्होंने दोनों हाथ जोड़कर लोगों को अभिवादन स्वीकार ही किया था कि एक नवयुवक ने मनु को झटका देकर और गांधीजी के आगे घुटनों के बल अभिवादन के अन्दाज में झुककर तीन गोलियां दाग दीं। दो गोलियां तो सीधी तरफ से निकल गईं, लेकिन तीसरी उनके फेफड़े में जा फंसी। गांधीजी, वहीं गिर गए। पीड़ा से कराहे बगैर ही उनकी जुबान पर 'हे राम शब्द थे...और इस तरह गांधीजी ने अपनी इच्छानुसार मृत्यु को प्राप्त होकर एक सच्चा महात्मा होना अन्तत: सिद्ध कर ही दिया।


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