सत्य प्रतिलिपि एवं सूचना प्रदान करनें की व्यवस्था में ट्रेकिंग पद्धती जोडी जाये - अरविन्द सिसोदिया

 



सत्य प्रतिलिपि एवं सूचना प्रदान करनें की व्यवस्था में ट्रेकिंग पद्धती जोडी जाये - अरविन्द सिसोदिया


नागरिकों को सत्य प्रतिलिपि एवं सूचना के अधिकार के अन्तर्गत सूचना नहीं दिये जाने के राष्ट्रव्यापी दुर्व्यवहार को समाप्त कर सूचना प्रदान करने की प्रभावशील व जवाबदेह प्रक्रिया बनाने एवं ठोस कानून बना कर लापरवाही के लिये जिम्मेदार कर्मचारी/अधिकारी को सजा का प्रावधान करने के संदर्भ में।

इस समय संविधान की बहुत चर्चा है किन्तु कानून के पालन की सर्वाधिक उपेक्षा नागरिकों की नियमित सेवाओं में प्रशासनिक स्तर पर हो रही है। जिसमें एक प्रमुख प्रशासनिक कर्तव्य नागरिकों को सत्य प्रतिलिपि एवं सूचना के अधिकार के अन्तर्गत सूचना दिये जाने से संदर्भित है।

क - सत्य प्रतिलिपि और सूचना चाहने का मुख्य उद्देश्य न्याय प्राप्त करना, अन्याय और भ्रष्टाचार रोकना है। ज्यादातर केन्द्रीय एवं राज्य स्तरीय रिकॉर्ड रूम और सम्बंधित संस्थान इस संदर्भ में टाल मटोल कर सूचना उपलब्ध नहीं करवाते हैं। यह अब एक आदत के रूप में सामने आ रहा है।

ख - केंद्र के सतर्कता विभाग को सभी क्षेत्रों से इस वर्ष सहित गत तीन वर्षों की जानकारी मांग लेने पर बेहद चौंकाने वाला आंकड़ा सामनें आयेगा। यहां तक कि वे अर्थदण्ड सहन कर भी सूचना नहीं देना चाहते । यह केन्द्र सरकार को व राज्य सरकारों को यह जानना चाहिये।

मान्यवर ,
एक तरफ संविधान नागरिकों को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाता है, दूसरी तरफ नागरिकों को सही सत्य प्रतिलिपि एवं सूचना न देकर संविधान का मखौल वे उड़ाते हैं, जिन पर संवैधानिक व्यवस्था संचालित करने की जिम्मेदारी है। इसलिये कर्तव्य विमुखता पर कठोर कार्यवाही की व्यवस्था कानूनगत होनी चाहिये।



अतः -

1- प्रत्येक राज्यस्तरीय एवं राज्य के जिला व तहसील स्तरीय रिकॉर्ड रूम अधिकतम रिकार्ड स्कैन कर पीडीएफ फॉर्मेट में कम्प्यूटर पर संग्रहित करके रखे और सत्य प्रतिलिपि मांगने पर उपलब्ध करवाये। भले ही पर्याप्त फीस इस हेतु ली जावे। यह बात पूरी तरह समाप्त होनी चाहिये कि फाईल मिल नहीं रही । एक सीलिंग केस में कौन कौन सी भूमि थी, किस किस के नाम है,उसे बचाने हेतु क्या कहा गया और कुछ दशकों बाद उसमें हेरफेर हो गई किसी को बेजा लाभ पहुंचाया गया तो किसी को बेजा हानि पहुँचाई गई, यह तो सत्य प्रतिलिपि ही बतायेगी। सत्य प्रतिलिपि नहीं मिलने का अर्थ अन्याय की सहायता करना ही होगा। अर्थात रिकार्ड रूम में तैनात कर्मचारियों को स्थानांतरण से बाहर रखा जाए, ताकि फाइलें जल्द मिल सकें, फाइल मिल नहीं रही है तो उसके लिए जबाबदेही भी तय हो और दंडस्वरूप मात्र अर्थ दण्ड तक सीमित न होकर सजा का भी प्रावधान हो। सरकारी कार्यालयों में काम होना चाहिये।

2- बिन्दु 1 में वर्णित व्यवस्था केन्द्र एवं सभी राष्ट्रीय संस्थानों में भी अनिर्वाय किये जावे।

3- सूचना के अधिकार को विफल नहीं होने देना चाहिये बल्कि इसे और अधिक सशक्त बनाया जाना चाहिये। एक पुत्र अपने पिता की मृत्यु के बाद उनके बैंक अकाउंट की पूरी जानकारी क्यों नहीं ले सकता। उसके लिये इधर उधर के बहाने क्यों ? यह उसे दी जानी चाहिये। इस तरह के अनेकों तरह की बातें हैं जिनमें सूचना दी ही नहीं जाती। जबकि वह न्याय के लिए बहुत आवश्यक होती है। इसलिये सूचना देना कर्तव्यवान बनाया जाये। सूचना नहीं देनें के कारणों की पुष्टि दूसरे अधिकारी से कराये जाने का प्रावधान बनाया जाए ताकि सूचना देने के मनचाहे कारणों से सूचना देना निरस्त किया जाना बंद हो।

4- सभी प्रकार की सत्य प्रतिलिपि एवं सूचनाओं के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय की तरह अथवा डाक विभाग के रजिस्टर्ड डाक एवं स्पीड पोस्ट ट्रैकिंग की तरह ऑनलाइन ट्रैकिंग सुविधा होनी चाहिये। सत्य प्रतिलिपि मांगने के आवेदन का पंजीकरण कर आन लाईन करना और उसकी स्टेज वाईज जानकारियों अपडेट करने की व्यवस्था से, चाहे आवेदन स्वयं दिया गया हो अथवा डाक से आया हो । इसमें जिम्मेदारी एवं जवाबदेही आयेगी।

  



--------------------

श्रीमान प्रधानमंत्री महोदय

भारत सरकार, 

पीएमओ नई दिल्ली।


विषय :- नागरिकों को सत्यप्रतिलिपी एवं सूचना के अधिकार के अर्न्तगत सूचना नहीं दिये जानें के राष्ट्रव्यापी दुर्व्यवहार को समाप्त कर सूचना प्रउान करनें की प्रभावशील व जबाबदेह प्रक्रिया बनानें एवं ठोस कानून बना कर लापरवाही के लिये जिम्मेदार कर्मचारी/अधिकारी को सजा का प्रावधान करनें के संदर्भ में। 



आदरणीय,

इस समय संविधान की बहुत चर्चा है किन्तु कानून के पालन की सर्वाधिक उपेक्षा नागरिकों की नियमित सेवाओं में प्रशासनिक स्तर पर हो रही है। जिसमें एक प्रमुख प्रशासनिक कर्त्तव्य नागरिकों को सत्यप्रतिलिपि एवं सूचना के अधिकार के अर्न्तगत सूचना दिये जानें से संदर्भित है। 


क - सत्यप्रतिलिपि और सूचना चाहनें का मुख्य उद्देश्य न्याय प्राप्त करना, अन्याय और भ्रष्टाचार रोकना है। ज्यादातर केन्द्रीय एवं राज्यस्तरीय रिकार्ड रूम और सम्बंधित संस्थान इस संदर्भ में टाल मटोल कर सूचना उपलब्ध नहीं करवाते हैं। यह अब एक आदत के रूप में सामनें आ रहा है।


ख - केन्द्र के सर्तकता विभाग को सभी क्षेत्रों से इस वर्ष सहित गत तीन वर्षों की जानकारी मांग लेनें पर बेहद चौंकानें वाला आंकडा सामनें आयेगा। यहां तक कि वे अर्थदण्ड सहन कर भी सूचना नहीं देना चाहते । यह केन्द्र सरकार को व राज्य सरकारों को यह जानना चाहिये।


मान्यवर ,

एक तरफ संविधान नागरिकों को सशक्त और सामर्थ्यवान बनाता है, दूसरी तरफ नागरिकों को सही सत्यप्रतिलिपि एवं सूचना न देकर संविधान का माखौल वे उडाते हैं, जिन पर संविधानिक व्यवस्था संचालित करने की जिम्मेदारी है। इसलिये कर्त्तव्य विमुखता पर कठोर कार्यवाही की व्यवस्था कानूनगत होनी चाहिये।


अतः -

1- प्रत्येक राज्यस्तरीय एवं राज्य के जिला व तहसील स्तरीय रिकार्डरूम अधिकतम रिकार्ड स्कैन कर पीडीएफ फारमेट में कम्प्यूटर पर संग्रहीत करके रखे और सत्यप्रतिलिपी मांगनें पर उपलब्ध करवाये। भले ही पर्याप्त फीस इस हेतु ली जावे। यह बात पूरी तरह समाप्त होनी चाहिये कि फाईल मिल नहीं रही । एक सीलिंग केस में कौन कौन सी भूमि थी, किस किस के नाम है,उसे बचानें हेतु क्या कहा गया और कुछ दसकों बाद उसमें हेरफरे होगई किसी को बेजा लाभ पंहुचाया गया तो किसी को बेजा हानी पंहुचाई गई, यह तो सत्यप्रतिलिपी ही बतायेगी। सत्यप्रतिलिपी नहीं मिलनें का अर्थ अन्याय की सहायता करना ही होगा। अर्थात रिकार्डरूम में तैनात कर्मचारियों को स्थानांतरण से बाहर रखा जाये, ताकि फाईलें जल्द मिल सकें, फाईल मिल नहीं रही है तो उसके लिये जबाबदेही भी तय हो और दण्डस्वरूप मात्र अर्थ दंण्ड तक सीमित न होकर सजा का भी प्रावधान हो। सरकारी कार्यालयों में काम होना चाहिये। 


2- बिन्दु 1 में वर्णित व्यवस्था केन्द्र एवं सभी राष्ट्रीय संस्थानों में भी अनिर्वाय किये जावे।


3- सूचना के अधिकार को विफल नहीं होने देना चाहिये बल्कि इसे और अधिक सशक्त बनाया जाना चाहिये। एक पुत्र अपने पिता की मृत्यु के बाद उनके बैंक एकाउन्ट की पूरी जानकारी क्यों नहीं ले सकता। उसके लिये इधर एधर के बहानें क्यों ? यह उसे दी जानी चाहिये। इस तरह के अनेकों तरह की बातें हैं जिनमें सूचना दी ही नहीं जाती। जबकि वह न्याय के लिये बहुत आवश्यक होती है। इसलिये सूचना देना कर्त्तव्यवान बनाया जाये। सूचना नहीं देनें के कारणों की पुष्ठि तीसरे अधिकारी से कराये जानें का प्रावधान बनाया जावे ताकि सूचना देनें के मनचाहे कारणों से सूचना देना निरस्त किया जाना बंद हो।


4- सभी प्रकार की सत्यप्रतिलिपी एवं सूचनाओं के लिये प्रधानमंत्री कार्यालय की तरह अथवा डाक विभाग के रजिस्टर्ड डाक एवं स्पीडपोस्ट ट्रेकिंग की तरह ऑन लाईन ट्रेकिंग सुविधा होनी चाहिये। सत्यप्रतिलिपी मांगने के आवेदन का पंजीकृत कर आन लाईन करना और उसकी स्टेज वाईज जानकारीयों अपडेट करने की व्यवस्था से, चाहे आवेदन स्वंय दिया गया हो अथवा डाक से आया हो । इसमें जिम्मेवारी एवं जबाबदेही आयेगी।

      अतः उपरोक्त संदर्भ में प्रभावी कार्यवाही करवाये जानें का आग्रह है। सादर ।


 भवदीय

 अरविन्द सिसौदिया

 9414180151


टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

केंसर का बचाव : आयुर्वेद से ....

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

भारतीय संस्कृति का ज्ञान सर्वोच्च, सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वप्रथम - अरविन्द सिसोदिया bhartiy sanskrti sarvochch

किसानों की चिंता पर ध्यान देनें के लिए धन्यवाद मोदीजी - अरविन्द सिसोदिया kisan hitkari modiji

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

कैंसर पैदा करने वाले तत्व हैं , विदेशी शीतल पेय

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

सर्वश्रेष्ठ है हिन्दू धर्मपथ - अरविन्द सिसोदिया

भारतीय संस्कृति संरक्षण एवं संवर्धन बोर्ड की स्थापना हो - अरविन्द सिसोदिया