वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पूर्वजन्म स्मृति का रहस्य
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से मृत्यु और पुनर्जन्म
1. आकस्मिक मृत्यु का अर्थ प्रभाव: आकस्मिक मृत्यु का अर्थ उस स्थिति से है जब किसी व्यक्ति की मृत्यु अचानक बहुत तेजी से होती है, बिना किसी पूर्व चेतावनी या बीमारी के। यह एक गंभीर घटना है जो न केवल मृतकों के लिए है, बल्कि उनके परिवार और समाज के लिए भी बहुत गहरा प्रभाव डालती है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, मृत्यु एक जैविक प्रक्रिया है जिसमें शरीर के सभी कार्यप्रणालियाँ बंद हो जाती हैं।
2. स्मृति और मस्तिष्क का कार्य: जब कोई व्यक्ति जीवित होता है, तो उसके मस्तिष्क में निहित ईश्वरीय कम्प्यूटर सिस्टम जो निरंतर विकसित होता रहता है अपनी तरह से काम करता है। उसमें ईश्वरीय व्यवस्था की हार्ड डिस्क, रेम, रोम, इंटरनेट, अप्लीकेशन्स, एप्स आदी वह सब होता है जिसे आधुनिक विज्ञान खोज चूका है। सेव्ड मेमोरी और अनसेव्ड मेमोरी भी होती है। स्वप्न अधिकतर अनसेव्ड मेमोरी होते हैँ, जो याददास्त से विलुप्त हो जाते हैँ। यह डाटा संग्रह आत्मा के साथ ईश्वरीय व्यवस्था से सेव्ड रहता है, सुरक्षित रहता है। जैसे गूगल पर हम बहुत सी जानकारियों सुरक्षित कर लेते हैँ, हमारा कम्प्यूटर, लेपटॉप, टेबलेट या स्मार्ट मोबाईल नष्ट भी हो जाये तब भी यह सुरक्षित रहते हैँ और पुनः प्राप्त हो जाते हैँ। ईश्वर इसी डाटा का उपयोग कर आत्मा को अगला जन्म देता है।
समान्यतः प्रत्येक जन्म की स्मृति भौतिक जीवन समाप्त होनें के साथ ही उसका फाइल पेज के बंद हो जाने से सुरक्षित रहते हुये भी अगले जन्म यानि की अगले फाइल पेज पर प्रभाव नहीं डाल पाता है। अगला फाइल पेज पूरी तरह से नया होता है। किन्तु ईश्वरीय कम्प्यूटर सिस्टम में स्टोरेज होने से कई कई बार भी देखा जा सकता है।
कभी कभी आकस्मिक मृत्यु के समय, यह फाइल पेज बंद नहीं होने से यह अगले जीवन के मस्तिष्क में आत्मा के साथ होने से डाउनलोड होता है और खुला होने से वह वर्तमान याददास्त का हिस्सा बन जाता है। और पूरी तरह से कार्यशील नहीं होते हुये भी वह स्मृति को प्रभावित करता है।
विज्ञान का भी एक सिद्धांत है कि कोईभी चीज कभी समाप्त नहीं होती स्वरूप बदलती रहती है। इसी तरह हमारी स्मृति समाप्त नहीं होती बल्कि स्टोर मेमोरी में जमा रहती है। इसीलिए जब वह किसी नए जन्म को याददास्त के रुपमें प्रभावित करती है तो उसे पुनर्जन्म कहा जाता है।
3. पुनर्जन्म का सिद्धांत:- अनुभव के कारण पुनर्जन्म का सिद्धांत विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों में पाया जाता है, जो कि सनातन हिंदू धर्म और बौद्ध पंथ में है। इस सिद्धांत के अनुसार, आत्मा मृत्यु के पश्चित एक नए शरीर में जन्म लेती है। हालाँकि, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से पुनर्जन्म का कोई ठोस प्रमाण इसलिए नहीं है कि ईश्वरीय विज्ञान को पूरी तरह पड़ने समझने में मानव अध्ययन बहुत कम या सूक्ष्म जैसा है।
4. स्मृति का संरक्षण: हालांकि विज्ञान ने अभी तक यह साबित नहीं किया है कि मृत्यु के बाद स्मृति बनी रहती है या नहीं, लेकिन कुछ चिकित्सकों ने सुझाव दिया है कि जीवन की स्मृति का प्रभाव हमारे व्यवहार और सोच पर बना रहता है। यह विचार इसलिए पुष्ठ होता है कि हमारे स्वभाव, विचार, शैली भिन्न भिन्न होकर पूर्ववर्ती जीवन से प्रभावित होतीं हैँ तथा समान्यतः दृष्टिगोचर भी होती हैँ।
5. निष्कर्ष: इसका अर्थ यह है कि आकस्मिक मृत्यु के समय जब वर्तमान भौतिक जीवन की स्मृति पेज बंद होनें रह जाता है तो वह अगले भौतिक शरीर के जीवन की स्मृति में बना रहता है। यहाँ यह सही है कि मानव की वैज्ञानिक समझ इन मामलों में बहुत कम होकर सूक्ष्म है, इस दिशा में मानव भविष्य में उन्नति कर सकता है।
संक्षेप में: आकस्मिक मृत्यु से भौतिक जीवन की प्रक्रिया समाप्त हो जाती है। किन्तु जीवात्मा में संग्रहीत डाटा कभी नष्ट नहीं होता, ईश्वरीय सर्च इंजन उसे कभी भी सर्च कर लेता है, खोल लेता है।
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हिन्दू धर्म ग्रंथो में पूर्वजन्म की स्मृतियों का विवरण
हिंदू धर्म के ग्रंथों में पूर्वजन्म की कहानियों का भंडार है। जिसका विवरण विभिन्न ग्रंथों, पुराणों और उपनिषदों में मिलता है। ये घटनाएँ आत्मा का पुनर्जन्म और उसके पिछले जन्मों की जानकारी देती हैं।
1. वेद और उपनिषद:-
वेदों में आत्मा की अमरतता और पुनर्जन्म का सिद्धांत स्पष्ट रूप से वर्णित है। उपनिषदों में यह बताया गया है कि आत्मा कभी ख़त्म नहीं होती; यह केवल भौतिक शरीर समाप्त होता है। उदाहरण के लिए, छांदोग्य उपनिषद में कहा गया है कि आत्मा का ज्ञान व्यक्ति अपने पिछले जन्मों को याद करके प्राप्त कर सकता है।
2. श्रीमद्भगवद्गीता:-
श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि उनके और अर्जुन के कई जन्म हो चुके हैं, लेकिन अर्जुन उन्हें भूल गए हैं। इस संवाद से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा का पुनर्जन्म एक सतत प्रक्रिया है और आत्मा में पिछले जन्मों की जानकारी संग्रहीत रहती है।
3. पुराण:-
पुराणों में भी पूर्वजन्म की घटनाओं का विस्तृत वर्णन है। उदाहरण के लिए, भागवत पुराण में कई कथाएँ हैं जहाँ लोगों को उनके पिछले जन्मों के कर्मों का फल मिलता है। इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि कुछ लोग अपने पिछले जन्मों की स्मृतियों को प्राप्त करते हैं और उन्हें अपने वर्तमान जीवन में निर्देशित करते हैं। भीष्म पितामह को अपने सौ जन्मों की स्मृति थी, जबकि श्रीकृष्ण नें उन्हें उनके इससे पूर्व जन्म की घटना बाण सैय्या पर बताई।
4. जैन धर्म और बौद्ध धर्म: -
हिंदू धर्म के अंतर्गत जैन और बौद्ध पंथ में भी पुनर्जन्म को स्वीकार किया जाता है। जैन ग्रंथ "तत्त्वार्थसूत्र" में पुनर्जन्म का सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है, जबकि बौद्ध धर्म में "संसार" (पुनर्जन्म) का सिद्धांत महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
5. आधुनिक शोध:-
हाल ही में कई वर्षों में कुछ वैज्ञानिक शोध भी हुए हैं, जो पुनर्जन्म पर आधारित सिद्धांतों का दस्तावेजीकरण करते हैं। इस शोध कार्य में यह दिखाया गया है कि कुछ बच्चे अपने पिछले जन्मों की घटनाओं को याद कर सकते हैं, जो इस सिद्धांत का समर्थन कर सकते हैं।
इन सभी संसाधनों में यह स्पष्ट है कि हिंदू धर्म ग्रंथ पूर्वजन्म की कहानियों का विस्तृत विवरण दिया गया है, जिसमें आत्मा के चक्र और उसके कर्मफल का उल्लेख किया गया है। वह कई कई वार सत्य साबित हुआ है।
1. वेद:
वेद हिंदू धर्म के सबसे प्राचीन ग्रंथ हैं जो सृष्टि, सृजन, ईश्वर, देवताओं क़ी शक्तियाँ,जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म जैसे विषयों पर गहन विचार प्रस्तुत करते हैं।
2. श्रीमद्भगवद्गीता:-
इस ग्रंथ में भगवान कृष्ण अर्जुन द्वारा दिए गए ज्ञान का संग्रह है जिसमें पुनर्जन्म और आत्मा की अमरतता की विस्तृत चर्चा की गई है।
3. पुराण:
पुराण हिंदू धार्मिक साहित्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं जो विभिन्न कथाएँ, इतिहास और धार्मिक शिक्षाएँ प्रदान करते हैं, जिनमें पुनर्जन्म संबंधी घटनाएँ भी शामिल हैं।
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