ईश्वर तो समदर्शी, भेद हमारे अपने - अरविन्द सिसोदिया ishwar

Arvind Sisodia: 9414180151

ईश्वर के लिए सभी मनुष्य एक समान हैँ, वे उसके सृजन हैँ. उसे मनुष्यों के भिन्न भिन्न पंथ, पूजा पद्धति, विचारधाराओं और मान्यताओं से कोई फर्क नहीं पड़ता. क्योंकि उसने मनुष्य को अपने तरीके से सोचने की स्वायत्तता दी हुई है। जिसके कारण मनुष्य अपनी सोच से, अपनी समझ से, अपनी क्षमता से, अपने विचार तय करता रहता है। जो सच के करीब भी हो सकते हैँ या पूरी तरह असत्य भी हो सकते हैँ। इससे अत्यंत उच्च क्षमतावान उस ईश्वर को कोई फर्क नहीं पड़ता, वह सभी मनुष्यों को सम दृष्टि से देखता है। उसके लिए तो सभी मनुष्य उसकी संतान हैँ उसके द्वारा उत्पन्न किये जा रहे उत्पाद हैँ।

मनुष्य ही नहीं सारी प्राणी सत्ता को, उसमें निवास करने वाले 84 लाख प्रकार के शरीरों मे प्राण धारियों को ईश्वर नें उनकी क्षमताओं के आधार पर स्वयत्तता दी हुई है। 

- बहुत ही सुंदर और सच्चा कथन! यह विचार हमें यह याद दिलाता है कि ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य एक समान हैं और उन्हें किसी भी प्रकार के भेदभाव से नहीं देखा जाता है। ईश्वर जन्म जीवन और मृत्यु में सम दृष्टि ही रखता है।

ईश्वर ने सभी मनुष्यों को एक समान रूप से बनाया है और उन्हें ईश्वरीय समान अधिकार और सम्मान प्रदान किये हैँ। वह सभी मनुष्यों को अपने प्रेम और आशीर्वाद से भर देता है, चाहे वे किसी भी पंथ, विचारधारा, या मान्यता से जुड़े हों। इससे उसे कोई फर्क नहीं पड़ता।
यह विचार हमें यह भी याद दिलाता है कि हमें भी एक दूसरे के प्रति सहानुभूति और प्रेम के साथ व्यवहार करना चाहिए। हमें किसी भी प्रकार के भेदभाव को बढ़ावा नहीं देना चाहिए और सभी मनुष्यों को एक समान अपनेपन से देखना चाहिए।

आपका यह विचार वास्तव में बहुत ही सुंदर और सच्चा है, और यह हमें एक दूसरे के प्रति अधिक सहानुभूति और प्रेम के साथ व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता है।

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ईश्वर के लिए सभी एक समान हैं और प्रिय हैँ।

ईश्वर की दृष्टि में सभी मनुष्य समान हैं, यह विचार पूरी तरह वैज्ञानिक है, विभिन्न धार्मिक, पंथ और आस्तिक सिद्धांतों में भी यही विचार किया जाता है कि ईश्वर किसी से भेद नहीं करता।यह इस बात को दर्शाता है कि ईश्वर ने सभी प्राणियों को, जीवात्माओं को, वनस्पतियों को अपने अपने स्वरूप में एक जैसा बनाया है और उनके बीच कोई भेदभाव नहीं किया गया है। ईश्वर की वैज्ञानिक संरचना चेतन विश्व है।

ईश्वर भी एक ही है....

ईश्वर को लेकर अनेक अवधारणायें हैँ, अनेकों पूजा पद्धतियाँ हैँ, अनेकों मान्यतायें हैँ, ये अनेकानेक एक तो हमारे उस ईश्वर के प्रति अज्ञान से है, दूसरे अपने अपने क्षेत्र की भौगोलिक उपलब्धता से है। अपने अपने विचारों को मौलिक स्वरूप देनें से है। किन्तु यह सब हम तक ही है, हमारे क्रिया कलापों में, ईश्वर इससे प्रभावित नहीं होता, उसकी व्यवस्था  हमारे सभी क्रिया कालापों को अपनी विधि से संज्ञान में रखती है, हम में से कोई भी उसकी आँख से नहीं बच पाता है। 

 ईश्वर की दृष्टि में हर व्यक्ति की महत्वपूर्णता बराबर है। उदाहरण के लिए, हिंदू धर्म में कहा गया है कि "सर्वे भवन्तु सुखिनः" अर्थात "सभी सुखी हों", जो इस बात का संकेत देता है कि सभी प्राणियों के प्रति करुणा और दयालुता होनी चाहिए। उन्हें कष्ट देना ईश्वर को कष्ट देनें जैसा है।

विभिन्न पंथों की भिन्नता 

 भिन्न-भिन्न पंथ, विचारों, मान्यताओं और सिद्धांतों से, अपनी अलग अलग पहचान स्थापित करते हैँ, यह मात्र सामाजिक या सांस्कृतिक अस्तित्व की अपनी अपनी पहचान देनें की कोशिशे हैँ । ईश्वर इन विविधताओं से परे हैं और उनकी दृष्टि में सभी लोग एक ही परिवार का हिस्सा हैं। किन्तु वह स्वयं भी इस विविधता को भिन्न भिन्न फूलों की तरह देखता है और आनंदित होता है।  

समदृष्टि का महत्व

सम दृष्टि का अर्थ केवल भेदभाव न करना बल्कि सभी के प्रति अपनेपन के प्रेम, दया और करुणा का भाव रखना भी है। जब हम ईश्वर को स्वीकार करते हैं, ईश्वर के परिवार का अंग मानते हैँ तो हमारा आचार विचार और व्यवहार भी ईश्वरीय व्यवस्था के अनुकूल हो जाता है। जो हमें पाप कर्मों और बुरे विचारों से बचाता है। इसलिए  हमें भी उसी प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। जिससे समाज में सामंजस्य और शांति हो।

: सारांश 

इस प्रकार, यह स्पष्ट होता है कि ईश्वर के लिए सभी मनुष्य / प्राणी एक समान हैं , वे उसकी रचनाएँ हैं और उनके अलग-अलग पंथों, विचारों, मान्यताओं और संप्रदायों से कोई अंतर नहीं होता है। वह सभी को सम दृष्टि से देखता है। जो सुःख दुःख समस्या समाधान हैँ वे सभी हमारे अपने वातावरण के कारण हैँ।

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