मुस्लिम वोट के लिए कांग्रेस नौटंकी दिल्ली में काम नहीं आएगी - अरविन्द सिसोदिया

मुस्लिम वोट बैंक पुनः प्राप्त करने के लिए कांग्रेस की नौटंकी, दिल्ली में काम नहीं करेगी - अरविन्द सिसोदिया 

दिल्ली में विधानसभा चुनाव हैँ और कांग्रेस अपने जीरो के रिकार्ड को तोड़ने के लिए झटपटा रही है! क्योंकि गत दो चुनावों से वह जीरो सीट पर है। दिल्ली में अभी कांग्रेस लोकसभा और विधानसभा की दृष्टि से जीरो पर है। इस समय लोकसभा में भाजपा सभी 7 सीटें जीत कर 100 प्रतिशत है, विधानसभा में आप लगभग शतप्रतिशत के करीब है। 

कांग्रेस का शून्य पर होनें का कारण भी वह खुद है। क्योंकि जब कांग्रेस की शिला दीक्षित सरकार चुनाव में हार गईं और भाजपा सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, तो केजरीवाल को सर्वप्रथम मुख्यमंत्री बनाने वाली कांग्रेस ही थी, फिर केजरीवाल सरकार से समर्थन वापस लेकर, उसे गिराने वाली भी कांग्रेस ही थी। यह कांग्रेस की परंमपरा भी है कि वह समर्थन देकर जिसे भी पीएम या सीएम बनाती है उसे गिरा कर फिर खुद स्वयं सत्ता में आने के लिए चुनाव करवाती है। येशा चौधरी चरण सिंह, चंद्रशेखर, देवगोड़ा  और गुजराल के साथ वह केंद्र में भी कर चुकी है, वही उसने दिल्ली में केजरीवाल के साथ  दोहराया ।

 दिल्ली में केजरीवाल सरकार कुछ महीनों में गिराने के बाद  जब चुनाव हुये और भाजपा दिल्ली में आती दिखी तो, भाजपा को आने से रोकने लिए, आप को अपरोक्ष समर्थन देकर भारी बहुमत दिलाने वाली भी कांग्रेस ही थी,  तब उसे जीरो सीट मंजूर थी मगर भाजपा मंजूर नहीं थी। किन्तु उसके हाथ से मुस्लिम वोट हमेशा के लिए निकल कर आप पार्टी में शिफ्ट हो गया। इसके बाद दूसरे चुनाव में कांग्रेस का वोट बैंक भी बेहद कम ही गया, इसका कारण कांग्रेस का खुद दिल्ली में आधे अधूरे मन से चुनाव लड़ना रहा है। अभी भी यही है। 

अब कांग्रेस अपने पुराने बजूद के लिए झटपटा भी रही है, वह राहुल गाँधी को पीएम भी बनाना चाहती है। वह विपक्ष की अन्य पार्टियों की लीडर भी बनी रहना चाहती है। किन्तु उसकी वास्तविक स्थिति बहुत खराब है, क्योंकि कांग्रेस का कोर वोट बैंक मुस्लिम वोट बैंक था । जो अब अपनी सोच व समझ से वोट करता है।

लगभग 30 वर्ष तक 1947 से 1977 तक मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह से कांग्रेस का था, आपातकाल में अतिक्रमण हटाओ और जबरिया नसबंदी के कारण उत्तरभारत में पहलीबार कांग्रेस से कुछ अलग हुआ था। किन्तु रामजन्म भूमि आंदोलन में वह उनसे जुडा जो आंदोलन का विरोध कर रहे थे जैसे मुलायम सिंह और लालूप्रसाद यादव, जब 1992 में केंद्र में नरसिंहराव सरकार के रहते बाबरी ढांचा ढह गया तो मुस्लिम वोट बैंक कांग्रेस से अलग हो गया।

 हालांकि कांग्रेस से मुस्लिम नेताओं नें भारत में अपरोक्ष रूपसे अपने हितों को लगातार साधा और बर्चस्व भी बनाया  ! किन्तु भाजपा के उदय के साथ मुस्लिम वोट बैंक का ट्रेंड बदलता गया। तब से वह उस पार्टी को वोट देता है जो भाजपा को रोक सके! इस कारण बंगाल, बिहार, यूपी में मुस्लिम वोट कांग्रेस को नहीं मिलता! यही ट्रेंड दिल्ली में है, दिल्ली में अभी भी मुस्लिम वोट आप पार्टी को ही मिलेगा। क्योंकि कांग्रेस भाजपा को रोकने में सक्षम नहीं है।

कांग्रेस, मुस्लिम वोट बैंक पुनः प्राप्त करने के लिए लगातार प्रयत्न कर रही है, सभी सीमाएँ लाँघ कर वह यह कोशिश कर रही है कि मुस्लिम हित चिंतक सिर्फ कांग्रेस है। इसी कारण वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की आलोचना लगातार करती रहती है। जबकि संघ एक सामाजिक संगठन है। कांग्रेस यह मानती है कि संघ, भाजपा, मोदी और योगी की आलोचना से मुस्लिम वोट खुश होगा। खुश होता भी है , मगर जब वोट का विषय होता है तो मुस्लिम वोट बैंक की पहली प्राथमिकता भाजपा को सत्ता से दूर रखने में सक्षम पार्टी ही होती है।

अभी हाल में राहुल गाँधी नें संघ प्रमुख मोहन भागवत के कथन के विरुद्ध अतिश्योक्तिपूर्ण प्रतिक्रिया दी है और सुप्रीम कोर्ट में प्लेसस वरशिप एक्ट को यथा स्थिति रख कर हिन्दू धर्म स्थलों पर मुस्लिम अतिक्रमण बनाये रखने का पक्ष लेते हुऐ आवेदन किया है। यह दोनों कार्य मुस्लिम वोट बैंक वापसी की अभिलाषा से किये गये हैँ, किन्तु इनका लाभ कांग्रेस पार्टी को दिल्ली चुनाव में मिलेगा, यह मुश्किल है। क्योंकि भाजपा को रोकने के लिए वे आप पार्टी के साथ ही जायेंगे।

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