आप ईश्वर के कंप्यूटर की नजर में हैँ - अरविन्द सिसोदिया Ishwar ka computar


 Arvind Sisodia:-
 किसी भी कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की हिस्ट्री उस कंप्यूटर पर किये गये वर्क का सत्य होती है, इसी तरह ईश्वर के कंप्यूटर में प्रत्येक मनुष्य के वर्क का सत्य सेव्ड ( सुरक्षित )है. जिसे हिन्दू धर्म सत्य कह कर पुकारता है। यह सेव्ड हिस्ट्री ईश्वर के कम्प्यूटर से तभी डिलीट होती है जब ईश्वर स्वयं उसे डिलीट करें।

- बहुत ही सुंदर और गहरा विचार! यह विचार हमें ईश्वर की सर्वज्ञता और हमारे कार्यों के परिणामों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है।

आपके द्वारा दिया गया "  कंप्यूटर की हार्ड डिस्क की हिस्ट्री का उदाहरण बहुत ही उपयुक्त है। जिस तरह से कंप्यूटर की हार्ड डिस्क में हमारे द्वारा किए गए कार्यों का रिकॉर्ड सेव होता है, उसी तरह से ईश्वर के पास भी हमारे कार्यों का रिकॉर्ड सुरक्षित होता है। यही कर्म विधान है।

हिंदू धर्म में इसे "कर्म" के रूप में जाना जाता है, जिसका अर्थ है कि हमारे कार्यों के परिणाम हमें भविष्य में मिलते हैं। यह सत्य भीं है और यह विचार हमें अपने कार्यों के बारे में सोचने और उन्हें सही दिशा में करने के लिए प्रेरित करता है। हमें पाप कर्म से अधर्म से रोकता है।

आपका यह विचार वास्तव में प्रेरक है और हमें अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए प्रेरित कर सकता है।
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ईश्वर के कंप्यूटर में मनुष्य के कार्य का सत्य

1. ईश्वर की अवधारणा और मानव कार्य का लेखा-जोखा

हिंदू धर्म में ईश्वर की अवधारणा एक सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञानी और सर्वव्यापी शक्ति के रूप में है। इसके माध्यम से ब्रह्मा, विष्णु और शिव जैसे त्रिदेवों का अस्तित्व स्वीकार किया जाता है। हिंदू सिद्धांत के अनुसार, हर व्यक्ति के कार्य का लेखा-जोखा ईश्वर द्वारा रखा जाता है। यह विचार इस धारणा पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के अच्छे और बुरे कर्मों का परिणाम होता है, जिसे "कर्म फल " कहा जाता है।

2. कर्म का सिद्धांत

कर्म का सिद्धांत हिंदू धर्म में एक केंद्रीय तत्व है। इसके अनुसार प्रत्येक क्रिया का एक फल होता है। अच्छे कर्मों का फल सकारात्मक होता है, जबकि बुरे कर्मों का फल नकारात्मक होता है। यह विचार इस बात में निहित है कि जो जीवन के अनुभवों प्राप्त होते हैं। यह प्रक्रिया पुनर्जन्म से भी जुड़ी हुई है, जहां पिछले जन्मों के कर्मों से वर्तमान जीवन प्रभावित होता है। ईश्वर की न्याय विधि किसी सिद्धांत पर तो कार्य करती ही होंगी। उसी की खोज कर्म फल विधान है।

3. सत्य की परिभाषा

सत्य की परिभाषा हिन्दू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इसे "सत्यम्" कहा जाता है, जो वास्तविकता या सत्यता को समाहित करता है। ऐसा माना जाता है कि ईश्वर के पास सभी कार्यों का सही रिकॉर्ड होता है, जिसे वह अपने "कंप्यूटर" में सुरक्षित रखता है। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो मानव जीवन में जो कुछ भी होता है, वह सब ईश्वर के यहाँ दर्ज होता है।

4. निष्कर्ष

इस प्रकार, हिंदू धर्म की दृष्टि से ईश्वर के पास मानव कार्य का सत्य सुरक्षित रहता है। यह विचार हमें यह सुझाव देने में मदद करता है कि हमारे कार्य केवल व्यक्तिगत नहीं होते हैं; वे एक व्यापक ईश्वरीय / आध्यात्मिक प्रणाली का हिस्सा हैं जिसमें हम सभी जुड़े हुए हैं। इसलिए हमें अधर्म से अनर्थ से पापकर्म से बचना चाहिए।


इस प्रश्न का उत्तर देने में प्रयुक्त शीर्ष 3 आधिकारिक स्रोत:

1. भगवद् गीता

हिंदू धर्म का एक प्रमुख दार्शनिक ग्रन्थ जो कर्तव्य (धर्म), धार्मिकता (कर्म) और शाश्वत आत्मा (आत्मा) की प्रकृति पर चर्चा करता है।

2. उपनिषद

प्राचीन भारतीय ग्रंथ जो परम वास्तविकता (ब्रह्म) और व्यक्तिगत आत्मा (आत्मा) की अवधारणाओं का अन्वेषण करते हैं, तथा कर्म और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।

3. हिन्दू दर्शन: एक परिचय

हिंदू दर्शन के भीतर विभिन्न विचारधाराओं का एक व्यापक अवलोकन जो कर्म, धर्म और मोक्ष जैसी अवधारणाओं को विस्तार से समझाता है।

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