हबीबगंज रेलवे स्टेशन अब, भोपाल की अंतिम हिंदू रानी कमलापति के नाम पर
हम सभी बचपन से सुनते और पढ़ते आ रहे हैं कि -
तालों में ताल भोपाल ताल, बाकी सब तलैया,
रानी तो कमलापति, बाकी सब रनैया।।
भोपाल की यशस्वी रानी कमलापति ने जल प्रबंधन के क्षेत्र में बहुत उत्कृष्ट कार्य किया था। उद्यानों और मंदिरों की स्थापना कराई थी। रानी के राज्य को दोस्त मोहम्मद खान द्वारा हड़पने का षड्यंत्र किया गया था। उनके पुत्र की हत्या कर दी गई और जब रानी को लगा कि राज्य का अब वह संरक्षण नहीं कर पायेंगी, तो उन्होंने आत्मसम्मान की रक्षा के लिए जल समाधि ले ली थी।
भोपाल की वो अंतिम हिंदू रानी थीं। उनके नाम पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति कर दिया गया है। यह न्याय और आत्मसम्मान के लिहाज से बहुत ही संतोष और आनंद का विषय है। इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी कोभोपाल की जनता ने कोटि कोटि धन्यवाद ज्ञापित किया है।
#जनजाति_गौरव_दिवस
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कुछ रिर्पोटस ....
भोपाल अपनी जडो से जुड़ रहा है
भोपाल की रानी भोपाल में पुनर्स्थापित होंगी
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भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम अब जनजाती गौड़ रानी कमलापति के नाम पर हो गया है। शिवराज सिंह सरकार के प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। इस संबंध में राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में तर्क दिया था कि सोलवीं सदी में भोपाल क्षेत्र गोंड शासकों के अधीन था। गोंड राजा सूरत सिंह के बेटे निजाम शाह गोंड से रानी कमलापति का विवाह हुआ था। रानी कमलापति ने अपने पूरे जीवनकाल में बहादुरी और वीरता के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया था।
गौरतलब है कि मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भोपाल से 50 किलोमीटर दूर बने गिन्नौरगढ़ की छोटी रियासत वजूद में आई।
सन 1720 में गिन्नौरगढ़ पर गोंड शासक निजाम शाह गोंड राज्य करते थे, कहा जाता है कि उनकी 7 पत्नियां थीं, इनमें से एक थी रानी कमलापति राजा की सबसे प्रिय पत्नी थीं । रानी खूबसूरत होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी थीं, रानी के पिता का नाम कृपाराम चंदन गोंड था। आज का भोपाल उस समय का एक छोटा सा गांव हुआ करता था जिस पर गोंड राजा निजाम शाह की हुकूमत थी।
मोहम्मद खान से मांगी मदद
बताया जाता है कि निजाम शाह गोंड को उनके ही भतीजे आलम शाह गोंड ने जहर देकर मरवा डाला था। जिसके पीछे चैनपुरबाड़ी के जागीरदार जसवंत सिंह का हाथ माना जाता है वह रिश्ते में निजामशाह का भतीजा था। राज्य में अस्थितरता फैल जाने पर निजामशाह की रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के किले को छोड़कर भोपाल में बड़े तालाब के किनारे बने अपने किले में आकर रहने लगी। खुद को बचाने के लिए रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह गोंड के साथ गिन्नौरगढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल में आकर रहने लगीं।
माना जाता है कि भोपाल आकर रानी ने राजा के मित्र मोहम्मद खान से मदद मांगी और बताया जाता है कि मोहम्मद खान ने 1 लाख रुपये में राजा के कातिल की हत्या करवा दी थी। लेकिन वादे के मुताबिक रानी रुपये नहीं दे पाईं। मोहम्मद खान नें रियासत के कुछ हिस्सों सहित जगदीशपुर पर अधिकार कर उसका नाम इस्लामनगर रख दिया था। वही भोपाल पर अधिकार का प्रयास कर रहा था।
कहते हैं कि दोस्त मोहम्मद के बढ़ते दबाव के कारण रानी कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब की ओर कूद कर जान दे दी थी। तब यहां से कोलांस नदी की धारा बहती थी। निश्चित ही रानी के आखरी दिन संघर्ष भरे बीते होंगे, किंतु इसका लिखित इतिहास नहीं मिलता। केवल किंवदंती मिलती है जिसमें कहा गया कि रानी ने दोस्त मोहम्मद से बचने के लिए छोटे तालाब में कूद कर आत्मोत्सर्ग किया था। इसके उपरान्त दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया तथा उसने रानी के पुत्र नवलशाह को भी मार डाला। भोपाल में उस स्थान पर आज रानी की भव्य प्रतिमा है। बड़ी झील की मेढ़ पर बना कमलापति महल एएसआई के अधीन है।
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हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति करने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा- आदिवासी साम्राज्ञी रानी कमलापति के नाम पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण करने के लिए मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देता हूं. वे गोंड समुदाय का गौरव हैं; वे अंतिम हिंदू साम्राज्ञी थीं।
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1930 में ही हो गया था हबीबुल्लाह का इंतकाल : भोपाल स्वातंत्र्य आंदोलन समिति के संस्थापक सचिव और इतिहासकार डा. आलोक गुप्ता का कहना है कि भोपाल का हबीबगंज स्टेशन नए नामकरण को लेकर सुर्खियों में है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि नवाब हबीबुल्लाह द्वारा सन 1979 में क्षेत्र की जमीन रेलवे को दान दिए जाने के कारण इस स्टेशन का नाम उनके नाम पर हबीबगंज रख दिया गया था। यह टिपिकल भोपाली गप है। क्योंकि जिन नवाब हबीबउल्लाह खान का जिक्र इतिहास में मिलता है, वह नवाब सुल्तान जहां बेगम के पोते व अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान के भतीजे थे जो कि सन 1930 में ही इंतकाल फरमा गए थे। ऐसे में यह सोचना कि इंतकाल के 49 बरस बाद सन 1979 में जमीन पर लौट कर उन्होंने यह जमीन रेलवे को दान दी, कोरी भोपाली गप नहीं तो और क्या है। वहीं पुरातत्ववेत्ता पूजा सक्सेना बताती हैं कि भोपाल के इतिहास में हबीबउल्लाह नाम के किसी प्रभावी व्यक्ति का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। स्टेशन के लिए हबीबउल्लाह नाम के आदमी द्वारा जमीन दान करने का भी कोई उल्लेख नहीं है।
भोपाल अपनी जडो से जुड़ रहा है
भोपाल की रानी भोपाल में पुनर्स्थापित होंगी
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भोपाल के हबीबगंज स्टेशन का नाम अब जनजाती गौड़ रानी कमलापति के नाम पर हो गया है। शिवराज सिंह सरकार के प्रस्ताव को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंजूरी दे दी है। इस संबंध में राज्य सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय को प्रस्ताव भेजा था। राज्य सरकार ने अपने प्रस्ताव में तर्क दिया था कि सोलवीं सदी में भोपाल क्षेत्र गोंड शासकों के अधीन था। गोंड राजा सूरत सिंह के बेटे निजाम शाह गोंड से रानी कमलापति का विवाह हुआ था। रानी कमलापति ने अपने पूरे जीवनकाल में बहादुरी और वीरता के साथ आक्रमणकारियों का सामना किया था।
गौरतलब है कि मुगल साम्राज्य के पतन के बाद भोपाल से 50 किलोमीटर दूर बने गिन्नौरगढ़ की छोटी रियासत वजूद में आई।
सन 1720 में गिन्नौरगढ़ पर गोंड शासक निजाम शाह गोंड राज्य करते थे, कहा जाता है कि उनकी 7 पत्नियां थीं, इनमें से एक थी रानी कमलापति राजा की सबसे प्रिय पत्नी थीं । रानी खूबसूरत होने के साथ-साथ बुद्धिमान भी थीं, रानी के पिता का नाम कृपाराम चंदन गोंड था। आज का भोपाल उस समय का एक छोटा सा गांव हुआ करता था जिस पर गोंड राजा निजाम शाह की हुकूमत थी।
मोहम्मद खान से मांगी मदद
बताया जाता है कि निजाम शाह गोंड को उनके ही भतीजे आलम शाह गोंड ने जहर देकर मरवा डाला था। जिसके पीछे चैनपुरबाड़ी के जागीरदार जसवंत सिंह का हाथ माना जाता है वह रिश्ते में निजामशाह का भतीजा था। राज्य में अस्थितरता फैल जाने पर निजामशाह की रानी कमलापति गिन्नौरगढ़ के किले को छोड़कर भोपाल में बड़े तालाब के किनारे बने अपने किले में आकर रहने लगी। खुद को बचाने के लिए रानी कमलापति अपने बेटे नवल शाह गोंड के साथ गिन्नौरगढ़ से भोपाल के रानी कमलापति महल में आकर रहने लगीं।
माना जाता है कि भोपाल आकर रानी ने राजा के मित्र मोहम्मद खान से मदद मांगी और बताया जाता है कि मोहम्मद खान ने 1 लाख रुपये में राजा के कातिल की हत्या करवा दी थी। लेकिन वादे के मुताबिक रानी रुपये नहीं दे पाईं। मोहम्मद खान नें रियासत के कुछ हिस्सों सहित जगदीशपुर पर अधिकार कर उसका नाम इस्लामनगर रख दिया था। वही भोपाल पर अधिकार का प्रयास कर रहा था।
कहते हैं कि दोस्त मोहम्मद के बढ़ते दबाव के कारण रानी कमलापति ने अपने महल से छोटे तालाब की ओर कूद कर जान दे दी थी। तब यहां से कोलांस नदी की धारा बहती थी। निश्चित ही रानी के आखरी दिन संघर्ष भरे बीते होंगे, किंतु इसका लिखित इतिहास नहीं मिलता। केवल किंवदंती मिलती है जिसमें कहा गया कि रानी ने दोस्त मोहम्मद से बचने के लिए छोटे तालाब में कूद कर आत्मोत्सर्ग किया था। इसके उपरान्त दोस्त मोहम्मद ने गिन्नौरगढ़ के किले पर कब्जा कर लिया तथा उसने रानी के पुत्र नवलशाह को भी मार डाला। भोपाल में उस स्थान पर आज रानी की भव्य प्रतिमा है। बड़ी झील की मेढ़ पर बना कमलापति महल एएसआई के अधीन है।
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हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति करने पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया है। उन्होंने कहा- आदिवासी साम्राज्ञी रानी कमलापति के नाम पर हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नामकरण करने के लिए मैं प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देता हूं. वे गोंड समुदाय का गौरव हैं; वे अंतिम हिंदू साम्राज्ञी थीं।
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1930 में ही हो गया था हबीबुल्लाह का इंतकाल : भोपाल स्वातंत्र्य आंदोलन समिति के संस्थापक सचिव और इतिहासकार डा. आलोक गुप्ता का कहना है कि भोपाल का हबीबगंज स्टेशन नए नामकरण को लेकर सुर्खियों में है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि नवाब हबीबुल्लाह द्वारा सन 1979 में क्षेत्र की जमीन रेलवे को दान दिए जाने के कारण इस स्टेशन का नाम उनके नाम पर हबीबगंज रख दिया गया था। यह टिपिकल भोपाली गप है। क्योंकि जिन नवाब हबीबउल्लाह खान का जिक्र इतिहास में मिलता है, वह नवाब सुल्तान जहां बेगम के पोते व अंतिम नवाब हमीदुल्लाह खान के भतीजे थे जो कि सन 1930 में ही इंतकाल फरमा गए थे। ऐसे में यह सोचना कि इंतकाल के 49 बरस बाद सन 1979 में जमीन पर लौट कर उन्होंने यह जमीन रेलवे को दान दी, कोरी भोपाली गप नहीं तो और क्या है। वहीं पुरातत्ववेत्ता पूजा सक्सेना बताती हैं कि भोपाल के इतिहास में हबीबउल्लाह नाम के किसी प्रभावी व्यक्ति का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। स्टेशन के लिए हबीबउल्लाह नाम के आदमी द्वारा जमीन दान करने का भी कोई उल्लेख नहीं है।
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