वैदिक हिन्दू नारीयों की दिव्यता Vedic-Hindu-Woman

 


 यूं तो भारतीय संस्कृति देवी महिमा के अनन्त गुणगाण से भरी हुई है। हिन्दूओं में ईश्वर से लेकर सामान्य देवी देवताओं तक में नारी की महिमा सर्वोच्च है। उसे अर्द्धांगनी की पदवी प्राप्त है। शोर्य और वीरता में भी भारतीय नारी का योगदान अत्यंत उच्च है।

महामाया , देवी दुर्गा और उनके अन्य अनेक स्वरूप, देवी लक्ष्मी , देवी सरस्वती, देवी पार्वती, देवी गायत्री सहित एक लम्बी श्रृंखला भारत में नारीयों के उत्कृष्ट वैभव एवं सम्मान की है। सम्मान की यह श्रृंखला ईश्वर के नामों में भी पहले देवीयशक्ति के नाम के सम्बोधन में प्रमाणित होती है। जैसे सीताराम, राधेकृष्ण ।



वेदों में नारी की महिमा’

 महाभारत के निम्नलिखित शलोकों में इस नियम तथा घर में स्त्री के पद का बड़ी सुन्दरता से वर्णन किया है ।

न गृहं गृहमित्याहु:, गृहिणी गृहमुच्यते ।।
स्त्री के बिना पुरुष आधा होता है । उसका दूसरा आधा भाग स्त्री होती है। इसलिए वह अर्द्धांगिनी कहलाती है ।


 ’संसार की किसी भी धर्म पुस्तक में नारी की महिमा का इतना सुंदर गुण गान नहीं मिलता जितना वेदों में मिलता हैं.कुछ उद्हारण देकर हम अपने कथन को सिद्ध करेगे।’

 ’१. उषा के समान प्रकाशवती-’
’ऋग्वेद ४ध्१४ध्३’

🟤 ’हे राष्ट्र की पूजा योग्य नारी! तुम परिवार और राष्ट्र में सत्यम, शिवम, सुंदरम की अरुण कान्तियों को छिटकती हुई आओ , अपने विस्मयकारी सद्गुणागुणों के द्वारा अविद्या ग्रस्त जनों को प्रबोध प्रदान करो. जन-जन को सुख देने के लिए अपने जगमग करते हुए रथ पर बैठ कर आओ।’

 ’२. वीरांगना-’
’यजुर्वेद ५ध्१०’
🔵 ’हे नारी! तू स्वयं को पहचान, तू शेरनी हैं, तू शत्रु रूप मृगों का मर्दन करनेवाली हैं, देवजनों के हितार्थ अपने अन्दर सामर्थ्य उत्पन्न कर. हे नारी ! तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटने वाली हैं, तू दिव्य गुणों के प्रचारार्थ स्वयं को शुद्ध कर! हे नारी ! तू दुष्कर्म एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विश्वंस्त करनेवाली हैं, धार्मिक जनों के हितार्थ स्वयं को दिव्य गुणों से अलंकृत कर।’

 ’३. वीर प्रसवा’
’ऋग्वेद १०ध्४७ध्३’
 ’राष्ट्र को नारी कैसी संतान दे’
🟤 ’हमारे राष्ट्र को ऐसी अद्भुत एवं वर्षक संतान प्राप्त हो, जो उत्कृष्ट कोटि के हथियारों को चलाने में कुशल हो, उत्तम प्रकार से अपनी तथा दूसरों की रक्षा करने में प्रवीण हो, सम्यक नेतृत्व करने वाली हो, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष रूप चार पुरुषार्थ- समुद्रों का अवगाहन करनेवाली हो, विविध संपदाओं की धारक हो, अतिशय क्रियाशील हो, प्रशंशनीय हो, बहुतों से वरणीय हो, आपदाओं की निवारक हो।’

 ’४. विद्या अलंकृता’
’यजुर्वेद २०ध्८४’
🟤 ’विदुषी नारी अपने विद्या-बलों से हमारे जीवनों को पवित्र करती रहे. वह कर्मनिष्ठ बनकर अपने कर्मों से हमारे व्यवहारों को पवित्र करती रहे।अपने श्रेष्ठ ज्ञान एवं कर्मों के द्वारा संतानों एवं शिष्यों में सद्गुणों और सत्कर्मों को बसाने वाली वह देवी गृह आश्रम -यज्ञ एवं ज्ञान- यज्ञ को सुचारू रूप से संचालित करती रहे।’

 ’५. स्नेहमयी माँ’
’अथर्वेद ७ध्६८ध्२’
🟤 ’हे प्रेमरसमयी माँ! तुम हमारे लिए मंगल कारिणी बनो, तुम हमारे लिए शांति बरसाने वाली बनो, तुम हमारे लिए उत्कृष्ट सुख देने वाली बनो. हम तुम्हारी कृपा- दृष्टि से कभी वंचित न हो।’

 ’६. अन्नपूर्ण’
’अथर्ववेद ३ध्२८ध्४’
🟤 ’इस गृह आश्रम में पुष्टि प्राप्त हो, इस गृह आश्रम में रस प्राप्त हो. इस गिरः आश्रम में हे देवी! तू दूध-घी आदि सहस्त्रों पोषक पदार्थों का दान कर. हे यम- नियमों का पालन करने वाली गृहणी! जिन गाय आदि पशु से पोषक पदार्थ प्राप्त होते हैं उनका तू पोषण कर।’

’यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवताः’’यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः’
🟤 ’जिस कुल में नारियो कि पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण , दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियो कि पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं।’

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वेदों में नारी का महत्व

Kajal Patel 

 Published Jan 8, 2017
 

 वेद नारी को अत्यंत महत्वपूर्ण, गरिमामय, उच्च स्थान प्रदान करते हैं| वेदों में

स्त्रियों की शिक्षा- दीक्षा, शील, गुण, कर्तव्य, अधिकार और सामाजिक भूमिका का जो सुन्दर वर्णन पाया जाता है, वैसा संसार के अन्य किसी धर्मग्रंथ में नहीं है| वेद उन्हें घर की सम्राज्ञी कहते हैं और देश की शासक, पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं|

वेदों में स्त्री यज्ञीय है अर्थात् यज्ञ समान पूजनीय| वेदों में नारी को ज्ञान देने वाली, सुख – समृद्धि लाने वाली, विशेष तेज वाली, देवी, विदुषी, सरस्वती, इन्द्राणी, उषा- जो सबको जगाती है इत्यादि अनेक आदर सूचक नाम दिए गए हैं|

वेदों में स्त्रियों पर किसी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं है – उसे सदा विजयिनी कहा गया है और उन के हर काम में सहयोग और प्रोत्साहन की बात कही गई है| वैदिक काल में नारी अध्यन- अध्यापन से लेकर रणक्षेत्र में भी जाती थी| जैसे कैकयी महाराज दशरथ के साथ युद्ध में गई थी| कन्या को अपना पति स्वयं चुनने का अधिकार देकर वेद पुरुष से एक कदम आगे ही रखते हैं|

अनेक ऋषिकाएं वेद मंत्रों की द्रष्टा हैं – अपाला, घोषा, सरस्वती, सर्पराज्ञी, सूर्या, सावित्री, अदिति- दाक्षायनी, लोपामुद्रा, विश्ववारा, आत्रेयी आदि |

तथापि, जिन्होनें वेदों के दर्शन भी नहीं किए, ऐसे कुछ रीढ़ की हड्डी विहीन बुद्धिवादियों ने इस देश की सभ्यता, संस्कृति को नष्ट – भ्रष्ट करने का जो अभियान चला रखा है – उसके तहत वेदों में नारी की अवमानना का ढ़ोल पीटते रहते हैं |

आइए, वेदों में नारी के स्वरुप की झलक इन मंत्रों में देखें -

यजुर्वेद २०.९

स्त्री और पुरुष दोनों को शासक चुने जाने का समान अधिकार है |

यजुर्वेद १७.४५

स्त्रियों की भी सेना हो | स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित करें |

यजुर्वेद १०.२६

शासकों की स्त्रियां अन्यों को राजनीति की शिक्षा दें | जैसे राजा, लोगों का न्याय करते हैं वैसे ही रानी भी न्याय करने वाली हों |

अथर्ववेद ११.५.१८

ब्रह्मचर्य सूक्त के इस मंत्र में कन्याओं के लिए भी ब्रह्मचर्य और विद्या ग्रहण करने के बाद ही विवाह करने के लिए कहा गया है | यह सूक्त लड़कों के समान ही कन्याओं की शिक्षा को भी विशेष महत्त्व देता है |

कन्याएं ब्रह्मचर्य के सेवन से पूर्ण विदुषी और युवती होकर ही विवाह करें |

अथर्ववेद १४.१.६

माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धीमत्ता और विद्याबल का उपहार दें | वे उसे ज्ञान का दहेज़ दें |

जब कन्याएं बाहरी उपकरणों को छोड़ कर, भीतरी विद्या बल से चैतन्य स्वभाव और पदार्थों को दिव्य दृष्टि से देखने वाली और आकाश और भूमि से सुवर्ण आदि प्राप्त करने – कराने वाली हो तब सुयोग्य पति से विवाह करे |

अथर्ववेद १४.१.२०

हे पत्नी ! हमें ज्ञान का उपदेश कर |

वधू अपनी विद्वत्ता और शुभ गुणों से पति के घर में सब को प्रसन्न कर दे |

अथर्ववेद ७.४६.३

पति को संपत्ति कमाने के तरीके बता |

संतानों को पालने वाली, निश्चित ज्ञान वाली, सह्त्रों स्तुति वाली और चारों ओर प्रभाव डालने वाली स्त्री, तुम ऐश्वर्य पाती हो | हे सुयोग्य पति की पत्नी, अपने पति को संपत्ति के लिए आगे बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४७.१

हे स्त्री ! तुम सभी कर्मों को जानती हो |

हे स्त्री ! तुम हमें ऐश्वर्य और समृद्धि दो |

अथर्ववेद ७.४७.२

तुम सब कुछ जानने वाली हमें धन – धान्य से समर्थ कर दो |

हे स्त्री ! तुम हमारे धन और समृद्धि को बढ़ाओ |

अथर्ववेद ७.४८.२

तुम हमें बुद्धि से धन दो |

विदुषी, सम्माननीय, विचारशील, प्रसन्नचित्त पत्नी संपत्ति की रक्षा और वृद्धि करती है और घर में सुख़ लाती है |

अथर्ववेद १४.१.६४

हे स्त्री ! तुम हमारे घर की प्रत्येक दिशा में ब्रह्म अर्थात् वैदिक ज्ञान का प्रयोग करो |

हे वधू ! विद्वानों के घर में पहुंच कर कल्याणकारिणी और सुखदायिनी होकर तुम विराजमान हो |

अथर्ववेद २.३६.५

हे वधू ! तुम ऐश्वर्य की नौका पर चढ़ो और अपने पति को जो कि तुमने स्वयं पसंद किया है, संसार – सागर के पार पहुंचा दो |

हे वधू ! ऐश्वर्य कि अटूट नाव पर चढ़ और अपने पति को सफ़लता के तट पर ले चल |

अथर्ववेद १.१४.३

हे वर ! यह वधू तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है |

हे वर ! यह कन्या तुम्हारे कुल की रक्षा करने वाली है | यह बहुत काल तक तुम्हारे घर में निवास करे और बुद्धिमत्ता के बीज बोये |

अथर्ववेद २.३६.३

यह वधू पति के घर जा कर रानी बने और वहां प्रकाशित हो |

अथर्ववेद ११.१.१७

ये स्त्रियां शुद्ध, पवित्र और यज्ञीय ( यज्ञ समान पूजनीय ) हैं, ये प्रजा, पशु और अन्न देतीं हैं |

यह स्त्रियां शुद्ध स्वभाव वाली, पवित्र आचरण वाली, पूजनीय, सेवा योग्य, शुभ चरित्र वाली और विद्वत्तापूर्ण हैं | यह समाज को प्रजा, पशु और सुख़ पहुँचाती हैं |

अथर्ववेद १२.१.२५

हे मातृभूमि ! कन्याओं में जो तेज होता है, वह हमें दो |

स्त्रियों में जो सेवनीय ऐश्वर्य और कांति है, हे भूमि ! उस के साथ हमें भी मिला |

अथर्ववेद १२.२.३१

स्त्रियां कभी दुख से रोयें नहीं, इन्हें निरोग रखा जाए और रत्न, आभूषण इत्यादि पहनने को दिए जाएं |

अथर्ववेद १४.१.२०

हे वधू ! तुम पति के घर में जा कर गृहपत्नी और सब को वश में रखने वाली बनों |

अथर्ववेद १४.१.५०

हे पत्नी ! अपने सौभाग्य के लिए मैं तेरा हाथ पकड़ता हूं |

अथर्ववेद १४.२ .२६

हे वधू ! तुम कल्याण करने वाली हो और घरों को उद्देश्य तक पहुंचाने वाली हो |

अथर्ववेद १४.२.७१

हे पत्नी ! मैं ज्ञानवान हूं तू भी ज्ञानवती है, मैं सामवेद हूं तो तू ऋग्वेद है |

अथर्ववेद १४.२.७४

यह वधू विराट अर्थात् चमकने वाली है, इस ने सब को जीत लिया है |

यह वधू बड़े ऐश्वर्य वाली और पुरुषार्थिनी हो |

अथर्ववेद ७.३८.४ और १२.३.५२

सभा और समिति में जा कर स्त्रियां भाग लें और अपने विचार प्रकट करें |

ऋग्वेद १०.८५.७

माता- पिता अपनी कन्या को पति के घर जाते समय बुद्धिमत्ता और विद्याबल उपहार में दें | माता- पिता को चाहिए कि वे अपनी कन्या को दहेज़ भी दें तो वह ज्ञान का दहेज़ हो |

ऋग्वेद ३.३१.१

पुत्रों की ही भांति पुत्री भी अपने पिता की संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है |

ऋग्वेद १० .१ .५९

एक गृहपत्नी प्रात : काल उठते ही अपने उद् गार कहती है -

” यह सूर्य उदय हुआ है, इस के साथ ही मेरा सौभाग्य भी ऊँचा चढ़ निकला है | मैं अपने घर और समाज की ध्वजा हूं , उस की मस्तक हूं | मैं भारी व्यख्यात्री हूं | मेरे पुत्र शत्रु -विजयी हैं | मेरी पुत्री संसार में चमकती है | मैं स्वयं दुश्मनों को जीतने वाली हूं | मेरे पति का असीम यश है | मैंने वह त्याग किया है जिससे इन्द्र (सम्राट ) विजय पता है | मुझेभी विजय मिली है | मैंने अपने शत्रु नि:शेष कर दिए हैं | ”

वह सूर्य ऊपर आ गया है और मेरा सौभाग्य भी ऊँचा हो गया है | मैं जानती हूं , अपने प्रतिस्पर्धियों को जीतकर मैंने पति के प्रेम को फ़िर से पा लिया है |

मैं प्रतीक हूं , मैं शिर हूं , मैं सबसे प्रमुख हूं और अब मैं कहती हूं कि मेरी इच्छा के अनुसार ही मेरा पति आचरण करे | प्रतिस्पर्धी मेरा कोई नहीं है |

मेरे पुत्र मेरे शत्रुओं को नष्ट करने वाले हैं , मेरी पुत्री रानी है , मैं विजयशील हूं | मेरे और मेरे पति के प्रेम की व्यापक प्रसिद्धि है |

ओ प्रबुद्ध ! मैंने उस अर्ध्य को अर्पण किया है , जो सबसे अधिक उदाहरणीय है और इस तरह मैं सबसे अधिक प्रसिद्ध और सामर्थ्यवान हो गई हूं | मैंने स्वयं को अपने प्रतिस्पर्धियों से मुक्त कर लिया है |

मैं प्रतिस्पर्धियों से मुक्त हो कर, अब प्रतिस्पर्धियों की विध्वंसक हूं और विजेता हूं | मैंने दूसरों का वैभव ऐसे हर लिया है जैसे की वह न टिक पाने वाले कमजोर बांध हों | मैंने मेरे प्रतिस्पर्धियों पर विजय प्राप्त कर ली है | जिससे मैं इस नायक और उस की प्रजा पर यथेष्ट शासन चला सकती हूं |

इस मंत्र की ऋषिका और देवता दोनों हो शची हैं | शची इन्द्राणी है, शची स्वयं में राज्य की सम्राज्ञी है ( जैसे कि कोई महिला प्रधानमंत्री या राष्ट्राध्यक्ष हो ) | उस के पुत्र – पुत्री भी राज्य के लिए समर्पित हैं |

ऋग्वेद १.१६४.४१

ऐसे निर्मल मन वाली स्त्री जिसका मन एक पारदर्शी स्फटिक जैसे परिशुद्ध जल की तरह हो वह एक वेद, दो वेद या चार वेद , आयुर्वेद, धनुर्वेद, गांधर्ववेद , अर्थवेद इत्यादि के साथ ही छ : वेदांगों – शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष और छंद : को प्राप्त करे और इस वैविध्यपूर्ण ज्ञान को अन्यों को भी दे |

हे स्त्री पुरुषों ! जो एक वेद का अभ्यास करने वाली वा दो वेद जिसने अभ्यास किए वा चार वेदों की पढ़ने वाली वा चार वेद और चार उपवेदों की शिक्षा से युक्त वा चार वेद, चार उपवेद और व्याकरण आदि शिक्षा युक्त, अतिशय कर के विद्याओं में प्रसिद्ध होती और असंख्यात अक्षरों वाली होती हुई सब से उत्तम, आकाश के समान व्याप्त निश्चल परमात्मा के निमित्त प्रयत्न करती है और गौ स्वर्ण युक्त विदुषी स्त्रियों को शब्द कराती अर्थात् जल के समान निर्मल वचनों को छांटती अर्थात् अविद्यादी दोषों को अलग करती हुई वह संसार के लिए अत्यंत सुख करने वाली होती है |

ऋग्वेद १०.८५.४६

स्त्री को परिवार और पत्नी की महत्वपूर्ण भूमिका में चित्रित किया गया है | इसी तरह, वेद स्त्री की सामाजिक, प्रशासकीय और राष्ट्र की सम्राज्ञी के रूप का वर्णन भी करते हैं |

ऋग्वेद के कई सूक्त उषा का देवता के रूप में वर्णन करते हैं और इस उषा को एक आदर्श स्त्री के रूप में माना गया है | कृपया पं श्रीपाद दामोदर सातवलेकर द्वारा लिखित ” उषा देवता “, ऋग्वेद का सुबोध भाष्य देखें |

सारांश (पृ १२१ – १४७ ) -

१. स्त्रियां वीर हों | ( पृ १२२, १२८)

२. स्त्रियां सुविज्ञ हों | ( पृ १२२)

३. स्त्रियां यशस्वी हों | (पृ १२३)

४. स्त्रियां रथ पर सवारी करें | ( पृ १२३)

५. स्त्रियां विदुषी हों | ( पृ १२३)

६. स्त्रियां संपदा शाली और धनाढ्य हों | ( पृ १२५)

७.स्त्रियां बुद्धिमती और ज्ञानवती हों | ( पृ १२६)

८. स्त्रियां परिवार ,समाज की रक्षक हों और सेना में जाएं | (पृ १३४, १३६ )

९. स्त्रियां तेजोमयी हों | ( पृ १३७)

१०.स्त्रियां धन-धान्य और वैभव देने वाली हों | ( पृ १४१-१४६)

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वेदों में नारी महिमा और सम्मान के अध्याय और मन्त्र
1. अथर्ववेद 3.30.11
2. इहैव वस्त मा वियौष्ठं, विश्वमामुर्ण्यश्नुतम्। क्रीडन्तो पुत्रेर्नप्तृभि मोर्दमानौ स्वे गृहे।। ऋग्वेद 10.85.42
3. ऋग्वेद 10.85.46 तथा अथर्ववेद 14.1.22
4. यथा सिन्धुर्नदीनां साम्राज्यं सुषुवे वृक्षा।
5. गुहा चरन्ती योषा यजुर्वेद 1.167.3
6. प्रोष्ठेश्या प्ल्मेशया नारीर्या बह्यशीवरी। स्त्रियो याः पुण्यगंध्यस्ता सर्वाः स्वापयामसि।। अथर्ववेद 4.5.3
7. सहृदयं साम्मनस्य मविद्वेषं कृणोमि वः। अन्यो अन्यंभिर्ह्यत वत्सं जातमिवध्न्या।। अथर्ववेद 4.5.7
8. यजुर्वेद 6.52.4
9. अथर्ववेद 10.15.9
10. ऋग्वेद 7.1.2 तथा 7.1.1
11. द्विविधाः स्त्रियो ब्रह्मवादिन्य सधोवाहश्व।तत्र ब्रह्मवादिनी नामन्नीन्धनं वेदाध्ययनं स्वगृहे च भैक्षचर्येति।- हारीत कृत वीरमित्रोदय, संस्कार प्रकाश
12. ब्रह्मचर्येण कन्या युवानं विन्दते पतिम्। अथर्ववेद 1.15.18
13. ऋग्वेद 10.102.2-11
14. मनुस्मृति 4.205
15. तज्जाया जाया भवति यादस्यां जायते पुनः। ऐतरेय ब्राह्मण
16. आभूरेषाभूति ऐतरेय ब्राह्मण
17. कल्याणी जाया सुरणं गृहे ते। अथर्ववेद 3.52.6
18. जायेदस्तं मधवन् सेदुयोनिः । अथर्ववेद 3.53.4
19. मान् $ तृ = मातृ अर्थात् आदरणीया।
20. यास्क - मातृ = निर्मातृ - निर्माण करने वाली।
21. ऋग्वेद 1.24.1
22. त्वं हि नः पितावसो त्वं माता शत्कृतो बभूविथ। ऋग्वेद 9.98.11
23. ऋग्वेद 4.6.7
24. मातमान पितृमान आचार्यमान् पुरुषो ऋग्वेद।
25. मातृ भवतु सम्मनः । अथर्ववेद 3.30.2
26. शांख्यायन धर्म सूत्र 2.6.5
27. ऋग्वेद 10.18.11
28. वृहद्देवता 5.41
29. यजुर्वेद 4.23 तथा शतपथ ब्राह्मण 3 .3.1.12
30. ऋग्वेेद 3.53.4
31. ऋग्वेेद 10.85.46
32. शतपथ ब्राह्मण 10.2.3, 10.2.3.3, 1.9.2.1, 1.9.2.5., 21-25
33. आश्व श्रौ सू 1.11.1
34. पूर्व मीमांसा 6.1.17.21
35. ऋग्वेद 10.85.44
36. ऋग्वेद 10.39.40
37. ऋग्वेद 10.34.11
38. ऋग्वेद 10.18.07 तथा ऋग्वेद 10.10.13
39. ऋग्वेद 10.18.07 तथा एतरेय ब्राह्मण 3.3.65
40. शतपथ ब्राह्मण 2.2.6
41. याज्ञवल्क्य स्मृति 1.8.9
42. शतपथ ब्राह्मण 13.2.6-7
43. शतपथ ब्राह्मण 1.9.2-3
44. निरूक्त 3.21
45. शतपथ ब्राह्मण 7.1.3
46. शतपथ ब्राह्मण 8.3.13 तथा 3.3.1
47. अथर्ववेद 14.2.8
48. अथर्ववेद 14.2.11
49. ऋग्वेद 5.61.8
50. शतपथ ब्राह्मण 14.4.2.4-5
51. ऋग्वेद 8.31.5-9
सार यही है कि जो अधर्मी वेदों को नारी के विरुद्ध बताते है
वे इस लेख को पढ़कर वेदों और शास्त्रो में नारी सम्मान को जाने
और लज्जा से ड़ूब मरे


 

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