मानव कल्याण ही धर्म का मुख्य लक्ष्य है

🍃🌻🍃🌻🍃🌻🌻🌻🍃

*🚩🌹मानव कल्याण ही धर्म का अंतिम लक्ष्य*

*🚩🌹कहा गया है कि धर्म एव हतो हंति धर्मो रक्षति रक्षितः अर्थात‍् मरा हुआ धर्म मारने वाले का नाश करता है और रक्षित किया हुआ धर्म अपने रक्षक की रक्षा करता है। सामान्य जीवन में भी यदि कोई किसी व्यक्ति का वध कर देता है तो मृतक पक्ष के लोग उसका वध करने के लिए पागल हो उठते हैं और कई बार परस्पर प्रतिशोध लेने का ये सिलसिला कई पीढ़ियों तक चलता रहता है। यदि हम किसी व्यक्ति की सहायता करते हैं या किसी के जीवन की रक्षा करते हैं तो वो भी हमारी सहायता करने अथवा हमारे जीवन की रक्षा करने के लिए हमेशा तत्पर रहता है। धर्म की भूमिका भी बिल्कुल ऐसी ही होती है। धर्म की रक्षा करने अथवा एक बार स्वयं में धर्म स्थापित करने के उपरांत धर्म सदैव हमारी रक्षा करता रहता है।*

*🚩इसी प्रकार से यदि हम सुरक्षा के नियमों का पालन करते हैं तो वे नियम हर हाल में हमारी सुरक्षा करने में सक्षम होते हैं लेकिन यदि हम सुरक्षा के नियमों को तोड़ते हैं तो हमारा जीवन संकट में पड़ जाता है। कई बार हम देखते हैं कि किसी नदी अथवा झील के किनारे बोर्ड लगा होता है कि यहां नहाना अथवा पानी में जाना मना है। यदि हम इस नियम का पालन करते हैं तो ये नियम हमारी रक्षा करता है लेकिन यदि हम इस नियम को तोड़कर पानी में चले जाते हैं तो बहुत संभव है कि हम डूब जाएं। धर्म की भी बिल्कुल ऐसी ही स्थिति होती है।*

*🚩यदि हम धर्म का पालन करते हैं तो धर्म हमारी हर प्रकार से रक्षा करता है लेकिन यदि हमसे धर्म का पालन करने में चूक हो जाती है तो वही धर्म हमारे पतन अथवा विनाश का कारण बन जाता है।*

*🚩प्रश्न उठता है कि मरे हुए धर्म से क्या तात्पर्य है और रक्षित किया हुआ धर्म कैसे हमारी रक्षा करता है? इन प्रश्नों के उत्तर देना सरल है, यदि हम धर्म को समझ लें। धर्म क्या है? धर्म की अनेकानेक व्याख्याएं व परिभाषाएं मिलती हैं। धर्म स्वभाव को भी कहते हैं। इस दृष्टि से हमारा व्यवहार भी धर्म ही हुआ। लेकिन हर प्रकार का व्यवहार धर्म कैसे हो सकता है? वास्तव में हमारा अच्छा व्यवहार व हमारी अच्छी आदतें ही वास्तविक धर्म है। धर्म की एक अत्यंत प्रचलित परिभाषा मिलती है :-*

*🕉️धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचं इन्द्रियनिग्रहः।*
*धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम‍्॥*

*🚩धैर्य, क्षमा, दम (संयम), चोरी न करना, शुचिता (स्वच्छता), इंद्रिय-संयम, बुद्धि, विद्या, सत्य और अक्रोध (क्रोध न करना) ये दस गुण ही धर्म के महत्त्वपूर्ण लक्षण माने गए हैं। कुछ अन्य परिभाषाओं में धर्म के इन लक्षणों के अतिरिक्त अन्यान्य लक्षणों की चर्चा भी की गई है। कहा जाता है कि जिसे धारण किया जाए वही धर्म है। यदि व्यक्ति ने इन विभिन्न लक्षणों को धारण किया है तभी वह धार्मिक है अन्यथा नहीं।*

*🚩नि:संदेह, स्वयं में अच्छी आदतें विकसित करना ही धर्म है। देश व काल के अनुसार इन आदतों में अंतर भी हो सकता है लेकिन जो अच्छी आदतें नहीं हैं, जिनसे हमारा व्यवहार दूषित या विकृत होता है, उन्हें धर्म में सम्मिलित नहीं किया जा सकता। धर्म केवल सद‍्गुणों का समुच्चय ही हो सकता है। यदि हमारे किसी कार्य से चाहे वो कितना भी अच्छा क्यों ना हो, दूसरों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है अथवा अन्य किसी भी प्रकार से दूसरों को पीड़ा पहुंचती है तो उसे धर्म की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। इस दृष्टि से किसी का जी न दुखाना भी धर्म है। करुणावतार बुद्ध ने कहा है कि सर्वेषु भूतेषु दया हि धर्मः अर्थात सभी जीवों के प्रति दयाभाव ही धर्म है।*

*🚩सही मायनों में दूसरों की भलाई पुण्य है और दूसरों को कष्ट पहुंचाना पाप है। जो धर्म, धर्म के लक्षण अथवा क्रियाकलाप व्यक्ति में अच्छे गुणों का विकास नहीं करते, वे धर्म नहीं हो सकते। व्यक्ति ही नहीं समाज के संदर्भ में भी ये उतना ही अनिवार्य है। जो समाज धर्म अथवा उदात्त जीवन मूल्यों की रक्षा करने में सक्षम होता है वही आगे बढ़ता है।*

*🚩कर्मकांड अथवा प्रतीक धर्म नहीं होते। ये तो मात्र हमें स्मरण कराने का माध्यम होते हैं कि हमें इनसे जुड़े उदात्त जीवन मूल्यों का पालन करना है। जब हम किसी की पूजा अथवा आराधना करते हैं तो धर्म यही है कि हम अपने आराध्य के गुणों को जीवन में उतारें। जब हम ऐसा नहीं करते तो धर्म पाखंड बन जाता है और ऐसा धर्म अथवा पाखंड हमारी रक्षा नहीं करता। धर्म के किसी भी लक्षण को ले लीजिए। यदि हम उसकी रक्षा नहीं करेंगे अथवा उसे अपने व्यवहार में नहीं लाएंगे तो वो लक्षण नष्ट हो जाएगा और उसके स्थान पर जो उसका विपरीत लक्षण अथवा दुर्गुण होगा प्रकट होने लगेगा और हमारा विनाश कर डालेगा। हम धर्म के एक लक्षण अस्तेय अथवा चोरी न करने की बात करते हैं। यदि हम अपने आचरण में दृढ़तापूर्वक इस लक्षण को विकसित नहीं करेंगे तो स्वाभाविक है कि हममें चोरी की आदत विकसित हो जाएगी। चोरी की आदत हमारा पूरी तरह से विनाश भी कर सकती है। सद‍्गुणों अथवा धर्म का पालन करने में कुछ कठिनाइयां उत्पन्न हो सकती हैं लेकिन इससे उसी अनुपात में हमें संतुष्टि भी मिलती है लेकिन धर्म का पालन न करने पर हम सदैव असंतुष्ट व तनावयुक्त रहेंगे जो हमारे स्वास्थ्य के लिए भी घातक होगा।*

*🍂🍃देवभूमि भारतम🍃🍂*

🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃🌹🍃

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी