निरासक्त कर्मयोगी : तपोनिष्ठ ऋषि दतोपंत ठेगडी Dattopant Thengadi
दत्तोपन्त ठेंगड़ी (10 नवम्बर 1920 – 14 अक्टूबर 2004) भारत के राष्ट्रवादी ट्रेड यूनियन नेता एवं भारतीय मजदूर संघ, स्वदेशी जागरण मंच, भारतीय किसान संघ के संस्थापक थे। ... इन सारे विषेषणों को सार्थक बनाने वाले दत्तोपंत ठेंगडी जी का अल्प परिचय कराना मानो गागर में सागर भरने का प्रयास करने जैसा है।
दत्तोपंत जी के नेतृत्व में शून्य से शिखर की ओर जो संगठन यात्रा प्रारंभ हुई उस के प्रारंभिक काल का परिवेश, परिदृश्य और सामाजिक परिप्रेक्ष्य अत्यंत प्रतिकूल था। श्री ठेंगड़ी जी के नेतृत्व की तेजस्विता, राष्ट्र के प्रति प्रतिबद्धता, व्यवहार की शुद्धता, आत्मीयता और आदर्शवादिता का बल संगठन को प्राप्त था। अतः कदम आगे ही आगे बढ़ते चले गए। उस समय की स्थिति और श्री ठेंगड़ी जी के व्यक्तित्व के बारे में अगर सूत्ररूप में बताना हो तो उसे इस प्रकार कह सकते हैं :-
· वर्ष 1949 तक विश्व का एक तिहाई भाग लाल था और तब भारत में एक नारा था लाल किले पर लाल निशान-माँग रहा है हिंदुस्तान। उस समय राष्ट्रीय शक्ति को श्रमिक क्षेत्र में पाँव रखने के लिए स्थान नहीं था।
· 1920 से 1947 तक के इस कालखंड में अनेकों श्रम संगठन बने, टूटे, फिर बने। परंतु जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ शून्य से प्रारंभ हुआ जो आज देश का प्रथम क्रमांक का केंद्रीय श्रमिक संगठन है। वह आई. एल. ओ. एवं भारत सरकार की विभिन्न समितियों में श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करता है।
· श्रमिक क्षेत्र में भारत माता की जय, वंदेमातरम् कहना अपराध माना जाता था। विरोधी मजाक करते थे। झगड़ा व मारपीट भी हो जाती थी। आज मजदूर क्षेत्र में चहुँओर भारत माता की जय का नारा लगाया जाता है।
· बी.एम.एस. की क्या पहचान, त्याग, तपस्या और बलिदान, लाल गुलामी छोड़कर बोलो वंदेमातरम्। यह उद्घोष प्रचलित किए।
· भगवा ध्वज को मान्यता नहीं थी। मजदूरों का झंडा लाल है यह मान्यता थी परंतु आज देश के मजदूरों ने भगवा ध्वज को मान्य किया है। यह सर्वविदित है।
· राष्ट्र, उद्योग, श्रमिकों का हित ध्यान में रखकर श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण, राष्ट्र का औद्योगीकरण व उद्योगों का श्रमकीकरण, यह विचार दिया।
· श्रमिक संगठनों की राष्ट्रीय अभियान समिति के गठन में मा. दत्तोपंत जी की मुख्य भूमिका रही। उन्होंने विचाराधारा से कभी समझौता नहीं किया। हमारे कम्युनिस्ट भाई आज भारत माता की जय, वंदेमातरम् कहकर देशभक्त मजदूरों से तालियाँ लेते हैं।
· दत्तोपंत जी एक आदर्श स्वयंसेवक थे। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक एवं भारत के श्रमिकों के नेता थे। 1964-1976 तक राज्य सभा सदस्य हेतु उनका चयन हुआ। इस कालखंड में संसदीय कार्य पर भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। सभी पार्टी नेताओं तथा विभिन्न श्रमिक संगठनों से आत्मीय संबंध थे।
· दत्तोपंत जी ने आस्ट्रेलिया एवं न्यूजीलैण्ड छोड़कर सारे विश्व का भ्रमण किया। इजराइल के नागरिक जो वर्षों तक भारत में रहकर गए थे उनसे पारिवारिक अच्छे संबंध बना कर रखे।
· वर्ष 1893 शिकागो में स्वामी विवेकानंद उद्बोधन के शताब्दि 1993 वर्ष पर वाशिंगटन डी. सी. में उन्होंने प्रबुद्ध नागरिकों के सामने अर्थव्यवस्था का विश्लेषण किया। उन्हें भारत के अर्थ व वैश्विक चिंतन से अवगत किया।
· भारतीय मजदूर संघ देश सेवा का माध्यम है। राष्ट्र एवं समाज हित के अंतर्गत उद्योग हित, मजदूर हित सर्वोपरि है। यह दिशा उन्होंने संगठन के कार्यकर्ताओं को दी।
· वर्ष 1975 में भारतीय मजदूर संघ के 18-20 अप्रैल अमृतसर अखिल भारतीय अधिवेशन में अपने भाषण में उन्होंने संकेत दिया था कि आने वाला समय राष्ट्र के लिए संकटमय हो सकता है जिसका उदाहरण 25 जून 1975 का आपात्काल हम सबके सामने है।
· आपात्काल में संघर्ष समिति के सचिव श्री नानाजी देशमुख एवं तत्पश्चात श्री रवींद्र वर्मा की गिरफ्तारी के पश्चात दत्तोपंत जी ने इस दायित्व को निर्भय होकर निभाया और जनता पार्टी के गठन में पूरा योगदान दिया।
· उस समय कई बरिष्ठों द्वारा आग्रह किया गया कि दत्तोपंत मंत्री अथवा सांसद बनें परंतु उन्होंने शालीनता के साथ उक्त निमन्त्रण को अस्वीकार कर दिया।
· भारत के राष्ट्रपति द्वारा प्रस्तावित सम्मान 'पद्मभूषण' बड़ी शालीनता व विनम्रतापूर्वक अस्वीकार किया। कहा कि जब तक डॉ. हेडगेवार जी,संस्थापक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एवं परमपूजनीय श्री गुरुजी को 'भारत रत्न' सम्मान से सम्मानित नहीं किया जाता तब तक इसे स्वीकार करना मेरे लिए उचित नहीं है।
· सामाजिक कार्यकर्ताओं को पद का मोह नहीं करना चाहिए इसका आदर्श स्वयं उन्होंने अपने ऊपर लागू किया और आपात्काल 1975 में सभी पदों से मुक्त होकर बिना किसी पद के, मार्गदर्शक के नाते अंत समय तक समाज व संगठन कार्य किया। कई प्रमुख संगठनों को मार्गदर्शन देकर एक आदर्श स्वयंसेवक का उदाहरण प्रस्तुत किया। नये कार्यकर्ताओं को आगे लाना एवं पुराने कार्यकर्ताओं को एक मार्गदर्शक के नाते काम करना चाहिए। ऐसा आग्रह वे करते थे। उन्होंने कभी भी व्यक्तिगत नाम से धन संग्रह न करना - संगठन निधि के नाते करना, व्यक्ति के नाम से नारे नहीं लगाना, भारत माता की जय, देश भक्त मजदूरों एक हो एक हो, आदि ऐसे आदर्श नारे प्रस्तुत किए।
· आर्थिक शुचिता का अंत तक पालन किया। किसी भी प्रकार का आर्थिक व्यवहार अनुचित नहीं होने दिया तथा कार्यकर्ताओं को भी इसका आग्रह किया।
· उनका आग्रह रहता था कि व्यक्तिगत निर्णय कितना भी ठीक हो, लेकिन सामूहिक निर्णय यदि ठीक न भी लगे तो भी उसे ही मानना चाहिए। इसका एक उदाहरण है - मा. दत्तोपंत जी भारतीय मजदूर संघ की स्थापना के लिए जब चले थे तो नाम सोचा था कि बैठक में चर्चा से "भारतीय श्रमिक संघ" नाम रखेंगे किंतु अधिकांश लोगों ने कहा कि हमें श्रमिक शब्द उच्चारण में कठिनाई आएगी अतः 'भारतीय मजदूर संघ' नाम ठीक रहेगा। दत्तोपंत जी ने सामूहिक निर्णय को ही स्वीकार किया।
· ठेंगड़ी जी के अनेक परिवारों व संगठनों के साथ मधुर संबंध थे। श्रमिक आंदोलन में हमारे विचारों के विरुद्ध रहने वाले संगठनों के नेताओं के बारे में वे कहते थे कि ये तलाक मैरिज है। दिन भर हमारे विरोधियों के साथ सभी प्रकार की मारपीट एवं संघर्ष के बाद रात्रि में वे सारे विरोधी बंधु दत्तोपंत जी के साथ मजदूर आंदोलन की समस्याओं पर दिशा निश्चित करने के लिए सलाह मशविरा करने के लिए साऊथ एवेन्यु निवास पर बैठक करते थे। दत्तोपंत जी कहते थे कि राष्ट्रहित एवं मजदूर हित के लिए हम शैतान से भी हाथ मिलाएंगे, ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं।
· दत्तोपंत ठेंगड़ी यह हमारे श्रमिकों के नेता हैं यह वामपंथी भाईयों ने स्वीकारा।
· दत्तोपंत जी के विचार, गैर राजनैतिक श्रम संगठन, को विश्व स्तर पर मान्य किया गया। रूस की राजधानी मास्को में वामपंथ समर्थक विश्व फैडरेशन आफ ट्रेड यूनियन की कान्फ्रेंस में भा.म.सं. प्रतिनिधि ने गैर राजनीतिक श्रम संगठन का प्रस्ताव रखा। विश्व फैडरेशन ने राजनैतिक मोर्चा को खारिज किया और एक नया महासंघ बनाया जो गैर राजनैतिक था। नाम रखा जनरल कान्फैडरेशन ऑफ वर्ल्ड ट्रेड यूनियन। लाल के स्थान पर सफेद झंडा लहराया।
· वर्ष 1985 में प्रथम बार किसी राष्ट्रवादी श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ के प्रतिनिधि मण्डल को चीन ने दत्तोपंत जी के नेतृत्व में आमंत्रित किया। हमारे भारत के कम्युनिस्ट भाईयों को काफी कष्ट हुआ। आज भी हमारा प्रतिनिधि चीन के आमन्त्रण पर प्रतिवर्ष वहाँ जाता है।
· देश संक्रमण काल से गुजर रहा है। दत्तोपंत जी देश की स्वतंत्रता पूर्व से ही हमेशा परिस्थिति की समीक्षा करते थे। समय-समय पर अपने विचारों को कार्यक्रम के माध्यम से प्रगट करते रहे। देश पर आए हुए संकट को देखकर मार्गदर्शन किया।
· वर्ष 1982 में ही विदेशियों एवं सरकार की मंशा को भाँप लिया और नीतियों का विरोध करना प्रारंभ किया। सरकार की 1991 की नई आर्थिक नीतियों के विरोध में भारत को आर्थिक गुलामी से बचाने एवं विदेशी शक्तियों को रोकने के लिए संघर्ष की घोषणा की।
· आर्थिक स्वतंत्रता की लड़ाई के रूप में भारत सरकार, विश्व के पूँजीपतियों, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष, डंकल प्रस्ताव, विश्व व्यापार संगठन पर दबाव हेतु लगातार संघर्ष दत्तोपंत जी अपने जीवन के अंत तक करते रहे यह सर्ब विदित है।
· दत्तोपंत जी कभी-कभी कहते थे कि हमारी संगठन शक्ति इतनी बढ़नी चाहिए कि सरकार किसी की भी रहे उसे हेडगेवार भवन मार्गदर्शन के लिए आना ही पड़े। इतना आत्मविश्वास।
· दत्तोपंत जी देवता के रूप में अपनी माताजी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे। वैसे उनके जीवन में डॉ. हेडगेवार जी एवं परम पूजनीय गुरुजी का वैचारिक प्रभाव था। रा. स्व. संघ को अपना अधिष्ठान मानते थे।
· कई संगठनों के संस्थापक एवं मार्गदर्शक रहे। आज उनका इतना विपुल विचारधन, विविध विषयों पर 50 के लगभग पुस्तकें एवं दर्जनों किताबों की प्रस्तावनाएँ, शोध पत्र आदि लिखे हैं। जीवन के सान्ध्यकाल में लिखी उनकी कार्यकर्ता (अधिष्ठान, व्यक्तित्व), डॉ. अंबेडकर और सामाजिक क्रांति की यात्रा और आज के आर्थिक नीति पर थर्ड वे (तीसरा विकल्प) पुस्तकें विशेष चर्चित हुई हैं।
· विश्व का भ्रमण करते समय दोनों विचार धाराओं का चिंतन किया। आखिर में, उन्होंने, तीसरा विकल्प दे सकते हैं, यह घोषणा की (थर्ड वे पुस्तक)। चुनौतियों का हमारे पास समाधान है यह बराबर अपने विचारों के माध्यम से प्रगट करते रहे। इसके लिए स्वदेशी जागरण मंच की स्थापना की जो हम सबकी जानकारी में है।
· दत्तोपंत जी कहा करते थे कि सरकार आएगी, जाएगी, परंतु राष्ट्र चिरंतन है तथा स्वयंसेवक और कार्यकर्ता यह स्थायी हैं। वे कहते थे कि कभी भी दूरदर्शन और समाचार पत्र देखकर अपनी शक्ति का आकलन न करें। वे कभी भी संकट से घबराये नहीं। आपात्काल में आत्मविश्वास के साथ बात रखते थे। कार्यकर्ता को विश्वास के साथ कार्य में लगाते थे।
· पंडित दीनदयाल उपाध्याय पर दो खण्डों में विविध विषयों पर पुस्तक का लेखन हुआ है। उसकी श्री ठेंगड़ी द्वारा लिखी प्रस्तावना है 164 पृष्ठ की, विषय है 'अथातो तत्व जिज्ञासा'। पंडित दीनदयाल जी के जीवन की अनेकों प्रकार की घटनाएँ इस पुस्तक में समाहित हैं।
· भारतीय संस्कृति के इतिहास में राष्ट्र के लिए आत्म बलिदान की परंपरा रही है। अपने गुरुओं का इतिहास हम जानते हैं। वर्ष 1984 में इन्दौर में भारतीय मजदूर संघ का अभ्यास वर्ग था। वर्ग के एक सत्र में मा. दत्तोपंत जी ने कहा कि भारतीय मजदूर संघ को खड़ा करने में जिन कार्यकर्ताओं ने आत्म बलिदान किया ऐसे कार्यकर्ताओं की सूची बनायें। उपस्थित कार्यकर्ता एक-एक नाम गिनाते गए और मा. बड़े भाई (रामनरेश सिंह) नाम लिखते गए, 120 की संख्या आई।
· श्री दत्तोपंत जी की Legacy और Mission पुस्तिका में उनकी नेतृत्व कुशलता अनुपम है, अत्यंत शक्तिशाली तर्क (मुद्दा) अत्यंत नम्र और सरल शब्दों में व्यक्त करने में वह महारथी थे। 1964-1976 की राज्यसभा में वे श्रमिकों के एकमात्र जागरूक रक्षक थे। राष्ट्र पुनरुत्थान की क्षमता हिंदू जीनियस (प्रतिभा) में ही संभव है। ऐसी ऋषि मुनियों की परंपरा के विषय में उनकी दृढ़ मान्यता थी।
· छठवीं राष्ट्रोत्थान व्याख्यान माला बंगलोर के चार व्याख्यान पुष्पों (4 अप्रैल से 8 अप्रैल 1973) में दिशादर्शन और अंतिम लक्ष्य विस्तार पूर्वक करते हुए "पाश्चिमात्यों की नकल व्यर्थ है" ऐसा सोदाहरण सिद्ध किया। इस व्याख्यान माला के संदर्भ में अपनी प्रामाणिक मान्यताओं को स्पष्ट करते हुए कहा कि :-
· हमारे द्रष्टाओं ने मानवता के प्रश्नों को मानवीय, तर्क शुद्ध और वैज्ञानिक दृष्टि से सुलझाने का प्रयत्न किया है।
· आज भी हिंदू (जीनियस) प्रतिभा में वे सब छिपी शक्तियाँ विद्यमान (मौजूद) हैं जो राष्ट्रोत्थान के लिए आवश्यक होती हैं।
· आज की विनाशी पारेस्थिति का मूल कारण संकल्प और पुनरुत्थानी दृष्टि की स्पष्टता का अभाव है।
· भविष्य की संपन्नता (उज्जवलता) और वैभव के विषय में निराशा के लिए कोई स्थान नहीं है।
· "एकात्ममानववाद" के सिद्धांत को ठेंगड़ी जी ने मजदूर क्षेत्र में सिद्ध कर दिखाया। वर्ग संघर्ष को वर्ग समन्वय और वर्ग सहकार के विचार द्वारा परास्त किया। जिस क्षेत्र में भगवा रंग अवान्छनीय माना जाता था वहाँ अनगिनत श्रमिकों ने भगवा कंधे पर लेकर राष्ट्रोत्थान और उत्कर्ष की यात्रा प्रारंभ की। बाइबल, कुरान और अन्य धर्मों के ग्रंथों से उपयुक्त उदाहरण देकर "सर्वपंथ समादर" और समरसता का जागरण करते हुए एकता और एकात्मता के मूल मंत्र को आचरण द्वारा स्पष्ट किया।
· गजेंद्र गडकर श्रम आयोग से लेकर अन्य अनेक आयोगों, समितियों, लोकसभा, राज्यसभा आदि सभी स्तरों पर भारतीय मजदूर संघ का विचार-दर्शन प्रस्तुत करते हुए विदेशी प्रेरणा केंद्र वाली विचार धाराओं को परास्त किया।
· जहाँ-जहाँ ठेंगड़ी जी जाते या रहते वह उनका 'घर' हो जाता और उनका घर यह सभी कार्यकर्ताओं का अपना स्वयं का घर बन जाता। 57-साऊथ एवेन्यु देश भर के कार्यकर्ताओं का दिल्ली में 12 वर्ष तक अपना स्वयं का निवास स्थान रहा।
· मोर्चा हो, विराट प्रदर्शन हो, बैठकें हों, राष्ट्रीय अधिवेशन हो, किसी न्यायालयीन या ट्रिब्यूनल का केस हो, कार्यकर्ता पूर्ण विश्वास से निश्चित होकर साऊथ एवेन्यु ठहर सकते थे। एक बार तो कार्यकर्ताओं से पूरा 57 साऊथ एवेन्यु इतना भर गया कि रात को (ठण्ड होते हुए भी) कार्यकर्ता बाहर हरियाली (लॉन) पर भी सो रहे थे। श्री ठेंगड़ी जी रात को 2 बजे दौरे से वापिस आए तो उन्हें एक कोने में जगह खोजकर सोना पड़ा पर कोई शिकायत नहीं।
· गढ़ (किले) का सरदार (गढ़करी) प्रत्येक छः वर्ष के उपरांत बदल देना चाहिए। इस प्रकार तीन बार बदलने के पश्चात उसे एक बार पुनः स्वामी (सर्वोच्च राज्य अधिकारी) की सेवा में भेजना चाहिए जिससे उसका अहं पुष्ट न होने पाए ऐसा मराठा इतिहास के एक प्रसंग की श्री ठेंगड़ी चर्चा करते थे।
· श्री ठेंगड़ी ने कार्यकर्ताओं के लिए जितने भी पथ्य परहेज बताए उन्हें स्वयं के आचरण, जीवन में परिपालन के पश्चात ही बताया।
· साऊथ एवेन्यु, नई दिल्ली स्थित निवास पर कूलर नहीं लगाने दिया। कहते थे सभी मजदूरों के घर कूलर लगे हैं क्या।
· दिल्ली में आने जाने के लिए कार्यकर्ताओं ने ड्राईवर सहित मोटर गाड़ी की व्यवस्था करने की बात कही तो श्री ठेंगड़ी जी ने मना कर दिया कि टैक्सी आदि उपलब्ध रहती है सो निवास पर गाड़ी बाँधने की क्या आवश्यकता है।
· कृतज्ञता का गुण उनमें कूट कूट कर भरा था। किसी ने कभी किंचितमात्र भी उपकार किया है तो उसे वह भूलते नहीं थे और समय आने पर यथेष्ट सत्कार करते थे।
· स्मरण शक्ति अद्भुत थी। चालीस वर्ष के अंतराल पर भी अगर अकस्मात् कोई कार्यकर्ता मिल गया तो उसे प्रेमपूर्वक नाम से ही बुलाते थे।
· वर्ष 1942 से वर्ष 2004 बासठ वर्ष निरंतर संघ सृष्टि के माध्यम से समाज में त्याग तपस्या के मोहमुक्त जीवंत प्रतीक, दिव्य प्रतिभा के धनी उच्च विचारों के साथ रहन सहन, सादगी, तत्व चिंतक, गहन अध्ययन-कर्ता, संघ के प्रचारक, अनेक संगठनो का सूत्रपात करने वाले, अजात शत्रु श्री दत्तोपंत ठेंगड़ी जी के आदर्शों पर चलने वाले लाखों कार्यकर्ता आज श्रमिक जगत् में भगवा झण्डा कंधे पर लेकर उन्नतमस्तक सेवारत हैं। वह आदर्श पर अडिग रहे अतः लाखों कार्यकर्ताओं के लिए वह आज भी प्रेरणा पुंज हैं और आगे भी सदैव रहेंगे।
· सदस्यता सत्यापन आधार वर्ष 1989 के परिणाम स्वरूप भारत सरकार (श्रम मंत्रालय) ने भारतीय मजदूर संघ को देश का सबसे बड़ा केंद्रीय श्रमिक संगठन घोषित किया। शून्य से स्थापना (1955) से प्रारंभ कर के 35 वर्षों की कठिन संगठन यात्रा तय कर अन्य सभी श्रम संगठनों को पीछे छोड़ते हुए प्रथम क्रमांक पर पहुँचने पर देशभर के कार्यकर्ताओं में हर्षोल्लास का संचार स्वाभाविक था। यह श्री ठेंगड़ी जी के तेजस्वी नेतृत्व द्वारा संभव हुआ। अतः कार्यकर्ता उन का अभिनंदन करना चाहते थे। सम्मान समारोहों की योजना बनने लगी। श्री ठेंगड़ी जी को पता चला तो उन्होंने सख्ती से मना कर दिया, मानो कुछ हुआ ही न हो और कहा कि लक्ष्य की ओर यात्रा अभी जारी है। यात्रा का यह एक पड़ाव है, महत्वपूर्ण है, पर है एक पड़ाव ही। सर्वाङ्गीण विकास और समरस समाज रचना का लक्ष्य अभी दूर है। चलते रहिए, आगे बढ़ते रहिए और कार्यकर्ता शिथिलता छोड़ उसी उर्जा और उत्साह के साथ पूर्ववत् पुनः संगठन कार्य में जुट गए। भा.म.सं. तब से लेकर आज (वर्ष 2014) तक अन्य समस्त प्रतिस्पर्धी श्रमिक संगठनों से कोसों आगे है और निरंतर आगे बढ़ते जा रहा है।
· वह शाहन्शाह - फकीर थे। शाहन्शाह इस लिए कि उनके एक इंगित पर हजारों लाखों रुपये देखते ही देखते एकत्रित हो सकते थे, प्राप्त कर सकते थे। फकीर इस दृष्टि से कि वे एक पैसा भी निजी रूप में अपने पास नहीं रखते थे। संग्रह का प्रश्न ही नहीं। दो चार धोती कुर्ता और हैंड बैग यही उनकी संपत्ति थी। सांसद के नाते उन्हें प्राप्त होने वाला मानधन भी संगठन कार्य ही में व्यय होता था। यहाँ तक अपनी पैतृक संपति अधिकार से भी उन्होंने स्वयं को मुक्त कर लिया था। निर्मोही, निर्लिप्त, ऋषि परंपरा के वे श्रेष्ठतम आदर्श और तपोनिष्ठ उनका त्यागमय जीवन सतत साधना का महायज्ञ था।
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