गरीबों को आत्मनिर्भरता देना ही ईश्वर की सच्ची साधना है

         * उपहार * 

      आज उसका जन्म दिन था। बच्चे व पत्नी स्वागत में व्यस्त थे। कुछ रिश्तेदार भी आए हुए थे । टेबल सजाई जा रही थी। रंग बिरंगे गुब्बारे देख कर बच्चे चहक रहे थे।उपहारों के रंग बिरंगे पैकेट्स थे।सभी तैयारियों में लगे थे।बड़ा सा केक टेबल पर सजाया हुआ था और वह न जाने कहाँ खो गया।

 उसको स्मृति उसे कई साल पीछे ले आई.. जब मात्र 12-13 साल की थी। शहर में एक पेड़ के नीचे बैठा रहता। आने-जाने वालों के सामने हाथ फैलाकर भीख मांगता। शाम तक इतना हो जाता कि उसका व उसकी मां का पेट भर जाता। एक दिन वहां से एक साहब गुजरे। वे शहर में नए आए थे। अपने ऑफिस पैदल हो जाते थे। वह दौड़ कर उनके पास गया। हाथ जोड़कर नमस्ते करके हाथ फैला दिया। उसे कुछ ज्यादा ही उम्मीद थी कि साहब है, तो बीस का नोट तो हाथ में आएगा ही। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उल्टे उनके भाव से साफ जाहिर हुआ कि उसका इस तरह से हाथ फैलाना उन्हें बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा। फिर भी पांच का सिक्का हथेली पर रख दिया।

एक-दो दिन तो इस तरह रोज मांगते रहने पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। दो पांच रुपए हाथ में रख दिया करते. पर उनके मिजाज से लगता था कि उन्हें भिखमंगों से नफरत है। एक दिन उन्हें गुस्सा आ हो गया। बुरी तरह से डांट दिया। कहने लगे 'शर्म नहीं आती भीख मांगते हुए अच्छे-भले सेहतमंद हो, मेहनत करके खाओ। तुम्हारी तरह सभी भीख मांगने लग जाए तो देश में कमाएगा कौन? हमारे देश के जितने भी भीख मांगने वाले हैं अगर मेहनत करने लग जाएं तो हमारी अर्थव्यवस्था को काफी गति मिल सकती है। साहब के चेहरे पर गुस्से को भापकर वह चुपचाप गर्दन नीची कर पेड़ की तरफ लौट गया।

अब साहब उसे रुपया नहीं देते। वह दौड़ कर उनके पास भी नहीं जाता। बस पेड़ की छाया में बैठा रहता। साहब भी तिरछी नजरों से घूरते हुए तेजी से निकल जाते।

 एक दिन साहब खुद उसके पास आए। पास बैठे और हालचाल पूछा। उसे लगा आज साहब मूड में हैं, उसे बीस-पचास का नोट दे देंगे, पर ऐसा नहीं हुआ। 

वे पैसों की जगह एक पैकेट देकर कहने लगे- 'आज मैं तेरे लिए एक उपहार लाया हूँ।' फिर पैकेट खोला, उसमें से निकली वजन तौलने वाली मशीन देते हुए बोले- 'आज से तुम्हें भीख मांगने की जरूरत नहीं। ये मशीन सामने रख देना। लोग अपने आप तुलेंगे और तुझे पांच रुपए देकर जाएंगे। इससे तुझे किसी के सामने हाथ भी फैलाना नहीं पड़ेगा। तुम अपने मेहनत की खाओगे।' कहकर उन्होंने गाल पर हल्की सी थपकी दी और चले गए। उसकी आंखें भर आई।

अब वे हमेशा उसके पास खुद रुकते। उसका हालचाल पूछते उसकी दिन भर की कमाई का पूछते। कभी-कभी हंस कर मजाक में कहते- 'पैसों की बचत करके रखना, तेरी शादी जो करनी है।'

धीरे-धीरे पैसों की भी बचत होने लगी। इस बीच चाय की दुकान भी खोल ली। दुकान चल निकली तो धंधे का विस्तार कर लिया। आज भरा पूरा परिवार, पैसा, गाड़ी अच्छे दोस्त सब कुछ है। किसी चीज की कमी नहीं है। पर साहब जाने कहां होंगे। उनका तो कुछ हो महीनों बाद तबादला हो गया था।

''जन्मदिन की शुभकामनाओ के शोर के साथ उसका ध्यान टूटा,उसने मोमबत्तिया जलाने के साथ। सब ने उपहार भेंट किए, पर उसे वह उपहार याद आ रहा था, जिसने उसकी जिंदगी को बदल दिया था। उसी उपहार ने उसे इस मुक़ाम तक पहुंचाया। न जाने कहां होंगे वे साहब पर जहां भी होंगे सैंकड़ों को नई राह दिखा रहे होंगे। अपने साहब को याद करते हुए उसकी आंखें नम हो आई।

अच्छे लोगों को हमेशा याद किया जाता है  
*नर सेवा ही नारायण सेवा है*
      *सदैव प्रसन्न रहिये।*

         

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism