जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज Jagadguru-Shri-KripaluJi-Maharaj

     भक्ती भाव के महान प्रणेता कृपालू जी महाराज  के जीवन पर विचार किया जाये तो येशा प्रतीत होता है कि उन्हे ईश्वर ने भक्ती को नये आयाम देनें ही भेजा था। राधा - गोविन्द के दो शब्दों में उन्होने सम्पूर्ण बृम्ह के समस्त आयामों को भर दिया। आपका जीवन सिर्फ और सिर्फ प्रेम स्नेह करूणा और दया को समर्पित रहा। आज उनकी देवलोक गमन तिथि पर आपका स्मरण भी पापों को काट कर प्राणियों को पवित्र मोक्ष स्वरूपी ईश्वरधाम प्रदान करने वाला है। जय श्री राधे।


-------------------

 कृपालु महाराज एक सुप्रसिद्ध हिन्दू आध्यात्मिक प्रवचन कर्ता थे। मूलतः इलाहाबाद के निकट मनगढ़ नामक ग्राम में जन्मे कृपालु महाराज का पूरा नाम रामकृपालु त्रिपाठी था। उन्होंने जगद्गुरु कृपालु परिषद् के नाम से विख्यात एक वैश्विक हिन्दू संगठन का गठन किया था। जिसके इस समय 5 मुख्य आश्रम पूरे विश्व में स्थापित हैं।
-----------------
कृपालु महाराज ने न किसी को गुरु बनाया, न चेला
प्रतापगढ़ में आश्रम में गिरने पर ब्रैन हेमरेज का शिकार हुए कृपालु महाराज अब इस दुनिया में नहीं रहे। यूं तो उनके साथ कई खास बातें जुड़ी रहीं, लेकिन यह बात उन्हें सबसे अलग करती है।


कृपालु महाराज ऐसे पहले जगदगुरु हैं, जिनका कोई गुरु नहीं है और वे स्वयं जगदगुरुत्तम हैं। इसके अलावा उन्होंने अपने जीवनकाल में एक भी शिष्य नहीं बनाया, किन्तु इनके लाखों अनुयायी हैं।


जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज का जन्म 1922 में शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के मनगढ़ गांव में हुआ था। प्रतापगढ़ में प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने इंदौर, चित्रकूट और वाराणसी में व्याकरण, साहित्य और आयुर्वेद का अध्ययन किया।

उनके बारे में कहा जाता है कि वह 16 साल की उम्र में चित्रकूट के शरभंग आश्रम और वृंदावन के वंशीवट के निकट जंगलों में रहे। 

अपनी ननिहाल मनगढ़ में जन्मे राम कृपालु त्रिपाठी ने गाँव के ही मिडिल स्कूल से 7वीं कक्षा तक की शिक्षा प्राप्त की और उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिये महू मध्य प्रदेश चले गये।

     कालान्तर में आपने साहित्याचार्य, आयुर्वेदाचार्य एवं व्याकरणाचार्य की उपाधियाँ आश्चर्यजनक रूप से अल्पकाल में ही प्राप्त कर लीं। अपने ननिहाल में ही पत्नी पद्मा के साथ गृहस्थ जीवन की शुरुआत की और राधा कृष्ण की भक्ति में तल्लीन हो गये। भक्ति-योग पर आधारित उनके प्रवचन सुनने भारी संख्या में श्रद्धालु पहुँचने लगे। फिर तो उनकी ख्याति देश के अलावा विदेश तक जा पहुँची।

    उनकी तीन बेटियाँ हैं - विशाखा, श्यामा व कृष्णा त्रिपाठी। तीनों बेटियों ने अपने पिता की राधा कृष्ण भक्ति को देखते हुए विवाह करने से मना कर दिया और कृपालु महाराज की सेवा में जुट गयीं।


वाराणसी की काशी विद्धत परिषद ने उन्हें 1957 में जगदगुरू की उपाधि दी, जब वह 34 साल के थे। कृपालु महाराज जगदगुरू कृपालु परिषद के संस्थापक संरक्षक रहे। उन्होंने हिंदू धर्म की शिक्षा और योग के लिए भारत में चार और अमेरिका में एक केंद्र की स्थापना की।

उन्होंने वृंदावन में भक्तों के लिए भगवान कृष्ण व राधा का प्रेम मंदिर बनवाया है। इस प्रेम मंदिर के निर्माण में 11 साल का समय लगा और राजस्थान-उत्तर प्रदेश के 1,000 शिल्पकारों ने इसे आकार दिया।

इसके अलावा कृपालु महाराज ने वृंदावन और बरसाना में दो अस्पतालों की भी स्थापना की। प्रतापगढ़ की कुंडा तहसील स्थित मनगढ़ में कृपालुजी महाराज का प्रमुख आश्रम है। 10 नवंबर, 2013 को आश्रम के बाथरूम में गिरने के कारण उनके सिर में गंभीर चोट आई थी जिससे वह अचेत हो गए थे।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

Veer Bal Diwas वीर बाल दिवस और बलिदानी सप्ताह

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

अटलजी का सपना साकार करते मोदीजी, भजनलालजी और मोहन यादव जी

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग

इंडी गठबन्धन तीन टुकड़ों में बंटेगा - अरविन्द सिसोदिया

स्वामी विवेकानंद और राष्ट्रवाद Swami Vivekananda and Nationalism