लाभपंचमी : सौभाग्य पंचमी : ज्ञान पंचमी - कारोबार प्रारंभ करने का शुभ अवसर

लाभपंचमी

 
लाभपंचमी : सौभाग्य पंचमी :  ज्ञान पंचमी

कार्तिक शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सौभाग्य पंचमी और लाभ पंचमी नाम से जाना जाता है। अनादिकाल से माना जाता है कि इस दिन भगवान श्रीगणेश जी और भगवान शिव शंकर जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। सौभाग्य पंचमी के दिन प्रातः काल स्नान से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें।

  सौभाग्य पंचमी के दिन प्रातः काल स्नान से निवृत्त होकर भगवान सूर्य को अर्घ्य अर्पित करें। भगवान श्री गणेश का चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजन करें। भगवान आशुतोष शिव शंकर जी को बिल्वपत्र, धतूरा समेत वस्त्र आदि अर्पित कर पूजन करना चाहिए।

  श्रीगणेश को मोदक और भगवान आशुतोष को दूध से निर्मित पकवानों का भोग लगाना चाहिए। सौभाग्य पंचमी के दिन रात्रि जागरण करना चाहिए।
   जैन धर्म में इस दिन को ज्ञान पंचमी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि सौभाग्य पंचमी के दिन कोई भी कार्य करने से वह सफल अवश्य होता है। कारोबार में तरक्की होती है और जीवन में सुख-शांति और खुशहाली आती है। यह शुभ तिथि दिवाली पर्व का हिस्सा कही जाती है। सौभाग्य पंचमी के अवसर पर मंदिरों में विषेश पूजा अर्चना की जाती है। जो लोग लाभ पंचमी के दिन विधि विधान से पूजा अर्चना करते हैं, वे जीवन, व्यवसाय और परिवार में सौभाग्य का आनंद लेते हैं।

 
वास्तविक लाभ पाने का दिन : लाभपंचमी 

➡ *09 नवम्बर 2021 मंगलवार को लाभपंचमी है ।*

🙏🏻 *कार्तिक शुक्ल पंचमी 'लाभपंचमी कहलाती है । इसे 'सौभाग्य पंचमी भी कहते हैं । जैन लोग इसको 'ज्ञान पंचमी कहते हैं । व्यापारी लोग अपने धंधे का मुहूर्त आदि लाभपंचमी को ही करते हैं । लाभपंचमी के दिन धर्मसम्मत जो भी धंधा शुरू किया जाता है उसमें बहुत-बहुत बरकत आती है । यह सब तो ठीक है लेकिन संतों-महापुरुषों के मार्गदर्शन-अनुसार चलने का निश्चय करके भगवद्भक्ति के प्रभाव से काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार इन पाँचों विकारों के प्रभाव को खत्म करने का दिन है लाभपंचमी ।*

👉🏻 *(१) लाभपंचमी के पाँच अमृतमय वचनों को याद रखो :*
ईश्वर ही सदैव है !
➡ *पहली बात : 'भगवान हमारे हैं, हम भगवान के हैं - ऐसा मानने से भगवान में प्रीति पैदा होगी । 'शरीर, घर, संबंधी जन्म के पहले नहीं थे और मरने के बाद नहीं रहेंगे लेकिन परमात्मा मेरे साथ सदैव हैं - ऐसा सोचने से आपको लाभपंचमी के पहले आचमन द्वारा अमृतपान का लाभ मिलेगा ।*

सबे भूमि गोपाल की : अर्थात समस्त भूमि ईश्वर की है 
➡ *दूसरी बात : हम भगवान की सृष्टि में रहते हैं, भगवान की बनायी हुई दुनिया में रहते हैं । तीर्थभूमि में रहने से पुण्य मानते हैं तो जहाँ हम-आप रह रहे हैं वहाँ की भूमि भी तो भगवान की है; सूरज, चाँद, हवाएँ, श्वास, धडकन सब-के-सब भगवान के हैं, तो हम तो भगवान की दुुनिया में, भगवान के घर में रहते हैं । मगन निवास, अमथा निवास, गोकुल निवास ये सब निवास ऊपर-ऊपर से हैं लेकिन सब-के-सब भगवान के निवास में ही रहते हैं । यह सबको पक्का समझ लेना चाहिए । ऐसा करने से आपके अंतःकरण में भगवद्धाम में रहने का पुण्यभाव जगेगा ।*

जो भी में ग्रहण कर रहा हूँ वह ईश्वर का ही है -
➡ *तीसरी बात : आप जो कुछ भोजन करते हैं भगवान का सुमिरन करके, भगवान को मानसिक रूप से भोग लगाके करें । इससे आपका पेट तो भरेगा, हृदय भी भगवद्भाव से भर जायेगा ।*

सहायता करना ही सेवा है, ईश्वर की रचना को सहयोग पहुचना है - 
➡ *चौथी बात : माता-पिता की, गरीब की, पडोसी की, जिस किसीकी सेवा करो तो 'यह बेचारा है... मैं इसकी सेवा करता हूँ... मैं नहीं होता तो इसका क्या होता... - ऐसा नहीं सोचो; भगवान के नाते सेवाकार्य कर लो और अपने को कर्ता मत मानो ।*


➡ *पाँचवीं बात : अपने तन-मन को, बुद्धि को विशाल बनाते जाओ । घर से, मोहल्ले से, गाँव से, राज्य से, राष्ट्र से भी आगे विश्व में अपनी मति को फैलाते जाओ और 'सबका मंगल, सबका भला हो, सबका कल्याण हो, सबको सुख-शांति मिले, सर्वे भवन्तु सुखिनः... इस प्रकार की भावना करके अपने दिल को बडा बनाते जाओ । तब ऐसी विशाल मति जग जीत प्रज्ञा की धनी बन जायेगी ।*

       *मन के कहने में चलने से लाभ तो क्या होगा हानि अवश्य होगी क्योंकि मन इन्द्रिय-अनुगामी है, विषय-सुख की ओर मति को ले जाता है । लेकिन मति को मतीश्वर के ध्यान से, स्मरण से पुष्ट बनाओगे तो वह परिणाम का विचार करेगी, मन के गलत आकर्षण से सहमत नहीं होगी । इससे मन को विश्रांति मिलेगी, मन भी शुद्ध-सात्त्विक होगा और मति को परमात्मा में प्रतिष्ठित होने का अवसर मिलेगा, परम मंगल हो जायेगा ।*


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