वनवासी शबरी के झूठे बेर भगवान श्रीराम ने खाये, हिंदुत्व में अंतिम व्यक्ति को भी सर्वोच्च सम्मान की प्रेरणा

शबरी को आश्रम सौंपकर महर्षी मतंग जब देवलोक जाने लगे तब शबरी भी साथ जाने की जिद करने लगी।
शबरी की उम्र दस वर्ष थी। वो महर्षि मतंग का हाथ पकड़ रोने लगी
महर्षि शबरी को रोते देख व्याकुल हो उठे! शबरी को समझाया "पुत्री इस आश्रम में भगवान आएंगे यहां प्रतीक्षा करो!"
अबोध शबरी इतना अवश्य जानती थी कि गुरु का वाक्य सत्य होकर रहेगा!  उसने फिर पूछा "कब आएंगे?
महर्षि मतंग त्रिकालदर्शी थे वे भूत भविष्य सब जानते थे वे ब्रह्मर्षि थे।

महर्षि शबरी के आगे घुटनों के बल बैठ गए, शबरी को नमन किया 
आसपास उपस्थित सभी ऋषिगण असमंजस में डूब गए, ये उलट कैसे हुआ!  गुरु यहां शिष्य को नमन करे! ये कैसे हुआ?
महर्षि के तेज के आगे कोई बोल न सका! 
महर्षि मतंग बोले "पुत्री अभी उनका जन्म नही हुआ!"
अभी दशरथजी का लग्न भी नही हुआ! उनका कौशल्या से विवाह होगा! फिर भगवान की लम्बी प्रतीक्षा होगी फिर दशरथजी का विवाह सुमित्रा से होगा ! फिर प्रतीक्षा! फिर उनका विवाह कैकई से होगा फिर प्रतीक्षा! फिर वो जन्म लेंगे! फिर उनका विवाह माता जानकी से होगा! फिर उन्हें 14 वर्ष वनवास होगा और फिर वनवास के आखिरी वर्ष माता जानकी का हरण होगा तब उनकी खोज में वे यहां आएंगे! तुम उन्हें कहना "आप सुग्रीव से मित्रता कीजिये उसे आतताई बाली के संताप से मुक्त कीजिये आपका अभिष्ट सिद्ध होगा! और आप रावण पर अवश्य विजय प्राप्त करेंगे!"

शबरी एक क्षण किंकर्तव्यविमूढ़ हो गई! अबोध सबरी इतनी लंबी प्रतीक्षा के समय को माप भी नही पाई! 
वह फिर अधीर होकर पूछने लगी "इतनी लम्बी प्रतीक्षा कैसे पूरी होगी गुरुदेव!"

महर्षि मतंग बोले " वे ईश्वर हैं अवश्य ही आएंगे! यह भावी निश्चित हैं"
लेकिन यदि उनकी इच्छा हुई तो काल दर्शन के इस विज्ञान को परे रखकर वे कभी भी आ सकते हैं! लेकिन आएंगे अवश्य"
जन्म मरण से परे उन्हें जब जरूरत हुई तो प्रह्लाद के लिए खम्बे से भी निकल आये थे! इसलिए प्रतीक्षा करना ! वे कभी भी आ सकते हैं!
तीनों काल तुम्हारे गुरु के रूप में मुझे याद रखेंगे! शायद यही मेरे तप का फल हैं ।

शबरी गुरु के आदेश को मान वहीं आश्रम में रुक गई
उसे हर दिन प्रभु श्रीराम की प्रतीक्षा रहती थी । वह जानती थी समय का चक्र उनकी उंगली पर नाचता हैं वे कभी भी आ सकतें हैं 
हर रोज रास्ते मे फूल बिछाती हर क्षण प्रतीक्षा करती!
कभी भी आ सकतें हैं 
हर तरफ फूल बिछाकर हर क्षण प्रतीक्षा!  शबरी बूढ़ी हो गई !!
लेकिन प्रतीक्षा उसी अबोध चित्त से करती रही 
और एक दिन उसके बिछाए फूलों पर प्रभु श्रीराम के चरण पड़े!
शबरी का कंठ अवरुद्ध हो गया!
आंखों से अश्रुओं की धारा फूट पड़ी! 
गुरु का कथन सत्य हुआ! भगवान श्री राम उसके घर आ गए! 
शबरी की प्रतीक्षा का फल ये रहा कि जिन राम को कभी तीनों माताओं ने जूठा नही खिलाया उन्ही राम ने शबरी का जूठा खाया! शबरी भाव विभोर हो कर पहले स्वयं बेर चखती और मीठे होनें पर श्रीराम को अर्पित करती । लगभग 17.5 लाख वर्ष पूर्व घटी यह घटना आज भी हिंदुत्व में अंतिम व्यक्ति के सर्वोच्च सम्मान की प्रेरणा दे रही है ।
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आज की दीपावली में अयोध्या को देखकर वही भाव उमड़ आया जो कभी शबरी के आश्रम में श्रीराम को देखकर शबरी के ह्रदय में उमड़ा था ,  इस जन्म में अयोध्या की भव्यता देखकर निःशब्द हूँ 
किसका धन्यवाद करूँ !  मोदी जी का ! सुप्रीम कोर्ट का! या जाग्रत होते हिंदुत्व का! या उनका जो इस भव्यता के लिये खुद को आहूत कर गये!

ये मेरे जीवन की सबसे बेहतरीन दीपावली हैं 🙏

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