सुप्रीम कोर्ट की अनुकरणीय पहल, सभी न्यायालयों को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए




🇮🇳 राष्ट्रीय नीति सिफारिश पत्र (Comprehensive Policy Recommendation Paper)

विषय: मानवीय दृष्टिकोण पर आधारित मुआवजा, आश्रित सहायता एवं न्यायिक-प्रशासनिक सुधार संबंधी नीति

(संयुक्ता देवी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया, 2025 – सुप्रीम कोर्ट निर्णय के आलोक में)

🔹 भूमिका

सुप्रीम कोर्ट द्वारा संयुक्ता देवी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2025) में दिया गया निर्णय न केवल एक व्यक्ति को न्याय दिलाने का उदाहरण है, बल्कि यह भारत की न्याय व्यवस्था में मानवीय दृष्टिकोण के पुनर्स्थापन का प्रतीक है।
यह मामला दर्शाता है कि प्रशासनिक असावधानी, तकनीकी त्रुटियाँ और लंबी प्रक्रिया अक्सर पीड़ितों और मृतक आश्रितों को वर्षों तक न्याय से वंचित रखती हैं।

अतः यह आवश्यक है कि ऐसी घटनाओं — चाहे वह रेल हादसा हो, सड़क दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा, औद्योगिक दुर्घटना या अन्य अप्रत्याशित मृत्यु — सभी में राज्य एवं न्यायिक संस्थाएँ मानव-केंद्रित दृष्टिकोण (Human-Centric Approach) अपनाएँ।

🔹 नीति के उद्देश्य

1. मृतक, उसके आश्रितों, और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए समयबद्ध एवं संवेदनशील मुआवजा सुनिश्चित करना।

2. मुआवजा और सहायता तंत्र को डिजिटल, पारदर्शी और जवाबदेह बनाना।

3. पीड़ित पक्ष की खोज, पहचान, सत्यापन और भुगतान की प्रक्रिया को व्यवस्थित व एकीकृत करना।

4. न्यायिक संस्थानों में मानवीय दृष्टिकोण को संविधानिक मूल्य के रूप में स्थापित करना।

⚖️ मुख्य नीतिगत अनुशंसाएँ (Major Policy Recommendations)

1. एकीकृत राष्ट्रीय “मुआवजा एवं सहायता पोर्टल” (National Compensation & Assistance Portal)

रेल, सड़क, आपदा, बीमा, औद्योगिक दुर्घटना आदि सभी मामलों का समेकित डिजिटल पोर्टल बने।

सभी दावों में निम्न जानकारी अनिवार्य रूप से दर्ज हो:

लाभार्थी का आधार नंबर, मोबाइल नंबर, ईमेल, और बैंक खाता विवरण,

स्थायी पता, वर्तमान पता, पुलिस थाना,

वार्षिक अद्यतन (Annual Update) की बाध्यता — प्रत्येक वर्ष संबंधित विभाग लाभार्थी से अद्यतन विवरण प्राप्त करे।

पोर्टल में लाभार्थी को अपने दावे की स्थिति देखने की सुविधा हो।

2. मृतक एवं मृतक आश्रित सहायता प्रणाली (Deceased & Dependents Assistance System)

प्रत्येक जिला स्तर पर “मृतक सहायता प्रकोष्ठ (Deceased Assistance Cell)” गठित हो, जिसमें निम्न सदस्य हों:

एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी (संयोजक),

विधिक सेवा प्राधिकरण का प्रतिनिधि,

सामाजिक न्याय विभाग का अधिकारी,

ग्राम पंचायत / वार्ड समिति का प्रतिनिधि।

यह प्रकोष्ठ दुर्घटना या मृत्यु के बाद स्वतः संज्ञान लेकर लाभार्थी की खोज, पहचान और मुआवजा प्रक्रिया आरंभ करे।

पुलिस जांच रिपोर्ट में मृतक के आश्रितों की स्थिति, संपर्क और पते का उल्लेख अनिवार्य किया जाए।

3. मानवीय दृष्टिकोण आधारित न्यायिक प्रक्रिया

सभी क्लेम ट्रिब्यूनलों, लोक अदालतों, और निचली अदालतों को निर्देशित किया जाए कि —

तकनीकी या दस्तावेजी कमी के आधार पर दावा खारिज न करें।

पीड़ित या आश्रितों को सहायता करने हेतु न्यायालय स्वयं संबंधित प्राधिकरण या पुलिस से रिपोर्ट मंगवाने का अधिकार प्रयोग करे।

न्यायाधीशों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में “मानवीय न्याय, सामाजिक संवेदनशीलता और विलंबित न्याय के प्रभाव” को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए।

4. ब्याज दर और दंड का पुनर्निर्धारण

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय की भावना के अनुरूप ब्याज दर को न्यूनतम 8% प्रति वर्ष निर्धारित किया जाए।

इसका औचित्य:

विभाग या संस्था द्वारा रोकी गई राशि पर वह वित्तीय लाभ (interest income) अर्जित करता है।

इसलिए लाभार्थी को वास्तविक आर्थिक हानि की भरपाई हेतु ब्याज दर न्यूनतम 8% होनी चाहिए।

यदि भुगतान में तीन वर्ष से अधिक देरी होती है तो ब्याज स्वतः 10% प्रति वर्ष हो जाए।

अत्यधिक विलंब या लापरवाही पाए जाने पर संबंधित अधिकारी पर विभागीय दंडात्मक कार्यवाही अनिवार्य की जाए।

5. सार्वजनिक सूचना और अनुपालन रिपोर्टिंग

सभी विभागों को यह सुनिश्चित करना होगा कि मुआवजा संबंधित नोटिस स्थानीय भाषा और अंग्रेजी दोनों में प्रमुख अख़बारों तथा पंचायत सूचना पट्ट पर प्रकाशित हों।

सूचना में आवश्यक दस्तावेजों की सूची और संपर्क अधिकारी का विवरण दिया जाए।

संबंधित विभाग को 4 सप्ताह के भीतर अनुपालन रिपोर्ट न्यायालय / ट्रिब्यूनल को प्रस्तुत करनी होगी।

6. विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA/SLSA/DLSA) को संवैधानिक रूप से सशक्त बनाना

NALSA को यह शक्ति दी जाए कि वह ऐसे मामलों का स्वतः संज्ञान लेकर न्यायालय या प्रशासनिक प्राधिकरण से स्पष्टीकरण मांगे।

प्रत्येक राज्य में वार्षिक “न्यायिक सहायता एवं मुआवजा निगरानी रिपोर्ट” प्रकाशित की जाए।

विधिक सेवा प्राधिकरण को डिजिटल पोर्टल से जोड़ा जाए ताकि लाभार्थियों को स्वतः सहायता मिल सके।

7. डेटा संकलन और सामाजिक ऑडिट

प्रत्येक वर्ष राज्य सरकार द्वारा “मृतक एवं आश्रित सहायता वार्षिक प्रतिवेदन” तैयार किया जाए।
इसमें दुर्घटना/आपदा से मृतकों की संख्या, भुगतान की गई राशि, लंबित मामले और उनके कारणों का उल्लेख हो।
इस रिपोर्ट का सामाजिक ऑडिट स्वतंत्र एजेंसी से कराया जाए।

8. ग्राम एवं शहरी स्तर पर नागरिक सहभागिता

पंचायत स्तर पर “न्याय सहायक समिति” गठित की जाए जो
दुर्घटनाओं की सूचना स्थानीय प्रशासन तक पहुंचाए,
आश्रित परिवारों को सहायता दिलवाने में सहयोग करे।
शहरी क्षेत्रों में नगर निगम स्तर पर “नागरिक सहायता डेस्क” बनाई जाए।

📊 अपेक्षित परिणाम (Expected Outcomes)

1. लाभार्थियों को समय पर न्याय और आर्थिक सहायता प्राप्त होगी।

2. विभागीय पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ेगी।

3. मुआवजा प्रक्रिया मानव-केंद्रित, तकनीकी रूप से सक्षम और विश्वसनीय बनेगी।

4. समाज में न्यायपालिका और प्रशासन के प्रति विश्वास सुदृढ़ होगा।

📜 निष्कर्ष

सुप्रीम कोर्ट के संयुक्ता देवी निर्णय ने यह सिद्ध किया कि —

> “न्याय तब पूरा होता है जब उसे पाने वाला व्यक्ति वास्तव में उसका अनुभव कर सके।”

इस नीति के क्रियान्वयन से भारत की न्याय प्रणाली अधिक संवेदनशील, उत्तरदायी और मानवीय बनेगी, और कोई भी विधवा, आश्रित या गरीब नागरिक प्रक्रिया के बोझ तले न्याय से वंचित नहीं रहेगा।


📅 प्रस्तावित तिथि: 23 अक्टूबर 2025
✍️ तैयारकर्ता: [आपका नाम]
🏛️ प्रेषक हेतु:

न्याय मंत्रालय, भारत सरकार
रेल मंत्रालय
राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA)
राज्य सरकारें एवं विधिक सेवा प्राधिकरण 


विधवा को ढूंढने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लिया ये फैसला, 23 साल बाद 6 पर्सेंट ब्याज के साथ मिलेगा मुआवजा

सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के एक ट्रेन हादसे में अपने पति को खो चुकी संयुक्ता देवी को 23 साल बाद मुआवजा दिलाया। कोर्ट ने रेलवे को उन्हें ढूंढकर मुआवजा देने का आदेश दिया, क्योंकि पहले ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने दावा खारिज कर दिया था। कोर्ट ने रेलवे को 4 लाख रुपये का मुआवजा 6% ब्याज के साथ देने का आदेश दिया। पुलिस और रेलवे ने मिलकर संयुक्ता देवी को खोज निकाला।

महिला को ढूंढने की कोशिशें
जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने संयुक्ता को ढूंढने के लिए विशेष कदम उठाए। कोर्ट ने पूर्वी रेलवे को हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख अखबारों में सार्वजनिक नोटिस छपवाने का आदेश दिया। इसमें मुआवजे की जानकारी और जरूरी दस्तावेज जैसे आधार कार्ड और बैंक खाता विवरण जमा करने का जिक्र था।

नालंदा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और बख्तियारपुर पुलिस स्टेशन के SHO को संयुक्ता का पता लगाने और उन्हें मुआवजे की जानकारी देने को कहा गया। साथ ही, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को उनके अंतिम ज्ञात पते पर जाकर उनकी स्थिति की जांच करने और चार सप्ताह में रिपोर्ट देने का निर्देश दिया गया।

पुलिस ने संयुक्ता को खोज निकाला
इस महीने अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बृजेंद्र चहर ने कोर्ट को बताया कि गलत गांव का नाम दर्ज होने के कारण संयुक्ता तक कोई पत्र नहीं पहुंच सका। रेलवे और पुलिस की मेहनत से सही गांव का पता चला और संयुक्ता और उनके परिवार को ढूंढ लिया गया।

कोर्ट ने रेलवे को स्थानीय पुलिस की मदद से मुआवजा राशि संयुक्ता के बैंक खाते में जमा करने का आदेश दिया। स्थानीय SHO को रेलवे अधिकारियों के साथ जाने और ग्राम पंचायत के सरपंच की मौजूदगी में उनकी पहचान सुनिश्चित करने को कहा गया। कोर्ट ने अनुपालन रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया और मामले की अगली सुनवाई 24 नवंबर को तय की है।

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