कांग्रेस फिर से ‘परजीवी पार्टी’ साबित हुई
कांग्रेस फिर से ‘परजीवी पार्टी’ साबित हुई
-अरविन्द सिसोदिया
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बिहार की राजनीति में इन दिनों जो दृश्य देखने को मिल रहा है, वह कांग्रेस की कमजोर होती स्थिति का ताजा प्रमाण है। इंडी गठबंधन की हालिया प्रेस वार्ता में मंच पर तेजस्वी यादव का बड़ा चित्र प्रमुखता से लगा था, लेकिन राहुल गांधी या किसी अन्य कांग्रेस नेता का चेहरा वहां लगे बेक ड्रो में नजर नहीं आया।
कार्यक्रम में तेजस्वी को गठबंधन का नेता और गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा भई बताया गया। जिसका कांग्रेस विरोध कर रही थी। वहीं उपमुख्यमंत्री चेहरा भी एक अन्य दल के व्यक्ति को घोषित कर दिया गया है। इस दृश्य ने साफ संकेत दिया कि कांग्रेस अब बिहार की राजनीति में नेतृत्वकर्ता नहीं, बल्कि मामूली सहायक दल बनकर रह गई है।
यह स्थिति केवल बिहार तक सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के गठबंधन में होनें के बावजूद उन्होंने कांग्रेस को प्रदेश में स्वीकार नहीं किया। वहाँ कांग्रेस सिमटती चुकी है ।
पंजाब में भी इंडी गठबंधन की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया है, उसकी जमीन खिसका दी। अब वही कहानी बिहार में दोहराई जा रही है। क्योंकि राहुल गाँधी नें तेजस्वी को कई बार अपमानित किया, मुख्यमंत्री घोषित करने से बचते रहे। दिल्ली मिलने गये तो समय नहीं दिया,। अर्थात कांग्रेस किसी न किसी क्षेत्रीय दल के सहारे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने तक़ सीमित हो गई है।
दरअसल, कांग्रेस का यह पतन अचानक नहीं हुआ। मूलतः कांग्रेस नेतृत्व इटालियन अंग्रेजों के नीचे दवा हुआ है, वे कांग्रेस के पूर्व नेतृत्व के कारण अभी तक़ बनी हुई है, किन्तु जब से राहुल गाँधी को अगला पीएम बनाने में लगे हैँ तभी से ज़नाधार खो रहे हैँ। बीते एक दशक में पार्टी लगातार नेतृत्वहीनता, संगठनात्मक कमजोरी और वैचारिक भ्रम का शिकार रही है। राहुल गांधी की छवि जनता के बीच अब तक अपरिपकव नेता के रूप में स्थापित हो गई है। उनके बेतुके बयानों नें उन्हें बहुत नुकसान पहुँचाया है। उनकी छवि कोई स्पष्ट दिशा तय नहीं कर पाई है। परिणाम यह है कि कांग्रेस अब अपने दम पर संघर्ष करने के बजाय गठबंधन के सहारे सत्ता तक पहुंचने की कोशिश कर रही है।
राजनीति में जब कोई दल अपनी ताकत खुद के बजाय दूसरों के कंधे पर टिका दे, तो वह धीरे-धीरे अपनी पहचान खो देता है। कांग्रेस की मौजूदा स्थिति बिल्कुल वैसी ही है। बिहार की प्रेस वार्ता इसका ताजा उदाहरण बनी, जहां तेजस्वी यादव का चेहरा सब पर भारी रहा और कांग्रेस हाशिए पर दिखाई दी।
बंगाल, पंजाब और अब बिहार—तीनों राज्यों में घटनाक्रम यही बताता है कि कांग्रेस अब वह राष्ट्रीय दल नहीं रही जो राजनीति को दिशा देती थी। आज वह ऐसी पार्टी बन चुकी है जो दूसरों के सहारे चल रही है। इसे राजनीतिक दृष्टि से ‘परजीवी’ कहा जा सकता है। ऐसी पार्टी जो अपनी ऊर्जा किसी और से उधार लेती है, पर स्वयं कुछ पैदा नहीं कर पाती।
कांग्रेस यदि सचमुच पुनर्जीवित होना चाहती है, तो उसे दूसरों की बैसाखियों से उतरकर अपने पैरों पर खड़ा होना होगा। जनता की नब्ज़ समझनी होगी, कार्यकर्ताओं में भरोसा जगाना होगा और नेतृत्व को स्पष्ट करना होगा। वरना आने वाले समय में कांग्रेस इतिहास के पन्नों में उस दल के रूप में दर्ज होगी जिसने अपनी वैचारिक ताकत खो दी और दूसरों की छाया में खुद को भुला दिया।
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