युवा क्रान्तिकारी डॉ केशव बलिराम हेडगेवार RSS

युवा क्रान्तिकारी डॉ केशव बलिराम हेडगेवार
                        प्रो गीताराम शर्मा, कोटा
                   

कोई छोटा सा मेघखण्ड कथमपि विराट सूर्यमण्डल को तो नहीं ढक सकता लेकिन जिसकी आंखें मेघखण्ड से ढकी हों और उसे अमित तेजस्वी सूर्य दिखाई नहीं दे तो उससे सूर्य का तेज तो कम नहीं हो जाता |ऐसी ही मन:स्थिति तब होती है जब स्वतन्त्रता आन्दोलन में डॉ बलिराम हेडगेवार और संघ की भूमिका से पूर्णत: अनभिज्ञ किन्तु हठात् ज्ञानाभिमानपोषी कुतर्क यदा कदा सुनायी देते हैं |स्वतन्त्रता आन्दोलन की समग्र चर्या के अध्येता सम्यक् प्रकार से यह जानते हैं कि डॉ केशव बलिराम हेडगेवार में राष्ट्र भक्ति के संस्कार मानो जन्मजात ही अनुस्यूत थे जो स्वतंत्रता आन्दोलन का संसर्ग पाकर विराट रुप में प्रस्फुटित होने लगे थे | कुछ प्रतिनिधि घटनाओं से उनके स्वातन्त्र्य चेतना विषयक संस्कारों से साक्षात् संभव है यथा- 22 जून 1897 की घटना है जब ब्रिटेन की महारानी विक्टोरिया के राज्यारोहण के साठ वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष में आयोजित उत्सवों में परतन्त्र भारत के विद्यालयों में मिठाई बांटी जा रही थी|ऐसी ही मिठाई जब 9 वर्षीय बालक केशव के विद्यालय मेंं बांटी गयी तो केशव ने स्वयं को मिली मिठाई इस प्रतिक्रिया के साथ फेंक दी कि -"यह हमारी महारानी नहीं है इसलिए उनके उत्सव मिठाई हमें क्यो? |" इसी तरह 1901 में इग्लैंड के राजा एडवर्ड सप्तम के राज्यारोहण के अवसर पर राजनिष्ठ लोगों ने देश के अन्य भागों की तरह नागपुर में भी आतिशबाजी का आयोजन किया था |इस कार्यक्रम को देखने के लिए उतावले मित्रों को बाल केशव ने यह समझाते हुए रोका कि -" विदेशी राजा का राज्यारोहण उत्सव मनाना हमारे लिए शर्म की बात है |बचपन में जिन दिनों विद्यार्थी केशव के मन को छत्रपति शिवाजी की संकल्प शक्ति, शौर्य, राष्ट भक्ति के गुण उत्तरोत्तर राष्ट्र प्रेम की ओर प्रेरित कर रहे थे उन्हीं दिनों नागपुर के सीताबर्डी के किले के ऊपर इंग्लैंड के ध्वज ' यूनियन जैक' को फहरता देख बाल केशव के मन ने शिवाजी की गुरिल्ला युद्ध पद्धति के प्रयोग की ठान ली और अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर लगभग दो किमी लम्बी सुरंग खोद डाली लेकिन यूनियन जैक तक पहुँचने से पूर्व ही भेद खुल जाने पर बुजर्गों ने डांट डपट कर भगा दिया |इस घटना का उल्लेख उनके चाचा मोरेश्वर हेडगेवार ने इस तरह किया है कि -"जिस उम्र में अन्यान्य बालक खेलने कूदने में मस्त रहते हैं, उसी आयु में अंग्रेजों को निकाल बाहर करने का यह उद्देश्य पूर्ण होने से पूर्व ही सेनापति अपने छोटे से गुरिल्ले दल के साथ घर वालों द्वारा बंदी बना लिया गया | केशव का बचपन जैसे जैसे बीत रहा था वैसे वैसे देशभक्ति का ज्वार भी मन में और अधिक आवेग से हिलोरे लेने लगा| कम उम्र में ही तिलक जी द्वारा उन दिनों प्रकाशित किये जा रहे तथा मध्य प्रान्त में पूरे आवेग से राष्ट्र भक्तिपूर्ण वैचारिक क्रांति के धवज वाहक केसरी और मराठा नामक समाचार पत्रों के वे नियमित पाठक थे | 19 वीं शताब्दी के प्रारम्भ में ही तिलक जी के प्रभाव से नागपुर राष्ट्रवादी आन्दोलनों के क्षितिज पर स्पष्टता से उभरने लगा था | 1902 में तिलक जी के भाषण सुनकर पहले से ही श्रद्धान्वित किशोर केशव बलिराम हेडगेवार का मन और अधिक राष्ट्र भाव से भर उठा |उभरते हुए राष्ट्रवादी परिवेश में जन मानस में श्रद्धा के केन्द्र शिवाजी की वीरता, राष्ट्रवादी विचार और समर्थ गुरु रामदास के शिक्षाप्रद उपदेशों ने हेडगेवार के मन को राष्ट्रोन्मुखी बनाने और क्रान्तिकारी आन्दोलनों की ओर खूब प्रेरित किया | राष्ट्र भक्त डॉ बी.एस. मुंजे के सानिध्य में उन्होंने 1904 में बम बनाने की विधि सीखी|1905 में बंगाल विभाजन के समय मुंजे ने विद्यार्थी समाज नामक संगठन का गठन कर उससे विद्यार्थियों को जोड़ने का दायित्व हेडगेवार को ही दिया|इसी समय स्वदेशी विचार एवं उद्योग विस्तार के लिए स्थापित तिलक पैसा फण्ड एवं प्रसिद्ध क्रांतिकारी पी.एस.खानखोजे द्वारा स्थापित आर्यबान्धव वीथिका आदि संस्थाओं के लिए धन संग्रह और वैचारिक प्रचार प्रसार के लिए प्रतिबद्ध होकर कार्य किया |बंग विभाजन के बाद राजनीतिक आन्दोलनों में बढ़ती हुयी विद्यार्थियों की बढ़ती हुयी सहभागिता से चिन्तित सरकार ने रिस्ले सर्कुलर द्वारा न केवल राजनैतिक आन्दोलनों और गतिविधियों में विद्यार्थियों की सहभागिता को प्रतिबन्धित कर दिया अपितु वन्दे मातरम् जैसे नारे लगाना भी दण्डनीय अपराध घोषित कर दिये |इसी प्रतिबन्धित अवधि में 1907 में केशव के नील सिटी स्कूल में वार्षिक निरीक्षण हेतु विद्यालय निरीक्षक का आगमन हुआ|जैसे ही निरीक्षक केशव की कक्षा में गये वैसे ही पहले से योजनाबद्ध कक्षा के सभी छात्रों ने सामूहिक रुप से वन्देमातरम् के साथ जोशीला स्वागत किया |इस अप्रत्याशित घटना से विद्यालय के वातावरण में मानो भूचाल ही आ गया|विद्यालय की प्रबन्ध समिति के चेयरमेन सर विपिन कृष्ण बोस के खूब समझाने पर भी जब विद्यार्थियों ने इस घटना के लिए माफी नहीं मांगी तो बोस ने कक्षा के सभी विद्यार्थियों का निष्कासित कर दिया|प्रतिक्रिया में विद्यार्थियों की दो माह हड़ताल चली, जुलूस, विरोध प्रदर्शन हुए |अन्तत: माता पिता और शिक्षकों के दबाव में अन्य छात्रों ने तो माफी मांग ली लेकिन केशव ने माफी मांगने से स्पष्ट मना करते हुए कहा कि -" अगर मातृभूमि की आराधना अपराध है तो मैं यह अपराध एक नहीं अनगिनत बार करुंगा और इसके लिए मिलने वाली सजा को भी सहर्ष स्वीकार करुंगा |इस घटना से केशव का विद्यालय से निष्कासन तो हुआ किन्तु वे एक लोकप्रिय युवा नेता के रुप में पहचाने जाने लगे साथ ही सरकारी अधिकारियों, यूरोपीय लोगों एवं राष्ट्र भक्तों के लिए भय और चिन्ता का वातावरण बना|उम्र बढ़ने के साथ ही हेडगेवार की क्रांतिकारी गतिविधियों में संलिप्तता और समवयस्क युवकों को संगठित करने की क्षमता उत्तरोत्तर बढ़ रही थी |हेडगेवार ने 1908 में पुलिस चौकी पर बम फेंका जो पास के किसी तालाब में गिरा यद्यपि पर्याप्त प्रमाण के अभाव में इस घटना के लिए कोई मुकदमा उन पर नहीं चलाया जा सका लेकिन इस घटना के दो माह बाद ही निकट के गांव में दशहरे के अवसर पर प्रतिवर्ष होने वाले रावण दहन और सीमोलल्लंघन के कार्यक्रम को अंग्रेजी दासता से जोड़ते हुए जोशीला भाषण दिया कि - "आज हम अनेक प्रकार की सीमाओं से बंधे है, उन्हें पार करना हमारा कर्तव्य है |सबसे बड़ी पीड़ा दायक और शर्मनाक बात हमारा परतंत्र होना है |परतंत्र रहना सबसे बड़ा अधर्म है |पापियों एवं परायों का अन्याय सहना भी पाप है| अत: आज विदेशी दासता के विरुद्ध खड़े होना, अंग्रेजों को सात समुद्र पार भेज देना ही सीमोल्लंघन का वास्तविक अर्थ होगा | रावण वध का आज तात्पर्य अंग्रेजी राज का अंत करना है|" उन्होंने इस अवसर पर युवकों के साथ सामूहिक वन्देमातरम गाया|गुप्तचरों की सूचना पर इस घटना के कारण वे गिरफ्तार हुए | पर्याप्त दबाब के बाद भी उन्होंने इस घटना के माफी मांगने से स्पष्ट इनकार कर अंग्रेजी सत्ता को स्पष्ट और कड़ा सन्देश दिया |इस घटना के कारण स्कूल से निष्कासित कर दिये गये लेकिन सत्याग्रही और सत्वाभिमानी युवा निन्दा- स्तुति, सफलता- असफलता की परवाह किये बिना ध्येय पथ से किंचित् भी विचलित नहीं होते इसी पथ के अनुयायी केशव की न विद्योपार्जन की गति थमी और न क्रांतिकारी गतिविधियां मन्द हुयीं | लोक मान्य तिलक, महर्षि अरविन्द, डॉ मुंजे की योजनानुसार यवतमाल की राष्ट्रीय शाला से उन्होंने दसवीं की परीक्षा अच्छे प्रतिशत से उत्तीर्ण कर यह प्रमाणित कर दिया कि स्पष्ट ध्येय, दृढ़ इच्छाशक्ति, प्रबल पराक्रम युक्त, परिश्रम के आगे सभी अवरोध बहुत बौने हो जाते हैं| राष्ट्र भक्ति से दीप्त हृदय युवा हेडगेवार तिलक के संरक्षण में आगे डाक्टरी की पढ़ाई के लिए कलकत्ता चले गये तथा वहां पढ़ाई के साथ साथ अनुशीलन समिति में सक्रिय रहते हुए राष्ट्र व्यापी विप्लव को साकार करने के उद्देश्य में सक्रिय रहने लगे |कलकत्ता की अनुशीलन समिति उस समय की क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए खूब सक्रिय थी | महाराष्ट्र के गुप्त क्रान्तिकारियों की गतिविधियों को बंगाल की अनुशीलन समिति से जोड़कर सशक्त बनाने में हेडगेवार की सक्रियता सेतु बन गयी |यद्यपि डॉक्टरी की पढ़ाई के लिए नागपुर से कलकत्ता प्रस्थान करते समय हेडगेवार के पास डॉ. मुंजे द्वारा दिये गये परिचय पत्र के अतिरिक्त बहुत कुछ नहीं था लेकिन सफलता सत्व में संनिहित होती है संसाधनों में नहीं जैसे सात्विक विचारों के आलोक में अनेक अभावों के बीच भी उनकी स्वतन्त्रता की अदम्य आकांक्षा कभी दमित नहीं हो सकी |जैसी भवितव्यता वैसा ही संयोग यह लोकोक्ति तब साकार हुयी जब कलकत्ता के प्रसिद्ध नेशनल मैडीकल कॉलेज में केशव बलिराम को प्रवेश मिला | एकत: तो इस कालेज की समग्र शैक्षिक और प्रबन्धकीय संरचना राष्ट्र भक्ति और क्रान्तिकारी गतिविधियों के अनुकूल थी द्वितीयत: हेडगेवार के मन में क्षणभर के लिए भी अविस्मरणीय 1857 जैसी महाक्रान्ति का पर्यावरण निर्माण की अदम्य आकांक्षा |इस संयोग का सुपरिणाम यह हुआ कि हेडगेवार की मित्रता और सर्वसमावेशी स्वभाव से नेशनल मैडिकल कॉलेज में अन्य प्रान्तों से अध्ययनार्थ आये हुए युवा छात्र अनुशीलन समिति से सहजता से जुड़ने लगे |यह वह सुयोग था जब एक तरफ अनुशीलन समिति में अनेक युवाओं के जुड़ने से महाविप्लव की आधार पीठ निर्मित हो रही थी तो दूसरी ओर डॉ आशुतोष मुखर्जी, मोती लाल घोष, विपिन चन्द्र पाल, रासबिहारी बोस जैस राष्ट्र भक्तों से हेडगेवार की घनिष्ठता उत्तरोत्तर समृद्ध हो रही थी |इस सुयोग का वर्णन करते हुए हरदास ने लिखा है कि -"हेडगेवार ने अपने सात्विक चरित्र ,प्रतिबद्धता और असाधारण संगठन कौशल से नौजवान क्रांतिकारियों का दिल जीत लिया था, और उनके प्रति भक्ति भाव रखने वाले देशभक्तों की एक बड़ी जमात थी |"अपने जुझारू व्यक्तित्व और लोकसंग्रही प्रवृत्ति के कारण हेडगेवार बंगाल और अन्य प्रान्तों में चल रही क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए सेतु थे |मुख्य रुप से मध्य प्रान्त के क्रान्तिकारियों से समन्वय और हथियार पूर्ति में हेडगेवार की भूमिका असाधारण थी |क्रान्तिकारी आन्दोलनों के साथ उन्होंने बंगाल के दो जन आन्दोलनों में सक्रिय सहभागिता की|1911 का दिल्ली दरबार बहिष्कार आन्दोलन, 1914 में सरकार द्वारा राष्ट्रीय मेडीकल कॉलेज की डिग्री न मानने की नीति के विरुद्ध जनमत तैयार करने के लिए आन्दोलन ,इसी तरह के अनुशीलन समिति और वैसी ही अन्य समितियों के आन्दोलनों में अपनी प्रत्यक्ष सक्रियता के साथ साथ युवकों के एक समूह को राष्ट्र भक्ति, सामाज सुधार के अनेक प्रकल्पों से जोड़ते हुए वे सफल सक्रिय युवा क्रान्तिकारी की भूमिका में थे| इस प्रकार पांच वर्ष तक अनुशीलन समिति में सक्रिय रहते हुए डॉक्टर की डिग्री के साथ साथ मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण के संकल्प के साथ 1915 में वे नागपुर लौटे |नागपुर आकर धनार्जन की विपुल संभावनाओं की उपेक्षा कर मातृ भूमि की आराधना को एक मात्र जीवन ध्येय मानकर आजीवन अविवाहित रहकर देश सेवा के लिए संकल्पित डॉ हेडगेवार 1857 से भी बड़ा महासमर खड़ा करने की योजना में थे |इधर द्वितीय विश्वयुद्ध में अपनी संभावित पराजय से घबड़ाये अंग्रेजों के झांसे में आकर कांग्रेस के दोनों गुटों का अंग्रेजों के विरुद्ध रुख थोड़ा नरम किया लेकिन डॉ हेडगेवार इससे सहमत नहीं थे | इस परिस्थिति का भारत की स्वतंत्रता के लिए सशक्त सशस्त्र क्रान्ति कामना से उन्होंने अनेक प्रान्तों की यात्राएँ कर युवकों को संगठित किया |स्वतन्त्रता की आकांक्षा से आपूरित हृदय डॉ हेडगेवार की किसी नेता, संगठन अथवा व्यक्ति के प्रति सम्बन्ध की भी एक मात्र कसोटी उनके द्वारा मातृभूमि के लिए त्याग, पूर्ण स्वतन्त्रता का समर्थन और निस्वार्थ भाव की देश सेवा ही थी इसलिए लोकमान्य तिलक के प्रति अथाह श्रद्धा होने पर भी प्रथम विश्वयुद्ध के समय तिलक के नरम रुख से वे असहमत थे | डॉ हेडगेवार ने कांग्रेस में रहते हुए बहु आयामी स्वतन्त्रता आन्दोलन में अपनी प्रतिबद्धता पूर्ण सहभागिता की |कांग्रेस के नागपुर अधिवेशन के बाद तो वे कांग्रेस के महत्वपूर्ण नेताओं में गिने जाने लगे | 1921 में वे मध्य प्रान्त के 12 सदस्यों वाले तिलक स्वराज्य फण्ड एवं नागपुर जिला कांग्रेस के लिए चुने गये |साम्राज्यवादी सत्ता के विरुद्ध गांधी जी के नेतृत्व में चलाये जा रहे असहयोग आन्दोलन में अपने व्यक्तिगत सम्बन्ध और असहमतियों का अतिक्रमण कर डॉ हेडगेवार ने गांधी जी का अनुसरण किया |डॉ हेडगेवार के लिए किसी व्यक्ति अथवा विशिष्ट आग्रह से अधिक स्वतन्त्रता प्राप्ति का ध्येय महत्वपूर्ण था |वे सभी राष्ट्रवादी नेताओं, संस्थाओं और आन्दोलन विधियों को एक दूसरे के पूरक मानकर परस्पर सहयोग के पक्षधर थे | नागपुर में असहयोग आन्दोलन को नेतृत्वविहीन करने और कुचलने के लिए सरकार ने मई 1921 में डॉ हेडगेवार सहित अनेक राष्ट्र भक्तों पर राजद्रोह का मुकदमा किया, डॉ हेडगेवार को गिरफ्तार किया गया लेकिन वे तनिक भी विचलित नहीं हुए |न्यायालय में अपनी पैरवी स्वयं कर जमानत लेने से इनकार करते हुए उन्होंने कहा - "मेरी अन्तरात्मा मुझे बताती है कि मैं निर्दोष हूँ|दमन की नीति सरकार की शातिर नीतियों के कारण पहले से ही भड़की आग में केवल ईंधन भरेगी |मुझे विश्वास है कि वह दिन दूर नहीं जब विदेशी शासन अपने पाप पूर्ण, कार्यों का फल भोगेगा |मुझे सर्वव्यापी ईश्वर के न्याय में विश्वास है|इसलिए मैं जमानत के आदेश का पालन करने से इनकार करता हूँ | " इस मुकदमे में उन्हें एक वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुयी, लेकिन वे तनिक भी विचलित नही हुए उनकी प्रतिक्रिया थी- "मातृभूमि की रक्षा करने हेतु जेल तो क्या, काले पानी जाने अथवा फांसी के तख्ते पर लटकने को भी हमें तैयार रहना चाहिए| जेल में रहते हुए भी वे एक क्षण के लिए भी वे स्वातन्त्र्य की आकांक्षा से विरत नहीं हुए | जेल से मुक्त होने के बाद अपने सम्मान में आयोजित समारोह में उन्होंने कहा- "राष्ट्र के सम्मुख सबसे उत्तम एवं श्रेष्ठ लक्ष्य रखना चाहिए ,और पूर्ण स्वतंत्रता की प्राप्ति से कम कोई ध्येय रखना उपयुक्त नहीं होगा |" इस प्रकार स्वतन्त्रता समर के जितने भी सम विषम आयाम हैं उन सबका उल्लेख मात्र भी इस अति सीमित कथ्य में संभव नहीं है लेकिन सब का सारभूत मन्तव्य है कि युवा क्रांतिकारी डॉ बलिराम हेडगेवार पूरा जीवन स्वतंत्रता आन्दोलन के पूर्णत: प्रतिबद्ध और समर्पित रहा | न केवल स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए अपितु स्वतन्त्रता के बाद भी स्व का शाश्वत स्फुरण प्रत्येक भारतीय में देशभक्ति के स्वभाव के रुप में स्थायीलिए बनाने की दृष्टि से उन्होंने 1925 में विजयादशमी के दिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की स्थापना की |वे स्वतंत्रता का उद्देश्य केवल भारत की भौगोलिक स्वाधीनता एवं राजनीतिक सत्ता हस्तान्तरण मात्र तक सीमित रखने के पक्षधर नहीं थे अपितु उनके लिए स्वतन्त्रता का आन्दोलन भारत राष्ट्र के चिर अस्तित्व और अस्मिता बोध का प्रतीक था |इसलिए संघ की स्थापना से पूर्व युवा क्रान्तिकारी एवं बाद में कांग्रेस कार्यकर्ता के रुप में स्वतन्त्रता आन्दोलन में सतत् सक्रिय रहे |संघ की स्थापना का भी उनका उद्देश्य भारत को परम वैभव सम्पन्न पूर्ण स्वतन्त्र राष्ट्र बनाना था जैसा कि श्री दत्तोपन्त ठेंगड़ी ने कहा है कि -" डॉ हेडगेवार संघ को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिए तैयार कर रहे थे, परन्तु उनका लक्ष्य भारत को एक मजबूत, परम वैभवशाली राष्ट्र के रुप में स्थापित करना था और यह कार्य स्वतन्त्रता प्राप्ति के बिना संभव नहीं था |" संघ की स्थापना के बाद भी वे कांग्रेस की कुछ नीतियों से असहमत होते हुए भी स्वतन्त्रता आन्दोलन के सभी महत्वपूर्ण प्रकल्पों में संघ को कांग्रेस का सहयात्री बनाया |फिर चाहे साइमन कमीशन का विरोध हो या 26 जनवरी 1930 सम्पूर्ण भारत में स्वतन्त्रता दिवस मनाने की कांग्रेस की घोषणा हो अथवा सविनय अवज्ञा जैसे बड़े आन्दोलन हों , सभी में डॉ हेडगेवार और संघ दृढ़ता से कांग्रेस के साथ थे |वे ऐसे भव्य भारत के स्वप्न दृष्टा थे जो अपनी शाश्वत सास्कृतिक, सामाजिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक चेतना एवं विश्व वरेण्य ज्ञान विज्ञान के अमृत से विश्वभर में श्रेय और प्रेय का पथप्रदर्शक बने | डॉ हेडगेवार के लिए देशभक्ति का अभिप्राय समय आने पर देशानुराग का प्रदर्शन मात्र नहीं रहा अपितु वे देशभक्ति को ऐसा व्यापक जन्मजात संस्कार मानते थे जो राष्ट्र को सर्वोपरि मानकर उसके लिए सर्वस्व समर्पण के लिए प्रेरित करे |उन्होंने देशभक्ति की दस सूत्रीय कसोटी तय की जिसका उल्लेख डॉ राकेश सिह्ना ने अपनी पुस्तक " डॉ केशव बलिराम हेडगेवार " में इस प्रकार किया है -
देशभक्ति का अर्थ है हम जिस भूमि एवं समाज के लिए जन्मे हैं ,उस भूमि एवं समाज के लिए आत्मीयता और प्रेम| जिस समाज में हमारा जन्म हुआ है उसकी परंपरा एवं संस्कृति के प्रति लगाव एवं आदर| समाज के जीवन मूल्यों के प्रति विवेक पूर्ण निष्ठा |समाज /राष्ट्र के उत्कर्ष विकास के लिए सर्वस्व समर्पण करने के निमित्त उत्स्फूर्त करने वाली प्रेरणा शक्ति| व्यक्ति निरपेक्ष समष्टिनिष्ठ जीवन का पवित्र गंगा प्रवाह |भौतिकताओं से दूर रहकर मातृभूमि और उसकी संतानों की निस्वार्थ सेवा |व्यक्तिगत आकांक्षाओं से अधिक राष्ट्र की आवश्यकताओं एवं अपेक्षाओं को महत्व | मातृभूमि के चरणों में अनन्य, निस्वार्थ ,कर्तव्य कठोर जीवन कुसमों की मादक सुगंध भरना |समाज एवं राष्ट्र को ही सर्वोच्च देवी देवता मानकर उसी की आराधना करना | संपूर्ण समाज में एकात्म भाव का आविष्कार करना |
                                   डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी ने ठीक ही कहा है कि - दुर्वार काल स्रोत सबको बहा देगा |स्वर्णाच्छरों में लिखी पंक्तियाँ भी क्रूर काल के थपेड़ों को बर्दाश्त नहीं कर सकेंगी |वस, वही बचेगा जिसे मनुष्य के हृदय में स्थान प्राप्त होगा |सचमुच डॉ केशव बलिराम हेडगेवार ऐसे ही स्वतन्त्रचेता महापुरुष हैं जिन्हें मनुष्य के हृदय में स्थान प्राप्त है और होगा |जिनका बज्रादपि कठोर और कुसुमादपि कोमल व्यक्तित्व राष्ट्र भक्ति के लिए सदैव अपेक्षित -" सम्पत्तौ च विपत्तौ च महतां एक रुपता " जैसी उदात्त प्रेरणाएँ भरता रहेगा |जिन्होंने आजीवन मातृभूमि की आराधना में अपने निजी सुख दुख की उपेक्षा करते हुए नीति शास्त्र के इस सूत्र को साकार किया कि-
-" मनस्वी कार्यार्थी न गणपति सुखं वा दु:खम्|
अर्थात् मनस्वी ध्येय को देखता है, उसमें आने वाले सुख दु:ख को नहीं |

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