कविता - मानवता के दीप जलाओ
"पाँच दीप मानवता के"
🎶 प्रारंभिक कोरस (सभी मिलकर)
दीप जलाओ, दीप जलाओ,
जीवन में उजियारा लाओ।
स्वस्थ तन, निर्मल मन पाओ,
दीपावली का अर्थ समझाओ। 🌼
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🪔 पहला दीप – निरोगी काया
पहला धन है तन का स्वास्थ्य,
यही अमृत, यही है साध्य।
रोग मिटे जब मन से प्यारे,
जीवन खिल उठे सितारे।
(सहगान)
सेहत में ही सुख समाए,
तन निरोगी दीप जलाए!
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💧 दूसरा दीप – स्वच्छ शरीर
साफ-सुथरा तन है पूजा,
स्वच्छता ही जीवन दूजा।
मैल हटाओ, मन नहलाओ,
हर दिन दीप सरीखा बनाओ।
(सहगान)
शुद्ध तन में मन भी खिले,
स्वच्छ भारत दीप जले!
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💰 तीसरा दीप – धन और साधन
परिश्रम का ही सच्चा धन,
मेहनत से बनता जीवन।
संसाधन हों न्याय के संग,
तभी बचे समाज का रंग।
(सहगान)
कर्म ही धन, कर्म ही दान,
यही है लक्ष्मी का सम्मान!
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🌳 चौथा दीप – पर्यावरण रक्षा
हरियाली है जीवन प्यारा,
पेड़ों से मिलता उजियारा।
प्रकृति की सेवा धर्म बना दो,
धरती को फिर स्वर्ग बना दो।
(सहगान)
पौधे बन दीप जलाओ,
प्रकृति माँ को गले लगाओ!
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👩❤️👨 पाँचवाँ दीप – भाई-बहन का प्रेम
पाँचवाँ धन, निश्छल अपनापन,
भाई-बहन का सच्चा बंधन।
स्नेह की ज्योति, प्रेम का दीप,
यही है जीवन का सुगंधित रूप।
(सहगान)
रिश्तों में विश्वास भरे ,
प्रेम का दीप सदा जले!
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🌺 अंतिम समापन (सभी मिलकर)
पाँच दीप मानवता के,
पाँच रंग सजगता के।
स्वास्थ्य, स्वच्छता, धन, पर्यावरण,
और प्रेम – यही हैं उजियारे क्षण।
(अंतिम कोरस)
दीप जलाओ, दीप जलाओ,
मानवता का संदेश फैलाओ!
सच्चे धन को पहचानो,
दीपावली सच्ची बनाओ! 🌟
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🪔 (समाप्ति – मंद स्वर में)
“दीप जलाओ… प्रेम फैलाओ…
स्वास्थ्य, स्वच्छता, स्नेह बचाओ…”
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