बिहार में भाजपा की पकड़ मज़बूत
बिहार में भाजपा की पकड़ मज़बूत, जनता की पहली पसंद बनती जा रही है भाजपा
अरविन्द सिसोदिया
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मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल और हालिया छह राज्यों में एनडीए की जीत और कांग्रेस की शून्य स्थिति से इंडी गठबंधन की स्थिति और कमजोर हुई है।
1- पहली बात तो यह है की नरेन्द्र मोदीजी की सरकार नें लगातार तीसरीबार अपने आपको रिपीट किया है। चुनावपूर्व का गठबंधन NDA पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटा है। यह 1962 के बाद पहली बार हुआ है।
2- मोदीजी की तीसरी सरकार के कार्यकाल में हुये अभी तक़ के चुनावों में 8 में से 6 में भाजपा गठबंधन जीता है, शेष दो में भी कांग्रेस गठबंधन जीता है किन्तु कांग्रेस वहाँ भी फस्ट नहीं है। अर्थात कांग्रेस जीरो पर ही है, आने वाले बिहार चुनाव में भी वह फस्ट नहीं है।
3- वर्तमान में, भाजपा के सीधे 14 राज्यों में मुख्यमंत्री हैँ और 15 राज्यों में वह सबसे बड़ी पार्टी है। वही भाजपा गठबंधन अभी 20 विधानसभाओं में सत्ता रूढ़ है। वहीं कांग्रेस के मात्र तीन राज्यों में मुख्यमंत्री हैँ, कांग्रेस गठबंधन की बात करें तो 9 विधानसभाओं मे सत्ता रूढ़ हैँ। इस तरह से कांग्रेस ने तीन में न तेरह में है।
बिहार की राजनीति में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लगातार अपनी स्थिति को सुदृढ़ करती जा रही है। 2020 के विधानसभा चुनावों में उल्लेखनीय प्रदर्शन के बाद, अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के तीसरे कार्यकाल में पार्टी और भी आत्मविश्वास के साथ आगे बढ़ रही है। हाल के विधानसभा चुनावों में छह राज्यों में एनडीए की जीत ने यह साबित कर दिया है कि देश के अधिकांश हिस्सों में जनता का रुझान भाजपा के पक्ष में है।
यही प्रवृत्ति बिहार में भी कांग्रेस गठबंधन के लिए एक गंभीर चुनौती बन सकती है।
2020 के चुनावों में भाजपा का उभार
2020 के बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 74 सीटें जीतकर एनडीए में प्रमुख भूमिका हासिल की। उसका वोट प्रतिशत 19.46% से बढ़कर 23.38% तक पहुँच गया। यह उस दौर में हुआ जब राजद, कांग्रेस और जेडीयू का वोट शेयर या तो घटा या स्थिर रहा।
राजद को 75 सीटें, कांग्रेस को 19 सीटें, और जेडीयू को 43 सीटें मिलीं। वोट शेयर के लिहाज से भाजपा ही वह पार्टी थी जिसने अपने मतदाताओं का दायरा लगातार बढ़ाया।
लोक जनशक्ति पार्टी से नए समीकरण का फायदा
2020 में लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) ने अलग होकर चुनाव लड़ा था, जिससे एनडीए को नुकसान पहुँचा और कई सीटें विपक्ष के खाते में चली गईं।
लेकिन इस बार भाजपा और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के बीच तालमेल बन चुका है। इस गठबंधन से न केवल एनडीए का वोट बैंक एकजुट रहेगा, बल्कि दलित और पासवान समाज में भाजपा की पहुँच भी और मज़बूत होगी। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह समझौता एनडीए के लिए सीटों में सीधा लाभकारी साबित हो सकता है।
मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल का प्रभाव
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में तीसरे कार्यकाल के दौरान जिन छह राज्यों में एनडीए ने जीत दर्ज की है, उसने राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की पकड़ को और मजबूत किया है।
यह परिदृश्य बिहार के मतदाताओं पर भी प्रभाव डाल रहा है। कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों की लगातार हार ने जनता के बीच एक धारणा बनाई है कि विपक्ष में कोई स्थायी विकल्प नहीं है। यह मानसिकता बिहार में कांग्रेस गठबंधन के वोट बैंक को और कमजोर कर सकती है।
राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि “राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की सफलता, बिहार में एनडीए के आत्मविश्वास और कांग्रेस गठबंधन की कमजोरी दोनों को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करेगी।”
भाजपा की मजबूती के आधार
भाजपा का सबसे बड़ा बल उसका संगठनात्मक ढांचा और केंद्र की योजनाओं का जमीनी असर है।
उज्ज्वला, प्रधानमंत्री आवास योजना, किसान सम्मान निधि और हर घर जल जैसी योजनाओं ने ग्रामीण और गरीब वर्ग में भाजपा की स्वीकार्यता को बढ़ाया है।
वहीं, बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं की सक्रियता और तकनीकी पहुँच ने उसे एक आधुनिक और संगठित दल की पहचान दी है।
सामाजिक समीकरण और विपक्ष की चुनौती
भाजपा ने जातीय राजनीति की सीमाओं को पार करते हुए सभी वर्गों में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। पिछड़ा, अति पिछड़ा, दलित, युवा और शहरी मध्यमवर्ग — सभी में भाजपा का समर्थन आधार बढ़ा है।
दूसरी ओर, विपक्षी दल — विशेषकर राजद और कांग्रेस — संगठनात्मक असंतुलन और नेतृत्व संकट से जूझ रहे हैं। जेडीयू की भूमिका भी गठबंधन में सीमित होती जा रही है, जिससे भाजपा की राजनीतिक स्थिति और सशक्त होती है।
भविष्य की दिशा स्पष्ट
बिहार की राजनीति के रुझान साफ़ बता रहे हैं कि भाजपा न केवल एनडीए की धुरी बनी हुई है, बल्कि जनता की पहली पसंद के रूप में भी स्थापित हो चुकी है।
एलजेपी से गठबंधन, केंद्र की योजनाओं का प्रभाव, छह राज्यों में एनडीए की जीत और विपक्ष की असंगति — ये सभी कारक मिलकर यह संकेत दे रहे हैं कि आगामी बिहार विधानसभा चुनावों में भाजपा की स्थिति पहले से और अधिक मजबूत होगी।
निष्कर्ष
2020 के चुनावों में मिली सफलता से लेकर मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल तक, भाजपा ने बिहार में अपने जनाधार और संगठन को निरंतर सुदृढ़ किया है।
वहीं, कांग्रेस गठबंधन की लगातार चुनावी पराजय और कमजोर समन्वय ने जनता के मन में उसके प्रति विश्वास को कम किया है।
इन परिस्थितियों में यह कहना उचित होगा कि बिहार में भाजपा ही जनता की पहली पसंद बनती जा रही है, और आने वाले चुनावों में एनडीए की बढ़त लगभग तय मानी जा रही है।
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