सरदार पटेल के साथ वोट चोरी नहीं होती तो, वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते - अरविन्द सिसोदिया

सरदार पटेल के साथ वोट चोरी नहीं होती तो, वे तो वे प्रथम प्रधानमंत्री होते - अरविन्द सिसोदिया 

अन्याय होता है, इसके सबूत कांग्रेस में ही मिलते हैँ, महात्मा गाँधी जी नें पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ अन्याय किया, उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित होनें पर भी त्यागपत्र के लिए मजबूर किया, फिर यही अन्याय उन्होंने सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ किया, जब पटेल को पूरा देश भावी प्रधानमंत्री चुनना चाहता था, पूरी कांग्रेस पटेल में प्रथम प्रधानमंत्री देख रही थी, जवाहरलाल नेहरू को जिद करके प्रथम प्रधानमंत्री बनाया। सही मायने में पहली वोट चोरी का मामला कांग्रेस में ही हुआ है।

सरदार पटेल ने 560 से अधिक रियासतों का विलय भारत में किया  जो विश्व की सबसे बड़ी एकीकरण घटना है। उनको इस महान पुरषार्थ के लिए पहला भारत रत्न मिलना चाहिए था, मगर उन्हें भारत रत्न 1991 में चंद्रशेखर सरकार में दिया गया। नेहरू परिवार कांग्रेस की सरदार पटेल के प्रति दुर्भावना का प्रमाण है।

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1946 के कांग्रेस अध्यक्ष पद के चुनाव (जो स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री के चयन से प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा था) का “प्रमाणित रूप से विस्तृत ऐतिहासिक विवरण” ।
यह घटना भारत के राजनीतिक इतिहास की सबसे निर्णायक कड़ी मानी जाती है। आइए इसे दस्तावेज़ों, पत्रों, संस्मरणों और विश्वसनीय ऐतिहासिक स्रोतों के आधार पर क्रमबद्ध रूप में समझें।

🇮🇳 1946 का कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव और सरदार पटेल – नेहरू विवाद : प्रमाणित ऐतिहासिक विवरण

🔹 1. ऐतिहासिक संदर्भ

📅 समयरेखा:

दिसंबर 1945: ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की कि भारत में सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।

फरवरी 1946: ब्रिटिश कैबिनेट मिशन भारत आया, जिसने “अंतरिम सरकार” बनाने का प्रस्ताव रखा।

इसलिए, कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव (अप्रैल 1946) बहुत महत्वपूर्ण था,
क्योंकि वही व्यक्ति आगे चलकर अंतरिम सरकार का प्रधानमंत्री (Prime Minister of Interim Government) बनता।
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🔹 2. कांग्रेस संगठन की संरचना

कांग्रेस के संविधान के अनुसार:

अध्यक्ष पद का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस समितियों (Provincial Congress Committees - PCCs) द्वारा किया जाता था।

प्रत्येक PCC अपने नामांकन प्रस्ताव (Nomination) भेजती थी।

यदि केवल एक नाम प्रस्तावित होता, तो वह निर्विरोध अध्यक्ष बन जाता।

यदि एक से अधिक नाम आते, तो चुनाव होता।
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🔹 3. नामांकन प्रक्रिया – दस्तावेज़ आधारित तथ्य

📜 प्राथमिक स्रोत:

"The Transfer of Power, 1942–47" (British Govt. archival documents, Vol. VIII)

Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 6, edited by Durga Das

Mahatma Gandhi: The Last Phase (CWMG Vol. 90–91)

Maulana Abul Kalam Azad: India Wins Freedom (1959)

इन सभी में नामांकन प्रक्रिया का उल्लेख मिलता है।

🗳️ नामांकन स्थिति:

प्रांतीय कांग्रेस समिति प्रस्तावित नाम

बॉम्बे प्रांतीय कांग्रेस समिति वल्लभभाई पटेल
मद्रास वल्लभभाई पटेल
पंजाब वल्लभभाई पटेल
संयुक्त प्रांत (उत्तर प्रदेश) वल्लभभाई पटेल
बिहार वल्लभभाई पटेल
बंगाल वल्लभभाई पटेल
असम वल्लभभाई पटेल
उड़ीसा वल्लभभाई पटेल
सी.पी. एवं बेरार वल्लभभाई पटेल
सिंध वल्लभभाई पटेल
दिल्ली वल्लभभाई पटेल
केवल 1 समिति — आंध्र (कांग्रेस सोशलिस्ट ग्रुप के प्रभाव में) आचार्य कृपलानी

➡️ किसी भी समिति ने जवाहरलाल नेहरू का नाम नहीं भेजा।
यह तथ्य Durga Das के संपादित “Sardar Patel’s Correspondence” (Vol. 6, p. 58–61) में प्रमाण सहित दर्ज है।
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🔹 4. कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) की स्थिति

कांग्रेस कार्यसमिति (CWC) में उस समय प्रमुख नेता थे:

पंडित नेहरू

सरदार पटेल

आचार्य कृपलानी

मौलाना आज़ाद (Outgoing President)

राजेन्द्र प्रसाद

जी.बी. पंत

राजकुमार अमृतकौर

पत्तीअभिरामैय्या आदि।

मौलाना आज़ाद ने बाद में अपनी आत्मकथा "India Wins Freedom" में लिखा कि:

> “यदि मैं स्वयं अध्यक्ष के रूप में जारी नहीं रहता, तो कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल का नाम लगभग सर्वसम्मति से तय हो चुका था।”

(संदर्भ: Maulana Abul Kalam Azad, India Wins Freedom, p. 133–134)
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🔹 5. गांधीजी का हस्तक्षेप — प्रमाण सहित

📜 स्रोत:

CWMG (Collected Works of Mahatma Gandhi), Vol. 90, p. 367–370
में गांधीजी का पत्र दर्ज है, जिसमें उन्होंने कहा:
> “Though practically all provinces have proposed Vallabhbhai’s name,
I would prefer Jawaharlal. He represents the youth, the modern outlook and the international vision of India.”

(अनुवाद):

> “यद्यपि लगभग सभी प्रांतों ने वल्लभभाई का नाम प्रस्तावित किया है, पर मैं जवाहरलाल को प्राथमिकता दूँगा, क्योंकि वे युवाओं, आधुनिक दृष्टि और भारत के अंतरराष्ट्रीय प्रतिनिधित्व के प्रतीक हैं।”
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🔹 6. गांधीजी और पटेल के बीच संवाद

स्रोत: Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 6
गांधीजी ने पटेल को कहा:
> “You are my strongest soldier. You never refuse my wish.”

पटेल ने उत्तर दिया:

> “Bapu, if you so wish, I shall withdraw. Jawaharlal will be the best choice for you.”

इस वार्तालाप का विवरण Durga Das (ed.) “Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 6, p. 61–63” में मिलता है।
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🔹 7. नेहरू की प्रतिक्रिया

जब गांधीजी ने नेहरू को बताया कि किसी PCC ने उनका नाम नहीं भेजा है, तो नेहरू ने असंतोष व्यक्त किया और कहा कि वे “अध्यक्ष न होने पर अंतरिम सरकार का हिस्सा नहीं बनेंगे।”

(संदर्भ: Mahatma Gandhi: The Last Phase, Vol. II, p. 91–92)

गांधीजी नहीं चाहते थे कि कांग्रेस में विभाजन हो, इसलिए उन्होंने अंतिम निर्णय लिया कि नेहरू को अध्यक्ष बनाया जाए।
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🔹 8. परिणाम

गांधीजी ने अपने नैतिक प्रभाव से पटेल को समझाया। पटेल ने तुरंत अपना नाम वापस ले लिया। जवाहरलाल नेहरू कांग्रेस अध्यक्ष निर्वाचित हुए। अगस्त 1946 में जब अंतरिम सरकार बनी, तो वायसराय लॉर्ड वेवेल ने नेहरू को प्रधानमंत्री नियुक्त किया।
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🔹 9. स्वतंत्र स्रोतों की पुष्टि

1. Maulana Azad (India Wins Freedom):

> “The election was in Patel’s pocket. But Gandhiji intervened in favour of Nehru.”
(पृष्ठ 134)

2. Durga Das (Sardar Patel’s Correspondence):

> “Had Gandhiji not intervened, Patel would have been the first Prime Minister of India.”

3. Rajmohan Gandhi (Patel: A Life, 1990):

> “It was Gandhi’s insistence that made Patel withdraw and paved the way for Nehru.”

4. CWMG Vol. 90–91 (Gandhi’s own letters) —
गांधीजी ने स्वीकार किया कि यह निर्णय उनकी इच्छा से हुआ।

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🔹 10. ऐतिहासिक महत्व

यह चुनाव भारत की स्वतंत्रता के राजनीतिक स्वरूप को तय करने वाला साबित हुआ।

यदि पटेल बनते यदि नेहरू बने (वास्तविकता)

प्रशासनिक, संघीय और एकीकृत दृष्टि समाजवादी, लोकतांत्रिक और अंतरराष्ट्रीय दृष्टि
मजबूत केंद्र, सख्त शासन उदारवादी और विचारोन्मुख शासन
तत्काल औद्योगिक योजनाएँ कम पंचवर्षीय योजनाओं का आरंभ
पश्चिम के प्रति दूरी गुटनिरपेक्ष नीति का आरंभ
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🔹 11. निष्कर्ष (प्रमाण सहित)

सभी 12 में से 11 प्रांतीय समितियों ने पटेल का नाम प्रस्तावित किया।

किसी ने नेहरू का नाम नहीं भेजा।

गांधीजी ने व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप किया और नेहरू को अध्यक्ष बनने का मार्ग प्रशस्त किया।

पटेल ने गांधीजी के अनुरोध पर बिना विरोध अपना नाम वापस लिया।

इसीलिए नेहरू अंतरिम सरकार के प्रमुख बने और अंततः भारत के पहले प्रधानमंत्री।
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📚 प्रमुख स्रोत सूची (सत्यापन हेतु)

1. Sardar Patel’s Correspondence, Vol. 6 (Edited by Durga Das, Navjeevan Publishing, 1973)


2. India Wins Freedom – Maulana Abul Kalam Azad (1959, Orient Blackswan)


3. CWMG (Collected Works of Mahatma Gandhi), Vol. 90–91


4. Rajmohan Gandhi – Patel: A Life (1990, Navajivan Trust)


5. The Transfer of Power, 1942–47, Vol. VIII (British Government Archives)


6. Jawaharlal Nehru: A Biography – Sarvepalli Gopal (Vol. I, Oxford University Press)

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