सनातन अर्थात हमेशा नयापन


सनातन अर्थात हमेशा नयापन 
सनातन संस्कृति, सनातन जीवन पद्धति, यूँ तो एक अनुसंधान है.. सत्य को जानने की कोशिश है और उसमें से जो उचित प्राप्त हुआ उसे अपना कर आगे बढ़ते रहने की अनुसंधान यात्रा है। जिसमें ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान सम्मिलित है। 

इसमें देवी देवता हैँ, तीज त्यौहार हैँ, व्रत उपवास हैँ, मंदिर मठ प्रतिमायें पूजन अर्चन हैँ, विविध प्रकार के चढ़ावे हैँ , विशेष प्रकार की वस्तुओं का महत्व है , जैसे नरियल, अगरबत्ती, दीपक, तिलक, लच्छा, दीपावली पर साफ सफाई से लेकर आतिशबाजी तक़ है, जो वर्षात के कारण उत्पन्न विष्णुओं से मुक्ती का अभियान भी है। होली है रंगों से एक दूसरे को रंग कर सहनशिलता को अपनेपन का स्थापत्य है। 

भोजन की विविधता कभी खीर पूड़ी तो, कभी पुआ पकोड़ी, कभी मूंग की दाल की पकोड़ी तो कभी तिल के लड्डू अर्थाय बदलते और विविधता से भरी हुई यह जीवन पद्धति है। जो नित नूतन है सदैव नई है। इसी लिए इसका नाम सनातन है। सदैव नूतन अर्थात सनातन।

सनातन जीवन पद्धति में व्यक्ति इतना व्यस्त रहता है कि वह अपने सुख दुःख भूल जाता है, वह मान्यताओं और परंपराओं की व्यस्तताओं के चलते, व्यस्त जीवन के कारण मानसिकरूप से भी स्वस्थ रहता है। दुःख कष्ट अवसाद वाली बातों को वह इन व्यस्तताओं के कारण भूल जाता है।

कुल मिला कर सनातन जीवन पद्धति धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को समर्पित होकर, सकारात्मता से ओतप्रोत होनें के कारण व्यस्त और मस्त जीवन पद्धति है।

कुल मिला कर यह एक सकारात्मक ऊर्जा से भरे हुए लोगों की जीवन पद्धति हैँ। इनमें ईश्वर के प्रति विश्वास उस परमशक्ति का सत्य भी है, सम्मान भी है, स्वीकार्यता भी है और आराधना प्रार्थना भी है, जो वास्तविकता तौर पर है। लोग इसे स्वीकार करें न करें मगर उसकी मौजूदगी रोम रोम से लेकर विराट ब्रह्माण्ड तक़ में समाई हुई है।

यही सकारात्मक भाव सनातन है, यही आत्मविश्वास है। यहां वह ज्ञान है जो मृत्यु के भय को समाप्त करता है, मृत्यु बाद के अस्तित्व को उजागर करता है। अनंत जीवनों के सामर्थ्य का बोध कराती है और इसीलिए यह दुखों से कष्टों को सहन करने का अद्भुत क्षमता रखती है। इस संस्कृति के लोग शांतिप्रिया और संतुष्ट स्वभाव के हैँ ।

इस संस्कृति को किसी दूसरे देवी देवता से, किसी दूसरे विचार से, किसी दूसरी व्यस्था से कभी डर नहीं लगता है, यह सभी को पनपने का अवसर देती है, सम्मान देती है और स्वीकार भी करती है। 

क्योंकि यह संस्कृति जानती है कि ईश्वर की आकांक्षा का मूल स्वरूप पुरषार्थ और प्रेम ही है। 

ईश्वर तो सिर्फ यही चाहता है कि सारे लोग, सारे प्राणी, सभी प्रकार की जीवात्माएं, सब आपस में मिल जुल कर रहे। सबका आपस में सम्मान हो, और इसीलिए यह संस्कृति कहती है कि विश्व एक कुटुंम्ब है। एक संयुक्त परिवार की तरह है। इसके सभी प्रकार के आचार विचार व्यवहार अंततः ईश्वर रूपी महासमुद्र में जाकर के विलीन हो जाते हैं। 

इस सनातन संस्कृति का मूल मार्ग समन्वय है, इसके बताए मार्ग पर जो भी चलेगा वह सुख शांति और वैभव को प्राप्त करेगा।

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Sanatan — The Eternal Newness

Sanatan culture and the Sanatan way of life are, in essence, a continuous journey of research — an exploration to understand the Truth. It is an ever-evolving quest in which whatever is found to be true and beneficial is embraced, practiced, and refined further. Within it lies a beautiful union of knowledge, science, and spiritual inquiry.

In this culture, there are deities and festivals, vows and fasts, temples and monasteries, idols and worship rituals. There are offerings of many kinds — coconuts, incense sticks, lamps, vermilion, sacred threads — each with its own significance. From the cleanliness and lights of Diwali to the fireworks that symbolize the cleansing of the environment after the monsoon, everything has deep meaning. Holi, the festival of colors, represents tolerance, togetherness, and the joy of shared existence.

The diversity of food — sometimes kheer-puri, sometimes pua-pakodi, moong dal fritters, or til laddus — reflects the variety and vibrancy of life itself. This way of living is ever fresh, ever new. That is why it is called Sanatan — “eternal,” yet forever “renewing.”

In the Sanatan way of life, a person remains so engaged in meaningful rituals, duties, and traditions that personal sorrow and despair fade away. The busyness of faith and practice keeps the mind healthy and positive, shielding it from depression and grief.

Ultimately, the Sanatan lifestyle is dedicated to Dharma (righteousness), Artha (prosperity), Kama (fulfillment), and Moksha (liberation). It is a path filled with positivity — an active yet blissful way of living.

This is a culture infused with positive energy and deep faith in the Divine — faith that is both a recognition of Truth and an expression of reverence, acceptance, and devotion. Whether one acknowledges it or not, that Supreme Power pervades everything — from every cell of the body to the vast expanse of the cosmos.

This sense of positivity and self-confidence is what Sanatan truly means. It holds the wisdom that removes the fear of death and reveals the continuity of existence beyond it. It teaches the strength to endure pain and suffering, offering peace and contentment to its followers.

Those who live by this culture are peace-loving, contented, and harmonious. The Sanatan tradition does not fear any other belief system, deity, or way of life. It respects and accepts all, giving space for everyone to grow and flourish.

For it knows that at the heart of the Divine desire lies effort (Purushartha) and love.

The Divine simply wishes that all beings — all creatures, all souls — live together in harmony and mutual respect. Thus, this culture proclaims: “The whole world is one family — Vasudhaiva Kutumbakam.”

All its thoughts, behaviors, and practices ultimately merge into the great ocean of the Divine.

The core path of the Sanatan culture is harmony and synthesis. Whoever walks this path attains peace, happiness, and abundance.

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🌺 सनातन जीवन पद्धति : मानवता का अनंत आलोक

सनातन संस्कृति केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि यह जीवन की एक वैज्ञानिक, दार्शनिक और आध्यात्मिक यात्रा है — सत्य की खोज की अनवरत प्रक्रिया। यह अनुसंधान है, जिसमें अनुभव, प्रयोग और आत्मबोध की गहराई समाई हुई है। सनातन जीवन पद्धति वह पथ है जो निरंतर आत्मविकास, समन्वय और सामंजस्य की ओर ले जाता है।

🔶 ज्ञान, विज्ञान और श्रद्धा का समन्वय

सनातन परंपरा में ज्ञान और श्रद्धा दोनों का अद्भुत संतुलन देखने को मिलता है। यहां प्रयोगशाला भी है और प्रार्थनालय भी। यहां वेदों का गूढ़ ज्ञान है तो उपनिषदों की गहराई, योग की साधना है तो आयुर्वेद की चिकित्सा। देवी-देवता, व्रत-उपवास, त्यौहार, पूजन और मंदिर — ये सब केवल आस्था के प्रतीक नहीं बल्कि सामूहिकता, अनुशासन और आत्मनियंत्रण के माध्यम हैं।

दीपक, अगरबत्ती, तिलक, नारियल, प्रसाद — ये सब हमारे जीवन के प्रतीक हैं जो शुद्धता, पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। दीपावली की सफाई केवल बाहरी नहीं, बल्कि भीतर की मलिनता को दूर करने का प्रतीक है। होली के रंग हमें सहनशीलता, समानता और अपनेपन का संदेश देते हैं।

🌾 विविधता में एकता का उत्सव

सनातन जीवन पद्धति की एक अद्भुत विशेषता उसकी विविधता में एकता है। भोजन से लेकर व्रत तक, हर रीति में नूतनता और अर्थ छिपा है। कहीं खीर-पूड़ी की मिठास है तो कहीं तिल-लड्डू की पवित्रता। ऋतुओं के अनुसार खान-पान और आचरण का विज्ञान, यह दर्शाता है कि यह संस्कृति प्रकृति के साथ तालमेल में जीना सिखाती है। यही कारण है कि यह जीवनशैली नित्य नूतन, सदैव ताज़ा और इसलिए “सनातन” कही जाती है।

🕉️ सकारात्मकता और मानसिक संतुलन

सनातन जीवन पद्धति व्यक्ति को इतना सक्रिय और सृजनशील बनाए रखती है कि उसे अवसाद, तनाव या निराशा का अवसर नहीं मिलता। पूजा, पर्व, दान, यज्ञ, संस्कार — ये सब जीवन को सकारात्मक ऊर्जा से भर देते हैं। यही कारण है कि इस संस्कृति के अनुयायी “व्यस्त भी हैं और मस्त भी”।

यह जीवन दर्शन व्यक्ति को कर्मयोग की ओर प्रेरित करता है — “कर्मण्येवाधिकारस्ते” के सिद्धांत पर आधारित यह पद्धति हमें बताती है कि सुख और शांति किसी बाहरी वस्तु से नहीं, बल्कि अपने भीतर के संतुलन से प्राप्त होती है।

🌸 धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष का समन्वय

सनातन मार्ग चार पुरुषार्थों — धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष — पर आधारित है। यह किसी एक को त्यागने या दबाने की नहीं, बल्कि चारों को संतुलित रूप से जीने की प्रेरणा देता है। धर्म आचरण का आधार है, अर्थ साधन का, काम जीवन का रस है और मोक्ष उसकी पराकाष्ठा। यही समन्वय सनातन जीवन को पूर्णता प्रदान करता है।

🌼 सहिष्णुता, सम्मान और विश्व बंधुत्व

सनातन संस्कृति की सबसे महान विशेषता है उसकी सहिष्णुता और सर्व-स्वीकार्यता। यह किसी को अस्वीकार नहीं करती, किसी विचार या देवता से भय नहीं रखती। यह मानती है कि हर मार्ग अंततः उसी परमात्मा तक जाता है।
“एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति” — सत्य एक है, ज्ञानी उसे अनेक रूपों में कहते हैं।
इसी भाव से यह संस्कृति कहती है — “वसुधैव कुटुंबकम्”, अर्थात समस्त विश्व एक परिवार है।

🌺 ईश्वर का स्वरूप : प्रेम और पुरुषार्थ

सनातन जीवन पद्धति में ईश्वर कोई दूरस्थ सत्ता नहीं, बल्कि प्रत्येक प्राणी के भीतर विद्यमान चेतना है। यह संस्कृति मानती है कि ईश्वर की इच्छा केवल एक ही है — प्रेम और समरसता का विस्तार। इसलिए सनातन धर्म का मूल मार्ग समन्वय और करुणा है।

🌞 निष्कर्ष

सनातन जीवन पद्धति कोई केवल धार्मिक आस्था नहीं, यह जीवन जीने की वह कला है जो हमें आत्मविश्वास, सहिष्णुता, संतुलन और आनंद प्रदान करती है। यह हमें मृत्यु के भय से मुक्त कर अमर चेतना के अनुभव की ओर ले जाती है। यही कारण है कि यह संस्कृति आज भी जीवंत, प्रभावशाली और कालातीत है —
क्योंकि सनातन का अर्थ ही है — जो सदैव नूतन, सदैव जीवंत, और सदैव प्रकाशमान रहे।
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🌞 “सनातन जीवन पद्धति — अनंत आलोक की यात्रा”

दोस्तों,
सनातन केवल एक शब्द नहीं… यह एक अनुभव है, यह एक स्पंदन है, यह जीवन का वह सत्य है जो न तो कभी पुराना होता है, न कभी समाप्त।
क्योंकि जो सदैव नूतन है… वही तो सनातन है!

यह संस्कृति कहती है —
“सत्यं वद, धर्मं चर” — सत्य बोलो, धर्म का आचरण करो।
यह जीवन सिखाती है —
“वसुधैव कुटुंबकम्” — समस्त जगत हमारा परिवार है।

🌺 ज्ञान और श्रद्धा का संगम

सनातन जीवन पद्धति केवल पूजा-पाठ का नाम नहीं, यह तो ज्ञान और विज्ञान का अद्भुत संगम है।
जहाँ प्रयोगशाला भी है, और प्रार्थनालय भी।
जहाँ योग है, वेद है, उपनिषद है, ध्यान है — और साथ ही भक्ति, प्रेम और सेवा का भाव भी।

यहाँ दीपक केवल तेल से नहीं जलता,
यह जलता है आस्था से… विश्वास से…
और जब यह दीपक प्रज्वलित होता है,
तो केवल घर नहीं, हृदय भी आलोकित हो उठता है।

🌼 विविधता में एकता का उत्सव

कभी खीर-पूड़ी की मिठास,
कभी तिल-लड्डू का स्नेह,
कभी व्रत-उपवास की तपस्या,
तो कभी उत्सवों की रंगीन उमंग —
सनातन जीवन यही तो है…
विविधता में एकता का उत्सव,
जहाँ हर ऋतु, हर पर्व, हर परंपरा जीवन को नई ताजगी देती है।

दीपावली हमें बताती है — अंधकार मिटाओ।
होली कहती है — रंग भरो रिश्तों में।
नवरात्र सिखाते हैं — नारी में शक्ति देखो।
और हर दिन… हर प्रार्थना… हमें याद दिलाती है कि
ईश्वर केवल मंदिरों में नहीं, हमारे हर कर्म में, हर भावना में वास करता है।

🕉️ सकारात्मकता और संतुलन का जीवन

सनातन जीवन पद्धति व्यक्ति को ऐसा व्यस्त रखती है कि वह दुख और अवसाद से ऊपर उठ जाता है।
वह जानता है —
सुख और दुख आते-जाते मेहमान हैं,
पर जीवन की यात्रा चलती रहनी चाहिए।

यह संस्कृति सिखाती है —
“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन” —
कर्म करते रहो, फल की चिंता मत करो।
और यही भाव जीवन को व्यस्त भी रखता है और मस्त भी।

🌿 धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का समन्वय

यह संस्कृति जीवन को चार स्तंभों पर खड़ा करती है —
धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष।
धर्म देता है आचरण का आधार,
अर्थ देता है साधनों का संतुलन,
काम देता है जीवन में रस,
और मोक्ष दिखाता है मुक्ति का मार्ग।
यही चारों मिलकर बनाते हैं पूर्ण जीवन — पूर्ण पुरुषार्थ।

🌸 सहनशीलता, समरसता और स्वीकार्यता

सनातन जीवन का सबसे सुंदर भाव है — सहनशीलता।
यह किसी दूसरे विचार से नहीं डरता,
किसी दूसरी पूजा से नहीं घबराता।
यह कहता है —
“एकं सत् विप्रा बहुधा वदन्ति” —
सत्य एक है, ज्ञानी उसे कई रूपों में पुकारते हैं।

यह वही संस्कृति है जो कहती है —
“विश्व एक परिवार है।”
यह वही जीवन पद्धति है जो हर प्राणी में परमात्मा का अंश देखती है।
यहाँ ईश्वर किसी डर का नाम नहीं —
वह प्रेम का स्वरूप है, करुणा का सागर है,
और उसी प्रेम की तरंगों में यह संस्कृति बहती आई है युगों-युगों से।

🌞 सनातन का सार

सनातन जीवन पद्धति केवल धर्म नहीं, यह जीवन की कला है।
यह सिखाती है — कैसे जिया जाए,
कैसे सहेजा जाए,
कैसे मुस्कुराया जाए हर परिस्थिति में।

यह हमें मृत्यु के भय से मुक्त करती है,
क्योंकि यह जानती है —
जीवन सीमित नहीं, चेतना अनंत है।

और इसलिए,
सनातन जीवन पद्धति है सकारात्मकता का सागर,
सहनशीलता की छाया,
संतुलन की साधना,
और समरसता की प्रेरणा।

यह वही जीवन मार्ग है
जो हमें सुख, शांति और वैभव के साथ-साथ
अंतर के प्रकाश से भी जोड़ देता है।

🌼 अंत में बस इतना ही कहना चाहूँगा —
सनातन कोई धर्म नहीं, यह जीवन का सार है।
यह एक विचार नहीं, यह विचारों का आधार है।
यह केवल परंपरा नहीं, यह अनंत प्रगति की प्रेरणा है।

जो सनातन को समझ गया,
वह जीवन को समझ गया।
जो जीवन को समझ गया,
वह स्वयं ईश्वर के साक्षात्कार के मार्ग पर चल पड़ा।
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