My Gov दवा लेबलिंग में स्थानीय भाषा का उपयोग हो
जब कोई भी व्यक्ती दवा का निर्माण कर रहा है, व्यापार कर रहा है या वितरण कर रहा है। इन तीनों स्टेजों पर यह सुनिश्चित होना चाहिए कि दवा सिर्फ दवा हो। उसके उपयोग की विधि स्थानीय भाषाओं में स्पष्ट हो... कितनी मात्रा लेनी है, कब एक्सीपायरी डेट है आदि आदि की जानकारी उपयोग कर्ता की समझ में आनी चाहिए।
ताजुब्ब है देश आज भी अंग्रेजी भाषा का गुलाम क्यों बनाया हुआ है। इस हेतु व्यापक क़ानून व नियम होनें चाहिए। जो उपयोगकर्ता की समझ व हितों की रक्षा करें।
सच तो यह है कि डॉक्टर का पर्चा और जांच रिपोर्ट भी अजूबे से कम नहीं, ये उपयोगकर्ता की समझ से परे हैँ।
सरकारों को नियम बनाना चाहिए कि उपयोगकर्ताओं को उनकी भाषा में भी जानकारी दी जा सके।
----------///----------
दवा उपयोगकर्ता अधिकार संरक्षण एवं सूचना अधिनियम, 2025 (प्रस्तावित मसौदा)
प्रस्तावना
यह अधिनियम दवाओं के निर्माण, व्यापार, वितरण एवं उपयोग की प्रक्रिया में पारदर्शिता, उपभोक्ता की समझ, और उनके अधिकारों की रक्षा हेतु बनाया गया है।
इसका उद्देश्य है कि हर व्यक्ति को उसकी भाषा में दवा संबंधी जानकारी सुलभ और स्पष्ट रूप से प्राप्त हो।
---
धारा 1: संक्षिप्त नाम, विस्तार और प्रारंभ
1. इस अधिनियम का नाम “दवा उपयोगकर्ता सूचना एवं भाषा अधिकार अधिनियम, 2025” होगा।
2. यह अधिनियम भारत के समस्त राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में लागू होगा।
3. यह अधिनियम भारत सरकार द्वारा अधिसूचना जारी करने की तिथि से प्रभावी होगा।
---
धारा 2: परिभाषाएँ
इस अधिनियम में—
“दवा” से तात्पर्य किसी भी औषधि, टैबलेट, कैप्सूल, इंजेक्शन, सिरप, हर्बल या होम्योपैथिक उत्पाद से है जो चिकित्सा प्रयोजन हेतु प्रयुक्त हो।
“स्थानीय भाषा” से अभिप्राय राज्य या क्षेत्र की प्रमुख भाषा या बोली से है, जिसे संबंधित उपभोक्ता समझ सके।
“निर्माता, विक्रेता या वितरक” वे व्यक्ति या संस्था हैं जो दवा के निर्माण, बिक्री या वितरण में संलग्न हैं।
---
धारा 3: दवा लेबलिंग में स्थानीय भाषा का उपयोग
1. प्रत्येक दवा की पैकिंग पर निम्नलिखित जानकारियाँ अंग्रेज़ी के साथ-साथ स्थानीय भाषा में लिखना अनिवार्य होगा—
दवा का नाम
उपयोग/उपचार का उद्देश्य
खुराक (कितनी मात्रा लेनी है, कितनी बार)
सेवन की विधि (जैसे – भोजन के बाद, पानी के साथ, आदि)
चेतावनी और सावधानियाँ
एक्सपायरी डेट एवं निर्माण तिथि
निर्माता का नाम व लाइसेंस नंबर
2. यदि दवा राष्ट्रीय स्तर पर वितरित होती है, तो हिंदी में जानकारी अनिवार्य रूप से दी जाएगी।
---
धारा 4: डॉक्टर के पर्चे और रिपोर्ट की पठनीयता
1. सभी चिकित्सा पर्चे स्पष्ट, पठनीय और डिजिटल स्वरूप में भी उपलब्ध कराए जाएंगे।
2. प्रत्येक पर्चे एवं जांच रिपोर्ट के साथ स्थानीय भाषा में अनुवादित विवरण (स्वचालित या मैनुअल) जोड़ा जाएगा, जिसमें:
रोग का नाम (सामान्य भाषा में)
दी गई दवाओं का उद्देश्य
खुराक की समय-सारणी
संभावित दुष्प्रभाव
---
धारा 5: फार्मेसी और अस्पतालों की जिम्मेदारी
1. फार्मेसी को यह सुनिश्चित करना होगा कि दवा देने से पहले उपयोगकर्ता को उसकी भाषा में जानकारी दी जाए।
2. अस्पतालों और क्लीनिकों को मरीज को समझ में आने वाली भाषा में सलाह देना अनिवार्य होगा।
---
धारा 6: निगरानी एवं दंड
1. इस अधिनियम के उल्लंघन पर—
प्रथम उल्लंघन: ₹50,000 तक का जुर्माना
पुनः उल्लंघन: ₹2 लाख तक जुर्माना और लाइसेंस निलंबन
2. प्रत्येक राज्य में “दवा उपभोक्ता भाषा सुरक्षा प्राधिकरण” गठित किया जाएगा, जो शिकायतों की जांच करेगा।
---
धारा 7: प्रोत्साहन प्रावधान
जो निर्माता या अस्पताल बहुभाषी सूचना प्रणाली लागू करेंगे, उन्हें सरकार द्वारा “उपभोक्ता हित सम्मान” या टैक्स रियायत प्रदान की जा सकती है।
---
धारा 8: डिजिटल अनुपालन
1. सभी दवा कंपनियों को क्यूआर कोड के माध्यम से दवा की जानकारी (सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में) उपलब्ध करानी होगी।
2. मरीज स्कैन करके अपने मोबाइल पर जानकारी देख सकेगा।
---
निष्कर्ष
यह कानून भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र को उपभोक्ता-केंद्रित और भाषाई रूप से समावेशी बनाएगा।
यह नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति सजग करेगा और “भाषा के कारण अज्ञान” से होने वाली चिकित्सकीय त्रुटियों को घटाएगा।
---
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें