अराजकता, क़ानून एवं व्यवस्था विरोधी एवं दुष्प्रचार फैलाने वाले तत्वों पर कठोर कार्यवाही हेतु निवेदन।
सेवा में,
माननीय प्रधानमंत्री महोदय,
माननीय रक्षामंत्री महोदय,
माननीय गृहमंत्री महोदय,
माननीय विधि एवं क़ानून मंत्री महोदय,
माननीय सूचना एवं प्रौद्योगिकी मंत्री महोदय,
भारत सरकार, नई दिल्ली।
विषय : अराजकता, क़ानून एवं व्यवस्था विरोधी एवं दुष्प्रचार फैलाने वाले तत्वों पर कठोर कार्यवाही हेतु निवेदन।
मान्यवर,
हाल के दिनों में सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म्स (विशेषकर फेसबुक, यूट्यूब एवं अन्य सोसल साइडस के खातों) पर भ्रामक, असत्य एवं भड़काऊ सामग्री का प्रसार तेज़ी से बढ़ा आई है। इस तरह के बहुतसारे एकाउन्टस देखे जा सकते हैँ जो कहीं न कहीं से प्रायोजित व सरकार के विरुद्ध व्यापक वातावरण पूरे देश में खड़ा करने के प्रयास से हैँ।सेंसर या फ़िल्टर की जो कोई व्यवस्था हैँ वे कारगर नहीं होनें से ये साइट्स देश विरोधी और व्यवस्था विरोधी तत्वों के लिये, अत्यंत सरल और स्वछंद साधन बन गई है। ये युद्ध से भी अधिक खतरनाक आपराधिकता उत्पन्न कर रहे हैँ। यह गत आठ नौ महीने में ही भारत में भी सोसल मीडिया साइडस पर अति हो रही है और सोसल मीडिया संचालकों को इसकी कोई चिंता नहीं कि उनके प्लेटफार्म किसी देश की आंतरिक व्यवस्था को खतरनाक खतरा बन रहे हैँ।  इसी के साथ कुछ राजनैतिक दल और राजनेताओं के वित्त पोषण से भी यह सरकार के विरुद्ध फैलाया जा रहा है। आराजकतावादी, भड़काऊ बयान लगातार आरहे हैँ, जो किसी गहरे षड्यंत्र का संकेत भी हैँ। यह गतिविधियाँ समाज में वैमनस्य उत्पन्न कर रही हैं तथा युवाओं को गुमराह करने का प्रयास कर रही हैं। नई उम्र का युवा जो ठीक ठीक कुछ समझता ही नहीं है, उसे हिंसा और क़ानून व्यवस्था तोड़ने के लिये उकसावे की प्रेरणा और व्यवस्था के प्रति अविश्वास से भरती हैँ।
पड़ोसी देशों ( श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल) में हाल में हुए विद्रोह व सत्ता परिवर्तन इस प्रकार के षड्यंत्रों का परिणाम रहे हैं। मात्र कुछ सौ लोगों की अगुवाई हिंसक भीड़ पूरी सत्ता बदल दें, यह भी तो लोकतंत्र विरोधी ही है। यह उस देश की जन इच्छा कैसे मानी जा सकती है। इन तीनों घटनाओं में एक कॉमन बात रही है कि सेना ने सही समय पर असहयोग किया,  पुलिस सही समय पर सक्षम कार्यवाही नहीं कर पाई, भीड़  सामान्य नहीं हिंसक कृत्य करने में पूरी निर्दयता से भरपूर थी, ये कौन थे? और अंतिम, सत्ता परिवर्तन के बाद में सत्ता बहुत कमजोर और लगभग पिठ्ठू व्यक्तियों को सत्ता सोंपी गईं।
सेना नें ही म्यांमार और पाकिस्तान में भी तख्ता पलट किया और वहाँ भी कमजोर हाथों में सत्ता रखी गईं।
भारत को भी इन विदेशी खुराफातों से कारगर तरीके से निबंटने के उपाय करने होंगे व सावधान रहना आवश्यक होगा। क्योंकि भारत में न्यायालयों में उतनी संवेदनशीलता नहीं है जो राष्ट्रहित के लिये जरूरी है।
भारत के पांच पड़ोसी देशों में गैर कानूनी तरीके से सत्ता परिवर्तन किया गया, जिसमें मुख्यतौर पर "सेना" की परोक्ष - अपरोक्ष सहमति प्रमुख वजह रही है। इनमें सेना नें सही समय पर सरकार की रक्षा नहीं की, मदद नहीं की या फिर सेना ने खुद तख्ता पलट करवाया ।
युवा विद्रोह के नाम पर यही प्रयोग कुछ दशक पहले चीन में भी हुआ था, तब सेना ने सरकार का साथ दिया था, हजारों युवा तब मारे भी गये थे और उससे चीन की रक्षा हुई और इसके बाद कोई विद्रोह आज तक नहीं हुआ और आज चीन तरक्की कर विश्व में नंबर दो पर है। इसलिए आंतरिक सुरक्षा के मुद्दे पर भी सरकार को कठोर होना ही चाहिए। सेना के अलावा भी एक अलग से  सुरक्षा बल होना चाहिए। जो उपद्रव को ठीक से दबा सके। सत्तापक्ष की रक्षा कर सके। राजधानीयों की रक्षा कर सके, सत्ता से जुड़े राजनेताओं की रक्षा कर सकें। क्योंकि उपद्रव विदेशी वित्त पोषण के जर्ये, भूराजनैतिक रणनीति से भी आयोजित होते हरण और एक तय टूलकिट के द्वारा पनपाए जाते हैँ। जो कोई सामाजिक क्रांति नहीं बल्कि शुद्ध हिंसा लूटपाट और आराजकता होती है। यह शुद्धरूप से प्रायोजित होती है। फिर एक गैर राजनैतिक व्यक्ती या कमजोर व्यक्ती उभारा जाता है जो नया सत्ता संचालक होता है। और उसे कोई अन्य अदृश्य शक्ति नियंत्रित करती है।
अतः निवेदन है कि :
1. सोशल मीडिया व मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म्स पर फिल्टरिंग एवं एआई तकनीक द्वारा भ्रामक सामग्री को तुरंत रोका जाए/ हटाया जाये। सामग्री हटाने का निर्देश भारतीय अधिकारी करें, क्योंकि विदेशी मीडिया प्लेटफार्म निगेटिव भी होते हैँ।
2. अफवाह व भड़काऊ गतिविधियों में संलिप्त व्यक्तियों व खातों पर कड़ी कानूनी कार्यवाही हो। उन्हें किसी भी तरह से नियंत्रित व हतोत्साहित करने की व्यवस्था हो। एकाउन्ट किस व्यक्ती का है, किस देश का है, उसका सही पता क्या है। यह एकाउन्ट में जोड़ना अनिवार्य होना चाहिए।
3. सभी सुरक्षा व खुफिया एजेंसियों को और अधिक सतर्क कर विदेशी षड्यंत्रों का समूल नाश किया जाए। इजराईल की ख़ुफ़िया एजेंसी बेहद कामयाब है।
4. सोशल मीडिया कंपनियों को जवाबदेह बनाया जाए, ये विभिन्न प्रकार से आराजकता व अस्थिरता उत्पन्न करने का सरल साधन बन गईं हैँ।  उनके मंच अराजक गतिविधियों का साधन न बनें, इस हेतु कड़े रुख की जरूरत है।
5. रिजर्व सुरक्षा बल जिसके पास पर्याप्त संख्या में बल हो, राज भवन एवं सत्तारुड़ दलों के नेताओं की पर्याप्त सुरक्षा की व्यवस्था हो। सुरक्षाकर्मियों को जैसे का जबाब तैसा देने की स्वतंत्रता हो।
6. सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि इस भीड़ पर हथियार थे, वे कहाँ से आये। इसलिए बंदूक, पिस्टल, बम जैसे हथियारों की सघन तलाशी व नियमित तलाशी व सूचना देनें वालों को इनाम की पूर्व सार्वजनिक घोषणा के द्वारा व्यापक नियंत्रण होना चाहिए।
7. कुछ स्टेट असहयोग करेंगे उन्हें शुद्ध भाषा में समझाया जाये, वे असहयोग करें तो स्टेट का गृह विभाग केंद्र संवेधानिक तरीके से अपने पास ले ले। आपातकालीन संवेधानिक व्यवस्थाएं राष्ट्र रक्षा हेतु ही बनाई गईं हैँ.
8. नेपाल और बांग्लादेश घटनाक्रमों का गहन अध्ययन कर, भारत में निरापद व्यवस्था बनाने पर विशेष टीम गठन किया जाये।
9. चैनलों पर सीधी डिबेट बहुत घातक होती है, क्योंकि इसमें सेंसर होता ही नहीं है, गाली तो देदी, बकवास तो करली फिर एक शब्द माफ़ी भी मंगली तो क्या होता है। दुष्प्रेरणा तो करोड़ों लोगों तक़ पहुंच गईं। डिबेट में भाजपा या सरकार के विचार वाला एक व्यक्ती होता है विरोधी विचार के 3-4 होते हैँ। अधिक समय विरोधी विचार को ही गया। इस पर विचार होना चाहिए, चाहे डिबेट कोई भी हो उसमें गलत नहीं जाना चाहिए। प्रसारण सेंसर करके ही होना चाहिए, सेंसर की जिम्मेदारी खुद प्रसारण करता उठायें।
10. अन्य बहुत से उपाय भी हो सकते हैँ, जिन्हे लिखा नहीं जा सकता।
आपसे विनम्र आग्रह है कि राष्ट्रहित एवं राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए इस विषय पर तत्काल प्रभावी कार्यवाही सुनिश्चित करें। बिना किसी विशेष शोर शराबे के गुप्तरूप से चिन्हित कार्यवाही करवाई जा कर आराजकतावाद पर कठोर नियंत्रण प्राप्त किया जाये। सादर।
भवदीय,
अरविन्द सिसोदिया
प्रदेश सह संयोजक,
भाजपा मीडिया संपर्क विभाग, राजस्थान।
मो. 9414180151
 
 
 
 
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