My Gov जनप्रतिनिधि न्याय सुधार : भ्रष्टाचार एवं न्यायिक जवाबदेही
नया क़ानून बने
🇮🇳 भ्रष्टाचार एवं न्यायिक जवाबदेही (जनप्रतिनिधि न्याय सुधार) नीति मसौदा – 2025
🔷 प्रस्तावना
भारत में न्यायपालिका और राजनीति, संविधान की दो मुख्य आधारशिलाएँ हैं।
किन्तु जब जनप्रतिनिधियों पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगते हैं और वे वर्षों तक न्यायिक प्रक्रिया को टालते रहते हैं, तब जनता का संविधान पर विश्वास कमजोर होता है।
इसलिए यह आवश्यक है कि —
“जनप्रतिनिधि न्याय के प्रति अधिक उत्तरदायी हों, न कि उससे ऊपर।”
🔶 अध्याय 1 : विशेष न्याय प्रणाली (Fast Track Judicial Mechanism)
धारा 1.1 — विशेष न्यायालय
कोई भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि (MP, MLA, मंत्री, मुख्यमंत्री, आदि) यदि भ्रष्टाचार, घोटाले या सरकारी पद के दुरुपयोग से संबंधित अपराध का आरोपी है,
तो उसका मुकदमा फास्ट ट्रैक न्यायालय में सुना जाएगा।
यह न्यायालय दो वर्ष की अधिकतम समयसीमा में निर्णय देगा।
किसी भी प्रकार की स्थगन (adjournment) केवल लिखित औचित्य के साथ ही दी जा सकेगी।
🔶 अध्याय 2 : सजा स्थगन और जमानत नीति में सुधार
धारा 2.1 — सजा स्थगन पर रोक
ट्रायल कोर्ट द्वारा दी गई सजा बिना ठोस और लिखित कारणों के स्थगित (suspend) नहीं की जा सकेगी।
स्वास्थ्य कारणों पर राहत तभी संभव होगी जब स्वतंत्र मेडिकल बोर्ड उसकी पुष्टि करे।
धारा 2.2 — अपील न्यायालय की सुनवाई
अपील न्यायालय (हाईकोर्ट/सुप्रीम कोर्ट) को ऐसे मामलों में भी फास्ट ट्रैक मोड में सुनवाई करनी होगी।
अपील की तारीखें अधिकतम तीन महीने के भीतर निर्धारित की जाएंगी।
🔶 अध्याय 3 : जनप्रतिनिधियों के लिए विशेष उत्तरदायित्व
धारा 3.1 — सजा दोगुनी
कोई जनप्रतिनिधि यदि भ्रष्टाचार या सार्वजनिक धन की हानि से जुड़े अपराध में दोषी पाया जाता है,
तो उसे सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा दोगुनी सजा दी जाएगी।
इस दोगुनी सजा का अधिकार ट्रायल कोर्ट और अपीलीय न्यायालय दोनों को होगा।
धारा 3.2 — पद से अयोग्यता
जिस जनप्रतिनिधि पर आरोप तय (charges framed) हो चुके हैं,
वह तब तक किसी सरकारी पद या दल के पदाधिकारी के रूप में कार्य नहीं करेगा,
जब तक कि वह दोषमुक्त न हो जाए।
🔶 अध्याय 4 : न्यायिक पारदर्शिता और जवाबदेही
धारा 4.1 — न्यायालय मॉनिटरिंग पोर्टल
हर हाईकोर्ट यह सुनिश्चित करेगा कि जनप्रतिनिधियों के सभी भ्रष्टाचार मामलों की स्थिति सार्वजनिक पोर्टल पर प्रदर्शित हो।
प्रत्येक केस में देरी का कारण, अगली सुनवाई की तारीख, और जिम्मेदार पक्ष (अभियोजन, वकील या अदालत) स्पष्ट रूप से दर्ज हो।
धारा 4.2 — न्यायिक आचरण आयोग
एक स्वतंत्र न्यायिक निगरानी आयोग (Judicial Oversight Commission) गठित होगा,
जो यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी जनप्रतिनिधि से संबंधित मुकदमा 10 वर्ष से अधिक लंबित न रहे।
यदि ऐसा होता है, तो आयोग स्वतः संज्ञान लेकर सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट देगा।
🔶 अध्याय 5 : राजनीतिक दलों पर जवाबदेही
धारा 5.1 — सजायाफ्ता व्यक्ति की भूमिका
कोई भी व्यक्ति जिसे दो वर्ष या अधिक की सजा मिली हो,
वह राजनीतिक दल का अध्यक्ष, महासचिव या पदाधिकारी नहीं बन सकेगा।
चुनाव आयोग को यह अधिकार होगा कि ऐसे दल का पंजीकरण निलंबित कर सके जो इन प्रावधानों का उल्लंघन करे।
🔶 अध्याय 6 : जनहित और नागरिक भागीदारी
धारा 6.1 — नागरिक समीक्षा अधिकार
कोई भी नागरिक या सामाजिक संगठन, किसी भी लंबित भ्रष्टाचार केस की अनुचित देरी पर सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दाखिल कर सकेगा।
🔷 उपसंहार
> “कानून सबके लिए समान होना चाहिए —
लेकिन जनप्रतिनिधि के लिए यह और भी कठोर होना चाहिए,
क्योंकि वह जनता की नज़र में संविधान का चेहरा है।”
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