कविता - दीप जलाओ, जीवन सजाओ
दीपावली के सबसे महत्वपूर्ण पहलू
धार्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से
दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का बहुआयामी उत्सव है — जो आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, स्वच्छता, और मानवीय संबंधों को जोड़ता है। यह पर्व मानव सभ्यता के विकास क्रम से जुड़ा हुआ है और प्रत्येक युग में अपनी विशेष भूमिका निभाता रहा है।
1. दीपावली और मानव सभ्यता का प्रारम्भ
दीपावली की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है — जब भगवान धनवंतरी (आयुर्वेद के जनक और स्वास्थ्य के देवता) तथा देवी लक्ष्मी (धन एवं समृद्धि की देवी) प्रकट हुए। यह घटना मानव सभ्यता में स्वास्थ्य और धन को दो मुख्य आधार के रूप में स्थापित करती है।
इस प्रकार, दीपावली का मूल संदेश है — "स्वास्थ्य ही धन है" और समृद्ध जीवन के लिए शरीर, मन और समाज का संतुलन आवश्यक है।
2. स्वच्छता और स्वास्थ्य संरक्षण का वैज्ञानिक आधार
दीपावली से पहले घरों की सफाई, रंगाई-पुताई और सजावट केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विज्ञान का हिस्सा है। मानसून के बाद वातावरण में नमी, सीलन और बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते हैं। घरों की सफाई से:
फफूंद, मच्छर और संक्रमणकारी जीवाणु नष्ट होते हैं।
धूल और प्रदूषण से उत्पन्न एलर्जी में कमी आती है।
घर का वातावरण मनोवैज्ञानिक रूप से सकारात्मक और ऊर्जावान बनता है।
आतिशबाजी की परंपरा का भी एक प्राचीन वैज्ञानिक औचित्य है — पुराने समय में आतिशबाजी से निकला धुआँ और ध्वनि रोगाणुओं को नष्ट करने में सहायक मानी जाती थी। यद्यपि आज के प्रदूषण स्तर को देखते हुए पर्यावरण-मैत्री दीपावली की दिशा में बढ़ना अधिक आवश्यक है।
3. आर्थिक आत्मनिरीक्षण और कुबेर पूजा
धनतेरस का दिन केवल नए वस्त्र, आभूषण या बर्तन खरीदने का अवसर नहीं है — यह व्यक्तिगत और व्यावसायिक आर्थिक समीक्षा का दिन भी है।
इस दिन व्यापारी अपने बहीखातों की पूजा करते हैं, जो प्रतीक है कि:
आय-व्यय का सही संतुलन ही समृद्धि की कुंजी है।
आर्थिक संसाधनों का नैतिक और विवेकपूर्ण उपयोग भी एक प्रकार की पूजा है।
आज के दौर में इसे “फाइनेंशियल हेल्थ चेक-अप डे” के रूप में भी देखा जा सकता है।
4. रूप चौदस और आत्म-संवर्धन
रूप चौदस या नरक चतुर्दशी का तात्पर्य है — स्वयं को भीतर और बाहर दोनों रूप से सुंदर बनाना।
यह केवल बाहरी सौंदर्य नहीं, बल्कि स्वास्थ्य, आत्मबल और आत्मविश्वास का प्रतीक है।
इस दिन शरीर की शुद्धि (स्नान, तैल अभ्यंग, उबटन) और शक्ति की उपासना का अर्थ है —
> “निरोगी शरीर, सुंदर विचार और सशक्त मन — यही सच्चा रूप है।”
5. दीपावली — प्रकाश और चेतना का पर्व
अमावस्या की अंधेरी रात में दीप जलाना केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक रूप से अत्यंत प्रभावशाली कार्य है।
दीप का प्रकाश हमारे अवचेतन मन में आशा, साहस और शांति का संचार करता है।
यह हमें सिखाता है —
> “अंधकार को कोसने से अच्छा है, एक दीप जलाना।”
आधुनिक मनोविज्ञान भी बताता है कि प्रकाश और रंग सकारात्मक भावनाओं को प्रबल करते हैं।
6. गोवर्धन पूजा — पर्यावरण और कृषि का सम्मान
दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा होती है। इसका गहरा अर्थ है —
प्रकृति और पशुधन का संरक्षण
पर्यावरण संतुलन के महत्व की स्वीकृति
आज के युग में जब पर्यावरणीय संकट बढ़ रहे हैं, गोवर्धन पूजा हमें याद दिलाती है कि धन केवल मुद्रा नहीं, बल्कि भूमि, जल, वायु और जीवन के संसाधन भी हैं।
7. भाई दूज — संबंधों का धन
भाई दूज का भाव यह है कि रक्त संबंध और आत्मीयता भी एक अमूल्य संपत्ति हैं।
यह पर्व सामाजिक एकता, प्रेम और परस्पर सहयोग की भावना को पुष्ट करता है।
आज के सामाजिक युग में, जब संबंध डिजिटल होते जा रहे हैं, यह पर्व हमें भावनात्मक जुड़ाव की वास्तविकता याद दिलाता है।
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8. दीपावली — तीन युगों का समन्वय
दीपावली का महत्व तीनों युगों से जुड़ा है:
सतयुग: धनवंतरी और लक्ष्मी का प्रकट होना।
त्रेतायुग: श्रीराम का अयोध्या आगमन — सत्य और धर्म की विजय का प्रतीक।
द्वापरयुग: श्रीकृष्ण द्वारा गोवर्धन पर्वत उठाना और नरकासुर वध — शक्ति और संरक्षण का प्रतीक।
कलियुग में यह पर्व संयम, सद्भाव और आत्मज्योति के पुनर्जागरण का प्रतीक बन गया है।
9. आधुनिक संदर्भ में दीपावली का वैज्ञानिक संदेश
स्वास्थ्य विज्ञान: स्वच्छता, हवादार वातावरण और मानसिक प्रसन्नता।
पर्यावरण विज्ञान: प्राकृतिक संसाधनों के प्रति सम्मान।
अर्थशास्त्र: उन्नति की प्रेरणा, संतुलित उपभोग और बचत।
मनोविज्ञान: सकारात्मकता और आशा का विकास।
समाजशास्त्र: परिवार और समुदाय के रिश्तों का पुनर्संयोजन।
निष्कर्ष
दीपावली केवल पूजा या उत्सव नहीं, बल्कि एक जीवन दर्शन है —
जो हमें सिखाता है कि
> “स्वास्थ्य ही असली धन है, प्रकृति ही माता है, और प्रेम ही प्रकाश है।”
इस प्रकार, दीपावली का प्रत्येक पहलू — चाहे वह स्वच्छता हो, अर्थव्यवस्था हो, या संबंधों की मजबूती — एक समृद्ध, सशक्त और संतुलित समाज की ओर कदम है।
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🌼 दीप जलाओ — जीवन सजाओ 🌼
(दीपावली पर आधारित एक भावात्मक व वैज्ञानिक पद्ध)
वर्षा छूटी, नभ हुआ निर्मल, धरा धुले अंगनाई,
मिट्टी की गंध सजे आँगन, दीप जले जगमगाई।
धन्वंतरी का जयघोष गूँजे, स्वास्थ्य बने अराधन,
निरोग तन ही सच्चा धन है, यह जीवन का साधन॥
लक्ष्मी आईं सागर से जब, संग लाईं आशिष,
परिश्रम, बुद्धि, सत्व, विवेक ही— धन का सत्य प्रतीक।
कुबेर का बही-खाता बोले, “लेखा-जोखा देखो,”
जो संचित है पुण्य कर्म में, वही रहेगा एको॥
रूप चौदस कहती जग को, “शरीर-सौंदर्य न केवल तन,”
भीतर भी उजियारा कर लो, यही है जीवन धन।
तेल स्नान, हँसी, सुवासित तन — रोग मिटे, मन खिले,
स्वच्छता की ज्योति जगाओ, तम के तंतु जले॥
अमावस की काली छाया, जब दीपों से हारे,
मन के भीतर जो अंधियारा, वह भी धीरे पारे।
हर लौ में एक प्रार्थना — “सद्बुद्धि का हो उजियारा,”
प्रेम, करुणा, सत्य, सयंम से, भर दे जग सारा॥
गोवर्धन पूजा का संदेश, धरती माता प्यारी,
गाय, वृक्ष, जल, वायु — ये सब धन की भारी।
पर्यावरण का मान करो, यही सच्चा उपहार,
प्रकृति का ऋण उतारो मानव, यही सच्चा त्यौहार॥
भाई दूज में रिश्ते बोले, स्नेह बने पहचान,
जीवन का सबसे अनमोल धन — अपनापन और सम्मान।
मिल-जुलकर दीप जलाओ, द्वेष का दहन कर डालो,
हर हृदय में प्रेम ज्योति प्रज्वलित, यही सच्ची दीवाली मानो॥
🔆 भावार्थ (सारांश):
> दीपावली केवल धन या सजावट का पर्व नहीं —
यह स्वास्थ्य, स्वच्छता, संतुलन, संबंध और सद्भाव की दीपशिखा है।
हर दीप का अर्थ है — एक नई शुरुआत, एक नई चेतना, एक नया जीवन।
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🌼 भजन : "दीप जलाओ, जीवन सजाओ" 🌼
(लय सुझाव – धीमी/मध्यम भक्ति लय, 8 मात्रा छंद)
🔸 पहला अंतरा : आरंभ व स्वच्छता का भाव
वर्षा गई, धरती हँसी रे, खुशबू छाई चारों ओर,
धूल, जरा सब धो डाले रे, मन से मिटे अंधेर घोर।
घर-आँगन अब चमके सारा, दीप जले मनमोह,
स्वच्छ तन, निर्मल मन हो रे, यही लक्ष्मी का बोध॥
ध्रुवपद (कोरस):
🔆 दीप जलाओ, जीवन सजाओ,
तम हर लो मन का रे भाई।
स्वास्थ्य, प्रेम, सद्भाव का दीप,
हर घर में फिर जगमगाई॥
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🔸 दूसरा अंतरा : धनवंतरी व लक्ष्मी पूजा
धनवंतरी दे वरदान रे, निरोग रहे जन जन,
आरोग्य ही सबसे बड़ो धन, जीवन का वह गगन।
लक्ष्मी लाओ संग श्रम, साधना, सच्चा कर्म महान,
धन तभी शुभ होता जग में, जब हो सन्मार्ग समान॥
(🔁 ध्रुवपद दोहराएँ)
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🔸 तीसरा अंतरा : रूप चौदस व आत्मसौंदर्य
रूप न केवल तन का होता, मन का रूप सजाओ,
क्रोध-द्वेष सब दूर भगाओ, प्रेम दीप जलाओ।
तेल स्नान, सुगंध सुहानी, तन-मन हो निर्मल,
स्वच्छता में ही शुद्धता है, यही दीपावली पल॥
(🔁 ध्रुवपद दोहराएँ)
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🔸 चौथा अंतरा : गोवर्धन व पर्यावरण का संदेश
गोवर्धन पर्वत ने सिखलाया, प्रकृति हमारी माँ,
गाय, वृक्ष, जल, वायु, धरती — सबका करो सम्मान।
हरियाली ही धन हमारा, सहेज लो यह नाता,
प्रकृति से जो प्रेम करेगा, वही सच्चा प्रभु पाता॥
(🔁 ध्रुवपद दोहराएँ)
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🔸 पाँचवाँ अंतरा : भाई दूज व संबंधों का भाव
भाई दूज में स्नेह की ज्योति, रिश्तों का त्योहार,
प्यार, करुणा, अपनापन से, जग हो सुख-संसार।
जिसके मन में प्रेम दीप है, वही धनवान कहाए,
हर दिल में जोत जलाओ रे, यही प्रभु की छाया॥
(🔁 ध्रुवपद दोहराएँ)
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🔸 अंतिम अंतरा : समापन व समग्र संदेश
तीनों युग का एक ही नारा, प्रकाश सदा विजयी,
सत्य, धर्म, औ’ प्रेम मार्ग ही, जीवन की रजनी छयी।
राम, कृष्ण, लक्ष्मी सब बोले, “जग में उजियारा हो,”
हर जन का जीवन दीप बने, यही हमारा सबका संकल्प हो॥
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ध्रुवपद (अंतिम बार):
🔆 दीप जलाओ, जीवन सजाओ,
तम हर लो मन का रे भाई।
स्वास्थ्य, प्रेम, सद्भाव का दीप,
हर घर में फिर जगमगाई॥ 🌼
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