My Gov गंभीर अपराधियों को विधानमंडल से बाहर रखने का क़ानून
🏛️ नीति-संक्षेप (Policy Brief)
विषय: गंभीर अपराधियों और आरोपितों को कानून बनाने वाली संस्थाओं (संसद/ विधानसभाओं से बाहर रखने का क़ानून )
🔹 पृष्ठभूमि
भारत की संसद और विधानसभाओं में कई सदस्यों पर गंभीर आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें हत्या, बलात्कार, अपहरण, भ्रष्टाचार, और संगठित अपराध जैसे आरोप शामिल हैं। यह स्थिति लोकतंत्र के मूल सिद्धांत — “निर्दोष, ईमानदार और जनहितकारी शासन” — के विपरीत है।
देश बार-बार यह शर्मिंदगी झेल चुका है कि अपराधी प्रवृत्ति के लोग कानून बनाने वाली संस्थाओं में बैठते हैं।
अब आवश्यक है कि एक सख़्त, स्पष्ट और न्यायसंगत नीति बने जो अपराधियों को राजनीति से दूर रखे।
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🔹 नीति का उद्देश्य
1. गंभीर अपराधों के दोषियों को चुनाव लड़ने से रोकना।
2. अपराध प्रवृत्ति वाले उम्मीदवारों (जिनके खिलाफ अनेक संज्ञेय मामले हैं) की उम्मीदवारी रोकना।
3. जनता के सामने उम्मीदवारों का आपराधिक रिकॉर्ड पारदर्शी रूप से उपलब्ध कराना।
4. राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाना कि वे अपराधियों को टिकट न दें।
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🔹 मुख्य प्रस्ताव
1. निर्वाचनीयता निषेध (Disqualification Criteria)
हत्या, बलात्कार, आतंकवाद, अपहरण या अन्य गंभीर अपराध में दोषसिद्ध व्यक्ति किसी भी स्तर का चुनाव नहीं लड़ सकेगा।
यदि किसी व्यक्ति पर 5 या अधिक संज्ञेय अपराध दर्ज हैं और उनमें से कम से कम 2 में अदालत ने आरोप तय किए हैं (charge framed), तो वह व्यक्ति निर्णय आने तक चुनाव नहीं लड़ सकेगा।
दोषसिद्धि की स्थिति में सदस्यता स्वतः समाप्त मानी जाएगी।
2. नामांकन पारदर्शिता
प्रत्येक उम्मीदवार को नामांकन के साथ अपने सभी मुकदमों का विवरण (धाराएँ, स्थिति, अदालत का नाम) देना होगा।
यह जानकारी निर्वाचन आयोग की वेबसाइट पर जनता के लिए प्रकाशित होगी।
3. राजनीतिक दलों की जिम्मेदारी
कोई भी राजनीतिक दल ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार नहीं बना सकेगा जो ऊपर दिए निषेध के दायरे में आता हो।
उल्लंघन करने वाले दल पर आर्थिक दंड और सार्वजनिक चेतावनी जारी की जाएगी।
4. त्वरित न्याय प्रणाली
चुनाव से जुड़े आपराधिक मामलों के लिए फास्ट-ट्रैक अदालतें गठित की जाएँगी।
सभी ऐसे मामलों का निपटारा 12 महीनों के भीतर किया जाएगा।
5. दुरुपयोग रोकने के उपाय
झूठे या राजनीतिक उद्देश्य से दर्ज मुकदमों की त्वरित प्राथमिक जाँच अनिवार्य होगी।
गलत मुकदमे दर्ज कराने वालों पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
दोषसिद्धि रद्द होने या बरी होने पर पुनः चुनाव लड़ने का अधिकार वापस मिलेगा। किन्तु कम से कम दस वर्ष बाद... क्योंकि गुंडागर्दी की दम पर ही सजा से बच जाते हैँ।
🔹 संभावित प्रभाव
क्षेत्र सकारात्मक प्रभाव
लोकतंत्र की शुचिता सदन अपराध-मुक्त और जनविश्वास योग्य बनेगा
शासन की पारदर्शिता जनता को अपने उम्मीदवारों की पूरी जानकारी मिलेगी
राजनीति में सुधार दल अपराधियों पर निर्भर न रहकर योग्य उम्मीदवार चुनेंगे
न्याय व्यवस्था फास्ट-ट्रैक अदालतों से त्वरित निर्णय संभव होंगे
🔹 संभावित चुनौतियाँ
दोषसिद्धि से पहले निषेध को लेकर संवैधानिक बहस (“निर्दोषता की धारणा” का सवाल)। रिपोर्ट तभी होती है जब व्यक्ती दोषी होता है... और वह तब तक़ दोषी है जब तक़ उसे बरी न कर दिया जाये।
न्यायालयों पर अतिरिक्त दबाव।
राजनीतिक दलों द्वारा कानूनी खामियाँ खोजने की कोशिशें।
समाधान:
निषेध केवल दोषसिद्धि या charges framed + 5 से अधिक मामले की स्थिति में ही लागू हो।
न्यायिक समीक्षा (High Court appeal) का अधिकार बरकरार रखा जाए।
🔹 नीति लागू करने के प्रमुख कदम
1. Representation of the People Act में संशोधन।
2. चुनाव आयोग द्वारा उम्मीदवारों की आपराधिक पृष्ठभूमि का केंद्रीकृत डेटाबेस।
3. राज्यों में फास्ट-ट्रैक अदालतों की स्थापना।
4. राजनीतिक दलों पर निगरानी और दंड प्रावधान।
5. जन-जागरूकता अभियान — “साफ छवि वाला जनप्रतिनिधि” आंदोलन।
🔹 निष्कर्ष
भारत का लोकतंत्र तब ही सशक्त होगा जब कानून बनाने वाले खुद कानून के दायरे में हों।
अब समय है — “साफ़ सियासत, साफ़ संसद” का।
सिर्फ़ चुनाव जीतने नहीं, बल्कि जनविश्वास जीतने की ज़रूरत है।
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🕊️ सुझावित नारा:
> “अपराधी नहीं — सेवा भावी नेता चाहिए।”
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