कविता - दीपक बनो प्रकाश करो

कविता - दीपक बनो प्रकाश करो 

✍️ अरविन्द सीसौदिया, कोटा
9414180151 

मर्यादा के दिये बनें ,
पावनता का तेल भरें ,
निश्छल प्रेम की बाती से,
आशाओं का प्रकाश फैलाना है ।

जब हवाएं तेज़ चलें,
तो भी तुम मत डरना,
अंधियारा चाहे कितना घना हो,
दीपक बनकर हराना है ।

विश्वास का प्रकाश फैलाओ,
निराशा के तम को हराओ,
एक किरण भी काफी होती,
घनघोर अंधकार हराने को।

जल कर बुझ जाएँ तो क्या,
कर्मों की गंध सदा रहेगी,
त्याग की आभा से जग में,
नई प्रेरणा पुनः जन्मेगी !

भोर के उजियारे तक़ ,
हर मन में नव चेतना बनी रहे,
हमारे प्रकाश की किरणों से ,
दूर घना अँधियारा होता जाये ।

आओ चलो बनें ओ दीपक साथीयों ,
अंधकार में पथ को आलोकित करना है ,
स्वार्थ नहीं, समर्पण से जीवन है ,
मानवता का प्रकाश बन पथ प्रदर्शन करना है।
---

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

कण कण सूं गूंजे, जय जय राजस्थान

सरदार पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो क्या कुछ अलग होता, एक विश्लेषण - अरविन्द सिसोदिया

God’s Creation and Our Existence - Arvind Sisodia

Sanatan thought, festivals and celebrations

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

कविता - संघर्ष और परिवर्तन

‘‘भूरेटिया नी मानू रे’’: अंग्रेजों तुम्हारी नहीं मानूंगा - गोविन्द गुरू

सरदार पटेल के साथ वोट चोरी नहीं होती तो, वे भारत के प्रथम प्रधानमंत्री होते - अरविन्द सिसोदिया