कश्मीरी पंण्डितों को जम्मू और कश्मीर में तुरंन्त बसाया जाये - अरविन्द सिसौदिया


- अरविन्द सिसौदिया
    अब वह समय आ गया है कि विस्थापित कश्मीरी पंण्डितों को पुनः जम्मू और कश्मीर में बसाया जाना चाहिये । उन्हे नये सिरे से जमीन जायदाद दी जानी चाहिये, उनकी क्षतीपूर्ति की जानी चाहिये। यदि वर्तमान को गंबा दिया गया तो आगे फिर कभी नहीं हो  पायेगा। यह उनका अधिकार है और सरकार का कर्त्तव्य भी है। रहे काम रावण भी नहीं हुये। अर्थात अविलम्ब उन्हे बसानें का काम प्रारम्भ किया जाना चाहिये।

  कश्मीरी पंण्डितों का निष्कासन  
     भारत की असली समस्या का प्रारम्भ सम्राट अशोक के द्वारा भगवान बुद्ध का अनुयायी बन कर बौद्ध धर्म के विस्तार, प्रसार एवं प्रचार के युग से प्रारंभ होता है। जिसने हिन्दुत्व के शौर्य को तोडने का काम किया। क्यों कि बौद्ध हिन्दू अहिंसक होकर वैचारिक रूप से इतना निर्बल और असमर्थ हो गया कि वह अपनी ही रक्षा नहीं कर सका। नतीजा सामने है कि हिन्दुकुश पर्वत से लेकर बंगाल की खाडी तक इसी अहिंसक बौद्ध हिन्दू का व्यापक धर्मान्तरण इस्लाम में जबरिया कर लिया गया। इसी में कश्मीर का बौद्ध हिन्दू भी धर्मान्तिरित हुआ । वहां हिन्दू पूजा प़द्यती के प्रति प्रगाण श्रृद्धा रखने वाले, न डिगने वाले अनुयायी ही हिन्दू के रूप में बचे, जो कश्मीरी ब्राहम्ण कहलाते है।
    कश्मीरी पंडित अर्थात जिन्हें कश्मीरी ब्राह्मण भी कहा जाता है। कश्मीरी हिंदू हैं और बड़े सारस्वत ब्राह्मण समुदाय का हिस्सा हैं। वे पंचगौड़ ब्राह्मण (पाँच समूहों से संबंधित ) हैं।

   1990 के दशक में आतंकवाद के उभार के दौरान कट्टरपंथी इस्लामवादियों और आतंकवादियों द्वारा उत्पीड़न और धमकियों के बाद वे अधिक संख्या में कश्मीर घाटी छोड कर जाने लगे थे। इसी दौरान उन्हे पूरी तरह से बाहर करने की नियत से 19 जनवरी 1990 शातिराना तरीके से समूहबद्ध होकर, सत्ता के संरक्षण में कश्मीरी पंण्डितों पर सामूहिक हमले हुये। इस हेतु उस दिन, मस्जिदों ने घोषणाएँ कीं कि कश्मीरी पंडित काफ़िर हैं और पुरुषों को या तो कश्मीर छोड़ना होगा , या इस्लाम में परिवर्तित होना होगा या उन्हें मार दिया जाएगा। जिन लोगों ने इनमें से पहले विकल्प को चुना , उन्हें कहा गया कि वे अपनी महिलाओं को पीछे छोड़ जाएँ। कश्मीरी मुसलमानों को पंडित घरों की पहचान करने का निर्देश दिया गया ताकि धर्मांतरण या हत्या के लिए उनको विधिवत निशाना बनाया जा सके।

  माना जाता है कि 1990 के दशक के दौरान लाखों कश्मीरी पंडितों की आबादी में से ज्यादातर ने घाटी छोड़ दी। पलायन की संख्या 4 लाख से भी अधिक हो सकता है। जनवरी के महीने में सैकड़ों निर्दोष कश्मीरी पंडितों को प्रताड़ित करके मौत के घाट उतार दिया गया और कई महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं भी सामने आईं. कई शरणार्थी कश्मीरी पंडित जम्मू के शरणार्थी शिविरों एवं अन्य स्थानों पर अपमानजनक परिस्थितियों में रह रहे हैं। तब से अब तक कश्मीरी पंडित देश के अलग-अलग शहरों में रह रहे हैं. इस उम्मीद पर कि वो दिन आएगा जब वो अपने घर अपने कश्मीर लौट पाएंगे.

. 19 जनवरी 1990 को सबसे ज्यादा लोगों को कश्मीर छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था. करीब 4 लाख लोग विस्थापित हुए थे.
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पूरी रिपोर्ट कश्मीरी पंण्डितों के भगाये जानें की
      कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार का सिलसिला 80 के दशक में ही शुरू हो गया था जब वर्ष 1986 में गुलाम मोहम्मद शाह ने अपने बहनोई फारुख अब्दुल्ला से सत्ता छीन ली और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री बन गए। खुद को सही ठहराने के लिए उन्होंने एक खतरनाक निर्णय लिया , ऐलान हुआ कि जम्मू के न्यू सिविल सेक्रेटेरिएट एरिया में एक पुराने मंदिर को गिराकर भव्य शाह मस्जिद बनवाई जाएगी । तो लोगों ने प्रदर्शन किया कि ये नहीं होगा। जवाब में कट्टरपंथियों ने नारा दे दिया कि इस्लाम खतरे में है। इसके बाद कश्मीरी पंडितों पर धावा बोल दिया गया। असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान (हमें पाकिस्तान चाहिए. पंडितों के बगैर, पर उनकी औरतों के साथीं। ) गिरजा टिक्कू का गैंगरेप हुआ, फिर मार दिया गया । ऐसी ही अनेक घटनाएं हुईं, पर उनका रिकॉर्ड नहीं रहा। किस्सों में रह गईं । साउथ कश्मीर और सोपोर में सबसे ज्यादा हमले हुए। जोर इस बात पर रहता था कि प्रॉपर्टी लूट ली जाए। हत्यायें और रेप तो बाई-प्रोडक्ट के रूप में की जाती थीं।
    जुलाई 1988 में जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट बना. कश्मीर को भारत से अलग करने के लिए। कश्मीरियत अब सिर्फ मुसलमानों की रह गई। पंडितों की कश्मीरियत को भुला दिया गया। 14 सितंबर 1989 को भाजपा के नेता पंडित टीका लाल टपलू को कई लोगों के सामने मार दिया गया। हत्यारे पकड़ में नहीं आए, ये कश्मीरी पंडितों को वहां से भगाने को लेकर पहली हत्या थी। इसके डेढ़ महीने बाद रिटायर्ड जज नीलकंठ गंजू की हत्या की गई। गंजू ने जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के नेता मकबूल भट्ट को मौत की सजा सुनाई थी। गंजू की पत्नी को किडनैप कर लिया गया। वो कभी नहीं मिलीं। वकील प्रेमनाथ भट को मार दिया गया। 13 फरवरी 1990 को श्रीनगर के टेलीविजन केंद्र के निदेशक लासा कौल की हत्या की गई। ये तो बड़े लोग थे, साधारण लोगों की हत्या की गिनती ही नहीं थी। इसी दौरान जुलाई से नवंबर 1989 के बीच 70 अपराधी जेल से रिहा किये गये थे, क्यों? इसका जवाब नेशनल कॉन्फ्रेंस की सरकार ने कभी नहीं दिया। 
       नारे लगाए जाते थे- हम क्या चाहते हैं...आजादी, आजादी का मतलब क्या, ला इलाहा इल्लाह। अगर कश्मीर में रहना होगा , अल्लाहु अकबर कहना होगा। ऐ जालिमों , ऐ काफिरों , कश्मीर हमारा है। यहां क्या चलेगा ? निजाम-ए-मुस्तफा रालिव , गालिव या चालिव . (हमारे साथ मिल जाओ , मरो या भाग जाओ)।

  कश्मीरी पंडितों के दिल में वो 30 साल पुरानी दहशत और उनके प्रति जिन्होंने उस रात उन पर अत्याचार किया अब भी गुस्सा बाकी है। चौराहों और मस्जिदों में लाउडस्पीकर लगाकर कहा जाने लगा कि पंडित यहां से चले जाएं। नहीं तो बुरा होगा, इसके बाद लोग लगातार हत्यायें और रेप करने लगे। कहते कि पंडितो , यहां से भाग जाओ , पर अपनी औरतों को यहीं छोड़ जाओ । एक आतंकवादी बिट्टा कराटे ने अकेले 20 लोगों की निर्मम हत्या की थी । 
     सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 60 हजार परिवारों को जान बचाने के लिए कश्मीर छोड़ना पड़ा था । 19 जनवरी 1990 को सबसे ज्यादा लोगों ने कश्मीर छोड़ा था । लगभग 4 लाख लोग विस्थापित हुए थे । जान बचाने के लिए उन्हें आस-पास के राज्यों में जगह तो मिल गई । लेकिन 30 साल बाद आज भी वो अपने देश में शरणार्थी का जीवन जी रहे हैं। देश की जनता को 30 साल पहले की उस ख़ौफ़नाक रात का इल्म है. कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार का अहसास है ।

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कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास
    विस्थापित परिवारों के लिए तमाम राज्य सरकारें और केंद्र सरकार तरह-तरह के पैकेज निकालती रहती हैं। कभी घर देने की बात करते हैं, कभी पैसा. पर इन सालों में मात्र एक परिवार वापस लौटा है। क्योंकि 1990 के बाद भी कुछ लोगों ने वहां रुकने का फैसला किया था। पर 1997, 1998 और 2003 में फिर नरसंहार हुए थे। सच यही है कि जिस प्रॉपर्टी पर लोगों ने कब्जा कर लिया है,लौटने की कोई गुंजाइश नहीं है। 
  नरेंद्र मोदी की सरकार ने 2015 में कश्मीरी पंडितों के पुनर्वास के लिए 2 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। पर सबसे बड़ी बात कि अपराधियों के बारे में कोई बात नहीं होती है. सब चैन की नींद काट रहे हैं। किसी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। ये सारी बातें इस्लामिक मैजॉरिटी की जो कि कंट्रोल खो देने पर हिन्दू माइनॉरिटी के लिए कहर बन जाती हैं ।



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