तेजाजी के आत्म - बलिदान दिवस को मनायी जाती है तेजा दसमी
वीर तेजाजी .....
तेजाजी महाराज लोक देवता हैं इन्हे सभी लोग पूजते है। उनके निर्वाण दिवस को उत्सव के रूप में मनाया जाता है। विशेषकर इस दिन दाल बाटी चूरमा का भोग लगता है। लगभग सभी अपने घरों में भी यही भोजन बनाते है। गांव गांव में तजाजी के थानकों का आयोजन होता है।
तेजाजी राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात प्रान्तों में लोकदेवता के रूप में पूजे जाते हैं। किसान वर्ग अपनी खेती की खुशहाली के लिये तेजाजी को पूजता है। तेजाजी के वंशज मध्यभारत के खिलचीपुर से आकर मारवाड़ में बसे थे। नागवंश के धवलराव अर्थात धौलाराव के नाम पर धौल्या गौत्र शुरू हुआ। तेजाजी के बुजुर्ग उदयराज ने खड़नाल पर कब्जा कर अपनी राजधानी बनाया। खड़नाल परगने में 24 गांव थे।
तेजाजी ने ग्यारवीं शदी में गायों की डाकुओं से रक्षा करने में अपने प्राण दांव पर लगा दिये थे। वे खड़नाल गाँव के निवासी थे। भादो शुक्ला दशमी को तेजाजी का पूजन होता है। तेजाजी का भारत के जाटों में महत्वपूर्ण स्थान है। तेजाजी सत्यवादी और दिये हुये वचन पर अटल थे। उन्होंने अपने आत्म - बलिदान तथा सदाचारी जीवन से अमरत्व प्राप्त किया था। उन्होंने अपने धार्मिक विचारों से जनसाधारण को सद्मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया और जनसेवा के कारण निष्ठा अर्जित की। जात - पांत की बुराइयों पर रोक लगाई। शुद्रों को मंदिरों में प्रवेश दिलाया। पुरोहितों के आडंबरों का विरोध किया। तेजाजी के मंदिरों में निम्न वर्गों के लोग पुजारी का काम करते हैं। समाज सुधार का इतना पुराना कोई और उदाहरण नहीं है। उन्होंने जनसाधारण के हृदय में सनातन धर्म के प्रति लुप्त विश्वास को पुन: जागृत किया। इस प्रकार तेजाजी ने अपने सद्कार्यों एवं प्रवचनों से जन - साधारण में नवचेतना जागृत की, लोगों की जात - पांत में आस्था कम हो गई। कर्म,शक्ति,भक्ति व् वैराग्य का एक साथ समायोजन दुनियां में सिर्फ वीर तेजाजी के जीवन में ही देखने को मिलता हैं।
कथा
लोकदेवता वीर तेजाजी का जन्म नागौर जिले में खड़नाल गांव में ताहरजी (थिरराज) और रामकुंवरी के घर माघ शुक्ल, चौदस संवत 1130 यथा 29 जनवरी 1074 को जाट परिवार में हुआ था। उनके पिता गांव के मुखिया थे। वे बचपन से ही वीर, साहसी एवं अवतारी पुरुष थे।
बचपन में ही तेजाजी के साहसिक कारनामों से लोग आश्चर्यचकित रह जाते थे। एक बार अपने साथी के साथ तेजा अपनी बहन पेमल को लेने उसकी ससुराल गए। बहन पेमल की ससुराल जाने पर वीर तेजा को पता चलता है कि मेणा नामक डाकू अपने साथियों के साथ पेमल की ससुराल की सारी गायों को लूट ले गया। वीर तेजा अपने साथी के साथ जंगल में मेणा डाकू से गायों को छुड़ाने के लिए गए। रास्ते में एक बांबी के पास भाषक नामक सांप घोड़े के सामने आ जाता है एवं तेजा को डँसना चाहता है। तब तेजा उसे वचन देते हैं कि अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद मैं वापस यहीं आऊंगा, तब मुझे डँस लेना।
अपने वचन का पालन करने के लिए डाकू से अपनी बहन की गाएं छुड़ाने के बाद लहुलुहान अवस्था में तेजा नाग के पास आते हैं। तेजा को घायल अवस्था में देखकर नाग कहता है कि तुम्हारा तो पूरा शरीर कटा-पिटा है। मैं दंश कहाँ मारूँ। तब वीर तेजा उसे अपनी जीभ पर काटने के लिए कहते हैं। वीर तेजा की वचनबद्धता को देखकर नाग उन्हें आशीर्वाद देते हुए कहता है कि "आज के दिन (भाद्रपद शुक्ल दशमी) से पृथ्वी पर कोई भी प्राणी, जो सर्पदंश से पीडि़त होगा, उसे तुम्हारे नाम की ताँती बाँधने पर जहर का कोई असर नहीं होगा।" उसके बाद नाग तेजाजी की जीभ पर दंश मारता है। तभी से भाद्रपद शुक्ल दशमी को तेजाजी के मंदिरों में श्रृद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है और सर्पदंश से पीडि़त व्यक्ति वहाँ जाकर तांती खोलते हैं।
ऐसे सत्यवादी और शूरवीर तेजाजी महाराज के पर्व पर उनके स्थानों पर लोग मन्नत पूरी होने पर पवित्र निशान चढ़ाते हैं तथा पूजन-अर्चन के साथ कई स्थानों पर मेले के आयोजन भी होते है। लोकदेवता तेजाजी के निर्वाण दिवस भाद्रपद शुक्ल दशमी को प्रतिवर्ष तेजादशमी के रूप में मनाया जाता है। इस दौरान शोभायात्रा के रूप में तेजाजी की सवारी निकलेगी और भंडारे के आयोजन भी होंगे।
तेजाजी महाराज की जयंती पर पहली बार वंशावली का वाचन
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नागौर। लोक देवता वीर तेजाजी महाराज की जयंती की तारीख और दंत कथाओं के अनुसार बताई गई तारीख में 113 साल का अंतर सामने आया है। यह खुलासा सोमवार को खरनाल में तेजाजी महाराज के वंशावली वाचन कार्यक्रम में हुआ। जब तेजा गायन से जयंती कार्यक्रम शुरू होने के बाद जाट समाज के धोलिया गौत्र की वंशावली का वाचन शुरू किया गया।
जिसमें कई जानकारियां सामने आई जो आज तक न किसी न जानी न सुनी। किशनगढ़ भाट परिवार के बजरंगलाल के पास तेजाजी महाराज की पूरी वंशावली है। वे खुद जयंती कार्यक्रम में खरनाल पहुंचे और तेजा भक्तों के बीच वंशावली सुनाई।
पेश है भास्कर लाइव विशेष रिपोर्ट :
अब तक भजनों और किताबों सहित दंत कथाओं व लोक कथाओं में तेजाजी के जीवन से जुड़ी जानकारियां मिल रही थी, मगर कई तथ्यों में परिवर्तन के कारण तेजाजी महाराज के भक्ता असमंजस में थे कि किन तथ्यों को सही माना जाए। तेजाजी 946वीं जयंती के अवसर पर हुए एक हजार साल पुरानी वंशावली के वाचन ने सब कुछ सामने ला दिया। सोमवार को खरनाल स्थित मंदिर परिसर में किशनगढ़ के बजरंगलाल भाट ने वंशावली वाचन किया। जिसमें तेजाजी के जीवन से जुड़ी व धोलिया गौत्र की उत्पति को लेकर सारी बाते सामने आई। वंशावली से पहले तेजा गायन दरियावराम धौलिया के नेतृत्व में खरनाल की पार्टी द्वारा किया गया। इस दौरान जिला प्रभारी मंत्री सुखराम विश्नोई ने भी शिरकत की। इस मौके पर भंवरूराम धौलिया, शिवकरण धौलिया, हरीराम जाजड़ा, जगदीश धौलिया, जयपाल धौलिया आदि मौजूद रहे।
-धवलराम ने रखी थी तब के खड़नाल और अब के खरनाल की नींव
वंशावली में सामने आया कि जब भारत में आक्रांता मोहम्मद गौरी ने 11वीं शताब्दी में यहां के हिंदुओं को मुस्लिम धर्म अपनाने या अपनी बेटियों की शादी उनसे करने के लिए बाध्य करना शुरू कर दिया। जिस पर राजाअों व ग्रामीण मुखियाओं ने अपना स्थान बदलकर अपने नाम से ही गौत्र रख लिया तथा दूर दूर गांव बसाकर रहने लगे। इस दौरान खींची क्षत्रिय वंश के धवलराम व बन्नाराम दो भाई थे। जिनमें धवलराम ने विक्रम संवत 1122 में खड़नाल व बन्नाराम ने भदाणा गांव की नींव रखी। धवलराम के वंशज धौलिया कहलाए व बन्नाराम के वंशज बाना। आज भी बाना और धौलिया आपस में भाई-भाई का रिश्ता मानते है।
-दंत कथा और वंशावली में तेजाजी महाराज के जन्म में 113 साल का अंतर
दंत कथाओं में अब तक बताया जा रहा था कि तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है। तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था। वहीं दंत कथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 बताया गया है जबकि सच यह है कि तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी। हालांकि तिथि भादवा की दशम ही है।
-तेजाजी पिता के एक ही पुत्र थे
दंत कथाओं में तेजाजी के चार से पांच भाई बताए गए थे जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी। तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे। जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र चला। धोलिया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी। इसके बाद वि.सं. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैल गई।
आगे क्या : किताब छपवाएंगे और श्रद्धालुओं को देंगे सही जानकारी
अखिल भारतीय वीर तेजा जाट जन्मस्थली संस्थान खरनाल के अध्यक्ष सुखराम खुड़खुड़िया ने बताया कि वीर तेजाजी महाराज के नाम से किताब छपवाकर उनमें सही जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही दंत कथाओं के आधार पर भजन व वीडियो शूटिंग करने वालों को भी जागरूक किया जाएगा कि सही जानकारी का प्रकाशन करें ताकि श्रद्धालु भ्रमित न हों। इसके लिए विशेष कमेटी भी बनाई जाएगी।
नागौर। लोक देवता वीर तेजाजी महाराज की जयंती की तारीख और दंत कथाओं के अनुसार बताई गई तारीख में 113 साल का अंतर सामने आया है। यह खुलासा सोमवार को खरनाल में तेजाजी महाराज के वंशावली वाचन कार्यक्रम में हुआ। जब तेजा गायन से जयंती कार्यक्रम शुरू होने के बाद जाट समाज के धोलिया गौत्र की वंशावली का वाचन शुरू किया गया।
जिसमें कई जानकारियां सामने आई जो आज तक न किसी न जानी न सुनी। किशनगढ़ भाट परिवार के बजरंगलाल के पास तेजाजी महाराज की पूरी वंशावली है। वे खुद जयंती कार्यक्रम में खरनाल पहुंचे और तेजा भक्तों के बीच वंशावली सुनाई।
पेश है भास्कर लाइव विशेष रिपोर्ट :
अब तक भजनों और किताबों सहित दंत कथाओं व लोक कथाओं में तेजाजी के जीवन से जुड़ी जानकारियां मिल रही थी, मगर कई तथ्यों में परिवर्तन के कारण तेजाजी महाराज के भक्ता असमंजस में थे कि किन तथ्यों को सही माना जाए। तेजाजी 946वीं जयंती के अवसर पर हुए एक हजार साल पुरानी वंशावली के वाचन ने सब कुछ सामने ला दिया। सोमवार को खरनाल स्थित मंदिर परिसर में किशनगढ़ के बजरंगलाल भाट ने वंशावली वाचन किया। जिसमें तेजाजी के जीवन से जुड़ी व धोलिया गौत्र की उत्पति को लेकर सारी बाते सामने आई। वंशावली से पहले तेजा गायन दरियावराम धौलिया के नेतृत्व में खरनाल की पार्टी द्वारा किया गया। इस दौरान जिला प्रभारी मंत्री सुखराम विश्नोई ने भी शिरकत की। इस मौके पर भंवरूराम धौलिया, शिवकरण धौलिया, हरीराम जाजड़ा, जगदीश धौलिया, जयपाल धौलिया आदि मौजूद रहे।
-धवलराम ने रखी थी तब के खड़नाल और अब के खरनाल की नींव
वंशावली में सामने आया कि जब भारत में आक्रांता मोहम्मद गौरी ने 11वीं शताब्दी में यहां के हिंदुओं को मुस्लिम धर्म अपनाने या अपनी बेटियों की शादी उनसे करने के लिए बाध्य करना शुरू कर दिया। जिस पर राजाअों व ग्रामीण मुखियाओं ने अपना स्थान बदलकर अपने नाम से ही गौत्र रख लिया तथा दूर दूर गांव बसाकर रहने लगे। इस दौरान खींची क्षत्रिय वंश के धवलराम व बन्नाराम दो भाई थे। जिनमें धवलराम ने विक्रम संवत 1122 में खड़नाल व बन्नाराम ने भदाणा गांव की नींव रखी। धवलराम के वंशज धौलिया कहलाए व बन्नाराम के वंशज बाना। आज भी बाना और धौलिया आपस में भाई-भाई का रिश्ता मानते है।
-दंत कथा और वंशावली में तेजाजी महाराज के जन्म में 113 साल का अंतर
दंत कथाओं में अब तक बताया जा रहा था कि तेजाजी का जन्म माघ सुदी चतुर्दशी को 1130 में हुआ था जबकि ऐसा नहीं है। तेजाजी का जन्म विक्रम संवत 1243 के माघ सुदी चौदस को हुआ था। वहीं दंत कथाओं में तेजाजी की वीर गति का साल 1160 बताया गया है जबकि सच यह है कि तेजाजी को 1292 में वीर गति अजमेर के पनेर के पास सुरसुरा में प्राप्त हुई थी। हालांकि तिथि भादवा की दशम ही है।
-तेजाजी पिता के एक ही पुत्र थे
दंत कथाओं में तेजाजी के चार से पांच भाई बताए गए थे जबकि वंशावली के अनुसार तेजाजी तेहड़जी के एक ही पुत्र थे तथा तीन पुत्रियां कल्याणी, बुंगरी व राजल थी। तेजाजी के पिता तेहड़जी के कहड़जी, कल्याणजी, देवसी, दोसोजी चार भाई थे। जिनमें देवसी की संतानों से आगे धोलिया गौत्र चला। धोलिया वंश की उत्पति खरनाल से ही हुई थी। इसके बाद वि.सं. 1650 में कुछ लोग गांव छोड़कर दूसरी जगहों पर जाकर बस गए जिससे राज्य भर में धोलिया जाति फैल गई।
आगे क्या : किताब छपवाएंगे और श्रद्धालुओं को देंगे सही जानकारी
अखिल भारतीय वीर तेजा जाट जन्मस्थली संस्थान खरनाल के अध्यक्ष सुखराम खुड़खुड़िया ने बताया कि वीर तेजाजी महाराज के नाम से किताब छपवाकर उनमें सही जानकारी दी जाएगी। इसके साथ ही दंत कथाओं के आधार पर भजन व वीडियो शूटिंग करने वालों को भी जागरूक किया जाएगा कि सही जानकारी का प्रकाशन करें ताकि श्रद्धालु भ्रमित न हों। इसके लिए विशेष कमेटी भी बनाई जाएगी।
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