भारत को अफगानिस्तान में दखल रखना होगा - अरविन्द सिसौदिया
भारत को एक देश के रूप में अफगानिस्तान में अपना दखल रखना होगा । दखल रखे बिना हम वहां की जमीनी हकीकतों को कैसे जानेंगे ? हमारे फायदों और नुकसानात की सही समीक्षा तभी संभव है जब वहां की सही हकीकत से हम रूबरू हों। इसलिये मेरा व्यक्तिगत मानना यह है कि कतर की राजधानी दोहा में भारतीय राजदूत दीपक मित्तल का तालिबान प्रतिनिधि शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई से मिलना सही निर्णय था ।
सकारात्मकता के तकाजे पर हमने सही निर्णय लिया और भारतीयों की हिफाजत एवं उन्हे सुरक्षित वहां से निकालने की प्राथमिकता तालिबान को बताना भी सही है। बातचीत के बिना, न तो कोई संशय समाप्त होता, न अनुमानों की स्पष्टता आती है और न ही कोई हल कभी निकलता हे। बिना बात हम अफगानिस्तान को अपना दुश्मन क्यों बनायें। उससे या उसकी नई सरकार से जब भी गलती होगी, तो हम भी तो निर्णय लेने के लिये स्वत्रंत है।
क्रिया - प्रतिक्रिया इस गतिमान विश्व का सतत सत्य है। इसलिये बातचीत को जारी रखना चाहिये, अपना दखल, अपना महत्व और अपना बर्चस्व बनाकर रखना ही ,एक जीवन्त राष्ट्र की शक्ति एवं सार्मथ्य का परिचय होता है। जहां तक देश में समर्थन और विरोध की बाते हे। उन पर ध्यान तो रखना चाहिये मगर राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं करना चाहिये। हम चीन नहीं हैं कि किसी को बोलने तक की आजादी नहीं हे। हम लोकतांत्रिक देश है। सभी को अपनी अभिव्यक्ति की आजादी है।
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पहला औपचारिक संपर्क: तालिबान के अनुरोध पर कतर में हुई भारतीय राजदूत और संगठन के राजनीतिक प्रमुख की बैठक
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, दोहा Published by: कीर्तिवर्धन मिश्र Updated Tue, 31 Aug 2021
सार
कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने पहली बार तालिबान के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई से मुलाकात की।
विस्तार
कतर में भारत और तालिबान के बीच पहला औपचारिक संपर्क हुआ है। विदेश मंत्रालय के मुताबिक, कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने पहली बार तालिबान के नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई से मुलाकात की। बताया गया है कि इस मुलाकात का अनुरोध तालिबान की ओर से ही किया गया था। स्टानेकजई इस वक्त कतर में स्थित तालिबान को राजनीतिक दफ्तर के प्रमुख हैं।
विदेश मंत्रालय की ओर से जारी प्रेस रिलीज में कहा गया है कि तालिबान नेता और भारतीय राजदूत के बीच अफगानिस्तान में मौजूदा समय में फंसे भारतीय नागरिकों की सुरक्षा और उनके जल्द से जल्द भारत लौटने पर चर्चा हुई। ऐसे अफगान नागरिक, खासकर अल्पसंख्यक जो कि भारत जाना चाहते हों, उन्हें लेकर भी भारत ने बात की।
इसके अलावा भारत के राजदूत ने अफगानिस्तान की जमीं को भारत के खिलाफ या आतंकवाद के लिए इस्तेमाल किए जाने पर भी चिंता जाहिर की। हालांकि, तालिबान प्रतिनिधि ने उन्हें सभी मुद्दों पर आश्वासन दिया और कहा कि इन्हें सकारात्मक ढंग से सुलझाया जाएगा।
भारत से बातचीत में अहम चेहरा रहे हैं स्टानेकजई
गौरतलब है कि मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई का नाम तालिबान के वरिष्ठ नेताओं में गिना जाता है। उसके भारत से भी संबंध रहे हैं। बताया जाता है कि शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई देहरादून में भारतीय सैन्य अकादमी (आईएमए) के 1982 बैच में रह चुका है। यहां सहपाठी उन्हें 'शेरू' कह कर बुलाते थे। जब वह आईएमए में भगत बटालियन की केरेन कंपनी में शामिल हुआ था तब उसकी उम्र 20 साल के करीब थी। उसके साथ 44 अन्य विदेशी कैडेट भी इस बटालियन का हिस्सा थे।
भारत-तालिबान की बातचीत में कतर की अहम भूमिका
बता दें कि अफगानिस्तान में स्थिति को लेकर भारत और कतर लगातार संपर्क में रहे हैं। संघर्ष समाधान के लिए कतर के विशेष राजदूत मुतलक बिन माजिद अल-कहतानी इसी महीने की शुरुआत में नई दिल्ली आए थे। उन्होंने भारत को अफगानिस्तान के हालात पर चर्चा के लिए कतर बुलाया था। बता दें कि तालिबान का इकलौता राजनीतिक दफ्तर 2013 से कतर में ही है। कतर के दोहा में ही तालिबान, अफगान सरकार और अमेरिका के बीच अफगानिस्तान में सत्ता समझौते को लेकर बातचीत हुई थी।
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मशहूर हस्तियों ने तालिबान के साथ सरकार की बातचीत का किया समर्थन, अफगान संकट का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण में इस्तेमाल के खिलाफ चेताया
Edited byचन्द्र प्रकाश पाण्डेय | भाषाUpdated: Sep 1, 2021,
पूर्व विदेश मंत्रियों नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा समेत कई जानी-मानी हस्तियों ने सरकार से अपील की है कि वह तालिबान के साथ बातचीत जारी रखे। हस्तियों ने सरकार से यह भी कहा
नई दिल्ली |
अफगानिस्तान की स्थिति पर चिंता जाहिर करते हुए पूर्व मंत्रियों- नटवर सिंह, यशवंत सिन्हा और मणिशंकर अय्यर समेत मशहूर हस्तियों के एक समूह ने बुधवार को सरकार से तालिबान के साथ संवाद जारी रखने की अपील की है। इन हस्तियों से साथ में यह भी कहा है कि किसी भी राजनीतिक दल को उस देश के घटनाक्रम का चुनावी फायदे के वास्ते भारतीय समाज को सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत करने के लिए इस्तेमाल नहीं करने देने दी जाए ।
इस समूह ने ‘इंडियन फ्रेंड्स ऑफ अफगानिस्तान’ के बैनर तले जारी किए गए एक बयान में कहा कि अफगान शांति, राष्ट्रीय सुलह एवं राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के पथ पर आगे बढ़ने को प्रयासरत हैं तो ऐसे में भारतीय उनके साथ एकजुटता के साथ खड़े हैं।
समूह ने कहा कि भारत के लोग इस मुश्किल दौर में अफगानिस्तान के लोगों के साथ खड़े हैं और अफगानिस्तान के खुद्दार, देशभक्त एवं बहादुर लोगों ने हर आक्रमणकारी सेना को हराया है एवं उन्होंने कट्टरपंथ एवं आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रखी है।
स बयान पर पूर्व विदेश मंत्रियों-नटवर सिंह एवं यशवंत सिन्हा, पूर्व राजनयिक एवं कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर, रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी जूलियो रेबेरियो, पूर्व आईएएस अधिकारी एवं जामिया मिलिया इस्लामिया के पूर्व कुलपति नजीब जंग, अफगान मामलों के विशेषज्ञ वेदप्रताप वैदिक, वरिष्ठ पत्रकार सईद नकवी, पूर्व राजनयिक के सी सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता संदीप पांडे, पूर्व राज्यसभा सदस्य माजिद मेनन और फोरम फॉर न्यू साउथ एशिया के संस्थापक सुधींद्र कुलकर्णी के हस्ताक्षर हैं।
समूह ने भारत सरकार से अपील की है कि भारत तालिबान के साथ संवाद जारी रखे। उसने कहा, ‘दोहा में तालिबान के साथ सरकार के संवाद की उसके द्वारा आधिकारिक स्वीकृति और तालिबान की तरफ से दिए गए आश्वासन का हम स्वागत करते हैं।’
इन हस्तियों ने बयान में कहा कि अपना वतन छोड़ने को मजबूर हुए अफगानों को आश्रय देने में धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने भारत से अफगान पत्रकारों, कलाकारों एवं सभ्य नागरिक समाज के नेताओं को अस्थायी रूप से ठहरने के लिए इजाजत देने का आह्वान किया जो अपने देश की स्थिति के चलते खतरा महसूस कर रहे हैं।
समूह ने कहा, ‘किसी भी राजनीतिक दल को अफगानिस्तान के घटनाक्रम का चुनावी फायदे के वास्ते भारतीय समाज को सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकृत करने के लिए इस्तेमाल नहीं करने दिया जाना चाहिए।’
उसने तालिबान एवं अफगानिस्तान की अन्य राजनीतिक ताकतों से भी अपील की कि देश को एक ऐसी समावेशी सरकार की जरूरत है जो चार दशक की लड़ाई एवं हिंसा के बाद राष्ट्रीय सुलह का मार्ग सुगम बनाए।
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