सोमवार : देवों के देव महादेव भगवान शिव शंकर का दिन
सोमवार :
देवों के देव महादेव भगवान शिव शंकर का दिन
जिस प्रकार इस ब्रह्माण्ड का ना कोई अंत है, न कोई छोर और न ही कोई शूरुआत,उसी प्रकार शिव अनादि है सम्पूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है जब कुछ नहीं था तब भी शिव थे जब कुछ न होगा तब भी शिव ही होंगे।
शिव को महाकाल कहा जाता है, अर्थात समय। शिव अपने इस स्वरूप द्वारा पूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। इसी स्वरूप द्वारा परमात्मा ने अपने ओज व उष्णता की शक्ति से सभी ग्रहों को एकत्रित कर रखा है। परमात्मा का यह स्वरूप अत्यंत ही कल्याणकारी माना जाता है क्योंकि पूर्ण सृष्टि का आधार इसी स्वरूप पर टिका हुआ है।
भगवान शिव शंकर सबसे सहज एवं आम जन के देव हैं। उनकी पूजा बहुत ही सरल है। वे सदैव ही प्रशन्न रहते है। अपने भक्त के साथ रहते है।
हिन्दू सनातन विधान में सातों दिनों के अलग अलग देव है। उस दिन विशेष को पूजा अर्चना स्मरण आदि से देव प्रशनन हो कर अनुकमपा करते है।
सोमवार देवों के देव महादेव का दिन है।
मंगलवार हनुमान जी का है।
बुधवार गणेश जी का दिन है।
गुरूवार भगवान विष्णु जी का दिन है।
शुक्रवार देवों में मातृशक्यिं अर्थात देवीय शक्तियों का दिन है।
शनिवार न्याय के देव शनि महाराज का दिन है।
रविवार प्रत्यक्ष देव सूर्य नारायण का दिन है।
भगवान शिव की पूजा विधि
जलाभिषेक एवं बेल पत्र - जलाभिषेक करते समय ध्यान रहे कि सबसे पहले भगवान गणेश को, फिर मां पार्वती और उसके बाद कार्तिकेय को, फिर नंदी और फिर अंत में शिव प्रतीक शिवलिंग का जलाभिषेक करें। साथ ही “ऊं नमं शिवाय’ मंत्र जाप मन में करते रहें। इस दौरान बेलपत्र भी अर्पित किये जाते है। बेलपत्र नहीं हों तो सिर्फ जल अर्पित किया जाता है।
पंचामृत अभिषेक - इसमें दूध, दही, शहद, शुद्ध घी और चीनी मिलाए. जलाभिषेक की तरह गणेश जी शुरुआत करें. उसके बाद मां पार्वती, कार्तिकेय, नंदी और फिर शिवलिंग पर चढ़ाएं. उसके बाद केसर के जल से स्नान कराएं। फिर इत्र अर्पित करें और वस्त्र पहनाएं। चंदन लगाकर फिर 11 या 21 चावल के दाने चढ़ाएं।
भगावन शिव को माठा चढ़ाएं - शिव को मीठा बहुत पसंद है इसलिए भगवान शिव को मिष्ठान अवश्य चढ़ाएं। मीठे में गुड़ या चीनी भी अर्पित कर सकते हैं। उसके बाद फूल, बेल पत्र, भांग-धतूरा चढ़ाएं. श्रद्धानुसार शुद्ध घी या फिर तिल के तेल का दीपक जलाएं।
शिव चालीसा का करें पाठ - अभिषेक के बाद शिव चालीसा या फिर श्री रुद्राष्टकम् का पाठ करने के बाद भगवान शिव की आरती करें।
भगवान शिव की पूजा-अर्चना से होते हैं यह फायदे :-
मन को शांति मिलती है।
मनोकामना की पूर्ति होती है।
जीवन में आ रही परेशानियां दूर हो जाती है।
गृहस्थ जीवन में खुशियां आती हैं।
पापों का नाश होता है।
बीमारियां दूर होती हैं।
मन और दिमाग को शांति मिलती है।
शत्रुओं का नाश होता है।
जीवन में समृद्धि की प्राप्ति होती है।
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जल अभिषेक एवं बेल पत्र क्यों
माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब हलाहल विष निकला तो उसके असर से सृष्टि का विनाश होने लगा, इसे रोकने के लिए महादेव ने हलाहल को पीकर अपने कंठ में रोक लिया। इसकी वजह से उन्हें बहुत जलन होना शुरू हो गई और कंठ नीला पड़ गया। चूंकि बेलपत्र विष के प्रभाव को कम करता है लिहाजा देवी-देवताओं ने उनकी जलन को कम करने के लिए उन्हें बेलपत्र देना शुरू किया और महादेव बेलपत्र चबाने लगे।
इस दौरान उनके सिर को ठंडा रखने के लिए जल भी अर्पित किया गया। बेलपत्र और जल के प्रभाव से भोलेनाथ के शरीर में उत्पन्न गर्मी शांत हो गई। इसके बाद उनका एक नाम नीलकंठ भी पड़ गया। तभी से महादेव पर जल और बेलपत्र चढ़ाने की परंपरा शुरू हो गई।
बेलपत्र के हैं कुछ नियम :-
1. बेलपत्र की तीन पत्तियों वाला गुच्छा भगवान शिव को चढ़ाया जाता है। माना जाता है कि इसके मूलभाग में सभी तीर्थों का वास होता है।
2. यदि महादेव को सोमवार के दिन बेलपत्र चढ़ाना है तो उसे रविवार के दिन ही तोड़ लेना चाहिए क्योंकि सोमवार को बेल पत्र नहीं तोड़ा जाता है। इसके अलावा चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या को संक्रांति के समय भी बेलपत्र तोड़ने की मनाही है।
3. बेलपत्र कभी अशुद्ध नहीं होता। पहले से चढ़ाया हुआ बेलपत्र भी फिर से धोकर चढ़ाया जा सकता है।
4. बेलपत्र की कटी-फटी पत्तियां कभी भी नहीं चढ़ानी चाहिए। इन्हें खंडित माना जाता है।
5. बेलपत्र भगवान शिव को हमेशा उल्टा चढ़ाया जाता है। यानी चिकनी सतह की तरफ वाला वाला भाग शिवजी की प्रतिमा से स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं। बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं. इसके साथ शिव जी का जलाभिषेक भी जरूर करें।
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