प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की UNGA में सिंह गर्जना, संयुक्त राष्ट्र प्रभावशाली बनें
- अरविन्द सिसौदिया 9414180151
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी ने जिस विश्वनेता की तरह विश्व मंच पर संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत दर्ज कह है वह एक महान सहास और देव दुलर्भ है। अन्यथा वहां अच्छे अच्छे देश सिर्फ चुप्पी साधे रहते हैं या बाहियात की शेखी बघारते है। मोदी जी ने गरिमापूर्ण तरीके के साथ संयुक्त राष्ट्र, चीन और पाकिस्तान सहित आतंकबाद पर प्रश्न खडे किये । भारत का मान बढाया । इसके लिये उन्हे कोटि कोटि धन्यवाद मोदी जी ।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में सिंह गर्जना के साथ बडी स्पष्टता से चेताते हुये कहा “ भारत के महान कूटनीतिज्ञ , आचार्य चाणक्य ने सदियों पहले कहा था में कहा “ कालाति क्रमात काल एव पलम् पिवते” अर्थात जब सही काम सही समय पर नहीं किया जाता, तो समय ही उस कार्य की सफलता को समाप्त कर देता है। “ सयुक्त राष्ट्र को खुद को प्रासंगिक बनाये रखना है तो उसे अपनी इफेक्टिवनेश ( प्रभावकारिता ) को सुधारना होगा और रिलायटीविटी ( विश्वसनीयता )को बढाना होगा ।
यू एन पर आज कई तरह के सवाल खडे हो रहे है। इन सवालों को हमने क्लाईमेट क्राईसेस मे देखा हैं, कोबिड के दौरान देखा है, दुनिया के कई हिस्सों में चल रहे प्रॉक्सी वॉर, आतंकवाद और अभी अफगानिस्तान संकट में इन सवालों को और गहरा कर दिया है। कोविड के आरीजन्स ( उत्पत्ति ) के संदर्भ में और एज ऑफ डूइंग बिजनेस रैंकिंग को लेकर , वैश्विक गवर्नेंस से जुडी संस्थाओं ने , दसकों के परिश्रम से बनी अपनी विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है। ये आवश्यक है कि हम यू एन (संयुक्त राष्ट्र) को ग्लोबल ऑर्डर, ग्लोबल लॉ और और ग्लोबल वैल्यू के संरक्षण के लिए निरंतर सुदृढ़ करें
प्रधानमंत्री मोदी जी यहीं नहीं रूके बल्कि इससे आगे भी सिंह गर्जना राह रखते हयु उन्होने कहा “रिग्रकसिव थिंकिंग के साथ जो देश आतंकवाद का पोलिटिकल टूल के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। उन्हे यह समझना होगा कि आतंकवाद उनके लिये भी उजना ही बडा खतारा है। यह सुनिश्चित किया जाना जरूर है कि अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमालआतंकवाद फैलाने और आतंकी हमलों के लिये न हो।
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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा 2021 में दिये गये संबोधन का लिंक
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अध्यक्ष महोदय,
संयुक्त राष्ट्र की 75वीं वर्षगांठ पर, मैं, भारत के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों की तरफ से, प्रत्येक सदस्य देश को बहुत-बहुत बधाई देता हूं।भारत को इस बात का बहुत गर्व है कि वो संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक देशों में से एक है।आज के इस ऐतिहासिक अवसर पर, मैं आप सभी के सामने भारत के 130 करोड़ लोगों की भावनाएं, इस वैश्विक मंच पर साझा करने आया हूं।
अध्यक्ष महोदय,
1945 की दुनिया निश्चित तौर पर आज से बहुत अलग थी।पूरा वैश्विक माहौल, साधन-संसाधन, समस्याएं-समाधान सब कुछ भिन्न थे। ऐसे में विश्व कल्याण की भावना के साथ जिस संस्था का गठन हुआ, जिस स्वरूप में गठन हुआ वो भी उस समय के हिसाब से ही था। आज हम एक बिल्कुल अलग दौर में हैं। २१वीं सदी में हमारे वर्तमान की, हमारे भविष्य की, आवश्यकताएं और चुनौतियां अब कुछ और हैं। इसलिए आज पूरे विश्व समुदाय के सामने एक बहुत बड़ा सवाल है कि जिस संस्था का गठन तब की परिस्थितियों में हुआ था, उसका स्वरूप क्या आज भी प्रासंगिक है? सदी बदल जाये और हम न बदलें तो बदलाव लाने की ताकत भी कमजोर हो जाती है |
अगर हम बीते 75 वर्षों में संयुक्त राष्ट्र की उपलब्धियों का मूल्यांकन करें, तो अनेक उपलब्धियां दिखाई देती हैं। लेकिन इसके साथ ही अनेक ऐसे उदाहरण भी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के सामने गंभीर आत्ममंथन की आवश्यकता खड़ी करते हैं।ये बात सही है कि कहने को तो तीसरा विश्व युद्ध नहीं हुआ, लेकिन इस बात को नकार नहीं सकते कि अनेकों युद्ध हुए, अनेकों गृहयुद्ध भी हुए। कितने ही आतंकी हमलों ने पूरी दुनिया को थर्रा कर रख दिया, खून की नदियां बहती रहीं। इन युद्धों में, इन हमलों में, जो मारे गए, वो हमारी-आपकी तरह इंसान ही थे। वो लाखों मासूम बच्चे जिन्हें दुनिया पर छा जाना था, वो दुनिया छोड़कर चले गए। कितने ही लोगों को अपने जीवन भर की पूंजी गंवानी पड़ी, अपने सपनों का घर छोड़ना पड़ा। उस समय और आज भी, संयुक्त राष्ट्र के प्रयास क्या पर्याप्त थे? पिछले 8-9 महीने से पूरा विश्व कोरोना वैश्विक महामारी से संघर्ष कर रहा है। इस वैश्विक महामारी से निपटने के प्रयासों में संयुक्त राष्ट्र कहां है, एक प्रभावशाली Response कहां है?
अध्यक्ष महोदय,
संयुक्त राष्ट्र की प्रतिक्रियाओं में बदलाव, व्यवस्थाओं में बदलाव, स्वरूप में बदलाव, आज समय की मांग है। संयुक्त राष्ट्र का भारत में जो सम्मान है, भारत के 130 करोड़ से ज्यादा लोगों का इस वैश्विक संस्था पर जो अटूट विश्वास है, वो आपको बहुत कम देशों में मिलेगा। लेकिन ये भी उतनी ही बड़ी सच्चाई है कि भारत के लोग संयुक्त राष्ट्र के reforms को लेकर जो Process चल रहा है, उसके पूरा होने का बहुत लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं। आज भारत के लोग चिंतित हैं कि क्या ये Process कभी एक logical end तक पहुंच पाएगा। आखिर कब तक, भारत को संयुक्त राष्ट्र के decision making structures से अलग रखा जाएगा? एक ऐसा देश, जो दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, एक ऐसा देश, जहां विश्व की 18 प्रतिशत से ज्यादा जनसंख्या रहती है, एक ऐसा देश, जहां सैकड़ों भाषाएं हैं, सैकड़ों बोलियां हैं, अनेकों पंथ हैं, अनेकों विचारधाराएं हैं, जिस देश ने सैकड़ों वर्षों तक वैश्विक अर्थव्यवस्था का नेतृत्व करने और सैकड़ों वर्षों की गुलामी, दोनों को जिया है
अध्यक्ष महोदय,
जब हम मजबूत थे तो दुनिया को कभी सताया नहीं, जब हम मजबूर थे तो दुनिया पर कभी बोझ नहीं बने।
अध्यक्ष महोदय,
जिस देश में हो रहे परिवर्तनों का प्रभाव दुनिया के बहुत बड़े हिस्से पर पड़ता है, उस देश को आखिर कब तक इंतजार करना पड़ेगा?
अध्यक्ष महोदय,
संयुक्त राष्ट्र जिन आदर्शों के साथ स्थापित हुआ था और भारत की मूल दार्शनिक सोच बहुत मिलती जुलती है, अलग नहीं है। संयुक्त राष्ट्र के इसी हॉल में ये शब्द अनेकों बार गूंजा है- वसुधैव कुटुम्बकम। हम पूरे विश्व को एक परिवार मानते हैं। यह हमारी संस्कृति, संस्कार और सोच का हिस्सा है। संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने हमेशा विश्व कल्याण को ही प्राथमिकता दी है। भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना के लिए लगभग 50 peacekeeping missions में अपने जांबाज सैनिक भेजे। भारत वो देश है जिसने शांति की स्थापना में सबसे ज्यादा अपने वीर सैनिकों को खोया है।आज प्रत्येक भारतवासी, संयुक्त राष्ट्र में अपने योगदान को देखते हुए, संयुक्त राष्ट्र में अपनी व्यापक भूमिका भी देख रहा है।
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यह आवश्यक है कि हम संयुक्त राष्ट्र को ग्लोबल ऑर्डर, ग्लोबल लॉ और और
ग्लोबल वैल्यू के संरक्षण के लिए निरंतर सुदृढ़ करें : पीएम मोदी
भारत, संयुक्त राष्ट्र के उन प्रारम्भिक सदस्यों में शामिल था जिन्होंने 01 जनवरी, 1942 को वाशिंग्टन में संयुक्त राष्ट्र घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे तथा 25 अप्रैल से 26 जून, 1945 तक सेन फ्रांसिस्को में ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र अन्तरराष्ट्रीय संगठन सम्मेलन में भी भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र के संस्थापक सदस्य के रूप में भारत, संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धान्तों का पुरजोर समर्थन करता है और चार्टर के उद्देश्यों को लागू करने तथा संयुक्त राष्ट्र के विशिष्ट कार्यक्रमों और एजेंसियों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
भारत सभी प्रकार के आतंकवाद के प्रति 'पूर्ण असहिष्णुता' के दृष्टिकोण का समर्थन करता रहा है। आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक कानूनी रूपरेखा प्रदान करने के उद्देश्य से भारत ने 1996 में अन्तरराष्ट्रीय आतंकवाद के सम्बन्ध में व्यापक कन्वेंशन का मसौदा तैयार करने की पहल की थी और उसे शीघ्र अति शीघ्र पारित किए जाने के लिए कार्य कर रहा है।
भारत का संयुक्त राष्ट्र के शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी का गौरवशाली इतिहास रहा है और यह 1950 के दशक से ही इन अभियानों में शामिल होता रहा है। अब तक भारत 43 शान्ति स्थापना अभियानों में भागीदारी कर चुका है।
भारत में संयुक्त राष्ट्र
भारत में संयुक्त राष्ट्र के 26 संगठन सेवाएँ दे रहे हैं। स्थानीय समन्वयक (रेज़िडेंट कॉर्डिनेटर), भारत सरकार के लिए संयुक्त राष्ट्र महासचिव के मनोनीत प्रतिनिधि हैं। संयुक्त राष्ट्र भारत को रणनीतिक सहायता देता है ताकि वह गरीबी और असमानता मिटाने की अपनी आकाँक्षाएँ पूरी कर सके तथा वैश्विक स्तर पर स्वीकृत सतत् विकास लक्ष्यों के अनुरूप सतत् विकास को बढ़ावा दे सके। संयुक्त राष्ट्र, विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र भारत को तेज़ी से बदलाव और विकास प्राथमिकताओं के प्रति महत्वाकाँक्षी संकल्पों को पूरा करने में भी समर्थन देता है।
अध्यक्ष महोदय,
अगले वर्ष जनवरी से भारत, सुरक्षा परिषद के अस्थाई सदस्य के तौर पर भी अपना दायित्व निभाएगा। दुनिया के अनेक देशों ने भारत पर जो विश्वास जताया है, मैं उसके लिए सभी साथी देशों का आभार प्रकट करता हूं।विश्व के सब से बड़े लोकतंत्र होने की प्रतिष्ठा और इसके अनुभव को हम विश्व हित के लिए उपयोग करेंगे। हमारा मार्ग जन-कल्याण से जग-कल्याण का है। भारत की आवाज़ हमेशा शांति, सुरक्षा, और समृद्धि के लिए उठेगी।भारत की आवाज़ मानवता, मानव जाति और मानवीय मूल्यों के दुश्मन- आतंकवाद, अवैध हथियारों की तस्करी, ड्रग्स, मनी लाउंडरिंग के खिलाफ उठेगी।
भारत की सांस्कृतिक धरोहर, संस्कार, हजारों वर्षों के अनुभव, हमेशा विकासशील देशों को ताकत देंगे। भारत के अनुभव, भारत की उतार-चढ़ाव से भरी विकास यात्रा, विश्व कल्याण के मार्ग को मजबूत करेगी।
अध्यक्ष महोदय,
भारत विश्व से सीखते हुए, विश्व को अपने अनुभव बांटते हुए आगे बढ़ना चाहता है। मुझे विश्वास है कि अपने 75वें वर्ष में संयुक्त राष्ट्र और सदस्य सभी देश, इस महान संस्था की प्रासंगिकता बनाए रखने के लिए और प्रतिबद्ध होकर काम करेंगे।संयुक्त राष्ट्र में संतुलन और संयुक्त राष्ट्र का सशक्तिकरण, विश्व कल्याण के लिए उतना ही अनिवार्य है। आइए, संयुक्त राष्ट्र के 75वें वर्ष पर हम सब मिल कर अपने आपको विश्व कल्याण के लिए, एक बार फिर समर्पित करने का प्रण लें।
धन्यवाद।
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