तालिबानों के संकेतों पर फूंक - फूंक कर ही कदम रखना होगा - अरविन्द सिसौदिया

 




तालिबान लगातार भारत से सकारात्मकता का संकेत दे रहा है। माना जाता है कि उसने भारत को संदेश भेजा था कि अफगानिस्तान में दूतावास बनाये रखें यानि कि कर्मचारी अधिकारी नहीं हटायें। अभी उनके एक प्रतिनिधि ने दोहा मे भारतीय राजदूत से मुलाकात की है। उनके प्रवक्ता ने कश्मीर मसले से अपने को दूर रखने की बात भी कही है। तीनों संकेतों में हमें संदेश दिया गया है कि फिलहाल नई तालिबान सरकार भारत से टकराना नहीं चाहती है। हो सकता है कि भारत के कुछ स्पष्ट और कठोर संकेतों के क्रम में यह हो । यह भी हो कि तालिबान की यह अस्थायी रणनीति हो । किन्तु हमारे पूर्व अनुभव भी ठीक नहीं है। इसलिये आंखमूंद कर विश्वास भी नहीं और आंख मूंद कर परित्याग भी नहीं की नीती अपनानी होगी ।

वहीं दूसरी बात यह भी है कि तालिबान के जन्म से लेकर आज तक बहुत पानी बह गया । जो सत्ता की मलाई चख लेते हैं वे आक्रमकता पर कायम नहीं रह पाते । संभवतः तालिबान अब अफगानिस्तान में सत्ता सुख भोगना चाहता है। वहां की जनता भी क्रूर शासन नहीं चाहती, वे अभी भाग रहे है। मगर जब भाग नहीं पायेंगे तो वे अपनी बात के लिये लडेंगे भी, मरेंगे भी और मारेंगें भी । यानी कि तालिबानी शासन पूरी तरह निर्विध प्रतीत नहीं हो रहा है।

15 दिन से ज्यादा हो गये अफगान की पुरानें सरकार के राष्ट्रपति को देश ठोड कर भागे किन्तु तालिबान वहां अभी तक अपनी सरकार गठित नहीं कर सका , कई आंतकी गुटों का दबाव और कई दूसरे देशों के दबाव के तहत मामला लटका लगता है। गठित होनें वाली सरकार को अन्तर्राष्ट्रीय मान्यता दिलाने के विषय है। अफगानिस्तान में सरकारी तंत्र की स्थापना और तकनीकी मामलों में भी उसे विश्व के तमाम देशों से सहायता की जरूरत होगी । अन्तर्रराष्ट्रीय व्यापार व्यवसाय उद्योग धंधों के विषय भी रहेंगे। रक्षा सुरक्षा के विषय भी होंगें। अमरीका के साथ कई गुप्त संधियां भी तो होंगी, जिन पर तालिबान बनें रहना चाहते होंगें। तत्काल वह चीन या रूस के गुट में जाना नहीं चाहेगा।  अनेकानेक विषय है। इसलिये भारत को कदम फूंक फूंक कर रखने होंगें। जिसमें वह सक्षम है।



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तालिबान आंदोलन जिसे तालिबान या तालेबान के नाम से भी जाना जाता है, एक सुन्नी इस्लामिक आधारवादी आन्दोलन है जिसकी शुरूआत 1994 में दक्षिणी अफ़ग़ानिस्तान में हुई थी। तालिबान पश्तो भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञानार्थी । ऐसे छात्र, जो इस्लामिक कट्टरपंथ की विचारधारा पर यकीन करते हैं। विकिपीडिया
स्थापना की तारीख और जगह: सितंबर 1994, कंधार, अफ़ग़ानिस्तान
संस्थापक: मोहम्मद उमर, अब्दुल गनी बरादार

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भारत से अच्छे संबंध बनाने के लिए क्यों आतुर दिख रहा है तालिबान?

हिन्दुस्तान,नई दिल्ली
Published By: Aditya Kumar
Wed, 01 Sep 2021 01:11 PM

हालिया दिनों में तालिबान नेताओं ने कई बार कहा है कि भारत इस क्षेत्र का अहम देश है और हम भारत से अच्छे रिश्ते चाहते हैं। तालिबान ने अफगानिस्तान में भारतीय निवेश का स्वागत किया है और कहा है भारत अफगानिस्तान में प्रोजेक्ट्स पर काम करना जारी रख सकता है। तालिबान ने लगातार दावा किया है कि अफगानिस्तान की जमीन का इस्तेमाल किसी भी देश के खिलाफ नहीं किया जाएगा। तो सवाल ये है कि भारत से अच्छे रिश्ते क्यों चाहता है तालिबान?

एक्सपर्ट्स बताते हैं कि तालिबान को पता है कि भारत इस इलाके का अहम देश है और भारत से दुश्मनी लेना ठीक नहीं रहेगा और यही कारण है कि तालिबान भारत से बातचीत करने को लेकर इच्छुक दिख रहा है।


अफगानिस्तान में भारत लगातार विकास के कामों में लगा रहा है। भारत ने कई प्रोजेक्ट्स पूरे किए हैं। लेकिन अभी कई प्रोजेक्ट्स आधे-अधूरे हैं और कई तो शुरू भी नहीं हो सके हैं। ऐसे में तालिबान चाहता है कि भारत इन प्रोजेक्ट्स को पूरा करे और नए प्रोजेक्ट्स पर काम करे ताकि अफगानिस्तान के इन्फ्रास्ट्रक्चर में सुधार हो सके। तालिबान को पता है कि इन प्रोजेक्ट्स के पूरा होने से अफगानिस्तान के विकास की गति बढ़ जाएगी।

अफगानिस्तान दुनिया के सबसे बड़े ड्राई फ्रूट्स उत्पादक देशों में से है और भारत ड्राई फ्रूट्स के लिए दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है। ऐसे में अफगानिस्तान भारत को सामान बेचना चाहता है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य देशों की अपनी उत्पादन क्षमता है लेकिन भारत जैसे बड़ी आबादी वाला देश ड्राई फ्रूट्स के लिए अफगानिस्तान जैसे देश पर निर्भर रहा है। हाल ही में एक तालिबान नेता ने कहा था कि हम (भारत और अफगानिस्तान) पाकिस्तान के जरिए ट्रेड कर सकते हैं। इसके साथ ही एयर कॉरिडोर का रास्ता तो है ही।

हालांकि भारत सरकार ने अब तक साफ़ नहीं किया है कि तालिबान सरकार से भारत के कैसे संबंध होंगे। यह सच है कि भारत ने 31 अगस्त को आधिकारिक तौर पर तालिबान से बातचीत की है लेकिन यह बातचीत किस ओर जाएगी, यह कहना मौजूदा वक्त में मुश्किल है।

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