अफगान जनता की मदद में सर्तकता भी रखनी होगी - अरविन्द सिसौदिया
* - अरविन्द सिसौदिया
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अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को पहले चीन ने, इसके बाद अमेरिका ने , कनाडा ने आर्थिक मदद का ऐलान किया और भी कई देश इस तरह की मदद का ऐलान करेंगे । लेकिन सावधानी बहुत जरूरी है। कारण यह है कि यह सरकार स्पष्ट रूप से आतंकी तालिबान की है । इसमें भयानकतम आतंकी हैं । और स्वयं तालिबानी एक आतंकी संगठन है। अनेकों आतंकी संगठनों से संबंध भी रखता है और यह वही तालिबानी है जिनको पिछले 20 साल से अमेरिका सहित संपूर्ण विश्व बिरादरी में आतंकी मान कर अलग थलग किया हुआ था । ये वही तालिबान सरकार है जिस पर करीब करीब 60 देशों ने आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया था।
अमेरिका सेना की वापिस उनका अंदरूनी मामला था और उनके चुनाव का वायदा था । लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि अमेरिका पीछे हट गया अथवा अमेरिका पराजित हो गया तो , हम आतंकवादियों की मदद करनें लगें अथवा आतंकवाद को मजबूत करने लगे । कहीं ना कहीं यह संपूर्ण विश्व बिरादरी की जिम्मेवारी है कि आतंकवाद पर पूरी तरह नियंत्रण रखें और अंततः उसे समाप्त करें ।
सभी लोकतांत्रिक देशों को सतर्क रहना होगा कि कहीं हम अफगानिस्तान की मदद के बहाने आतंकवाद की मदद तो नहीं कर रहे । आतंकवाद की मदद करना संपूर्ण मानवता के साथ , मानव प्रजाति के साथ, शांति व्यवस्था के साथ , लोकतंत्र के साथ और मानवतावादी नैतिकताओं के साथ कुठाराघात ही होगा , अत्याचार भी होगा , धोखाधड़ी भी होगी ।
इसलिए आर्थिक सहायता करता देशों को इस बात को सुनिश्चित करना चाहिए कि यह मदद आतंकवाद की मदद ना हो। आतंकवाद की जड़े मजबूत करने वाली ना हो । ऐसा ना हो कि सहायता से हथियार खरीदे जाएं और फिर पूरी दुनिया को दहलाया जाए ।
इसलिये सबसे पहले तो यह सुनिश्चित करना चाहिए कि तालिबान सरकार पूरी तरह से मानवतावादी और लोकतांत्रिक मूल्यों की सरकार चलाएं । उनके द्वारा वहां किए जा रहे अत्याचारों को तुरंत रोकें जानें चाहिए । जो भी सहायता घोषित हो रही है, वे सभी वस्तुओं और चीजों के रूप में दी जानी चाहिए । सशर्त दी जानी चाहिए ।
वहां शांति व्यवस्था पहली शर्त हो और आम अफगानी व्यक्ति को लाभ मिल सके यह अनिवार्यता हो । अन्यथा यह सारी सहायता आतंकवाद को मजबूत करेगी और लोकतंत्र को हानि पहुंचायेगी और मानवता का सर्वनाश करेगी। इसलिए संपूर्ण ध्यान रखते हुए इस पर पुनर्विचार किया जाए कि सहायता किस तरह की जा
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