अफगान मसले पर,पाकिस्तान की भूमिका गुंडे़ के बाप जैसी - अरविन्द सिसौदिया

 


 


               अफगान मसले पर, पाकिस्तान की भूमिका गुंडे़ के बाप जैसी - अरविन्द सिसौदिया

पाकिस्तान, अफगानिस्तान के सिंहासन पर तालिबान अतिक्रमण होते ही और पूर्व सरकार के राष्ट्रपति के भाग खडे होते ही खुल कर सामने आ गया । उसका व्यवहार इस तरह का हो गया मानो वह विश्व का लीडर बन गया हो। वह तालिबान के नाम से दुनिया को डराने लगा कि अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को मान्यता और मदद दो नहीं तो बहुत बुरा होगा। समझ में नहीं आता कि तालिबान की सरकार क्या सारी दुनिया जीतने की स्थिती में है ? माना आतंकवाद कुछ मजबूत हुआ है मगर उसके अस्त्र शस्त्रों से लाखों गुणा बलशाली देशों को धमकी देना, कहीं तालिबान सरकार को ही संकट में डालने की कूटनीति तो नहीं है। फिलहाल उसकी भूमिका गुंडे के बाप जैसी हो गई है, जो हर किसी को धमका देता है कि मेरा बेटा नामी गुंण्डा है।

पाकिस्तान विदेश मंत्री शाह मसूद कुरेसी ने कहा अफगानिस्तान को अलग थलग करनें का अंजाम बुरा होगा। दुनिया ने काबुल को अकेला छोड़ा तो खतरनाक अंजाम होगा, दुनिया अफगानिस्तान को इस मुश्किल वक्त में अकेला न छोड़े, क्योंकि इसके गंभीर और खतरनाक नतीजे सामने आ सकते हैं। कुरैशी के मुताबिक, अफगानिस्तान के हालात नहीं सुधरे और उसे इंटरनेशनल कम्युनिटी से मदद नहीं मिली तो यहां सिविल वॉर हो सकता है, आतंकी संगठन यहां फिर ठिकाने बना सकते हैं। जैसे अभी कोई मानवतावादी वहां के सिंहासन पर बैठे हों।

     कुल मिला कर पाकिस्तान एक्सपोज हो चुका है। यूं तो अमेरिका पर आतंकी हमले का मास्टर माइण्ड ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान के एटावाद में ही मारा गया था। मतलब साफ है कि उसे परोक्ष अपरोक्ष पाकिस्तान ने ही झुपा रखा था। तब ही उस पर शक किया जाना चाहिये था। अब अफगानिस्तान मामले में पाकिस्तान की नीति को दुनियाभर में शक की नजर से देखा जा रहा है। उसकी फौज और खुफिया एजेंसियों पर तालिबान की मदद के आरोप सैकड़ों बार लग चुके हैं। कुछ दिन पहले ही उसके एनएसए मोईद यूसुफ ने कहा था- अगर तालिबान को मान्यता नहीं मिली तो दुनिया के सामने एक और 9/11 का खतरा है।

    वह पूरी तरह से तालिबान सरकार को अपने कब्जे में रखने के मंसूबों से काम कर रही है। अभी हाल ही में उसने कुछ अन्य देशों के खुफिया विभागों के साथ गुप्त बैठक की है। कुल मिला कर पाकिस्तान का व्यवहार इस तरह का है कि जैसे अफगानिस्तान पाकिसतान का ही कोई प्रांत हो। इसी लिये अफगान लोग पाकिस्तान के खिलाफ सडकों पर उफन पडे हे।

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कुरैशी का स्काय न्यूज को इंटरव्यू
पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने अमेरिकी न्यूज चैनल ‘स्काय न्यूज’ को इंटरव्यू दिया है। इसमें उन्होंने कई मुद्दों पर बात की। कहा- 1990 के दशक में अफगानिस्तान को अकेला छोड़ दिया गया था। फिर हमने इसके नतीजे देखे। अब वही हालात फिर सामने हैं। पुरानी गलतियों को नहीं दोहराना चाहिए। अगर ऐसा हुआ तो वहां फिर आतंकी पनाहगाहें बन जाएंगी और इसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं। हालांकि, विश्व के सामने इस मामले में कई विकल्प हो सकते हैं।

कुरैशी के मुताबिक, अफगानिस्तान पर ध्यान नहीं दिया गया तो वहां सिविल वॉर हो सकता है, अराजकता फैल सकती है और इसका फायदा आतंकी संगठन उठा सकते हैं। हम ये नहीं चाहेंगे।

एक सवाल पर उलझ गए पाकिस्तान के विदेश मंत्री
कुरैशी से पूछा गया- आपकी बातों से ऐसा लगता है जैसे आप पश्चिमी देशों से यह कहना चाहते हैं कि वो तालिबान हुकूमत को ही मान्यता दें। इस पर उन्होंने गोलमोल जवाब दिया। कहा- आपका अंदाजा सही नहीं है। हम सिर्फ एक मुल्क के तौर पर अपनी बात कहना चाहते हैं। मुझे लगता है कि यह तालिबान 1996 जैसे नहीं हैं। इन्होंने काम करने का तरीका बदला है। हालांकि, तालिबान को भी ये साबित करना होगा। मुझे उनसे काफी उम्मीदें हैं।

कुरैशी के मुताबिक, तालिबान को मुल्क चलाने के लिए फंडिंग और दूसरी विदेशी मदद की सख्त जरूरत है। नहीं तो हालात बद से बदतर होने में देर नहीं लगेगी।

पाकिस्तान का बचाव
तालिबान के काबुल पर कब्जे के बाद राजधानी इस्लामाबाद समेत देश के कई हिस्सों में तालिबानी झंडे फहराए गए। रैलियां भी हुईं। इस सवाल पर कुरैशी फिर फंस गए। उन्होंने कहा- हमारे यहां 40 लाख अफगानी रहते हैं। उनमें से कुछ तालिबान समर्थक हो सकते हैं। यह उनकी ही हरकत है। हम कोई डबल गेम नहीं खेल रहे। तालिबान की मदद के आरोप गलत हैं। उन्हें हमारी कोई जरूरत नहीं है। मैं इतना जरूर कहना चाहूंगा कि अमेरिका को अफगानिस्तान छोड़ने की रणनीति पर अमल करने में जिम्मेदारी का परिचय देना था।

 

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