माता कमलकांता का वीर सपूत ' लव ' ही था परमवीर चक्र से सम्मानित शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा

 


कारगिल युद्ध में अभूतपूर्व वीरता का परिचय देकर भारत की विजयगाथा लिखने वाले, परमवीर चक्र से सम्मानित देश के अमर सपूत कैप्टन विक्रम बत्रा जी की जयंती पर उन्हें सादर वंदन।

भारत माता के वीर सपूत शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा की आज जयंती है। 9 सितंबर 1974 को पालमपुर में जी.एल. बत्रा और श्रीमती कमलकांता बत्रा के घर विक्रम का जन्म हुआ था।

पालमपुर निवासी जी.एल. बत्रा और कमलकांता बत्रा के घर 9 सितंबर 1974 को दो बेटियों के बाद दो जुड़वां बच्चों का जन्म हुआ। माता कमलकांता की श्रीरामचरितमानस में गहरी श्रद्धा थी तो उन्होंने दोनों का नाम लव और कुश रखा। लव यानी विक्रम और कुश यानी विशाल।

   विक्रम सेना में शामिल हो गए। 1999 में करगिल युद्ध शुरू हो गया। इस वक्त विक्रम सेना की 13 जम्मू-कश्मीर राइफल्स में तैनात थे। विक्रम बत्रा के नेतृत्व में टुकड़ी ने हम्प व राकी नाब स्थानों को जीता और इस पर उन्हें कैप्टन बना दिया गया था।

श्रीनगर-लेह मार्ग के ठीक ऊपर महत्वपूर्ण 5140 पॉइंट को पाक सेना से मुक्त कराया। बेहद दुर्गम क्षेत्र होने के बाद भी कैप्टन बत्रा ने 20 जून 1999 को सुबह तीन बजकर 30 मिनट पर इस चोटी को कब्जे में लिया। कैप्टन बत्रा ने जब रेडियो पर कहा- ‘यह दिल मांगे मोर’ तो पूरे देश में उनका नाम छा गया।

इसके बाद 4875 पॉइंट पर कब्जे का मिशन शुरू हुआ। तब आमने-सामने की लड़ाई में पांच दुश्मन सैनिकों को मार गिराया। गंभीर जख्मी होने के बाद भी उन्होंने दुश्मन की ओर ग्रेनेड फेंके। इस ऑपरेशन में विक्रम शहीद हो गए, लेकिन भारतीय सेना को मुश्किल हालातों में जीत दिलाई।

या तो बर्फीली चोटी पर तिरंगा लहराकर आऊंगा, नहीं तो उसी तिरंगे में लिपटकर आऊंगा, पर आऊंगा जरुर - परमवीर चक्र विजेता कैप्टन विक्रम बत्रा : 13 जम्मू.कश्मीर राइफल्स



कैप्टन बत्रा को मरणोपरांत भारत सरकार ने 15 अगस्त 1999 को परमवीर चक्र से सम्मानित किया। उनकी याद में पॉइंट 4875 को बत्रा टॉप नाम दिया गया। राष्ट्रपति के आर नारायणन ने शहीद विक्रम बत्रा के पिता को परमवीर चक्र प्रदान किया।

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