शुक्रवार ईश्वर की देवीय शक्तियों का दिन

 शुक्रवार को करें इन त्रिदेवियों की पूजा, पायें धन, संपत्ति आैर प्रेम का वरदान

शुक्रवार ईश्वर की देवीय शक्तियों का दिन


हिन्दू धर्म विधान में सनातन युग से ही सप्ताह के सातों दिन किसी न किसी देव एवं किसी न किसी ग्रह के लिये समर्पित है। उन्हे उस दिन का देव माना जाता है । पूजा अर्चना के द्वारा उनकी स्तुति की जाती है। मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना की जाती है। इसी क्रम में शुक्रवार हिन्दू देवियों का दिन है। जिस तरह गुरूवार को भगवान विष्णु जी और उनके दसावतारों का पूजन अर्चन किया जा सकता है । उसी प्रकार से शुक्रवार को ईश्वर की सभी देवी शक्तियों का, मातृशक्तियों का पूजन अर्चन किया जा सकता हे। शुक्रवार ईश्वर की देवीय शक्तियों को समर्पित है। सौर मण्डल के ग्रह की दृष्टि से शुक्रवार, शुक्र ग्रह का दिन है। एक समय शुक्रवार के दिन संतोषी माता का व्रत रखने का रिवाज भी बहुत प्रसिद्ध था । उस दिन विशेषकर खटाई नहीं खाई जाती है। संतोषी माता के नाम से बनी फिल्म ने सभी रिकार्ड ध्वस्त किये थे।


शुक्रवार का व्रत अलग-अलग वजहों से रखा जाता है। कुछ लोग संतान की प्राप्ति के लिए इस दिन व्रत रखते हैं तो कुछ खुशहाल जीवन के लिए। बाधाओं को दूर करने के लिए शुक्रवार का व्रत बहुत लाभकारी है।


   सामाजिक स्वरूप में ज्ञान की देवी सरस्वती जी ,शक्ति की देवी माता दुर्गा ( माता पार्वती ) एवं धन की देवी लक्ष्मी जी को प्रमुखता से मान्यता हे। किन्तु सर्वोच्चता क्रम में माता गायत्री को सम्पूर्ण सृजन के विधि विधान का जनक माना गया है। गायत्री मंत्र को सर्वोच्च मान्यता है। इस दृष्टिकोंण से माता गायत्री का पूजन अर्चन भी महत्वपूर्ण होता हे। संतोषी माता के महत्व के दिग्दर्शन होते ही रहे हे। अर्थात हिन्दू धर्म में मातृशक्ति देवियों के स्मरण, पूजन, अर्चन विधान की दृष्टि से शुक्रवार साप्ताहिक  दिन के रूप में मान्य एवं श्रेष्ठ है। देवीय शक्तियों के अनेकानेक स्वरूप एवं विग्रह है। जिसकी जैसी मान्यता है। उनको उस स्वरूप में पूजन जा सकता हे।

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* ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा

यूं तो ज्ञान की देवी सरस्वती का पूजन प्रतिदिन किया जाना चाहिये, विद्यालयों में प्रार्थना स्वरूप माता सरस्वती की आराधना की जाती है। साप्ताहिक पूजा शुक्रवार को की जा सकती है।
ओ माँ सरस्वती ! मेरे मस्तिष्क से अंधेरे रूपी अज्ञान को हटा दो तथा मुझे शाश्वत ज्ञान का आशीर्वाद दो! देवी दुर्गा के नौ अवतारों में से सबसे अहम अवतार सरस्वती मां का माना जाता है. देवी सरस्वती ज्ञान की देवी हैं. इस अंधकारमय जीवन से इंसान को सही राह पर ले जाने का सारा बीड़ा वीणा वादिनी सरस्वती मां के कंधों पर ही है. ज्ञान ही इंसान को उसका लक्ष्य प्राप्त करा सकता है. एक अज्ञानी अपने जीवन में ना तो भौतिक और ना ही अलौकिक लक्ष्यों और मंजिलों की प्राप्ति कर सकता है. यह ज्ञान सिर्फ किताबी ज्ञान ही नहीं व्यवाहारिक ज्ञान भी होता है. देवी सरस्वती के पाठ से ही इंसान को वह एकाग्रता और स्मरण शक्ति मिलती है जो उसे जीवन में सफल बनाती है.बसंत पंचमी के दिन पूरे भारत में मां सरस्वती की पूजा करने की प्रथा है.

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* एेसे करें मां दुर्गा की पूजा

     शुक्रवार का दिन मां दुर्गा का दिन है। इस दिन मां दुर्गा की पूजा करने और उनके मंत्रों का जाप करने का विशेष महत्व होता है। आप शुक्रवार के दिन का आरंभ ‘ऊं श्री दुर्गाय नमः’ के जाप के साथ कर सकते हैं। मां दुर्गा का यह मंत्र मां लक्ष्मी, सरस्वती और काली तीनों शक्तियों की उपासना के लिए है। दुर्गा जी की पूजा के लिए सबसे पहले माता दुर्गा की मूर्ति उनका आवाहन करें। अब माता दुर्गा को स्नान कराएं। स्नान पहले जल से फिर पंचामृत से और वापिस जल से स्नान कराएं। अब माता दुर्गा को वस्त्र अर्पित करें। इसके बाद उन्‍हें आसन पर स्‍थापित करें, फिर आभूषण और पुष्पमाला पहनाएं। अब इत्र अर्पित करें व तिलक करें। तिलक के लिए कुमकुम, अष्टगंध का प्रयोग करें। इसके बाद धूप व दीप अर्पित करें। ध्‍यान रहे कि मां दुर्गा के पूजन में दूर्वा अर्पित नहीं की जाती है। मां को लाल गुड़हल के फूल अर्पित करें। 11 या 21 चावल चढ़ायें और श्रद्धानुसार घी या तेल के दीपक से आरती करें। अब नेवैद्य अर्पित करें। पूजन के पूरा होने पर नारियल का भोग अवश्‍य लगाएं।10-15 मिनट के बाद नारियल को फोड़े और उसका प्रसाद देवी को अर्पित करने के बाद सबमें बांट कर स्‍वयं भी ग्रहण करें। देवी दुर्गा की शक्तियों के अनेकानेक स्वरूप एवं विग्रह है। जिसकी जैसी मान्यता है। उनको उस स्वरूप में पूजन जा सकता हे।

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*   धन और सम्‍पन्‍नता की देवी मां लक्ष्‍मी की भी पूजा

शुक्रवार के दिन ही धन और सम्‍पन्‍नता की देवी मां लक्ष्‍मी की भी पूजा होती है।  मां लक्ष्मी की पूजा सफेद या गुलाबी वस्त्र पहनकर करनी चाहिए। इनकी पूजा का उत्तम समय मध्य रात्रि होता है। मां लक्ष्मी की उसी प्रतिकृति की पूजा करनी चाहिए, जिसमें वह गुलाबी कमल के पुष्प पर बैठी हों। साथ ही उनके हाथों से धन बरस रहा हो। मां लक्ष्मी को गुलाबी पुष्प, विशेषकर कमल चढ़ाना सर्वोत्तम रहता है। कहते हैं मां लक्ष्मी के मन्त्रों का जाप स्फटिक की माला से करने पर वह तुरंत प्रभावशाली होता है। शुक्रवार को लक्ष्‍मी जी उपासना करने से विशेष लाभ की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म में शुक्रवार को आदि शक्ति का दिन माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा कर उनका आशीर्वाद लिया जाता है। लक्ष्मी मां को धन की देवी कहा जाता है और इस दिन उनकी उपासना करने के साथ ही काफी लोग वैभव लक्ष्मी का व्रत भी करते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, मां लक्ष्मी को सफेद रंग बहुत प्रिय होता है।

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* गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं, इसका जप कभी निष्फल नहीं जाता

गायत्री भगवान का नारी रूप है। भगवान की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएं की आवाज की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं। गायत्री को भूलोक की कामधेनु कहा गया है।

गायत्री मंत्र- 'ऊं भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो न: प्रचोदयात्', को सबसे प्रभावी मंत्र माना जाता है। मान्यता है कि इसके जाप से सभी प्रकार के कार्यों में सिद्धि प्राप्त होती है। शास्त्रों में इस बात का उल्लेख मिलता है गायत्री वेदमाता हैं और समस्त पापों का नाश करने की शक्ति उनमें समाहित है। गायत्री मंत्र को सबसे पहला मंत्र भी कहा जाता है।

सभी धर्मग्रंथों में मिलता है उल्लेख
गायत्री सर्वश्रेष्ठ एवं सर्वोत्तम मंत्र है। जो कार्य संसार में किसी अन्य मंत्र से हो सकता है, गायत्री से भी अवश्य हो सकता है। इस साधना में कोई भूल रहने पर भी किसी का अनिष्ट नहीं होता, इससे सरल, श्रम साध्य और शीघ्र फलदायिनी साधना दूसरी नहीं है। समस्त धर्म ग्रंथों में गायत्री की महिमा एक स्वर में कही गयी है। अर्थववेद में गायत्री को आयु, विद्या, संतान, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली कहा गया है। विश्वामित्र ऋषि जी ने कहा है, ''गायत्री के समान चारों वेदों में कोई मंत्र नहीं है। संपूर्ण वेद, यज्ञ, दान, तप गायत्री की एक कला के समान भी नहीं हैं।''

गायत्री मंत्र से होने वाले लाभ
गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों में अनेक ज्ञान−विज्ञान छिपे हुए हैं। गायत्री साधना द्वारा आत्मा का शुद्ध स्वरूप प्रकट होता है और अनेक ऋद्धि−सिद्धियां परिलक्षित होने लगती हैं। गायत्री उपासना से तुरंत आत्मबल बढ़ता है। गायत्री साधना एक बहुमूल्य दिव्य संपत्ति है। इस संपत्ति को एकत्रित करके साधक उसके बदले में सांसारिक सुख एवं आत्मिक आनन्द भली प्रकार प्राप्त कर सकता है। गायत्री के 24 अक्षरों का गुंथन ऐसा विचित्र एवं रहस्यमय है कि उनके उच्चारण मात्र से जिव्हा, कण्ठ, तालु एवं मूर्धा में अवस्थित नाड़ी तंतुओं का एक अद्भुत क्रम में संचालन होता है। इस प्रकार गायत्री के जप से अनायास ही एक महत्वपूर्ण योग साधना होने लगती है और उन गुप्त शक्ति केंद्रों के जागरण से आश्चर्यजनक लाभ मिलने लगता है।

गायत्री मंत्र का महत्व
गायत्री भगवान का नारी रूप है। भगवान की माता के रूप में उपासना करने से दर्पण के प्रतिबिम्ब एवं कुएं की आवाज की तरह वे भी हमारे लिए उसी प्रकार प्रत्युत्तर देते हैं। गायत्री को भूलोक की कामधेनु कहा गया है। गायत्री को सुधा कहा गया है क्योंकि जन्म−मृत्यु के चक्र से छुड़ाकर सच्चा अमृत प्रदान करने की शक्ति से वह परिपूर्ण है। गायत्री को पारसमणि कहा गया है क्योंकि उसके स्पर्श से लोहे के समान कलुषित अंतःकरणों का शुद्ध स्वर्ण जैसा महत्वपूर्ण परिवर्तन हो जाता है। गायत्री को कल्पवृक्ष कहा गया है क्योंकि इसकी छाया में बैठकर मनुष्य उन सब कामनाओं को पूर्ण कर सकता है जो उसके लिए उचित एवं आवश्यक है। श्रद्धापूर्वक गायत्री माता का आंचल पकड़ने का परिणाम सदा कल्याणपरक होता है। गायत्री को ब्रह्मास्त्र कहा गया है क्योंकि कभी किसी की गायत्री साधना निष्फल नहीं जाती। इसका प्रयोग कभी भी व्यर्थ नहीं होता है।


गायत्री मंत्र साधना के नियम
गायत्री साधना के नियम बहुत सरल हैं। स्नान आदि से शुद्ध होकर प्रातःकाल पूर्व की ओर, सायंकाल पश्चिम की ओर मुंह करके, आसन बिछाकर जप के लिए बैठना चाहिए। पास में जल का पात्र तथा धूपबत्ती जलाकर रख लेनी चाहिए। जल और अग्नि को साक्षी रूप में समीप रख कर जप करना उत्तम है। आरम्भ में गायत्री के चित्र का पूजन अभिवादन या ध्यान करना चाहिए, पीछे जप इस प्रकार आरम्भ करना चाहिए कि कण्ठ से ध्वनि होती रहे, होंठ हिलते रहें, पर पास बैठा हुआ भी दूसरा मनुष्य उसे स्पष्ट रूप से न सुन समझ सके। तर्जनी उंगली से माला का स्पर्श करना चाहिए। एक माला पूरी होने के बाद उसे उलट देना चाहिए। कम से कम 108 मंत्र नित्य जपने चाहिए। जप पूरा होने पर पास में रखे हुए जल को सूर्य के सामने अर्घ्य चढ़ा देना चाहिए। रविवार गायत्री का दिन है, उस दिन उपवास या हवन हो सके तो उत्तम रहता है। 

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* संतोषी मां की पूजा से भी मिलेगा उत्तम फल

शुक्रवार को देवी के इस स्‍वरूप की भी पूजा होती है। सुख-सौभाग्य की कामना से संतोषी मां के 16 शुक्रवार तक व्रत किए जाने का विधान है। इस दिन सूर्योदय से पहले उठकर घर की सफ़ाई इत्यादि पूर्ण कर लें। स्नानादि के बाद घर में किसी पवित्र जगह पर माता संतोषी की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। उनके सम्‍मुख जल से भरा कलश रखें और उस के ऊपर एक कटोरा गुड़ चना भर कर रखें। माता के समक्ष घी का दीपक जलाएं, फिर अक्षत, फ़ूल, इत्र, नारियल, लाल वस्त्र या चुनरी अर्पित करें। देवी को गुड़ चने का भोग लगायें और कथा पढ़ कर आरती करें। कथा समाप्त होने पर हाथ का गुड़ चना गाय को खिला दें। कलश पर रखे गुड़ चने का प्रसाद सभी को बांटें। कलश के जल को घर में सब जगहों पर छिड़कें और बचा हुआ जल तुलसी की क्यारी में डाल दें। ध्‍यान रहे इस व्रत को करने वाले को ना तो खट्टी चीजें हाथ लगाना है और ना ही खाना है।

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