सरदार पटेल प्रथम प्रधानमंत्री होते तो क्या कुछ अलग होता, एक विश्लेषण - अरविन्द सिसोदिया
सरदार वल्लभभाई पटेल न केवल नेहरू की समाजवादी नीतियों से असहमत थे, बल्कि साम्यवाद (Communism) के वैचारिक विस्तार को भारत के लिए हानिकारक मानते थे। वे मानते थे कि भारत की शक्ति उसकी कृषि, श्रम और अनुशासन में है — न कि वर्ग-संघर्ष या विचारधारात्मक प्रयोगों में। सरदार पटेल संघ को साथ लेकर चल रहे थे, जम्मू और कश्मीर के विलय में संघ के सरसंघचालक माननीय गुरूजी का उपयोग भी पटेल नें महाराजा हरिसिंह जी को विलय के लिए तैयार करने में किया, गुरूजी के प्रयत्न से ही यह विलय संभव हुआ था। इसके अलावा देश विभाजन के कारण उत्पन्न विषम परिस्थिति में एकमात्र संघ ही शरणर्थियों की व्यवस्था कर रहा था, जिससे सरदार पटेल बहुत प्रभावित थे। पाकिस्तान से भारत आये शरणर्थियों को व्यवस्थित करने में सिर्फ संघ की ही भूमिका थी। संघ प्रचारक सुन्दरसिंह भंडारी जी के नेतृत्व में राजस्थान की सीमा पर बड़ा कार्य संघ के स्वयंसेवक कर रहे थे। पाकिस्तान से आये लालकृष्ण अडवाणी जी को भी उनके साथ लगाया गया था। जब कांग्रेस को स्वतंत्र भारत में राजनैतिक दल का रूप दिया जा रहा था, तब सरदार पटेल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विल...