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My Gov केदियों से रक्षा बंधन, करबा चौथ और होली की भाई दौज पर मिलनी

उद्देश्य है कि  —  सरकार की सामाजिक दृष्टि, संवेदनशीलता और महिला सम्मान के प्रति प्रतिबद्धता को होनी ही चाहिए। राज्य सरकार की नीति पत्रिका “महिलाओं के पर्व विशेष पर बंदी परिजनों से मुलाकात की विशेष व्यवस्था हेतु नीति” (रक्षा बंधन, करवा चौथ एवं होली की भाई दूज के अवसर पर) 1. भूमिका भारतीय समाज में महिला की भावनात्मक भूमिका परिवार के केंद्र में होती है। पति, भाई और पुत्र के साथ उसका संबंध केवल पारिवारिक ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का प्रतीक है। रक्षा बंधन, करवा चौथ और होली की भाई दूज जैसे पर्व महिला के स्नेह, विश्वास और पारिवारिक एकता के प्रतीक हैं। जब किसी महिला का पति या भाई कारागार में निरुद्ध होता है, तब इन पर्वों पर उसका मनोबल टूटता है और उसका सामाजिक एवं मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। ऐसे में, मानवीय संवेदनाओं के आधार पर राज्य सरकार यह नीति बनाती है कि इन तीन विशेष पर्वों पर महिलाओं को अपने बंदी परिजनों से मिलने की विशेष अनुमति दी जाएगी। 2. उद्देश्य इस नीति का उद्देश्य है — 1. महिलाओं के पारिवारिक एवं भावनात्मक अधिकारों की रक्षा करना। 2. कारागार में नि...

God’s Creation and Our Existence - Arvind Sisodia

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🌿 God’s Creation and Our Existence — Arvind Sisodia 9414180151 Whether we meet God or not… this question has entangled humankind for ages. Yet, have we ever considered that even in the seeming absence of God, we ourselves are but a fragment of His creation? When we observe our existence within the vastness of this universe, it becomes clear that the presence of the Divine is not confined to any idol, temple, or tradition — He resides within every being that carries life upon this Earth. We are the products of that divine workshop — the “Factory of God.” Trees and plants, animals and birds, insects and creatures of water, sky, and land — and we humans ourselves — all have emerged from that same invisible consciousness. Every form of life is a manifestation of that divinity, expressed through different shapes, forms, and natures. Once we realize that every soul originates from the same source, the walls of discrimination begin to fall away. Then, the killing of an animal, th...

ईश्वर की रचना और हमारा अस्तित्व- अरविन्द सिसोदिया

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विचार - 🌿 ईश्वर की रचना और हमारा अस्तित्व - अरविन्द सिसोदिया  9414180151 ईश्वर मिले या न मिले... यह प्रश्न युगों युगों से मनुष्य को उलझाता रहा है। लेकिन क्या हमने कभी यह विचार किया है कि ईश्वर की अनुपस्थिति में भी हम स्वयं उसकी रचना का ही एक अंश मात्र हैं? जब हम इस सृष्टि की विशालता में अपने अस्तित्व को देखते हैं, तब यह स्पष्ट हो जाता है कि ईश्वर की उपस्थिति किसी मूर्ति, मंदिर या परंपरा तक़ सीमित नहीं है — वह तो हर उस जीव में विद्यमान है, जो इस धरती पर जीवन धारण किए हुए है। हम इस ब्रह्मांड के उस ईश्वरीय कारखाने के उत्पाद हैं, जिसे "ईश्वर की फैक्ट्री" कहा जा सकता है। पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट-पतंगे, जलचर, नभचर, और स्वयं मानव, सभी उसी एक अदृश्य चेतना से उत्पन्न किये जा रहे हैं। हर जीवन उसी दिव्यता का रूप है, जो विभिन्न आकार, रूप और स्वभाव में प्रकट हुआ है। जब हम यह समझ लेते हैं कि हर जीवात्मा उसी मूल स्रोत से निकली है, तो भेदभाव की दीवारें स्वतः गिर जाती हैं। तब किसी पशु का वध, किसी पेड़ की कटाई, या किसी मनुष्य से घृणा, हमें भीतर से स्वयं विचलित करने लगती है। क्योंक...

चंद्रशेखर आजाद बनाम नेहरू जी

नोट - यह आलेख वाट्सएप पर ब्रजेश शर्मा के एकाउन्ट से कट पेस्ट है.....। भयानक हिन्दू द्रोही, समाज द्रोही और देश द्रोही जवाहर लाल नेहरू द्वारा कानपुर के महान क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद के साथ विश्वासघात करके उन्हें अपने आनंद भवन,, इलाहाबाद ( अब प्रयागराज ) के पास स्थित अल्फ्रेड पार्क में अंग्रेजों द्वारा मरवा देना ! 🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥🔥 महान क्रांतिकारी अमर हुतात्मा स्व. चन्द्रशेखर आज़ाद देश को स्वतंत्र कराने के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते थे। इसके लिए वे पहले कानपुर में क्रांतिकारी गणेश शंकर विद्यार्थी के पास गए। वहाँ उनसे और अन्य क्रांतिकारी साथियों से विचार विमर्श करते हुए यह तय हुआ कि हमें रूस के राष्ट्रपति स्टालिन की मदद लेनी चाहिए, क्योकि स्टालिन ने स्वयं ही चंद्रशेखर आजाद को रूस बुलाया था। सभी साथियों को रूस जाने के लिए उस समय बारह सौ रुपये की आवश्यकता थी, जो उनके पास नहीं थे। इसलिए आजाद ने प्रस्ताव रखा कि जवाहरलाल नेहरू से पैसे माँगे जायें, क्योंकि नेहरू के पास बहुत पैसा था और वे बाहर से देशभक्ति की बातें भी बहुत करते थे। इस प्रस्ताव का सभी ने विरोध किया और कहा कि नेहरू तो अंग्रेज...

नाथूराम गोड़से का बयान nathu ram godse

नोट - यह लेख सोसल मीडिया से कॉपी टू पेस्ट है... इसमें जो भी तथ्य हैँ तर्क है जानकारी है, इसके सत्य होनें का दावा नहीं करता हूं। इसकी पुष्ठी अन्य माध्यमों से करके ही सही मानें।.... सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने पर प्रकाशित किया गया  60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम गोडसे  का अंतिम भाषण -                     मैंने_गांधी_को_क्यों_मारा ! 30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुए बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया,   नाथूराम गोड़से समेत 17 देशभक्तों पर गांधी की हत्या का मुकदमा चलाया गया इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान #न्यायमूर्ति #खोसला से #नाथूराम जी ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था पर यह कोर्ट परिसर तक ही सिमित रह गयी क्योकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी ल...

बिहार में भाजपा की पकड़ मज़बूत

बिहार में भाजपा की पकड़ मज़बूत, जनता की पहली पसंद बनती जा रही है भाजपा अरविन्द सिसोदिया  9414180151 मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल और हालिया छह राज्यों में एनडीए की जीत और कांग्रेस की शून्य स्थिति से इंडी गठबंधन की स्थिति और कमजोर हुई है। 1- पहली बात तो यह है की नरेन्द्र मोदीजी की सरकार नें लगातार तीसरीबार अपने आपको रिपीट किया है। चुनावपूर्व का गठबंधन NDA पूर्ण बहुमत से सत्ता में लौटा है। यह 1962 के बाद पहली बार हुआ है। 2- मोदीजी की तीसरी सरकार के कार्यकाल में हुये अभी तक़ के चुनावों में 8 में से 6 में भाजपा गठबंधन जीता है, शेष दो में भी कांग्रेस गठबंधन जीता है किन्तु कांग्रेस वहाँ भी फस्ट नहीं है। अर्थात कांग्रेस जीरो पर ही है, आने वाले बिहार चुनाव में भी वह फस्ट नहीं है। 3- वर्तमान में, भाजपा के सीधे 14 राज्यों में मुख्यमंत्री हैँ और 15 राज्यों में वह सबसे बड़ी पार्टी है। वही भाजपा गठबंधन अभी 20 विधानसभाओं में सत्ता रूढ़ है। वहीं कांग्रेस  के मात्र तीन राज्यों में मुख्यमंत्री हैँ, कांग्रेस गठबंधन की बात करें तो 9 विधानसभाओं मे सत्ता रूढ़ हैँ। इस तरह से कांग्रेस ने तीन में न तेरह म...

कविता - राजनीति के राजघाट पर

🎵 गीत — “राजनीति के राजघाट” 🎵 (मुखड़ा) राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़, सारे मेवा खात अघाये, सारे पियत है खीर। लोक कहे, भ्रष्टता से फूटगई तकदीर, तंत्र कहें, सम्पन्नता से सात पीढ़ी की दूर हुई पीर ! (अंतरा 1) झंडा उठे, नारे लगें, वादा सबको मिलेगी खुशहाली , कुर्सी ज्यों मिली त्यों हुआ इंतजाम अपनी खुशहाली का, भाषण में सपने लाखों दिखलाते ,  मन में अपने सपनों की अंगड़ाई। राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़।। मुखड़ा दोहराव) राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़, सारे मेवा खात अघाये, सारे पियत है खीर। लोक कहे, भ्रष्टता से फूटगई तकदीर, तंत्र कहें, सम्पन्नता से सात पीढ़ी की दूर हुई पीर ! (अंतरा 2) जनता जैसी की जैसी, कार्यकर्ता मनमसोसे , पर नेताजी नें बंगला नया बनायो, कार काफिला नया आयो। जनता पूछे, कहाँ  से यह सब आया , कहें जनाब, सब भाग्य नें कमाया। (मुखड़ा दोहराव) राजनीति के राजघाट पर, नेतन की भई भीड़, सारे मेवा खात अघाये, सारे पियत है खीर। लोक कहे, भ्रष्टता से फूटगई तकदीर, तंत्र कहें, सम्पन्नता से सात पीढ़ी की दूर हुई पीर ! (अंतरा 3) चुनाव आए फिर से, ढोल नगाड़े बाजें, वो ही झू...

कांग्रेस फिर से ‘परजीवी पार्टी’ साबित हुई

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कांग्रेस फिर से ‘परजीवी पार्टी’ साबित हुई -अरविन्द सिसोदिया  9414180151 बिहार की राजनीति में इन दिनों जो दृश्य देखने को मिल रहा है, वह कांग्रेस की कमजोर होती स्थिति का ताजा प्रमाण है। इंडी गठबंधन की हालिया प्रेस वार्ता में मंच पर तेजस्वी यादव का बड़ा चित्र प्रमुखता से लगा था, लेकिन राहुल गांधी या किसी अन्य कांग्रेस नेता का चेहरा वहां लगे बेक ड्रो में नजर नहीं आया।  कार्यक्रम में तेजस्वी को गठबंधन का नेता और गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा भई बताया गया। जिसका कांग्रेस विरोध कर रही थी। वहीं उपमुख्यमंत्री चेहरा भी एक अन्य दल के व्यक्ति को घोषित कर दिया गया है। इस दृश्य ने साफ संकेत दिया कि कांग्रेस अब बिहार की राजनीति में नेतृत्वकर्ता नहीं, बल्कि मामूली सहायक दल बनकर रह गई है। यह स्थिति केवल बिहार तक सीमित नहीं है। पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी के गठबंधन में होनें के बावजूद उन्होंने कांग्रेस को प्रदेश में स्वीकार नहीं किया। वहाँ कांग्रेस सिमटती चुकी है ।  पंजाब में भी इंडी गठबंधन की आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया है, उसकी जमीन खिसका दी। अब वही कहानी ...

कविता - कहां खो गईं बहन-बेटियां

🌸 बहन-बेटियां 🌸 अरविन्द सिसोदिया  9414180151 अनीति के माहौल में, कानून के जंजाल में, संपत्ति के ख्याल में, कहां खो गई चुलबुल बहन बेटियां... --1-- जो चिड़िया-सी चहकती थीं, हर सुबह को रौनक देती थीं, घर-आंगन की शोभा थीं वो, हर रिश्ते में प्रेम भरती थीं। --2-- जिसके चेहरे की मुस्कान से घर का कोना-कोना महक उठता था, जिसकी आहट से हर दिल में, जीवन का संगीत गूंज उठता था। --3-- अब न जाने किस डर में सिमट गई वह , अंजानी दहसत से भर गई वह , शक और संपत्ति की उलझन में. अपने ही स्नेह के लिए तरस गई वह! --4-- जो राखी में भाई की कलाई पर सजाती थीं, भाई दौज पर ममता से घर-संसार भरती थीं, उपेक्षा से डरी सहमी अपने ही घर में ठिठक गई वह, बंद दरवाज़े, मुंह मोड़ते रिश्तों की सिसकी में गुम हो गई वह। --5-- क्या यही था वो समाज हमारा,जो संस्कार भूला, जहां नारी को मान मिलता था सर्वोपरी, अब तो हर खबर में दर्द का साया बन गया, क्यों, हर गली अब असुरों का माया बन गई!  --6-- लोकतंत्र और राजनीती के नासूरों ने रिश्ते छीने, संस्कारों और शिष्टाचारों को आधुनिकता की चक्की में पीसे , समाज की चेतना को जगाना होगा, सनातन कुट...

My Gov सुप्रीम कोर्ट की अनुकरणीय पहल, सभी न्यायालयों को मानवीय दृष्टिकोण अपनाना चाहिए

विधवा को ढूंढने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने लिया ये फैसला, 23 साल बाद 6 पर्सेंट ब्याज के साथ मिलेगा मुआवजा सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के एक ट्रेन हादसे में अपने पति को खो चुकी संयुक्ता देवी को 23 साल बाद मुआवजा दिलाया। कोर्ट ने रेलवे को उन्हें ढूंढकर मुआवजा देने का आदेश दिया, क्योंकि पहले ट्रिब्यूनल और हाईकोर्ट ने दावा खारिज कर दिया था। कोर्ट ने रेलवे को 4 लाख रुपये का मुआवजा 6% ब्याज के साथ देने का आदेश दिया। पुलिस और रेलवे ने मिलकर संयुक्ता देवी को खोज निकाला। महिला को ढूंढने की कोशिशें जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन कोटिस्वर सिंह की बेंच ने संयुक्ता को ढूंढने के लिए विशेष कदम उठाए। कोर्ट ने पूर्वी रेलवे को हिंदी और अंग्रेजी के प्रमुख अखबारों में सार्वजनिक नोटिस छपवाने का आदेश दिया। इसमें मुआवजे की जानकारी और जरूरी दस्तावेज जैसे आधार कार्ड और बैंक खाता विवरण जमा करने का जिक्र था। नालंदा के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक और बख्तियारपुर पुलिस स्टेशन के SHO को संयुक्ता का पता लगाने और उन्हें मुआवजे की जानकारी देने को कहा गया। साथ ही, बिहार राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण को उनके अंतिम ज्ञात पते पर जाकर ...

कविता - भारत

भारत  - अरविन्द सिसोदिया  9414180151 कर्तव्य और समर्पण जिसके पहिये, ईश्वर स्वयं जिसके सारथी, यही सनातन भारत है, जिसकी विश्व उतारे आरती। ---1--- जहाँ धर्म जीवन का आलोक है, अर्थ का साधन भी पुण्य मार्ग है, कर्तव्य , साधना का स्वरूप है, और मोक्ष उस यात्रा का ध्येय अनूप है। ---2--- यह वह भूमि है जहाँ सत्य केवल शब्द नहीं, जीवन का प्रण है, अहिंसा केवल नीति नहीं, अस्तित्व की पहचान है। जहाँ सेवा में ईश्वर बसता है, दया और करुणा ही समग्र सृष्टि है। --3-- यह वही भारत है — जो वेदों की ऋचाओं में गूंजता है, गीता के श्लोकों में जीवन का मर्म सिखाता है, उपनिषदों में आत्मा की अनुभूति कराता है। ---4--- यहाँ परंपराएँ जड़ नहीं, चेतना का प्रवाह हैं, संस्कार यहाँ बंधन नहीं, उत्थान की सीढ़ियाँ हैं। जहाँ त्याग में बल है, और बल में विनम्रता, जहाँ पुरुषार्थ और परमार्थ का समन्वय है। ---5--- यही तो वह सनातन भारत है, जो समय से परे, युगों से अमर, जिसकी धड़कन में मानवता का स्वर, जिसकी आत्मा में विश्वकल्याण का संकल्प। --- समाप्त ----

My Gov गरिमापूर्ण वस्त्र अनिवार्यता नियम

अरविन्द सिसोदिया  9414180151  विचार — यह प्रस्ताव भारत में संसदीय गरिमा, सरकारी संस्थानों की प्रतिष्ठा और लोकसेवा में गंभीरता एवं अनुशासन बनाए रखने की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। नीचे इस विचार के आधार पर एक “गरिमापूर्ण पहनावा संहिता (Dress Code)” का प्रारूप प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिसमें परिभाषा, उद्देश्य, नियम, प्रतिबंध, दंडात्मक प्रावधान और प्रवर्तन तंत्र शामिल हैं। 🇮🇳 गरिमापूर्ण पहनावा संहिता (Dress Code for Public Representatives and Officials), भारत प्रस्तावना लोकतांत्रिक व्यवस्था में निर्वाचित जनप्रतिनिधि, अधिकारी एवं कर्मचारी राष्ट्र की गरिमा, अनुशासन और सभ्यता के प्रतीक होते हैं। अतः उनका पहनावा समाज में शालीनता, भारतीय संस्कृति और पद की गरिमा के अनुरूप होना आवश्यक है। 1. उद्देश्य 1. संसदीय एवं सरकारी संस्थानों में गरिमामय वातावरण बनाए रखना। 2. पदाधिकारियों, जनप्रतिनिधियों और कर्मचारियों के पहनावे में शालीनता, पेशेवरिता और सांस्कृतिक संतुलन सुनिश्चित करना। 3. अशोभनीय, आपत्तिजनक या सार्वजनिक मर्यादा के विपरीत वस्त्रों पर निषेध एवं नियंत्रण स्थापित करना है । 2. परिभाष...

कविता - आगे बढ़ो

कविता  🌟 आगे बढ़ो 🌟 - अरविन्द सिसोदिया    9414180151 विश्वास जब थक कर टूट जाता है, पुरुषार्थ का साहस ही काम आता है। ईश्वर का सच्चा संदेश यही है, डरो मत, झुको मत — आगे बढ़ो, आगे बढ़ो, हिम्मत से ही हार पराजित होती है। ---1--- अंधेरों के बाद ही सवेरा आता है, जो गिर कर भी उठे, वही जीत पाता है। पथरीले रास्तों से मत घबराना, हर कांटे में छिपा फूल मुस्कुराता है। ---2--- समय की धारा को कोई रोक न पाया, जिसने खुद पर भरोसा किया, वही जीत पाया। संघर्ष ही जीवन की असली साधना है, जो डटा रहा, उसी ने जग पाया। ---3--- सपनों को सच करने की लगन जगाओ, अपने कर्मों से नई राह बनाओ। हार को जीत में बदलने की ठान लो, जीवन में हर पल आगे बढ़ते जाओ।  समाप्त 

कविता - नेता हूँ भई नेता हूँ - अरविन्द सिसोदिया

नेता हूँ भई नेता हूँ...  - अरविन्द सिसोदिया  नेता हूँ भई नेता हूँ, सब का सब कुछ लेता हूँ, चाँद-सितारे, धरती-अंबर, स्वर्ग का सिंहासन लेता हूँ। वोट की थाली, झूठ की माला, सच का भी सौदा करता हूँ, नेता हूँ भई नेता हूँ, सब का सब कुछ लेता हूँ। भ्रष्टाचार हमारा धंधा, काला-पीला अपना फंदा, जनता की आशा से खेलूँ, झूठ के सिक्के गढ़ता धंधा। वादों की रोटियाँ बाँटूँ, सपनों की दालें पकाता हूँ, नेता हूँ भई नेता हूँ, सब का सब कुछ लेता हूँ। सुख लेता हूँ दुख देता हूँ, शांति लेता भ्रांति देता हूँ, सत्य की ज्योति बुझाकर, झूठ की मशालें देता हूँ। भाग्य लिखा कर आया हूँ, सब सुख मैंने पाया हूँ, नेता हूँ भई नेता हूँ, सब का सब कुछ लेता हूँ। गाँव की गलियों में बच्चे भूखे, खेतों में सूखी है मिट्टी, पर मेरे घर में जगमग लाइटें, चमके मोटर और चिट्ठी। जनता रोए सड़कों पर, मैं मंचों से मुस्काता हूँ, नेता हूँ भई नेता हूँ, सब का सब कुछ लेता हूँ। वोट के मौसम में झुकता हूँ, चुनाव बीते तो रुकता हूँ, झूठे सपनों की थैली भर, वादों की माला पहनता हूँ। जनता पूछे, “वादा कहाँ?”, मैं भाषण में बहलाता हूँ, नेता हूँ भई नेता हूँ, सब...

सनातन अर्थात हमेशा नयापन

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सनातन अर्थात हमेशा नयापन  सनातन संस्कृति, सनातन जीवन पद्धति, यूँ तो एक अनुसंधान है.. सत्य को जानने की कोशिश है और उसमें से जो उचित प्राप्त हुआ उसे अपना कर आगे बढ़ते रहने की अनुसंधान यात्रा है। जिसमें ज्ञान विज्ञान और अनुसंधान सम्मिलित है।  इसमें देवी देवता हैँ, तीज त्यौहार हैँ, व्रत उपवास हैँ, मंदिर मठ प्रतिमायें पूजन अर्चन हैँ, विविध प्रकार के चढ़ावे हैँ , विशेष प्रकार की वस्तुओं का महत्व है , जैसे नरियल, अगरबत्ती, दीपक, तिलक, लच्छा, दीपावली पर साफ सफाई से लेकर आतिशबाजी तक़ है, जो वर्षात के कारण उत्पन्न विष्णुओं से मुक्ती का अभियान भी है। होली है रंगों से एक दूसरे को रंग कर सहनशिलता को अपनेपन का स्थापत्य है।  भोजन की विविधता कभी खीर पूड़ी तो, कभी पुआ पकोड़ी, कभी मूंग की दाल की पकोड़ी तो कभी तिल के लड्डू अर्थाय बदलते और विविधता से भरी हुई यह जीवन पद्धति है। जो नित नूतन है सदैव नई है। इसी लिए इसका नाम सनातन है। सदैव नूतन अर्थात सनातन। सनातन जीवन पद्धति में व्यक्ति इतना व्यस्त रहता है कि वह अपने सुख दुःख भूल जाता है, वह मान्यताओं और परंपराओं की व्यस्तता...

कविता - दीप जलाओ, जीवन सजाओ

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दीपावली के सबसे महत्वपूर्ण पहलू धार्मिक, सामाजिक, वैज्ञानिक और व्यवहारिक दृष्टि से दीपावली केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति का बहुआयामी उत्सव है — जो आध्यात्मिकता, स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था, पर्यावरण, स्वच्छता, और मानवीय संबंधों को जोड़ता है। यह पर्व मानव सभ्यता के विकास क्रम से जुड़ा हुआ है और प्रत्येक युग में अपनी विशेष भूमिका निभाता रहा है। 1. दीपावली और मानव सभ्यता का प्रारम्भ दीपावली की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी है — जब भगवान धनवंतरी (आयुर्वेद के जनक और स्वास्थ्य के देवता) तथा देवी लक्ष्मी (धन एवं समृद्धि की देवी) प्रकट हुए। यह घटना मानव सभ्यता में स्वास्थ्य और धन को दो मुख्य आधार के रूप में स्थापित करती है। इस प्रकार, दीपावली का मूल संदेश है — "स्वास्थ्य ही धन है" और समृद्ध जीवन के लिए शरीर, मन और समाज का संतुलन आवश्यक है। 2. स्वच्छता और स्वास्थ्य संरक्षण का वैज्ञानिक आधार दीपावली से पहले घरों की सफाई, रंगाई-पुताई और सजावट केवल धार्मिक परंपरा नहीं, बल्कि स्वास्थ्य विज्ञान का हिस्सा है। मानसून के बाद वातावरण में नमी, सीलन और बैक्टीरिया तेजी से...

My Gov दीपावली एवं होली प्रोत्साहन और छुट्टी नियमावली

दीपावली एवं होली प्रोत्साहन और छुट्टी नियमावली उद्देश्य: इस नियमावली का उद्देश्य दीपावली और होली के अवसर पर देशवासियों को उत्सव मनाने का पर्याप्त समय, यातायात सुविधा और आर्थिक सहायता प्रदान करना है, ताकि सामाजिक, सांस्कृतिक और पारिवारिक जीवन को बढ़ावा मिले। 1. अवकाश प्रावधान 1. दीपावली एवं होली के अवसर पर देश के सभी नागरिकों को 10-10 दिन की अवकाश सुविधा दी जाएगी। 2. अवकाश की अवधि के दौरान कर्मचारी/नागरिक अपने स्थान से कहीं भी यात्रा करके त्योहार मनाने के लिए स्वतंत्र होंगे। 3. यह अवकाश निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों दोनों में समान रूप से लागू होगा। 2. यातायात एवं आवागमन सुविधा 1. दीपावली और होली के अवसर पर रेल और बस सेवा के आवागमन को बढ़ाया जाएगा। 2. विशेष ट्रेनों और बसों का संचालन सुनिश्चित किया जाएगा ताकि नागरिकों को उनके गंतव्य तक आसानी से पहुंचने में सुविधा हो। 3. यातायात और सुरक्षा के लिए अतिरिक्त कर्मचारी और निगरानी व्यवस्था लागू की जाएगी। 3. महिलाओं के लिए आर्थिक सहायता 1. 8 वर्ष से अधिक उम्र की सभी महिलाओं को दीपावली और होली पर रूपये 2,000 या उससे अधिक आर्थिक सहायता प्रदान की जाएग...

खुशियों को बाँटना ही त्यौहार की असली प्रासंगिकता है” — ओम बिरला om birla

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विमंदित बच्चों द्वारा बनाए गए दीपकों का महिलाओं को वितरण  लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने दी स्वदेशी को अपनाने की प्रेरणा “खुशियों को बाँटना ही त्यौहार की असली प्रासंगिकता है” — ओम बिरला कोटा, 19 अक्टूबर। दीपोत्सव के शुभ अवसर पर रविवार सुबह दाधीच सामुदायिक भवन में कोटा उत्तर विधानसभा क्षेत्र के कार्यकर्ताओं द्वारा “दीपोत्सव की रामा-श्यामी” कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष एवं कोटा-बूँदी सांसद श्री ओम बिरला मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहे। कार्यक्रम का विशेष आकर्षण रहा — विमंदित बच्चों द्वारा बनाए गए मिट्टी के दीपकों का महिलाओं में वितरण, जिससे कार्यक्रम में संवेदनशीलता और आत्मीयता का सुंदर संदेश प्रसारित हुआ। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए श्री ओम बिरला ने कहा कि दीपावली केवल दीपों का त्योहार नहीं, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं और सामाजिक सदभाव का उत्सव है। उन्होंने कहा कि समाज और राजनीति में सक्रिय सभी कार्यकर्ताओं को खुशियाँ बाँटने में अग्रणी भूमिका निभानी चाहिए ताकि कोई भी परिवार इस पर्व की खुशियों से वंचित न रहे। उन्होंने कहा, “दीपावली का यह पर्...

मानसिक अवसाद की तरफ बढ़ती मानवता : संयुक्त परिवार बनाम विभक्त परिवार

🌿 संयुक्त परिवार बनाम विभक्त परिवार - अरविन्द सिसोदिया 9414180151 भारतीय संस्कृति की आत्मा यदि किसी संस्था में बसती है, तो वह है परिवार। परिवार ही वह इकाई है जो व्यक्ति को संस्कार, सुरक्षा और सामाजिकता प्रदान करती है। भारतीय समाज का पारंपरिक स्वरूप सदैव संयुक्त परिवार पर आधारित रहा है — एक ऐसा तंत्र जिसमें तीन या अधिक पीढ़ियाँ एक साथ रहती हैं, जहाँ सामूहिकता, सहयोग और परस्पर सम्मान की भावना जीवन का आधार होती है। किंतु बदलते समय के साथ यह स्वरूप तेज़ी से विभक्त परिवारों की दिशा में बदलता जा रहा है। यह परिवर्तन केवल भौतिक नहीं, बल्कि सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी गहरा प्रभाव छोड़ रहा है। 🌸 संयुक्त परिवार की संकल्पना और उसकी विशेषताएँ संयुक्त परिवार का तात्पर्य ऐसे परिवार से है, जिसमें दादा-दादी, माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची और अन्य सदस्य एक ही छत के नीचे रहते हैं। इस व्यवस्था में संसाधनों का उपयोग सामूहिक रूप से होता है। घर के बड़े बुज़ुर्ग मार्गदर्शन देते हैं, मध्यम पीढ़ी दायित्व निभाती है और नई पीढ़ी संस्कार सीखती है। इस व्यवस्था की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि इसमें हर व्यक्ति को ...