हिंदुत्व का मतलब ईश्वर के सॉफ्टवेयरों को जानने वाला - अरविन्द सिसोदिया God Software

हिंदुत्व का मतलब ईश्वर के सॉफ्टवेयरों को जानने वाला - अरविन्द सिसोदिया 

इस जगत में हम वही ग्रहण कर पाते हैँ जो हमारे शरीर की क्षमता होती है जैसे आँखे उतना ही देख पाती हैँ जो हमारे शरीर की क्षमता, जीतना ही सुन पाते हैँ जितनी शरीर की क्षमता! सभी पांच केंद्रीयां एवं सभी पांच ज्ञानेंद्रयां शरीर की क्षमता जितना ही ग्रहण कर पाती हैँ अथवा व्यक्त कर पाती हैँ। किन्तु जगत बहुत विराट है, विस्तृत है उसे कोई मानव शरीरपूर्णता से जन पाये यह असंभव है। हम सात रंग देखते हैँ संभवतः रंग इससे भी अधिक हों, हम सिर्फ सूर्य का प्रकाश देखते हैँ संभतः अलग अलग सूर्यो की रौशनी के प्रकाश का रंग और घटिअलग अलग हो! इसलिए यह अत्यंत विराट सृजन को कोई एक व्यक्ती दावे से यह नहीं कह सकता कि यह है और यह नहीं है।

समान्यतौर पर हम जब सृष्टि को कम्प्यूटर के दृष्टिकोण से देखते हैँ तो इसे तीन भागों में बांटते हैँ, सॉफ्टवेयर, हार्डवेयर और एनर्जी। इसे साधारण भाषा में इस तरह से समझा जा सकता है कि हमारा शरीर हार्डवेयर है , इसमें विराजमान मस्तिष्क का तमाम सक्रियतायें और निर्णय लेनी वाली आत्मा व अन्य स्वप्रेरित निर्णय शक्ति आदि ये सब सॉफ्टवेयर हैँ और जो शरीर में ताकत का काम करती है, जो शरीर में बल है यह एनर्जी अर्थात ऊर्जा है। इसके अतिरिक्त भी बहुत कुछ भिन्न भिन्न कार्यानुसार भी हैँ। मगर इन सब को संयुक्त रूप से देखा जाये तो हम सभी प्राणी और वनस्पति ईश्वर के उच्चतम कम्प्यूटर हैँ। जिन्हे ईश्वर निर्मित रोबोट भी कह सकते हैँ।

शरीर का निर्माण ईश्वर के अनुसंधान और निर्माण की प्रक्रिया की सर्वोच्चता है। ईश्वर विविध प्रकार के कार्यों और व्यवस्थाओं के द्वारा सृष्टि का संचालन करता है। यह एक बहुत बड़ा विज्ञान है और इसका निर्माता ईश्वर है। ईश्वर की व्यवस्थाओं का संचालन करने वाली लाखों - करोड़ो प्रकार की शक्तियाँ ही देवी - देवता होते हैँ। इसे हम ईश्वरीय प्रशासन भी कह सकते हैँ। 

हमारी मानव सभ्यता का मार्गदर्शन ईश्वरीय कार्य पद्धति ही करती है। ईश्वर की संपदा और व्यवस्थाओं से ही हम निरंतर ग्रहण करते रहते हैँ। हमारी प्रथम गुरु ईश्वरीय सत्ता ही है।

आधुनिक काल में यूरोप में ईश्वर के हार्डवेयरों पर बहुत काम हुआ, तो भारत में इससे आगे ईश्वर के सॉफ्टवेयरों पर बहुत काम हुआ। इसीलिये यूरोप में वैज्ञानिक प्रगति हुईं और भारत में आध्यात्मिक प्रगति हुईं। भारत में आश्चर्य चकित कर देनें वाले संत महात्मा बहुत अधिक पाये जाते हैँ। किन्तु यूरोप में वैज्ञानिक बहुत पाये जाते हैँ। ईश्वर जानता है की दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे के पूरक हैँ इसलिए उसनें हमारी पृथ्वी पर दोनों ही तरीके के मस्तिष्क उत्पन्न किये।

यूरोप में बहुत से इस तरह के वैज्ञानिक हैँ जिनका मत है कि ईश्वर नाम की कोई शक्ति नहीं है मगर इन्ही वैज्ञानिकों नें हार्डवेयर क्षेत्र में बहुत प्रगति की। इससे यह भी समझ में आता है की यह ईश्वरीय प्रेरणा ही है की मानव सभ्यता उसकी व्यवस्थाओं के वैज्ञानिक रहस्यों को जानें समझे और समस्याओं का हल करे।

एक मां के गर्भ में पल रहे बच्चे के मस्तिष्क में मां के मस्तिष्क से सारे सॉफ्टवेयर डाऊनलोड होकर उसे अपने जितना ही सक्षम बनाते हैँ। यानी की मनुष्य के द्वारा कॉपी करना डाऊनलोड करना जो अभी खोजा गया है वह मानव सभ्यता के प्रारंभ से ही अस्तित्व में है।

मां के गर्भ में बच्चे की हड्डीयां बन रहीं हैँ, नसें बन रहीं है पूरा शरीर बन रहा है, यह उस मां के द्वारा नहीं हो रहा, मां के मस्तिष्क में मौजूद सॉफ्टवेयर कर रहे हैँ। अर्थात मानव सभ्यता अथवा प्रकृति के प्रारंभ से पूर्व में ही सॉफ्टवेयरों का अस्तित्व था।

अर्थात इंजिनयरिंग, डॉक्टरी, कम्प्यूटरिंग आदि जटिल विज्ञान की स्थापना तो पूर्व में ही ही चुकी थी, उसको हम अपनी सुविधाओं के लिये निरंतर खोजते रहते हैँ।

प्रकृति सत्ता जो प्राण सत्ता भी कही जा सकती है उसकी क्षमतायें उसमें मौजूद हार्डडिस्क, रेम, रोम और मेमोरी पर निर्भर करती है। यह चींटी में अलग तो हाथी में अलग है। पौधे में अलग तो पेड में अलग होती हैँ।

इसी तरह सनातन में जीवात्मा और विशेषकर मनुष्यों में मस्तिष्क को लेकर कलाओं में बांटा गया है, यह मस्तिष्क की क्षमताओं की विशेषता है। इसे इस तरह से समझा सकता है की एक लेंड लाईन टेलीफोन था, फिर अपडेट वर्जन आया मोबाईल टू जी कहलाया, फिर थ्री जी, फोर जी, फाइव जी.... आदि क्रमबद्ध अधिक क्षमतावान होते जाना है। यही अवतारवाद का सिद्धांत है। 

हमें अभी भी देखने को मिलता है कि कुछ लोगों का मस्तिष्क बहुत तेज होता है। जैसे स्वामी विवेकानंद के बारे में कहा जाता है कि वे किसी भी पुस्तक का पेज देख कर ही याद कर लेते थे, उनकी स्मृति बहुत अधिक थी। महाभारत में भीष्म को 100 जन्मों तक का याद था किन्तु श्रीकृष्ण को उनके उससे भी अधिक जन्मों की जानकारी थी।

ईश्वर की व्यवस्था आन लाईन है, सब कुछ वाईफाई है। ईश्वर की आज्ञा का पालन पूरे ब्रह्मांड में होता है। पृथ्वी पर जो पानी h2o सूत्र का है । वहीं दूसरे पिंडों पर भी होता है। तत्वों की रचना, योगिकों की रचनाएं और इनका मिश्रण सब दूर एक जैसा पाया जाता है। गुरुत्वाकर्षण और चुंबकत्व ही सभी दूर अपनी क्षमतानुसार है। ईश्वर के बेसिक निर्मित वस्तुओं की रचना, कार्यशीलता अखिल ब्रह्मांड में एक जैसी ही है। 

 ब्रह्मांड में भी परिवारशीलता कुटुंबशीलता जैसी बातें देखने को मिलती है। हमारा सौरमंडल ( सूर्य का परिवार ) भी एक कुटुंब है और हमारी पृथ्वी चन्द्रमा के साथ परिवार बनाती है। बृहस्पति ग्रह, शुक्र ग्रह, शनि ग्रह भी अपने अपने चन्द्रमाओं के साथ परिवार बनाते हैँ। इस तरह का सभी आकाशगंगाओं में है। 

ईश्वर का कानून इन सभी पर अपनी वाईफाई या अपनी व्यवस्था से कमोवेश एक जैसा है।

हमारी पृथ्वी पर जो प्रकृति सत्ता है. वह अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु जिन जिन पिंड़ों पर हमारी पृथ्वी जैसा वातावरण होगा, वहाँ वहाँ जीवन की सत्ताएँ भी होंगी। 

हमारी प्राणी सत्ता अर्थात प्रकृति का बेसिक आधार कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन है, जिसे कार्बनिक रसायन शास्त्र कहा जाता है। इसी से हमारी पृथ्वी के चौरासी लाख प्रकार के शरीर बनते हैँ।

दूसरे ग्रहों पर शरीर सृष्टि हो सकती है उसका दूसरे आधार हो सकते है। जिन्हे हम एलियन्स कहते हैँ।

सनातन हिंदुत्व ने ईश्वर की व्यवस्थाओं की जो खोज की है उसमें प्रमुख इस प्रकार से हैँ :-

1-पुनर्जन्म - 
शरीर में आत्मा का निवास होता है, शरीर नष्ट होनें पर आत्मा शरीर से निकल जाती है और जीवित रहती है तथा ईश्वरीय व्यवस्था से पुनः दूसरे शरीर को धारण करती है। 

2- आत्मा - 

आत्मा मूलरूप में शरीर का मस्तिष्क है और वह अजर - अमर है। इसे हम सॉफ्टवेयर कह सकते हैँ। हिन्दू दर्शन इसके तीन स्वरूप बताता है। पहला सशरीर आत्मा अर्थात शरीर रूपी हार्ड वेयर इन विल्ट प्राण रूपी सॉफ्टवेयर , अन्य दो स्वरूप सूक्ष्म होते हैँ, जो सॉफ्टवेयर स्वरूप में होते हैँ।

3 - ईश्वर -
हिन्दू दर्शन ईश्वर के अस्तित्व को मानता है, क्योंकि कोई भी वस्तु स्वतः निर्मित नहीं होती बल्कि उसका कोई न कोई निर्माता होता है। सृष्टि का निर्माण जिसने किया है वह ईश्वर है और उसके सहयोगी शक्तियाँ देवी देवता है। उनका अपना प्रशासन है। यह सॉफ्टवेयर फॉर्म है और उन्होंने आवश्यकतानुसार हार्डवेयर स्वरूप भी धारण किया हो सकता है।

4- ईश्वर के उत्पाद पंच महाभूत - 
ईश्वर नें सृष्टि का निर्माण पंचमहाभूतों के स्वरूप में किया हुआ है। 
1- अग्नि ( तापमान ) 2- आकाश ( आकार ) 3- पृथ्वी ( ठोस )4- जल (द्रव ) 4- वायु ( गैस )..... संपूर्ण भौतिक जगत में यही अवस्थाएं होती हैँ।

टिप्पणियाँ

इन्हे भी पढे़....

सेंगर राजपूतों का इतिहास एवं विकास

पहले दिन से सुपरफ़ास्ट दौड़ रही है भजनलाल शर्मा सरकार - अरविन्द सिसोदिया cm rajasthan bhajanlal sharma

छत्रपति शिवाजी : सिसोदिया राजपूत वंश

हमारा देश “भारतवर्ष” : जम्बू दीपे भरत खण्डे

तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहे।

युवाओं को रोजगार से जोडने की भाजपा की ऐतिहासिक पहल - राकेश जैन BJP Kota City

जन गण मन : राजस्थान का जिक्र तक नहीं

ईश्वर तो समदर्शी, भेद हमारे अपने - अरविन्द सिसोदिया ishwar

महापुरुषों के शौर्य को पाठ्यक्रम में पर्याप्त स्थान दिया जाये Mahapurushon ko sthan

खींची राजवंश : गागरोण दुर्ग