शस्त्र और शास्त्र की युति ही अस्तित्व की गारंटी - अरविन्द सिसोदिया

शस्त्र और शास्त्र की युति ही अस्तित्व की गारंटी - अरविन्द सिसोदिया 

सनातन हिन्दू संस्कृति का मूल ध्येय शान्ति है, सदभाव है, सहअस्तित्व है, जियो और जीने दो। किन्तु राक्षसवृति से, कुवृति से सुरक्षा भी सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। सुरक्षा ईश्वरीय व्यवस्था है। यह मनुष्य ही नहीं पशुओं तक में है। इसीलिए सनातन हिन्दूओं के पूज्यनीय देवी देवताओं के हाथ में शस्त्र हमेशा रहे हैँ। जिसका स्पष्ट संदेश शस्त्र और शास्त्र की युति ही अस्तित्व की गारंटी है।

आदिदेव शंकर भगवान, भगवान विष्णु जी, देवी दुर्गा, श्री राम, श्री कृष्ण, गणेश जी, हनुमान जी, अपने हाथों में शस्त्रों से सुसज्जित हैँ क्योंकि शस्त्र ही सुरक्षा की गारंटी हैं। दुनिया की सभी महाशक्तियों नें परमाणु आयुधों का भंडारण क्यों किया, सुरक्षा के वास्ते। क्योंकि यही व्यवहारिक दृष्टिकोण है।

शास्त्र का अर्थ सामान्य ज्ञान तक सीमित नहीं है, पूर्व में लिखें ज्ञान तक सीमित नहीं है बल्कि शास्त्र का अर्थ है निरंतर ज्ञान में वृद्धि समृद्धि अर्थात ज्ञान विज्ञान अनुसंधान और आध्यात्मिक मिल कर शास्त्र है और यह एक जगह रुका हुआ नहीं है बल्कि निरंतर नये आयामों को प्राप्त कर्ता है। इसी में अस्त्र शस्त्र निर्माण और उनका अनुसंधान भी सम्मिलित है।

किन्तु हिंदुत्व के साथ लंबे समय से धोखा हो रहा है, अहिंसा के चक्रव्यूह में फंसा का इसका सर्वनाश किया जा रहा सनातन सभ्यता के विशाल भूभाग के टुकड़े इसीलिए हो गये कि पहले अहिंसा से शास्त्रविहीन किया गया और फिर धर्मविहीन कर दिया गया, अभी तक कुछ हजार वर्षों में ही हमारे विशाल भूभाग के 24 टुकड़े अलग कर दिये गये। 
 कुछ सो साल पहले तक अफगानिस्तान, तिब्बत, नेपाल भूटान बृहमदेश एक ही थे भारत का अंग थे। इन्हे अंग्रेजों नें अलग - अलग देशों में बांटा। भारत और चीन की सीमा कभी नहीं मिलती थीं, चीन तो चीन की दीवार तक ही सीमित था और बाहरी आक्रमणकारीयों से पीड़ित था तब उसने अपनी सुरक्षा के लिए चीन की दीवार बनवाई थी। चीन सिर्फ शास्त्रों की शक्ति पर आसपास के डेढ़ दर्जन देशों की भूमी और सुखशांति हड़पे बैठा है।

भारत से यह धोखे कुछ दसकों से नहीं है बल्कि तीन हजार साल पूर्व से  हो रहे है, अहिंसा की अती में भारत नें सब कुछ खो दिया, अब बहुत मामूली सा बचा है, इसे नहीं बचाया गया तो.....!  इसके धर्मग्रंथो में मिलावट कर अर्थ का अनर्थ करने की कोशिश अभी तक जारी है। इस्लामिक आक्रमणों में करोड़ो पुस्तकें जला दी गईं, करोड़ों मूर्तियों को खंडित किया गया। बाहरी पंथों के अलावा कुछ हमारे पंथों ने भी गलती की जिसका परिणाम हिंदुत्व का बुरा होनें के रूप में सामने आया।

शास्त्र और शास्त्र दोनों को साथ रखने की परंपरा अनादिकाल से रही है। ऋषि बाल्मीकी जी भविष्य को जानने वाले संत थे और उनके शिष्य लव और कुश नें अयोध्या की सेना को उन्ही बाल्मीकी जी के आश्रम में परास्त कर दिया था। यह बिना शस्त्र तो संभव नहीं था। अर्थात शास्त्र के ज्ञान का अर्थ ही शस्त्रों की जानकारी और प्रयोगिक अनुभव था। यदि लवकुश को अनुभव नहीं होता तो उस समय की विश्वविजयी सेना को कैसे पराजित कर पाते।

बाल्य काल में शस्त्र की शिक्षा देनें का वर्णन महाभारत में भी आता है, जिसमें गुरु द्रोणाचार्य एकलव्य को धनुष चलाने की शिक्षा नहीं देते बताये गये हैँ। अर्थात यह तो पांच हजार साल पहले का ही घटनाक्रम है। जो प्रमाणित करता है कि ऋषिगण, संत, गुरुजन आदि शस्त्र शिक्षा प्रदान करते थे।

सभी  जातियां सभी वर्ण शस्त्र धारी होते थे। अभी 40-50 वर्ष पहले ही जब कोई पुरुष घर से बाहर खेत खलिहान में जाता था तो लाठी, भाला बलम आदि साथ लेकर जाते थे। महिलाएं हंसिया साथ लेकर जातीं थीं। भील अभी भी धनुषबाण रखते हैँ। प्राया सभी घरों में तलवार पाई जाती थी। ब्राह्मण होनें का मतलब अपनी सुरक्षा नहीं करने वाला कभी नहीं रहा। ईश्वर की भक्ति गलतमार्ग पर चलने से रोकना है, अपनी सुरक्षा नहीं करना कभी नहीं रहा। रावण ब्राह्मण था वह शास्त्र के बजाए शस्त्र से युद्ध करता था।

महाभारत के युद्ध में द्रोणाचार्य और उनका पुत्र अश्वत्थामा युद्ध के मैदान में शस्त्रों से युद्ध कर रहे थे।

सिखों के गुरु गोविन्द सिंह हों या बंदा बैरागी हों नें सभी हिन्दुओं को सुरक्षा युद्ध के प्रेरित किया। गुरु गोविन्द सिंह जी ने जब सेना बनाई तो उसमें चारों वर्ण थे।

धर्म नीती राष्ट्र और समाज की सुरक्षा के लिए अनेकों अवसरों पर शास्त्र और शस्त्र एक साथ रहे हैँ। धर्म की विजय के लिए महर्षि दाधीची ने अपनी हड्डियां दान कर दीं थी जिनसे तीन अजेय शस्त्र बनें थे।

देवताओं ने विनीत भाव से कहा हे मुनीश्वर इस समय तो हम इतना ही कह सकते हैं कि अस्त्र दे दीजिए दधीचि मुनि बोले सब अस्त्र मेरी हड्डियों में मिल गए हैं अतः उन हड्डियों को ही ले जाओ यो कहकर दधीचि पादासन बांधकर बैठ गए उनकी दृष्टि नासिका के अग्रभाग पर स्थिर हो गई और योग साधना द्वारा शरीर निस प्राण हो गये उन्हीं हड्डियों से देवताओं के अस्त्र शस्त्र बनाए गए थे इंद्र का ब्रज ,गांडीव धनुष, पिनाक धनुष इत्यादि इंद्र ने दधीचि मुनि की हड्डियों से जो उनका ब्रज बना था उसी बज्र से वृत्रासुर का वध किया था।

बंगाल में स्वतंत्रता के लिए संतों का विद्रोह आनंदमठ में बाँकिमचंद्र चट्टोपाध्याय  नें वर्णित किया है, उसी आनंदमठ का गीत " वन्दे मातरम " था जो बाद में भारत की आजादी का महामंत्र बना।

नागा साधु धर्म की रक्षा के युद्ध लड़ते हैँ यह किसी से छुपा नहीं है।

इसलिए सनातन हिन्दू समाज को अपनी मूल अवधारणा को नहीं भूलना चाहिए। समाज की रक्षार्थ शस्त्र और शास्त्र एक साथ ही उपयोग होते हैँ।

अब जो दृष्य सामने है उसने यह आवश्यक कर दिया है कि प्रत्येक सनातन हिंदू अपनी सुरक्षा के बारे में विचार करें और अपने आप को सुरक्षित करें ।

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