कांग्रेस की वोट ठगनें की संविधान और लोकतंत्र विरोधी राजनीति पर विचार हो - अरविन्द सिसौदिया
कांग्रेस की प्रलोभन द्वारा वोट ठगनें की संविधान और लोकतंत्र विरोधी राजनीति पर गंभीरता से विचार हो - अरविन्द सिसौदिया
- Congress politics is dangerous
कांग्रेस की राजनीति में प्रलोभन आधारित वोट ठगो राजनीति देश के लिये घातक है, इससे संविधान और लोकतंत्र दोनों को ही खतरा पैदा हो गया है। कांग्रेस के राजकुमार राहुल गांधी का वह वीडियों अभी भी मिल जायेगा जिसमें वे गिनती बोल कर एक से दस तक गिनती गिनते हैं और कहते हैं किसानों का कर्ज मॉफ ! इसी मॉफी के आधार पर वे वोट ठग कर राजस्थान मध्यप्रदेश छतीशगढ आदि राज्यों में कांग्रेस सरकार बनानें में सफल हो जाते हैं मगर किसानों का कर्ज कभी मॉफ नहीं होता । इस तरह तो पहला मामला प्रलोभन का और दूसरा मामला ठगी का बनता है। किन्तु इतने बडे राजनैतिक फ्राड पर कोई भी संस्था एक्शन नही ले पाती है। यही लोकतंत्र और संविधान की विफलता है।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और विषेशकर सपा नें 8500 रूपये हर महीनें खाते में खटा खटा का हल्ला मचाया ! निर्वाचन आयोग को इस कृत्य को तुरंत राकना चाहिये था ! न निर्वाचन आयोग हिममत जुटा पाया और न कोई न्यायपालिका स्वतः संज्ञान ले पाई कि यह आप क्या कर रहे हैं। चुनाव को मजाक बना दिया इस तरह के प्रलोभन नें । गरीब और मध्यम वर्ग इसके प्रभाव में आया, 8500 रूपये हर महीनें मामूली रकम नहीं होती । कांग्रेस और सपा ने इससे वोट भी इगे सीटें भी ठगीं। जो गैर कानूनी हैं।
इलाहबाद उच्च न्यायालय में मामला आनें पर लगा था कि कोई माइलस्टोन जैसा ठोस निर्णय आ पायेगा, भविष्य में इस तरह की प्रलोभन आधारित वोट ठगो राजनीति पर रोक लगेगी। किन्तु फिलहाल याचिका तकनीकी कारणों से खरिज हो गई है। देखते हैं कि क्या याचिका पुनः आती है या सब कुछ इसी तरह गैर कानूनी चलता रहता है।
मेरा मत है कि इस पर कठोर नियंत्रण होना चाहिये कि कोई भी राजनैतिक दल न झूठ बोले, न भ्रम फैलाये और न प्रलोभन दे पाये।
Serious consideration should be given to the anti-constitution and anti-democracy politics of Congress to entice votes - Arvind Sisodia
The politics of enticement based vote enticements in Congress politics is dangerous for the country, it has posed a threat to both the constitution and democracy. The video of Congress prince Rahul Gandhi can still be found in which he counts from one to ten and says waive off the farmers' loans! On the basis of this waiver, he succeeds in forming Congress governments in states like Rajasthan, Madhya Pradesh, Chhattisgarh etc. by enticement of votes, but the farmers' loans are never waived off. In this way, the first case is of enticement and the second case of cheating. But no institution is able to take action on such a big political fraud. This is the failure of democracy and the constitution.
In this Lok Sabha election, Congress and especially SP created a ruckus about Rs 8500 being transferred to the account every month! The Election Commission should have stopped this act immediately! Neither the Election Commission could muster the courage nor the judiciary could take suo motu cognizance of what you are doing. This kind of temptation has made the elections a joke. The poor and the middle class came under its influence, Rs. 8500 per month is not a small amount. Congress and SP cheated people by using this money to get votes and seats. Which is illegal.
When the case came to Allahabad High Court, it seemed that a milestone-like decision would come and in future this kind of temptation-based vote-cheating politics would be stopped. But at present the petition has been dismissed due to technical reasons. Let us see whether the petition comes again or everything continues like this illegally.
My opinion is that there should be strict control on this so that no political party can lie, spread confusion and give temptation.
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बच गई कांग्रेस के 99 सांसदों की खारिज होनें योग्य सदस्यता
कुछ तकनीकी कारणों से इलाहबाद हाई कोर्ट नें सामाजिक कार्यकर्ता भारती सिंह की तरफ से दाखिल की गई याचिका को जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस मनीष कुमार निगम की डिवीजन बेंच नें खारिज कर दिया है। जिससे कांग्रेस के 99 सांसदों की सदस्यता फिलहाल बच गई है। जबकि यह चुनाव गैर कानूनी तरीके से 8500 रूपये प्रतिमाह बैंक खाते में डालनें के प्रलोभन द्वारा कांग्रेस नें वोट प्राप्त करके जीता है। इसलिये इनके निर्वाचन निरस्ती योग्य हैं। याचिका में सही प्रश्न होनें से हाईकोर्ट नें पुनः याचिका लगानें की अनुमती के साथ इसे निरस्त किया है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, जाने पूरा मामला
सामाजिक कार्यकर्ता भारती सिंह की तरफ से याचिका दाखिल की गई थी. जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस मनीष कुमार निगम की डिवीजन बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई.
बच गई कांग्रेस के 99 सांसदों की सदस्यता! इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका, जाने पूरा मामला
इलाहाबाद हाईकोर्ट
1. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी द्वारा अपनी सरकार बनने पर हर महीने साढ़े आठ हजार रुपए दिए जाने के वायदे से जुड़े मामले पर इलाहाबाद हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान झूठे वादे पर कांग्रेस पार्टी के सभी 99 सांसदों को अयोग्य घोषित किए जाने की मांग वाली जनहित याचिका को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.
2. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जनहित याचिका में पर्याप्त जानकारी नहीं देने के आधार पर याचिका को खारिज किया है. सामाजिक कार्यकर्ता भारती सिंह की तरफ से याचिका दाखिल की गई थी. जस्टिस मनोज कुमार गुप्ता और जस्टिस मनीष कुमार निगम की डिवीजन बेंच में इस मामले की सुनवाई हुई. अदालत ने जनहित याचिका में याचिकाकर्ता द्वारा अपनी पर्याप्त जानकारी नहीं देने के आधार पर याचिका को पारित करने की बात कही है.
3. दोबारा नए सिरे से दाखिल होगी याचिका
इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका को वापस लिए जाने की बात कही. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह पूरे तथ्यों के साथ याचिका को दोबारा नए सिरे से दाखिल करना चाहता है. याचिकाकर्ता की इस मांग पर अदालत ने याचिकाकर्ता को इसकी छूट देने की बात कही. लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस पार्टी द्वारा केंद्र मे सरकार बनने पर खटाखट हर महीने साढ़े आठ हजार रूपए अकाउंट में ट्रांसफर किए जाने की बात कही गई थी. इसका जिक्र कई रैलियों में भी किया गया था.
4. जनहित याचिका के जरिए कांग्रेस पार्टी का रजिस्ट्रेशन रद्द किए जाने, उसका चुनाव चिन्ह जब्त किए जाने और सभी 99 सांसदों को आयोग की घोषित किए जाने के साथ उनकी सदस्यता रद्द किए जाने की मांग की गई थी. सामाजिक कार्यकर्ता भारती सिंह की तरफ से याचिका दाखिल की गई थी. जनहित याचिका में भारती सिंह ने अपने बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी. कोर्ट ने कहा कि जनहित याचिका में याचिकाकर्ता के बारे में पूरी जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए.
5. कांग्रेस पर “नोट फ़ॉर वोट“ का आरोपः सभी 99 सांसदों की सदस्यता रद्द करने की याचिका दाखिल
हाल ही में कांग्रेस पार्टी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण याचिका दायर की गई है जिसमें पार्टी के सभी 99 सांसदों की सदस्यता रद्द करने की मांग की गई है। इस याचिका के केंद्र में कांग्रेस द्वारा चुनाव प्रचार के दौरान “नोट फ़ॉर वोट“ का मामला सामने आया है।
6. गारंटी कार्ड के जरिए भ्रम फैलाने का आरोप :
याचिकाकर्ता का आरोप है कि कांग्रेस ने चुनाव प्रचार में “गारंटी कार्ड“ का उपयोग कर मतदाताओं को भ्रमित किया। इस गारंटी कार्ड में कांग्रेस ने वादा किया था कि जीतने के बाद प्रत्येक वोटर को 1 लाख रुपये और 8500 रुपये दिए जाएंगे। इस तरह के वादे को याचिकाकर्ता ने चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन और मतदाताओं को प्रलोभन देने के रूप में देखा है।
7. “नोट फ़ॉर वोट“ का मामला :
भारतीय दंड संहिता की धारा 123 के तहत इस प्रकार के प्रलोभन को “नोट फ़ॉर वोट“ का मामला माना जाता है। यह धारा स्पष्ट रूप से कहती है कि चुनाव के दौरान मतदाताओं को पैसे या अन्य प्रकार के लाभ का लालच देकर वोट खरीदने का प्रयास करना कानूनन अपराध है। इस प्रकार, कांग्रेस पर आरोप है कि उसने इस धारा का उल्लंघन किया है।
8. याचिका की मुख्य बिंदु :
1. सदस्यता रद्द करने की मांगः याचिकाकर्ता ने सभी 99 सांसदों की सदस्यता रद्द करने की मांग की है, जो कांग्रेस के टिकट पर चुने गए थे। उनका तर्क है कि इन सांसदों का चुनाव अवैध है क्योंकि उन्होंने “नोट फ़ॉर वोट“ का सहारा लिया।
2. चुनाव आयोग की भूमिकाः याचिका में चुनाव आयोग से भी अपील की गई है कि वह इस मामले की गहराई से जांच करे और उचित कार्रवाई करे ताकि भविष्य में ऐसे किसी भी प्रकार के प्रलोभन से चुनाव प्रक्रिया प्रभावित न हो सके।
3. प्रलोभन देने के तरीकेः याचिका में यह भी उल्लेख किया गया है कि कांग्रेस ने गारंटी कार्ड के माध्यम से स्पष्ट रूप से मतदाताओं को पैसे का लालच दिया, जो कि एक असंवैधानिक और अनैतिक कार्य है।
9. संभावित परिणाम :
यदि यह याचिका सफल होती है और आरोप सिद्ध हो जाते हैं, तो कांग्रेस के लिए यह एक बड़ी राजनीतिक झटका साबित हो सकता है। इससे न केवल उनके सांसदों की सदस्यता खतरे में पड़ सकती है, बल्कि पार्टी की प्रतिष्ठा और भविष्य की चुनावी संभावनाओं पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
10. निष्कर्ष :
कांग्रेस पर “नोट फ़ॉर वोट“ का आरोप एक गंभीर मामला है जो भारतीय चुनावी प्रणाली में नैतिकता और पारदर्शिता के मुद्दों को उजागर करता है। यह मामला न केवल कानूनी बल्कि नैतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है और इसका परिणाम भारतीय राजनीति में दूरगामी प्रभाव डाल सकता है। चुनाव आयोग और न्यायपालिका के निर्णय इस मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे और यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले का निपटारा कैसे होता है।
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